पुत्र प्रेमी समाज के लिए हुई एक और बेटी शहीद, काश किसी को गोद ही दे देते
Swati Shukla | Jun 10, 2017, 12:05 IST
लखनऊ। गोमती नदी के घाट पर बच्ची का भ्रूण उतराता मिला। ये कोई पहला मामला नहीं था, नदी, तालाबों के अलावा शहर के कूड़ेदानों, अस्पतालों की सूनसान जगहों पर मिलने वाले शव बताते हैं कि अलग-अलग रूपों में कन्या भ्रूण हत्या लगातार जारी है, जबकि लाखों लोग ऐसी बच्चियों को गोद लेकर नई जिंदगी दे सकते हैं।
अगर इन बच्चियों की जान लेने वाले माता-पिता थोड़ी समझदारी दिखाते तो न सिर्फ ये बच्चियां जिंदा होतीं, बल्कि उन लाखों घरों में किलकारियां गूंज रही होतीं जो इन अनचाही बच्चियों को गोद लेने के लिए इंतजार करते हैं, लेकिन गोद लेने की प्रक्रिया इतनी पेचीदा और भ्रष्टाचार में लिपटी हुई है, इनमें से ज्यादातर को मायूसी ही हाथ लगती है।
लखनऊ के मनकामेश्वर महादेव मंदिर के स्वयंसेवक गुरुवार सुबह घाटों की सफाई करने पहुंचे, तब लोग नदी में पड़ी बच्ची की लाश को देखकर दंग रह गए। बच्ची की सिर्फ तस्वीरें ली जा सकीं, इससे पहले पुलिस और कोई उन्हें उठाता नदी के बहाव में शव बह गया। सीओ महानगर विशाल विक्रम ने बताया कि ये एक बच्ची का मृत भ्रूण था। गोमती बैराज को बंद करा के तलाश जारी है। पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक, पिछले करीब पांच साल में राजधानी में 20 कन्या भ्रूण इधर-उधर सड़क पर पाए गए। वैसे भ्रूण कई बार बालकों के भी मिले, मगर उनमें कन्याओं की संख्या कहीं अधिक थी।
वहीं, बाराबंकी के देवा ब्लॅाक की रहने वाली आंगनबाड़ी कार्यकत्री नाम न बताने की शर्त पर बताती हैं, “हमारे ही जिले में कुछ ऐसी आशा बहुएं हैं, जो महिलाओं के गर्भपात कराने में मदद करती हैं। ज्यादा पैसे के चक्कर में गर्भपात कराने के लिए गैर सरकारी अस्पताल में ले जाती हैं। ऐसे में इन आशाओं को दो तरीके से पैसे कमाने का मौका मिल जाता है। एक तो परिवार से गर्भपात कराने का और दूसरा अस्पताल में महिला को लाने का। हमारा काम है कि हम भ्रूण हत्या रोके और परिवार और महिलाओं को इस बात की जानकारी देते हैं।”
बच्चियों के भ्रूण मिलने और तमाम रोकों के बाद भी लिंग जांच के बाद गर्भपात की ख़बरें इसलिए हैरान करने वाली हैं, क्योंकि देश में बेटी बचाओ अभियान केंद्र की फ्लैगशिप योजना में शामिल है और बच्चियों का अनुपात घट रहा है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के सांख्यिकी रिपोर्ट के मुताबिक, उत्तर प्रदेश में बच्चों के लिंगानुपात में तेजी से गिरावट आ रही है। स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली की डाटा के आधार पर कैग रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी में प्रति हजार लड़कों के 2015 में लिंगानुपात गिरकर 883 रह गया है।
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लखनऊ की जानी-मानी स्त्री रोग चिकित्सक अरुणिमा सक्सेना का कहना है, “गोद लेने के नियमों में थोड़ा लचीलापन लाया जाए। ये अच्छी बात है कि समाज की सोच बदली है, लोग सरकारी तौर पर गोद लेने के लिये आ रहे हैं, अगर गोद लेने की प्रक्रिया थोड़ी सरल हो तो ज्यादा बच्चों को घर मिल सकेंगे।” हालांकि वो प्रशासनिक निगरानी को बच्चों के हित में मानती हैं। हालांकि इलाहाबाद में उच्च न्यायालय के अधिवक्ता वाईपी सिंह का कहना है कि नियम भी जरूरी है विशेषकर लड़कियों के अडॉप्शन में। नियमों की निगरानी की वजह से वे गलत हाथ में जाने से बच जाती हैं।
लेकिन विभाग के सामने बड़ी चुनौती, इन अनाथालयों में बढ़ती बच्चों की संख्या को कम करना है, जो नियमों में ढील और सामाजिक जागरुकता के बिना संभव नहीं। भारत में 341 जिला बाल सरंक्षण इकाइयाँ, लाइसेंस प्राप्त अडॉप्शन एजेंसिया हैं। मेनका गांधी के मंत्रालय को लोगों ने सुझाव दिया है कि इस प्रक्रिया से अफसरशाही के दखल को कम किया जाए।
उत्तर प्रदेश में 1000 लड़कों पर 835 लड़कियां
इसी दौरान पूरे देश का लिंगानुपात 0 से 6 साल की उम्र के प्रत्येक 1000 लड़के के अनुपात में लड़कियों की संख्या 914 रही है। (2011 की जनगणना के मुताबिक). नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि यूपी में 2015 में लिंगानुपात गिरकर 883 रह गया है, जोकि स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली की डाटा के आधार पर कैग रिपोर्ट में कही गई है। आदर्श लिंगानुपात 1000 लड़कों पर 943 से 954 लड़कियों के बीच होनी चाहिए। इससे पता चलता है कि कन्या भ्रूणहत्या बेरोकटोक जारी है।
लोगों की मानसिकता में भी बदलाव की जरूरत
किसी पर भी नहीं की गई कार्रवाई
पांच साल जेल की सजा का प्रावधान
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कन्या भ्रूण हत्या रोकने में आधा धन भी इस्तेमाल नहीं
50,000 अनाथ बच्चों में सिर्फ 1600 को मिले अभिभावक
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बच्चों की तस्करी से जुड़े मुद्दों पर काम करने वाली मुंबई के वकील फ्लाविया एग्नेस (इंडिया स्पेंड की रिपोर्ट अपर्णा कालरा) से कहते हैं, “कई गोद देने वाली एजेंसियों ने बच्चों को बेचने का जैसे एक धंधा बना लिया है। ये अक्सर ज्यादा पैसे देने वाले पैरंट्स (अक्सर जो अभिभावक विदेश में रहते हैं) को ही बच्चे गोद देते हैं।”
सहयोग- ऋषी मिश्रा/ दीपाशुं मिश्रा (स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क)
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