सरकारी हैचरी में बीज न मिलने के कारण किसान महंगा बीज लेने को मजबूर
Khadim Abbas Rizvi | Jun 08, 2017, 15:41 IST
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
जौनपुर। जिले के खेतासराय स्थित गूजर ताल के सरकारी हैचरी में मछली उत्पादन नहीं हो रहा है। इसकी वजह से मत्स्य पालकों को बीज सस्ते दाम पर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। प्राइवेट हैचरी से बीज लेने पर मत्स्य पालकों को कई गुना अधिक रेट लेना पड़ रहा है। नतीजतन कई छोटे मत्स्य पालकों का तो धंधा चौपट ही हो गया है जबकि बड़े मत्स्य पालक जैसे-तैसे मछली पालन कर रहे हैं।
सस्ती दरों पर मत्स्य बीज न मिलने का असर सिर्फ किसानों पर ही नहीं बल्कि आम लोगों पर भी पड़ रहा है। मछली का रेट बाज़ार में आसमान छू रहा है।
गौरतलब है कि खेतासराय स्थित गूजर ताल करीब 100 एकड़ में फैला हुआ है। वैज्ञानिक विधि से मछली उत्पादन के लिए यहां करीब 25 एकड़ में सरकारी हैचरी भी है लेकिन हैचरी में मछली उत्पादन न के बराबर होने के कारण असर मत्स्य पालकों पर पड़ रहा है।
बतातें चलें कि सरकारी हैचरी से मत्स्य पालकों को सौ रुपए में करीब 800 से 1000 क्लवा
लिटी वाला मत्स्य बीज मिल जाता है जबकि प्राइवेट में हैचरी से 800 या 1000 मत्स्य बीज लेने के लिए मत्स्य पालकों को करीब 500 रुपए खर्च करना पड़ता है। ऐसे में छोटे मत्स्य पालक मत्स्य बीज नहीं ले पाते हैं और उनका धंधा चौपट हो जाता है। जो फिलहाल जौनपुर के मत्स्य पालकों की मौजूदा स्थिति है। इतना ही नहीं इसका असर मार्केट पर भी पड़ रहा है। पहले जहां मछलियां 50 से 60 रुपए किलो मिलती थीं। अब उनका रेट 200 के पार है।
आरके श्रीवास्तव, मत्स्य प्रभारी, गूजर ताल हैचरी
बताया जाता है कि गूजर ताल स्थित हैचरी से पहले दूसरे जिलों के मत्स्य पालक बीज ले जाते थे लेकिन अब यहां कि मत्स्य पालकों को दूसरे जिलों का रुख करना पड़ता है। गूजर ताल में स्थित हैचरी में मछली उत्पादन न हो पाने की एक वजह यह भी है कि सरकार जितना धन उपलब्ध कराती है, उसका डेढ़ गुना मांगती है। यदि सरकार को फायदा नहीं होता तो फिर दोबारा
बजट रिलीज नहीं किया जाता है। गूजर ताल की हैचरी में दिक्कत यह भी है कि यहां का मछली उत्पादन का पूरा सिस्टम पूरा हो चुका है जबकि कर्मचारियों की भी कमी है। ऐसे में मछली उत्पादन पर इसका असर पड़ता है।
सिदृीकपुर निवासी सुभाष सोनकर (35 वर्ष) का कहना है,“ मत्स्य बीज पहले गूजर ताल से मिल जाते थे तो दूसरे जिलों और प्राइवेट हैचरी का रूख नहीं करना पड़ता था। इससे हम सभी को काफी फायदा मिलता था।”
वहीं खेतसराय के रहने वाले छटटू सोनकर (45 वर्ष) ने बताया,“ गूजर ताल में मत्स्य बीज न मिलने की वजह से प्राइवेट हैचरी से महंगे रेट में बीज लेना पड़ता है। इसकी वजह से कारोबार पर असर पड़ रहा है। कारोबार भी अब पहले जैसा नहीं रह गया है। ”
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जौनपुर। जिले के खेतासराय स्थित गूजर ताल के सरकारी हैचरी में मछली उत्पादन नहीं हो रहा है। इसकी वजह से मत्स्य पालकों को बीज सस्ते दाम पर उपलब्ध नहीं हो पा रहे हैं। प्राइवेट हैचरी से बीज लेने पर मत्स्य पालकों को कई गुना अधिक रेट लेना पड़ रहा है। नतीजतन कई छोटे मत्स्य पालकों का तो धंधा चौपट ही हो गया है जबकि बड़े मत्स्य पालक जैसे-तैसे मछली पालन कर रहे हैं।
सस्ती दरों पर मत्स्य बीज न मिलने का असर सिर्फ किसानों पर ही नहीं बल्कि आम लोगों पर भी पड़ रहा है। मछली का रेट बाज़ार में आसमान छू रहा है।
गौरतलब है कि खेतासराय स्थित गूजर ताल करीब 100 एकड़ में फैला हुआ है। वैज्ञानिक विधि से मछली उत्पादन के लिए यहां करीब 25 एकड़ में सरकारी हैचरी भी है लेकिन हैचरी में मछली उत्पादन न के बराबर होने के कारण असर मत्स्य पालकों पर पड़ रहा है।
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लिटी वाला मत्स्य बीज मिल जाता है जबकि प्राइवेट में हैचरी से 800 या 1000 मत्स्य बीज लेने के लिए मत्स्य पालकों को करीब 500 रुपए खर्च करना पड़ता है। ऐसे में छोटे मत्स्य पालक मत्स्य बीज नहीं ले पाते हैं और उनका धंधा चौपट हो जाता है। जो फिलहाल जौनपुर के मत्स्य पालकों की मौजूदा स्थिति है। इतना ही नहीं इसका असर मार्केट पर भी पड़ रहा है। पहले जहां मछलियां 50 से 60 रुपए किलो मिलती थीं। अब उनका रेट 200 के पार है।
हैचरी का मछली उत्पादन करने का सिस्टम पुराना हो गया है। कई मशीनें भी खराब हैं इसलिए फीडिंग नहीं हो पा रही है।
सरकार फायदा देखकर ही बजट पास करती हैं
बजट रिलीज नहीं किया जाता है। गूजर ताल की हैचरी में दिक्कत यह भी है कि यहां का मछली उत्पादन का पूरा सिस्टम पूरा हो चुका है जबकि कर्मचारियों की भी कमी है। ऐसे में मछली उत्पादन पर इसका असर पड़ता है।
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वहीं खेतसराय के रहने वाले छटटू सोनकर (45 वर्ष) ने बताया,“ गूजर ताल में मत्स्य बीज न मिलने की वजह से प्राइवेट हैचरी से महंगे रेट में बीज लेना पड़ता है। इसकी वजह से कारोबार पर असर पड़ रहा है। कारोबार भी अब पहले जैसा नहीं रह गया है। ”
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