सीतापुर की एक नदी जिसे लोगों ने नाला बना दिया

Mohit ShuklaMohit Shukla   14 Sep 2019 12:28 PM GMT

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo

सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। "एक समय था जब ये खूब चौड़ी नदी हुआ करती थी, इसके किनारे ढ़ेर सारे पेड़ लगे रहते थे, लेकिन लोगों ने नदी के किनारों को पाटकर खेत में मिला लिया, अब तो ये बस नाला बनकर रह गई है, "सामाजिक कार्यकर्ता विनय शुक्ला ने बताया।

उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के लहरपुर ब्लॉक की मुगलपुर ग्राम पंचायत से होकर बहने वाली उल्ल नदी सिमटकर अब केवल नाला रह गई है। नदी पाटने से नाराज ग्रामीणों ने जिला मुख्यालय से लेकर सीएम कार्यालय तक नदी पटान बचाने के लिये न्याय की गुहार लगाई।लेकिन बावजूद भी इसके ग्रामीणों को निराशा मिली। दोनों गाँवो के बीच से निकली प्रकृति उल्ल नदी से लोगों को काफी राहत मिलती थी। लेकिन अब इस समय इस नदी का अस्तिव ख़तरे पड़ गया है।

सोनरी निवासी सामाजिक कार्यकर्ता विनय कुमार शुक्ला बताते हैं, "बारिश के समय मे गाँव का पानी इसी नदी में समाहित हो जाता था, लेकिन नदी पटने से अब काफी दिक्कतें बढ़ने लगी हैं। इसके पहले हमारे गाँव का जलस्तर काफी अच्छा हुआ करता था। लेकिन अब जलस्तर में दिन पर दिन घटता चला जा रहा है।"


उल्ल नदी पीलीभीत से निकलकर गोला होते हुए लखीमपुर शहर से सटकर उत्तर की ओर बहती हुई सीतापुर जिले में रामपुर मथुरा के पास शारदा नदी में मिल जाती है। खीरी जिले में उल्ल नदी की लंबाई करीब 95 किलोमीटर है। उल्ल नदी को लखीमपुर शहर की लाइफ लाइन कहलाई जाने वाली उल्ल नदी को अब किसी भगीरथ की तलाश है जो इसे एक बार फिर से पुनर्जीवित कर सकें। प्रदूषण से ग्रस्त इस नदी का अस्तित्व अब खतरे में है। नदी के दोनों किनारे डलाव घर बन चुके हैं।

इसमें मिलने वाले सैकड़ों नाले इसे इतना गंदा कर चुके हैं कि यह नदी खुद किसी नाले से कम नहीं लगती। पूरा पानी काला हो चुका है, तैरती हुई जलकुंभी और पॉलीथिन इस नदी का जीवन बन चुकी है। शासन की ओर से भी इस नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए गए। शहर की लाइफ लाइन कहलाए जाने का प्रमुख कारण यह है कि इसी नदी से इस शहर का जल स्तर कायम है। यदि यह नदी ही सूख गई इसके बगल के सैकड़ों गाँवों में जल स्तर कम हो जाएगा।

वो आगे कहते हैं, "इस उल्ल नदी को हम लोग पूजते भी है। गाँव में शादियां होकर आती हैं। तो इसी नदी के किनारे पूजन अर्चन करने के बाद मंडप को प्रवाह करते हैं। लेकिन अगर नदी ही नहीं बची तो हम क्या करेंगे।"

ग्रामीण पंकज दीक्षित बताते हैं कि नदी को बचाने के लिए हमने कई बार जिलाधिकारी को शिकायती पत्र दिया। एन्टी भू माफिया पर शिकायत दर्ज कराया। लेकिन निराशा ही हाथ आयी।

ये भी पढ़ें : जहां गोमती का हुआ जन्‍म, वहीं मारने की हुई शुरुआत

   

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.