गेहूं के साथ इस घास के उगने से उत्पादन में 30-40 फीसदी तक आ जाती है कमी
गेहूंसा के बीज विदेश से मंगाए गए गेहूं के बीज के साथ आ गए थे, जो देश भर में फैलते ही चले गए..
Divendra Singh 31 Jan 2019 6:15 AM GMT
गेहूं की फसल के साथ कई तरह के खरपतवार उग आते हैं, कुछ तो बिल्कुल ही गेहूं जैसे दिखते हैं, जिन्हें पहचानना मुश्किल होता है, ये बड़े हो जाने के बाद समझ में आते हैं जब इसमें बालियां निकल आती हैं। ऐसा ही एक घास हैं गेहूं का मामा या गुल्ली डंडा घास है।
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के कृषि विज्ञान संस्थान के खरपतवार विशेषज्ञ डॉ. रमेश कुमार सिंह इस घास के बारे में बताते हैं, "ये घास गेहूं की तरह ही होती है, इसे पहचानना मुश्किल होता है, इसमें और गेहूं में एक अंतर होता है, गेहूं की जड़ के पास तना हरा-सफेद होता है, जबकि गेहूंसा में गुलाबी होता है।"
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इसके बीज विदेश से मंगाए गए गेहूं के बीज के साथ आए गए थे, जो फैलते ही चला गए। इसका दो ही उपचार है एक इसकी निराई करके या फिर रसायनिक खरपतवारनाशी के छिड़काव से इस घास से छुटकारा पाया जा सकता है।
ये घास गेहूं की तरह ही होती है, इसे पहचानना मुश्किल होता है, इसमें और गेहूं में एक अंतर होता है, गेहूं की जड़ के पास तना हरा-सफेद होता है, जबकि गेहूंसा में गुलाबी होता हैडॉ. रमेश कुमार सिंह, खरपतवार विशेषज्ञ, कृषि विज्ञान संस्थान, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय
देश में उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल और हिमाचल प्रदेश प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्य हैं। केंद्रीय कृषि एवं कल्याण मंत्रालय की ओर से जारी देशभर में रबी फसलों की बुवाई के आंकड़ों के अनुसार, इस बार गेहूं की बुवाई 294.7 लाख हेक्टेयर हुई है।
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वो आगे कहते हैं, "इससे बचाव के लिए प्रोटोडान जैसे कई खरपतवारनाशी हैं, लेकिन कुछ साल में खरपतवारनाशी बदल देना चाहिए, पंजाब और हरियाणा में तो ये घास दवा की प्रतिरोधी हो गई है, अब इस पर इसका कोई असर ही नहीं पड़ता है। इसलिए दो-तीन साल में खरपतवारनाशी बदल देना चाहिए। इस घास का तत्काल उपचार न करने पर करीब 30 से 40 फीसदी तक गेहूं की उपज इस बार प्रभावित होगी। ढाई दशक पहले विदेशों से मंगाए गए गेहूं के बीज के साथ गेहूंसा के दाने भी चले आए थे। तब से गेहूं के साथ ये भी उग आता है।"
गेहूंसा की एक बाली में एक हजार तक बीज होते हैं, जिसे खत्म नहीं करने पर खेत में इसकी संख्या लगातार बढ़ती रहती है और गेहूं की फसल को नुकसान पहुंचाते रहते हैं। इसलिए खेत इसके दिखते ही उसे उखाड़ कर नष्ट कर देना, जिससे कि बीज की शुद्धता बनी रहे, तभी अगले साल प्रयोग करने पर अच्छा उत्पादन होता है।
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