जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से देश के 8 राज्य बेहद संवेदनशील

सरकार की ओर से जारी 'क्लाइमेट वल्नेराबिलिटी असेसमेंट फॉर एडाप्टेशन प्लानिंग इन इंडिया यूजिंग ए कॉमन फ्रेमवर्क' नामक इस रिपोर्ट के माध्यम से राज्यों और जिलों की पहचान की गई है, जो मौजूदा जलवायु संबंधी खतरों और संवेदनशीलता के मुख्य कारकों से जूझ रहे हैं।

India Science WireIndia Science Wire   20 April 2021 12:26 PM GMT

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जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से देश के 8 राज्य बेहद संवेदनशील

प्रतीकात्मक तस्वीर (पिक्साबे)

जलवायु परिवर्तन आज संपूर्ण विश्व के लिए एक चुनौती है। भारत के आठ राज्य झारखंड, मिजोरम, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, असम, बिहार, अरुणाचल प्रदेश और पश्चिम बंगाल जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से काफी संवेदनशील माने गए हैं। यह जानकारी सरकार की ओर से हाल ही में जारी एक रिपोर्ट से मिली है।

'क्लाइमेट वल्नेराबिलिटी असेसमेंट फॉर एडाप्टेशन प्लानिंग इन इंडिया यूजिंग ए कॉमन फ्रेमवर्क' नामक इस फ्रेमवर्क के माध्यम से भारत के ऐसे सबसे संवेदनशील राज्यों और जिलों की पहचान की गई है, जो मौजूदा जलवायु संबंधी खतरों और संवेदनशीलता के मुख्य कारकों से जूझ रहे हैं।

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) तथा स्विस एजेंसी फॉर डेवलपमेंट एंड कोऑपरेशन के सहयोग से किए गए इस देशव्यापी सर्वे में 24 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों के कुल 94 प्रतिनिधियों ने भागीदारी की। राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की सक्रिय भागीदारी और सहयोग से किए गए आंकलन और प्रशिक्षण तथा क्षमता निर्माण अभ्यास के जरिए ऐसे संवेदनशील जिलों की पहचान की गई है, जो नीति-निर्माताओं को उचित जलवायु क्रियाओं को शुरू करने में मदद करेंगे। इसके जरिए बेहतर तरीके से जलवायु परिवर्तन अनुकूलन परियोजनाएं तैयार की जा सकेंगी और उनके जरिए जलवायु परिवर्तन का दंश झेल रहे देश के विभिन्न समुदायों को लाभ होगा।

भारत में 100 सबसे अतिसंवेदनशील जिले (बाएं पैनल) और 200 सबसे अतिसंवेदनशील जिले (दायां पैनल)

भारत जैसे देशों में इस प्रकार के आकलन विभिन्न परियोजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। राज्यों और जिलों के उपलब्ध आंकलन से इसकी तुलना नहीं की जा सकती। क्योंकि इन आंकलनों के लिए जिन पैमानों का इस्तेमाल किया गया है, वे अलग अलग हैं। इसलिए ये नीतिगत और प्रशासनिक स्तर पर निर्णय लेने की क्षमता को सीमित करते हैं।

डीएसटी ने हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता के आंकलन के लिए एक समान प्रारूप बनाने का समर्थन किया है। यह जलवायु परिवर्तन संबंधी अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) की पांचवीं मूल्यांकन रिपोर्ट (एआर 5) पर आधारित है। इस समान प्रारूप और इसे लागू करने के लिए जरूरी मैनुअल को आईआईटी मंडी, आईआईटी गुवाहाटी और भारतीय विज्ञान संस्थान बेंगलुरु ने तैयार किया। इस प्रारूप को भारतीय हिमालयी क्षेत्र के सभी 12 राज्यों में क्षमता निर्माण प्रक्रिया के जरिए लागू किया गया ।

इस दिशा में किए गए प्रयासों के नतीजे हिमालयी राज्यों के साथ बांटे गए जिसके कई सकारात्मक परिणाम सामने आए हैं। जैसे कि इनमें से कई राज्यों ने पहले से ही संवेदनशीलता मूल्यांकन आधारित जलवायु परिवर्तन अनुकूलन कार्यों को प्राथमिकता दी है और उन्हें लागू भी कर चुके हैं। हिमालयी क्षेत्र के राज्यों में इनके लागू होने की उपयोगिता को देखते हुए यह निर्णय किया गया कि राज्यों की क्षमता निर्माण के जरिए पूरे देश के लिए एक जलवायु संवेदनशीलता आकलन अभ्यास शुरू किया जाए।


डीएसटी नेशनल मिशन फॉर सस्टेनिंग द हिमालयन इकोसिस्टम (एनएमएसएचई) और नेशनल मिशन फॉर स्ट्रैटेजिक नॉलेज फॉर क्लाइमेट चेंज (एनएमएसकेसीसी) मिशन के तहत 25 राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में राज्य जलवायु परिवर्तन सेल को समर्थन दे रहा है। राज्यों के इन जलवायु परिवर्तन सेल पर अन्य कामों के अलावा प्रारंभिक रूप से जलवायु परिवर्तन के कारण राष्ट्रीय, जिला और उप-जिला स्तर पर आ रही संवेदनशीलता का आकलन करने की जिम्मेदारी भी है।

इस फ्रेमवर्क को जारी करते हुए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के सचिव प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहा है कि "हमने यह देखा है कि कैसे चरम स्तर की घटनाएं बढ़ रही हैं। इस तरह के बदलावों को मानचित्र पर चिन्हित कर लेने से जमीनी स्तर पर जलवायु से संबंधित कार्यवाही करने में मदद मिलेगी। उन्होने कहा कि इस रिपोर्ट को सभी के लिए सुलभ बनाया जाना चाहिए ताकि जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन से जुड़ी परियोजनाओं के विकास के जरिए देशभर के जलवायु परिवर्तन की दृष्टि से नाजुक माने जाने वाले समुदायों को लाभान्वित किया जा सके। उन्होंने यह सुझाव दिया कि इन मानचित्रों को ऐप के जरिए उन लोगों को उपलब्ध कराया जाना चाहिए जिन्हें इसकी जरूरत है।

डीएसटी के जलवायु परिवर्तन कार्यक्रम (सीसीपी) के प्रमुख डॉ अखिलेश गुप्ता ने कहा है कि "भेद्यता का आकलन करना जलवायु संबंधी जोखिमों के आकलन की दिशा में पहला कदम है। ऐसे कई अन्य घटक भी हैं जिनका आकलन करना जलवायु संबंधी समग्र जोखिमों का पता लगाने के लिए जरूरी है।

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#Climate change #DST #story 

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