ये आग कब बुझेगी: पिछले साढ़े 3 महीनों में उत्तराखंड के 2500 हेक्टेयर से अधिक जंगल जलकर हुए खाक

उत्तराखंड की वन विभाग की वेबसाइट के मुताबिक पिछले करीब साढ़े 3 महीनों में अब तक 1798 आग लगने की घटनाएं उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में दर्ज की जा चुकी हैं।

Deepak RawatDeepak Rawat   12 April 2021 1:00 PM GMT

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देहरादून (उत्तराखंड)। पिछले कई दिनों से उत्तराखंड के जंगलों को आग ने घेर रखा है। आग इतनी ज्यादा है कि इसे बुझाने के लिए राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से मदद मांगी है। साथ ही अब तक राज्य सरकार द्वारा मदद मांगे जाने पर गृहमंत्री अमित शाह द्वारा बिगड़ती परिस्थति को देखते हुए एयरफोर्स के दो मिग-17 हेलिकॉप्टर को तैनात किया जा चुका है, जिसके बाद गढ़वाल और कुमाऊं के जंगलों में आगे के बुझाने का काम निरंतर जारी है। उत्तराखंड वन विभाग की वेबसाइट के मुताबिक गढ़वाल, कुमाऊं दो कमिश्नरियों और वाइल्ड लाइफ एरिया को मिलाकर पिछले साढ़े 3 महीने में करीब 2539.15 हेक्टेयर वन संपदा जल चुकी है।

लगभग 53 हजार वर्ग किमी में फैला हुआ हिमालयी राज्य उत्तराखंड हर साल की तरह इस साल भी जंगल में आग की घटनाओं से जूझ रहा हैं। उत्तराखंड की वन विभाग की वेबसाइट के मुताबिक पिछले करीब साढ़े 3 महीनों में अब तक 1798 आग लगने की घटनाएं उत्तराखंड के विभिन्न जिलों में दर्ज की जा चुकी हैं, जिस कारण करीब 2539.15 हेक्टेयर पर मौजूद जंगल अब तक खाक हो चुके हैं। यह क्षेत्र करीब 4,600 फुटबाल मैदानों के बराबर होता है। इस दौरान आग से 12647 पेड़ों को नुकसान पहुंचा है।

जलवायु परिवर्तन की मार सहता उत्तराखंड

जानकारों के अनुसार उत्तराखंड में हर साल फरवरी में वसंत की शुरुआत में आग लगने की घटनाएं सामने आने लगती हैं, जो लगभग जून के अंत तक होती हैं। लेकिन ये वर्ष उत्तराखंड में घटित फायर सीजन के लिए तैयार हो रहे वन महकमे और स्थानीय प्रशासन के लिए कुछ अलग रहा क्योंकि इस बार पिछले साल अक्टूबर से ही आग लगने की घटनाएं सामने आने लगी थीं।


डीएफओ देहरादून राजीव धीमान आग लगने की घटनाओं सहित फायर सीज़न के अक्टूबर से शुरू होने पर विस्तार से चर्चा करते हुए बताते है, "ये घटनाएं तीन कारक तय करती है, पहली तापमान दूसरी नमी और आखिर में बॉयोमास फ्यूल (पेड़ो की पत्तियां इत्यादि), जिसमे हमारा कंट्रोल केवल फ्यूल पर है, जो कि वन महकमा हटाने का कार्य भी दिसंबर से शुरू कर देता है, जबकि बाकि दोनों कारक प्राकृतिक है और इस वर्ष सर्दियों के मौसम में बारिश भी बहुत कम देखने को मिली। इसके साथ ही हवा भी काफी तेज़ी से गति में चली रही, जिस कारण मानवीय परिणामों से लगी आग भी तेज़ी से फैलते हुए काफी बड़े क्षेत्र को अपनी चपेट में लेती रही।"

वहीं मौसम विभाग की ओर से जारी बारिश के आंकड़ों पर अगर नजर डालें तो इस बार जनवरी से मार्च तक उत्तराखंड में केवल 10.9 मिमी बारिश दर्ज की गई, जबकि सामान्य तौर पर इस अवधि में 54.9 मिमी बारिश होती है। यानी सामान्य से 80 प्रतिशत कम बारिश हुई।

उत्तराखंड में आग से सबसे ज्यादा प्रभावित पौड़ी जिले में अब तक 493 घटनाएं हुई, जहां भी 92 प्रतिशत से कम बारिश दर्ज की गई। इस अवधि में पौड़ी जिले में सामान्य रूप से 36.6 मिमी बारिश होती है, लेकिन इस बार मात्र 3.1 मिमी बारिश हुई। साथ ही जानकारों के अनुसार बढ़ता तापमान भी जंगलों में आग की घटनाओं को हवा दे रहा है।

इस वर्ष राज्य के सभी हिस्सों में फरवरी से ही तापमान सामान्य से बहुत ज्यादा चल रहा है। उल्लेखनीय है कि साल 2020 को नासा की ओर से जारी प्रेस रिलीज़ के अनुसार 2016 की तरह अब तक का दूसरा सबसे गर्म वर्ष माना गया था, वहीं साल 2021 के शुरुआती तीन महीने भारत के लिए खासे गर्म रहे हैं।

मानव जनित होती है आग लगने की घटनाएं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा मन की बात कार्यक्रम में नैनीताल जिले में पिछले कुछ वर्षो में चालीस हजार से अधिक पेड़ों की वनी तैयार कर प्रशंसा पा चुके पर्यावरण प्रेमी चन्दन नयाल व्यथित मन से इन घटनाओं पर कहते है, "आमतौर पर 90 से अधिक प्रतिशत उत्तराखंड में वनाग्नि की घटनाएं मानव सृजित ही होती है, जिसमे अक्सर पहाड़ी ग्रामीणों द्वारा कभी आढ़ा (गेहूं की कटाई के बाद का कूड़ा), काला बांसा (जंगलों में उगने वाली झाड़) तो कभी उत्तराखंड के जंगलों में सबसे ज़्यादा 25 फीसदी से अधिक वर्ग में फैले हुए चीड़ के पेड़ों से निकलने वाले 'पिरूल' को जलाने व फूंकने पर ये घटनाएं अस्तित्व में आती है, जो कि जंगलों को भारी मात्रा में वनाग्नि के रूप में खत्म करने का काम करती है. जिस पर खुद हमारे द्वारा कई बार ग्रामीणों को जागरुक किया जाता है, लेकिन ग्रामीण है जो मानते ही नहीं।"

जानकारों के अनुसार बढ़ता तापमान भी जंगलों में आग की घटनाओं को हवा दे रहा है। (फोटो-मेघा प्रकाश)

मसूरी क्षेत्र में अब तक वनाग्नि की 36 घटनाओं पर गांव कनेक्शन से चर्चा करते हुए डीएफओ मसूरी कहकशां नसीम बताती हैं, "सभी वनाग्नि की घटनाएं मानव सृजित हैं, लोग समझते नहीं कि इसके क्या दुष्परिणाम हो सकते है। कभी किसी ने जंगल में जलती बीड़ी या सिगरेट फेंक दी तो चिंगारी बड़ा रूप ले लेती है।

वहीं पिछले वर्ष से अब तक बारिश में कमी होने से नमी में कमी होने कारण और तापमान में बढ़ोतरी के साथ हवाओं के तेज चलने कारण वनाग्नि का मुख्य कारक रहा" कहकशां नसीम आसान शब्दों में आगे बताती हैं, "क्योंकि पहले की दिनचर्या और अबकी लोगों की दिनचर्या में काफी बदलाव आ चुका है, पहले लोग सुबह भोर में ही आढ़ा फूंक देते थे, लेकिन अब लोग दिन में देर उठने और दिनचर्या को देरी से शुरू करने कारण लगभग दिन के 12 बजे के बाद आढ़ा फूंकते हैं। जिस समय तापमान काफी बढ़ जाता है और नमी में कमी होने सहित पहाड़ो में हवाओं में बहाव के कारण आग बहुत तेज़ी से फैल जाती है, जो कि एक यह भी मुख्य कारक बन रहा है।"

वहीं वन महकमे ने भी बढ़ती वनाग्नि की घटनाओं पर सख्ती दिखाते हुए भारतीय वन कानून 1927 के तहत अब तक पांच ग्रामीणों पर कार्यवाई की है। साथ ही केदारनाथ वाइल्ड लाइफ सेंक्च्युरी में भी आग लगाने वालो की जानकारी देने पर हज़ार रुपये का इनाम भी घोषित कर दिया है.

वनाग्नि की घटनाओं पर नैनीताल हाईकोर्ट में लिया संज्ञान

प्रदेश के जंगलों में लगी भीषण आग के मामले पर नैनीताल हाई कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए उत्तराखंड के प्रमुख वन संरक्षक राजीव भरतरी को तलब करते हुए सवाल-जवाब में प्रमुख वन संरक्षक ने चौकाने वाला तथ्य बताया कि प्रदेश में 65 प्रतिशत फॉरेस्ट गार्ड के पद खाली होने के साथ अन्य पदों पर भी वन कर्मियों की भारी कमी है। जिस पर संज्ञान लेते हुए तुरंत कोर्ट ने वन रक्षकों के 65 प्रतिशत और एसिस्टेन्ट कंजरवेटर ऑफ फारेस्ट (ACF)के 82 प्रतिशत रिक्त पदों को छह माह में भरने के निर्देश जारी कर दिए साथ ही कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा कि फायर सीजन से दो महीने पहले आग पर काबू पाने के लिये मैन पावर और संसाधन पूरे कर लिये जाए। इसके साथ ही आग को लेकर नेशनल पॉलिसी बनाने का आदेश भी जारी किया है।


गौरतलब है वर्ष 2016 में वनाग्नि की घटनाओं के कारण 4500 से अधिक हेक्टेयर का क्षेत्रफल वनाग्नि की भेंट चढ़ गया था, जिसके बाद संज्ञान लेते हुए एनजीटी ने 23 मार्च 2017 में राज्य की आग को लेकर नेशनल पॉलिसी बनाने के साथ प्रयाप्त संसाधन के साथ मैन पावर व आग बुझाने के लिए उच्च तकनीकी वाले उपकरण लेने का आदेश दिया था, साथ ही अपने आदेश में एनजीटी ने फायर मैपिंग के साथ ग्रामीणों की भागिदारी बढ़ाने व रोजगार से जोड़ने का आदेश भी दिया था।

एनजीटी ने मॉकड्रिलकरने का साथ वॉच टावर बनाने और पंचायती राज विभाग के साथ तालमेल कर सैटेलाइट से आग पर निगरानी का निर्देश दिया था। कई जानकारों के अनुसार अगर इस पर अब तक अमल होता तो शायद इस तरह की घटनाएं न होती, जिसका ध्यान रखते हुए नैनीताल हाईकोर्ट ने इस फैसले को भी जरूरी तौर पर मेंशन भी किया।

वनाग्नि के शिकार जंगलों का मूल्यांकन बेहद कम

प्राप्त सरकारी आंकड़ों के अनुसार 9 नवंबर 2,000 में राज्य गठन के बाद से अब तक हर वर्ष आग लगने की घटनाओं से प्रदेश के 49,000 हेक्टेयर में मौजूद जंगल जलकर खाक हो चुके है जो की 85,000 फुटबॉल ग्राउंड्स के बराबर है। वहीं इस वर्ष वनाग्नि के कारण हुए आर्थिक नुकसान पर बात करे तो वन विभाग के मुताबिक अब तक 62 लाख से अधिक मूल्य की वन संपदा खाक हो चुकी है। जिसमें अब तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार छह व्यक्तियों सहित 17 वन्य जानवर भी अपनी जान गवां चुके हैं।

वहीं उत्तराखंड में हो रही वनाग्नि की घटनाओं को रोज़ बारीकी से देख रहे 'सोशल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिकेशन' के संस्थापक अनूप नौटियाल वन विभाग द्वारा वनों के आर्थिक नुकसान के आंकलन पर सवाल उठाते हुए कहते हैं, "उराखंड का वन विभाग एक हेक्टेयर जंगल के जलने पर नुकसान की कीमत 2,500 से 3,000 पर आंकता है. वहीं दूसरी ओर इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ फॉरेस्ट मैनेजमट (भोपाल) द्वारा वर्ष 2018 में जारी की गई एक रिपोर्ट के मुताबिक उराखंड की पयावरणीय सेवाओं (Ecosystem Services) का मूल्यांकन 95,112 करोड़ रुपए सालाना है।

इस आधार पर देखें तो एक हेक्टेयर वन का मूल्यांकन लगभग तीन लाख अस्सी हजार (3,88,000) रुपए सालाना होता है। अनूप नौटियाल आगे बताते हैं कि इसी रिपोर्ट को को सबसे पुख्ता आधार बनाकर राज्य सरकार केंद्र से ग्रीन बोनस की मांग करती हैं।

बता दें वन विभाग अपना मूल्यांकन 1988 में बनी राष्ट्रीय फॉरेस्ट पॉलिसी के हिसाब से करता है, जबकि 2018 में तैयार नई पॉलिसी के तहत वर्ष 2019 में नई राष्ट्रीय फॉरेस्ट पॉलिसी (NFP 2019)आ चुकी है जो की कई राज्य सरकारों द्वारा अब तक लागू होना बाकी है।

मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने वनाग्नि की घटनाओं को सूचित करने के लिए हेल्पलाइन नम्बर 1800-180-4141 जारी किया है, जिसे डायल कर कोई भी प्रदेश का व्यक्ति सूचित करने सहित मदद भी मांग सकता है।

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