जीएसटी की मार : सिमट रहा बनारसी सिल्क का कारोबार
Devanshu Mani Tiwari | Aug 01, 2017, 14:28 IST
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
वाराणसी। बनारस की नई बस्ती इलाके में पीढ़ियों से बनारसी साड़ियों को बनाने का काम हो रहा है। इस इलाके में सैकड़ों की संख्या में छोटे-बड़े हैंडलूम कारखाने चलते हैं, लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद इलाके में 75 फीसदी कारखाने बंद पड़े हैं। यही नहीं कारखानों के बंद होने के बाद साड़ी बनाने वाली मशीनें शांत हैं, जिससे मशीनों को दुरुस्त करने वाले मकैनिकों के लिए अपनी दुकान बेचने तक की नौबत आ गई है।
प्रमोद कुमार (40 वर्ष) पेशे से हैंडलूम मशीन मकैनिक हैं। जीएसटी लागू होने से नई बस्ती में बुनकरों को काम नहीं मिल पा रहा है, जिससे 50 से अधिक कारखाने बंद हो गए हैं। काम न मिल पाने के कारण प्रमोद अपनी दुकान बेचने जा रहे हैं। अपनी दुकान की तरफ इशारा करते हुए प्रमोद ने बताया, ‘’जब बुनकर कारखाने चलते थे, तब हमें रोज़ मशीनों में ऑएलिंग, नट बोल्ट कसने और रिपेयरिंग का काम मिलता रहता था। इसी से घर चलाते थे, जीएसटी लागू होने के बाद कारखाने बंद हो रहे हैं। घर चलाना है, इसलिए अब दुकान बेचकर कोई दूसरा काम शुरू करेंगे।’’
जीएसटी लागू होने से प्रमोद की तरह ही बनारस के हज़ारों की संख्या में बुनकर व हैंडलूम मकैनिक आज काम न मिल पाने के कारण या तो मजदूर बन गए हैं या रिक्शा चला रहे हैं। जीएसटी लागू होने से सरकार ने बुनकरों द्वारा तैयार कपड़ों पर भी पांच फीसदी टैक्स लगा दिया है। इसके अलावा बनारसी सिल्क साड़ी बनाने वाली कंपनियों को जीएसटी नंबर मिलने के बाद ही व्यापार करने की इजाज़त दी गई है।
बनारसी सिल्क साड़ियों का बड़े स्तर पर व्यापार कर रही कंपनी एसजे फैब्रिक्स के मालिक शाहिद जमाल (38 वर्ष) को बड़ी मशक्कत के बाद जीएसटी नंबर मिल पाया है।काशी में हैंडलूम कारखानों के लगातार बंद होने की वजह बताते हुए शाहिद कहते हैं, “जीएसटी लागू से हैंडलूम कंपनियों को व्यापार करने के लिए कंपनी का टिन नंबर और जीसएटी नंबर बनवाना होगा। नंबर पाने के लिए सरकारी विभाग में कई दस्तावेज लगाने पड़ते हैं। यहां बुनकर समाज कम पढ़ा-लिखा है, इसलिए नंबर न मिलने से उनके पास कारखाना बंद करने के अलावा कुछ और नहीं बचा है।’’
वाराणसी में राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम से मिली जानकारी के अनुसार, बनारस में मौजूदा समय में सरकार द्वारा पंजीकृत 500 बुनकर सोसायटी हैं। इनमें कुल मिलाकर 200 से 250 बुनकर ही काम करते हैं। यह आंकड़ा साल दर साल घट रहा है। पिछले 10 वर्षों से बनारसी साड़ी बनाने वाली हैंडलूम कंपनी में काम कर रहे बुनकर मो. अनवर को आज अपना घर चलाने के लिए मजदूरी करनी पड़ रही है।
जीएसटी लागू होने के बाद कंपनी ने काम उठाना बंद कर दिया इससे उन्हें यह काम करना पड़ रहा है। बुनकरों को जीएसटी की मार से बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश पर बनवाया गया बुनकर ट्सिलिटेशन सेंटर भी बुनकरों के लिए कारगर नहीं हो पा रहा है। बनारस के लालपुर क्षेत्र में बुनकर सेंटर का मकसद था काशी के हर एक बुनकर को सस्ते दर पर कच्चा माल व रेशम मिल सके और अशिक्षित बुनकरों को काम दिया जा सके, लेकिन केंद्र से छोटे बुनकरों को कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।
पीढ़ियों से बनारसी सिल्क साड़ियों को बनाने का काम कर रहे बुनकर मो. अमीन ने बताया, “लालपुर में बनाया गया बुनकर सेंटर सिर्फ कुछ ही मखसूस लोगों के लिए है वहां पर कमज़ोर बुनकरों के लिए कोई जगह नहीं है। सेंटर में सिर्फ बड़े तबके के बुनकरों का रजिस्ट्रेशन हुआ है और उन्हें ही सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाता है।’’
बुनकर मो. अनवर ने बताया कि जब हमारे गद्दीदार (लूम मालिकों) के पास काम नहीं होगा तो वो हमें क्या काम देंगे। तकरीबन एक महीने से हमारे पास कोई काम नहीं है। जब काम था तो दिन का 300 रुपए कमा लेते थे आज काम चलाने के लिए मजदूरी कर रहे हैं।
हैंडलूम मशीन मकैनिक प्रमोद सिंह ने बताया कि जब बुनकर कारखाने चलते थे, तब हमें रोज़ मशीनों में ऑएलिंग, नट बोल्ट कसने और रिपेयरिंग का काम मिलता रहता था। इसी से घर चलाते थे, जीएसटी लागू होने के बाद कारखाने बंद हो रहे हैं। घर चलाना है, इसलिए अब दुकान बेचकर कोई दूसरा काम शुरू करेंगे।
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वाराणसी। बनारस की नई बस्ती इलाके में पीढ़ियों से बनारसी साड़ियों को बनाने का काम हो रहा है। इस इलाके में सैकड़ों की संख्या में छोटे-बड़े हैंडलूम कारखाने चलते हैं, लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद इलाके में 75 फीसदी कारखाने बंद पड़े हैं। यही नहीं कारखानों के बंद होने के बाद साड़ी बनाने वाली मशीनें शांत हैं, जिससे मशीनों को दुरुस्त करने वाले मकैनिकों के लिए अपनी दुकान बेचने तक की नौबत आ गई है।
प्रमोद कुमार (40 वर्ष) पेशे से हैंडलूम मशीन मकैनिक हैं। जीएसटी लागू होने से नई बस्ती में बुनकरों को काम नहीं मिल पा रहा है, जिससे 50 से अधिक कारखाने बंद हो गए हैं। काम न मिल पाने के कारण प्रमोद अपनी दुकान बेचने जा रहे हैं। अपनी दुकान की तरफ इशारा करते हुए प्रमोद ने बताया, ‘’जब बुनकर कारखाने चलते थे, तब हमें रोज़ मशीनों में ऑएलिंग, नट बोल्ट कसने और रिपेयरिंग का काम मिलता रहता था। इसी से घर चलाते थे, जीएसटी लागू होने के बाद कारखाने बंद हो रहे हैं। घर चलाना है, इसलिए अब दुकान बेचकर कोई दूसरा काम शुरू करेंगे।’’
जीएसटी लागू होने से प्रमोद की तरह ही बनारस के हज़ारों की संख्या में बुनकर व हैंडलूम मकैनिक आज काम न मिल पाने के कारण या तो मजदूर बन गए हैं या रिक्शा चला रहे हैं। जीएसटी लागू होने से सरकार ने बुनकरों द्वारा तैयार कपड़ों पर भी पांच फीसदी टैक्स लगा दिया है। इसके अलावा बनारसी सिल्क साड़ी बनाने वाली कंपनियों को जीएसटी नंबर मिलने के बाद ही व्यापार करने की इजाज़त दी गई है।
बनारसी सिल्क साड़ियों का बड़े स्तर पर व्यापार कर रही कंपनी एसजे फैब्रिक्स के मालिक शाहिद जमाल (38 वर्ष) को बड़ी मशक्कत के बाद जीएसटी नंबर मिल पाया है।काशी में हैंडलूम कारखानों के लगातार बंद होने की वजह बताते हुए शाहिद कहते हैं, “जीएसटी लागू से हैंडलूम कंपनियों को व्यापार करने के लिए कंपनी का टिन नंबर और जीसएटी नंबर बनवाना होगा। नंबर पाने के लिए सरकारी विभाग में कई दस्तावेज लगाने पड़ते हैं। यहां बुनकर समाज कम पढ़ा-लिखा है, इसलिए नंबर न मिलने से उनके पास कारखाना बंद करने के अलावा कुछ और नहीं बचा है।’’
वाराणसी में राष्ट्रीय हथकरघा विकास निगम से मिली जानकारी के अनुसार, बनारस में मौजूदा समय में सरकार द्वारा पंजीकृत 500 बुनकर सोसायटी हैं। इनमें कुल मिलाकर 200 से 250 बुनकर ही काम करते हैं। यह आंकड़ा साल दर साल घट रहा है। पिछले 10 वर्षों से बनारसी साड़ी बनाने वाली हैंडलूम कंपनी में काम कर रहे बुनकर मो. अनवर को आज अपना घर चलाने के लिए मजदूरी करनी पड़ रही है।
जीएसटी लागू होने के बाद कंपनी ने काम उठाना बंद कर दिया इससे उन्हें यह काम करना पड़ रहा है। बुनकरों को जीएसटी की मार से बचाने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आदेश पर बनवाया गया बुनकर ट्सिलिटेशन सेंटर भी बुनकरों के लिए कारगर नहीं हो पा रहा है। बनारस के लालपुर क्षेत्र में बुनकर सेंटर का मकसद था काशी के हर एक बुनकर को सस्ते दर पर कच्चा माल व रेशम मिल सके और अशिक्षित बुनकरों को काम दिया जा सके, लेकिन केंद्र से छोटे बुनकरों को कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है।
पीढ़ियों से बनारसी सिल्क साड़ियों को बनाने का काम कर रहे बुनकर मो. अमीन ने बताया, “लालपुर में बनाया गया बुनकर सेंटर सिर्फ कुछ ही मखसूस लोगों के लिए है वहां पर कमज़ोर बुनकरों के लिए कोई जगह नहीं है। सेंटर में सिर्फ बड़े तबके के बुनकरों का रजिस्ट्रेशन हुआ है और उन्हें ही सरकारी योजनाओं का लाभ दिया जाता है।’’
बुनकर मो. अनवर ने बताया कि जब हमारे गद्दीदार (लूम मालिकों) के पास काम नहीं होगा तो वो हमें क्या काम देंगे। तकरीबन एक महीने से हमारे पास कोई काम नहीं है। जब काम था तो दिन का 300 रुपए कमा लेते थे आज काम चलाने के लिए मजदूरी कर रहे हैं।
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