हाथियों-जनजातियों के बीच का रिश्ता और उनसे जुड़ी कई अनोखी कहानियाँ

Pankaja Srinivasan | May 15, 2023, 07:26 IST
ऑस्कर विनर डाक्यूमेंट्री 'द एलीफेंट व्हिस्परर्स’को जहाँ फिल्माया गया था, वहाँ से करीब 200 किलोमीटर दूर, टॉप स्लिप, कोयम्बटूर के एक शिविर में महावत, कावड़ी और कुमकी हाथियों से जुड़ी ढ़ेरों कहानियाँ मौजूद हैं। एशिया के सबसे पुराने हाथी शिविर वाले राज्य का ये हिस्सा हरे-भरे सौंदर्य के बीच बसा हाथियों का एक देश है।
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टॉप स्लिप (कोयम्बटूर), तमिलनाडु। अंडाल, कपिल देव, शारदा, तमिलन, दुर्गा, सरवनन, उयिरन, चिन्नातांबी... ये सब इधर से उधर घूमते हुए अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। दरअसल आज उनकी स्वादिष्ट और पौष्टिक खाने से दावत होने वाली है। पकी हुई रागी, कुल्थी और नमक व गुड़ के साथ मिला हुआ चावल उनके लिए खासतौर पर बनाया जा रहा है। सिर्फ इतना ही नहीं, ये सब खाने के बाद उनकी पसंदीदा मिठाई यानी गन्ना भी उनके सामने पेश किया जाएगा। वे अधीर थे। जब मैं देवी को थपथपा रही थी तो मैंने उसकी इस बेचैनी को महसूस किया था।

तभी अचानक देवी तेज़ आवाज़ में चिंघाड़ने लगी और मैं घबरा कर पीछे हट गई। ज़ाहिर तौर पर वह यकायक आए अजनबियों द्वारा अपनी सूँड को सहलाने और लगातार घूरने जाने से थक गई थी। उसने अपनी चिढ़न को तेज़ आवाज़ से ज़ाहिर किया था।

इतनी तेज़ कि उसके गले की घंटी भी हिलते हुए आवाज़ करने लगी थी।

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उसके महावत पलानीस्वामी ने प्यार से उसे फटकार लगाई और मुझे आश्वस्त करते हुए कहा कि वह मुझे किसी तरह का नुकसान नहीं पहुँचाएगी । लेकिन मैंने एक निश्चित दूरी बनाए रखी। देवी ने तेज़ी से अपना लंच किया और फिर हमसे नज़रे फेर ली।

हम जहाँ खड़े हैं वह टॉप स्लिप पर मौज़ूद कोझीकामुठी एलीफेंट कैंप है। इसे 1956 में बनाया गया था, लेकिन उससे बहुत पहले ही यहाँ कई हाथियों को लाने का सिलसिला शुरू हो गया था। 1800 के दशक के मध्य में जँगलों से जँगली हाथियों को पकड़ कर लाया गया और टॉप स्लिप में लकड़ी ले जाने के लिए प्रशिक्षित किया गया। टॉप स्लिप पश्चिमी घाट में तमिलनाडु के अन्नामलाई टाइगर रिज़र्व में पड़ता है और संरक्षित इंदिरा गांधी वन्यजीव अभयारण्य का हिस्सा है।

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देवी मूल रूप से टॉप स्लिप से 300 किलोमीटर से ज़्यादा दूर तिरुवन्नामलाई के जँगलों में घूमा करती थी और छह हाथियों के झुंड का हिस्सा थीं। पलानीस्वामी ने हमें बताया, “झुँड ने गाँवों पर धावा बोला और एक दिन उन्हें पकड़ लिया गया। देवी सहित तीन हाथियों को टॉप स्लिप में लाया गया, जबकि तीन अन्य को नीलगिरी के थेप्पाकडू में भेज दिया गया। थेप्पाकडू हाथी शिविर नीलगिरी ज़िले के मुदुमलाई टाइगर रिज़र्व में स्थित है, जहाँ ‘एलीफेंट व्हिस्परर्स’ को फिल्माया गया था।

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शिविर में रखे गए हाथी ‘कुमकी’ कहलाते हैं, जो इँसानी बस्तियों में भटकने वाले हाथियों को पकड़ने या वापस जँगल में ले जाने के लिए महावत और अधिकारियों की मदद करते हैं। यहाँ के हाथियों ने घायल हाथियों को बचाया भी है और शिविर में नए शामिल हाथियों को शांत करने में मदद की है। अक्सर यहाँ अनाथ और छोड़ दिए गए हाथियों के बच्चों को लाया जाता है और 'वरिष्ठ' हाथी उन्हें पालते हैं।

फिलहाल 46 साल के पलानीस्वामी ‘देवी’ की देखरेख कर रहे है। लेकिन इससे पहले उनके पास कल्पना चावला नामक एक हाथी की देखभाल का जिम्मा था, जो एशिया की सबसे ऊंची मादा हाथी के रूप में मशहूर थी। कल्पना भी पास के सेतुमदई गाँव में लगातार भटकने वाले एक झुँड के साथ आ थी। वह सबसे लंबी थी, इसलिए यह माना जाता था कि वह उस झुँड की कुलमाता थी। उसे पकड़ लिया गया और शिविर में लाया गया। पलानीस्वामी ने कहा, दुख की बात है कि वह पेट की बीमारी के चलते जीवित नहीं रह पाई।

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टॉप स्लिप के हाथी शिविर में काम पर लगे महावत और कावड़ियों (महावत के सहायक) के पास अपने वार्डों के बारे में सुनाने के लिए कई अकल्पनीय कहानियाँ हैं। महावत और कावड़ी सभी मालासर और कादर आदिवासी समुदायों से संबंधित हैं, जो इस क्षेत्र के मूल निवासी हैं। वे जँगल के लोग हैं जो सैकड़ों सालों से पक्षियों और जानवरों के साथ साथ रह रहे हैं।

जँगलों से घिरा शिविर, सुबह की धूप के आगोश में भी हलचलों से भरा था। यह हाथियों के खाने का समय था। एक बड़े कमरे में महावत एक लाइन में खड़े होकर पके हुए रागी, कुल्थी और चावल को गुड़ व नमक के साथ साथ गूंध रहे थे। उनके बड़े-बड़े गोले बनाकर उन्हें हाथियों को खिलाया जा रहा था।

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तभी एक विशालकाय हाथी ‘कलीम’ चहलकदमी करते हुए आगे बढ़ता है। उसके ऊपर बैठा महावत उसे नियंत्रण में किए हुए था। अपने 50 साल के शानदार करियर के बाद कलीम हाल ही में रिटायर्ड हुआ है !

कंजर्वेशन पोर्टल ‘पोलाची पपाइरस’ के संस्थापक प्रवीन शनमुघनंदन ने गाँव कनेक्शन को बताया, "वह उस समय एक छोटा बच्चा था जब उसे सत्यमंगलम के जँगलों से बचाकर लाया गया था। यह 1972 के समय की बात है।"

कलीम को 60 साल के होने के बाद सम्मानपूर्वक और औपचारिक रूप से गार्ड ऑफ ऑनर के साथ सेवानिवृत्त किया गया। उसने पिछले 20 वर्षों में तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और केरल में 25 से अधिक जँगली हाथियों को पकड़ने के लिए लगभग 100 ऑपरेशनों में भाग लिया था।

शिविर में बड़े हरे रंग के बोर्ड लगे हैं, जो आज वहाँ मौजूद प्रत्येक हाथियों के नाम, उम्र और उनसे संबंधित जानकारी के बारे में बता रहे हैं। इन्हीं में से एक है मरियप्पन।

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वहाँ से थोड़ी दूर, जँगल के पेड़ों के बीच एक हाथी अकेला खड़ा था, अपने सिर को इधर उधर घुमा रहा था। ऐसा लग रहा था मानो, वह अपने अदृश्य साथी की किसी बात से पूरी तरह से असहमत है। ज़ाहिर तौर पर वह अभी तक दोपहर के भोजन के लिए तैयार नहीं था।

पलानीस्वामी ने कहा, "मरियप्पन किसी बात को लेकर तनाव में है। उसका हाल ही में कावड़ी (महावत के सहायक) से झगड़ा हो गया था।"

पलानीस्वामी ने कहा, "हाथियों का भी मूड होता है, ठीक हमारी तरह। हम एक-दूसरे को पूरी तरह से समझते हैं।" पलानीस्वामी बचपन से ही हाथियों के बीच रहे है। उनके बड़े भाई, चाचा सभी महावत रहे हैं।

डेरे की सबसे बुजुर्ग हथिनी शिवगामी हैं, जिसकी उम्र 74 साल है। पलानीस्वामी ने बताया कि ये हाथी सौ साल तक तक जीवित रह सकते हैं। शिवगामी पानी की टँकी पर बड़े ही इत्मीनान से नहा रही थी।

हाथियों को हर रोज़ जॅंगल में जाने की भी इज़ाजत है। और उनकी अच्छी तरह से देखभाल की जाती है। जब हम वहाँ से जाने के लिए तैयार हुए, तो चेन्नई और कोयम्बटूर के पशु चिकित्सकों की एक टीम वहाँ पहुंच गई। अब सभी हाथियों को उनकी स्वास्थ्य संबंधी जाँच के लिए तैयार किया जाने लगा था।

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https://www.youtube.com/watch?v=Kr7DOghd4Gk
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