मेंथा पेराई के समय इन बातों का रखें ध्यान तो नहीं होगा नुकसान

Lokesh Mandal shukla | Jun 09, 2017, 15:49 IST
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स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

रायबरेली। जून के प्रथम सप्ताह में मेंथा की फसल कटने को तैयार हो जाती है। कटाई के बाद मेंथा का आसवन करना होता है, ऐसे में किसानों के सावधानी न बरतने पर नुकसान हो सकता है।

तेल के लिए मेंथा की फसल को कटाई करने के बाद तेल निकालने वाले संयंत्र में फसल को ले जाते हैं। फिर कटे हुए मेंथा को कुछ समय के लिए फैला देते हैं, जिससे पत्तियां कुछ पीली पड़ जाती हैं और वजन भी कम हो जाता है। उसके बाद डिस्टिलेशन संयंत्र में भरकर इसे गर्म करते हैं, इस प्रकार जल वाष्प के साथ तेल बाहर आता है, जहां पहले से ही जल वाष्प को ठंडाकर इकठ्ठा कर लिया जाता है और अंत में जल से तेल को अलग कर लेते हैं। बचा हुआ अवशेष मल्चिंग और खाद के रूप में प्रयोग किया जाता है।

रायबरेली जिला उप कृषि निदेशक महेंद्र सिंह पेराई के समय बरती जाने वाली सावधानियों के बारे में बताते हैं, “पौधों का ढेर लगाने पर उसमें गर्मी पैदा होती है, जिससे तेल वाष्पित हो जाता है। कटाई के बाद पौधों को खेत में या आसवन यूनिट के पास फैलाकर नहीं रखना चाहिए।”

मेंथा की पहली कटाई बारिश से पहले जून और दूसरी कटाई सितम्बर से अक्टूबर में की जाती है। अगर फसल अच्छी है तो एक बीघे मेंथा की फसल से लगभग 30 से 35 लीटर तेल प्राप्त हो जाता है। लेकिन अगर पेराई के समय सावधानी न बरती तो तेल घट भी सकता है।

महेंद्र सिंह आगे बताते हैं, “मेंथा की कटाई के बाद 72 घंटों के अंदर ही आसवन कर लेना चाहिए। नहीं तो फिर तेल की मात्रा में कमी आ सकती है। आसवन के पहले ध्यान रखें कि कंडेन्सर के पानी को ठंडा रखें, वो गर्म नहीं होना चाहिए। कंडेन्सर में जहां से पानी निकलता है उसे छू कर देखें अगर पानी ज्यादा गर्म निकल रहा है तो इसका मतलब कंडेन्सर ठीक से काम नहीं कर रहा है। ऐसे में गर्म पानी से तेल भाप बनकर उड़ जाता है, जिससे किसानों को नुकसान हो जाएगा।”

मेंथा आयल को टिन या फिर एल्यूमिनियम के ड्रमों में रखना चाहिए, ड्रमों में भरकर इसे एयर टाइट कर सूर्य के प्रकाश से दूर रखना चाहिए, साथ ही जिस कमरे में रखा जाए वो कमरा ठंडा हो, सूर्य के सीधे प्रकाश से मेंथॉल पीले रंग से हरे रंग में बदल जाता है, जिससे तेल की गुणवत्ता कम हो जाती है।

रायबरेली से 33 किलोमीटर दूर बछरावां ब्लॉक में मेंथा का व्यापार करने वाले शंकर वर्मा (45वर्ष) बताते हैं, “तेल का रंग सुनहरा होना चाहिए, इसीलिए इसे गोल्डन आयल भी बोलते है। तेल ऐसा होना चाहिए कि अगर हम उसमे ऊपर से किसी टॉर्च से रोशनी डाले तो वो नीचे तक दिखाई दे।”

वहीं बछरावां से छह किलोमीटर दूर प्रसाद खेड़ा के बहोरन बताते हैं,“ हम लोग फसल दो बार नहीं काट पाते, लेकिन रायबरेली से सात किलोमीटर दूर देदौर दरीबा के किसान सीजन में फसल दो बार काट लेते हैं, क्योंकि उधर वो ज्यादातर धान की खेती नहीं करते हैं।”

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