रिटायरमेंट के बाद शुरू की खेती, अब 80 साल की उम्र में भी कमा रहे लाखों रुपए

Ajay MishraAjay Mishra   12 Nov 2018 1:20 PM GMT

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रिटायरमेंट के बाद शुरू की खेती, अब 80 साल की उम्र में भी कमा रहे लाखों रुपए

कन्नौज। उम्र भले ही 80 साल की हो लेकिन शरीर अब भी स्वस्थ्य हैं। आवाज ऐसी है कि किसान गोष्ठियों में सुनकर लोग हैरत में पड़ जाते हैं। स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी पद से रिटायर होने के बाद इन्होंने खेती-किसानी में अपना ध्यान केंद्रित कर लिया।

हम बात कर रहे हैं उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले के रामपुर सरायप्रयाग गाँव में रहने वाले महेंद्र सिंह कटियार की। 80 वर्ष के महेंद्र बताते हैं, ''मेरे पास 18 बीघा खेती है। इसमें मूंग, उर्द, धान, गेहूं, अरहर और आलू जैसी फसलों की खेती हैं। बेहतर फसलों की खेती करने के लिए जिला स्तर पर ही नहीं अन्य प्रदेशों में भी मुझे सम्मानित किया जा चुका है।''


महेंद्र आगे बताते हैं, ''पहले हम स्वास्थ्य शिक्षा अधिकारी थे, साल 1989 में रिटायर हो गए। उसके बाद खेती में मन लगा लिया। भले ही उम्र 80 पार हो गई हो लेकिन खेती करना नहीं छोड़ा है। अब उतनी मेहनत तो नहीं कर पाते हैं लेकिन फसलों की देखरेख जरूर करते हैं।''

किसान महेंद्र आगे बताते हैं, ''भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के भारतीय गेहूं और जौं अनुसंधान संस्थान की ओर से करनाल हरियाणा में मुझे 15 अक्तूबर 2018 को सम्मानित किया जा चुका है। वैज्ञानिक कार्यशाला एवं बीज दिवस में देश के कई किसानों को यहां आमंत्रित किया गया था। उत्तर प्रदेश से मैंने अकेले ही प्रतिनिधित्व किया।''

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''कृषि क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए नवोन्मेषी किसान पुरस्कार जब मिला तो आयोजन समिति के सचिव डॉ. ज्ञानेंद्र प्रताप सिंह, निदेशक डॉ. सत्यवीर सिंह, नीति आयोग के अध्यक्ष विजयपाल शर्मा, चावल निर्यात समिति के डायरेक्टर विजय सेतिया, युवा किसान संघ अध्यक्ष भगवान दास और नाबार्ड अध्यक्ष अजीत सिंह (आईएएस) मौजूद रहे।'' महेंद्र ने आगे बताया कि जिले में भी कई बार डीएम, सीडीओ आदि अधिकारियों ने बेहतर फसल करने के लिए सम्मान से नवाजा है।''

कन्नौज के जिला कृषि अधिकारी राममिलन सिंह परिहार ने गाँव कनेक्शन को बताया, '' किसान की लागत कैसे कम हो और आय दुगनी कैसे हो इस पर महेंद्र काम कर रहे हैं। जैविक खेती और बीज का उत्पादन करते हैं। इन्होंने अच्छा काम किया है। अच्छे बीज लाते हैं और पैदा कर किसानों को भी देते हैं जो दूसरे किसानों के हित में हैं।''

किसानों को देते है फ्री में बीज

किसान महेंद्र बताते हैं, ''हर ब्लॉक से दो से तीन किसानों को फ्री में बीज भी देते हैं। यह बीज सिर्फ बीज बनाने के लिए ही दिया जाता है। गेहूं का एक बीघा के लिए 10 किलो के हिसाब से और मूंग का एक किलो आधा बीघा के हिसाब से बीज देते हैं। बीज उत्पादन के लिए कम किसान ही बीज लेने आते हैं।''

सीएसए में दर्ज है नाम

महेंद्र ने बताते हैं, ''वर्ष 2013-14 में चंद्रशेखर आजाद कृषि विश्वविद्यालय (सीएसए) कानपुर की ओर से माही के 402 प्रजाति का गेहूं सबसे अधिक उत्पादन का खिताब भी मिल चुका है।''

इन प्रजातियों का करते बीज

महेंद्र ने बताया हैं, ''मूंग आईपीआर कानपुर 205-7 का बीज करते हैं जो 52 दिन की फसल है। पूसा संस्थान की धान 1121 सुगंधा, 1401 सुगंधा 61, एफ 1 एफ 2 से फाउंडेशन प्रमाणित देसी मक्का भी करते हैं। आगे बताया कि गेहूं में एचडी 3086, एचडी 2967 के अलावा डीबीडब्ल्यू 71, डीबीडब्ल्यू 107, डीबीडब्ल्यू 187 और डीबीडब्ल्यू 39 समेत कुल आठ वैरायटी के बीज करते हैं। महेंद्र कहते हैं कि मूंग, अरहर और उर्द का बीज 100 रूपए किलो और धान का 150 रूपए और 60 रूपए किलो बिक्री करते हैं।''

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फार्म पर आते हैं वैज्ञानिक और किसान

''पहले मैं आत्मा योजना से जुड़ा था। 20 साल पहले कन्नौज के गुरसहायगंज में गोदाम इंचार्ज सुरेश बाबू मिश्रा ने रास्ता दिखाया तो खेती करने लगा।'' महेंद्र ने गाँव कनेक्शन को बताया, "अब किसान और कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक हमारी फसल देखने खेतों पर पहुंचते हैं।"


हिसार, हरियाणा और दिल्ली के लाते बीज

बीजोत्पादन के लिए महेंद्र बताते हैं कि ''दलहन का बीज कानपुर से, हरा उर्द हिसार, गेहूं का हरियाणा और पूसा संस्थान का दिल्ली से बीज लाते हैं। देरी से होने वाला गेहूं का बीज 32 रूपए किलो बिक्री करते हैं। करीब डेढ़ लाख रूपए की इनकम गेहूं के बीज से ही एक साल में हो जाती है। जैविक खाद की खेती ही करते हैं। आलू समेत अन्य फसलों में भी जैविक खेती पर ध्यान देते हैं।''

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