यहां पर यूपी के किसान करा सकते हैं जैविक खेती का पंजीकरण, मिलेगा उपज का सही दाम
Divendra Singh | Jan 10, 2018, 12:43 IST
लखनऊ। पिछले कुछ वर्षों में जैविक खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ा है, लेकिन जानकारी के आभाव में किसानों को उनके उत्पाद का सही दाम नहीं मिल पाता है, ऐसे में प्रदेश में किसानों को जैविक खेती का प्रमाणपत्र देने के लिए उत्तर प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था की स्थापना की गई है। जहां पर किसान प्रमाणपत्र बनवा सकते हैं।
उत्तर प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था के निदेशक प्रकाश चन्द्र सिंह बताते हैं, "आठ अगस्त 2014 को संस्था की शुरुआत की गयी थी, यहां से किसानों जैविक प्रमाणपत्र उपलब्ध कराया जाता है। यहां पर प्रमाणपत्र मिलने के बाद किसान कहीं भी अपने उत्पाद को बेच सकता है।"
gaoconnection कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के अनुसार, प्रमाणित जैविक खेती के तहत खेती योग्य क्षेत्र पिछले एक दशक में तकरीबन 17 गुना बढ़ गया है। यह क्षेत्र वर्ष 2003-04 में 42,000 हेक्टेयर था, जो वर्ष 2013-14 में बढ़कर 7.23 लाख हेक्टेयर के स्तर पर पहुंच गया। उत्तर प्रदेश में 44670.10 हेक्टेयर में जैविक खेती हो रही है। फैजाबाद के प्रगतिशील किसान विवेक सिंह जैविक खेती करते हैं। उन्होंने इसी संस्था से प्रमाणित कराया है। अब वो विकास भवन में जैविक सब्जियों की दुकान चलाते हैं।
एक वर्ष से तीन वर्ष तक जैविक पद्धति का उपयोग करके उत्पादन लेने वाले किसानों के लिए अलग–अलग श्रेणी के प्रमाणपत्र दिए जाने की व्यवस्था विभाग द्वारा की जाती है।
किसान संस्था में आवेदन कर सकता है, जिसके बाद संस्था द्वारा आवेदन पत्र की जांच की जाती है। किसान के पात्र होने पर आवेदक को निर्धारित निरीक्षण व प्रमाणीकरण शुल्क जमा करना होता है। आवेदक द्वारा निर्धारित शुल्क जमा करने पर के बाद संस्था द्वारा आवेदक की खेत का निरीक्षण किया जाता है। खेत के निरीक्षण के बाद जैविक प्रमाणीकरण विभाग द्वारा निरीक्षण रिपोर्ट की जांच करना और रिपोर्ट के साथ प्रमाणीकरण समिति के समक्ष सम्पूर्ण फाइल के रिपोर्ट करना होता है।
उत्तर प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था लखनऊ
मोबाइल +91-7317001232
फोन : 0522- 2451639/2452358
राजकीय उद्यान परिसर, करियप्पा मार्ग, आलमबाग, लखनऊ-226005
उत्तर प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था के निदेशक प्रकाश चन्द्र सिंह बताते हैं, "आठ अगस्त 2014 को संस्था की शुरुआत की गयी थी, यहां से किसानों जैविक प्रमाणपत्र उपलब्ध कराया जाता है। यहां पर प्रमाणपत्र मिलने के बाद किसान कहीं भी अपने उत्पाद को बेच सकता है।"
वो आगे बताते हैं, "उत्पादन का जैविक प्रमाणीकरण कराने के लिए वार्षिक फसल योजना, भूमि दस्तावेज, किसान का पैन कार्ड, आधार कार्ड, पासपोर्ट साइज फोटो, फार्म का नक्शा व जीपीएस डाटा, संस्था आलमबाग लखनऊ से अनुबन्ध और फार्म डायरी का प्रारूप से संबन्धित अभिलेख उपलब्ध कराना होता है।"
gaoconnection कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीडा) के अनुसार, प्रमाणित जैविक खेती के तहत खेती योग्य क्षेत्र पिछले एक दशक में तकरीबन 17 गुना बढ़ गया है। यह क्षेत्र वर्ष 2003-04 में 42,000 हेक्टेयर था, जो वर्ष 2013-14 में बढ़कर 7.23 लाख हेक्टेयर के स्तर पर पहुंच गया। उत्तर प्रदेश में 44670.10 हेक्टेयर में जैविक खेती हो रही है। फैजाबाद के प्रगतिशील किसान विवेक सिंह जैविक खेती करते हैं। उन्होंने इसी संस्था से प्रमाणित कराया है। अब वो विकास भवन में जैविक सब्जियों की दुकान चलाते हैं।
विवेक बताते हैं, "अभी जैविक उत्पाद बेचने का कोई नियत स्थान नहीं है और न ही जैविक उत्पाद खरीदने वाले उपभोक्ता। इसके लिए किसानों को खुद ही बाजार बनाना पड़ता है।"
एक वर्ष से तीन वर्ष तक जैविक पद्धति का उपयोग करके उत्पादन लेने वाले किसानों के लिए अलग–अलग श्रेणी के प्रमाणपत्र दिए जाने की व्यवस्था विभाग द्वारा की जाती है।
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ऐसे कर सकते हैं आवेदन
आवेदक द्वारा उत्तर प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण संस्था से अनुबंध करना होता है। संस्था द्वारा आवेदक को स्थायी पंजीयन संख्या आंवटित करना होता है। संस्था द्वारा आवेदक को जैविक प्रमाणीकरण पंजीयन प्रमाण पत्र जारी करना। फार्म पर फार्म मैप, फसल इतिहास शीट, क्रय की गयी आगतों का विवरण, फसल कटाई, मड़ाई, भंडारण, विक्रय का रिकॉर्ड, मृदा परीक्षण, जल परीक्षण आदि का फार्म पर तैयार खाद का विवरण, बोये जाने वाले बीज का विवरण कीटनाशक व रोगनाशक उपयोग का विवरण, जिसकी एक प्रति पंजीयन आवेदक परिपत्र के साथ संगलन करना होती है।
जैविक खेती करने वाले किसानों को रखना होगा इन बातों का ध्यान
- किसी भी प्रकार के रासायनिक उर्वरक पौध संरक्षण/नींदानाशक औषधियों का उपयोग नहीं कर सकते हैं।
- जेनिटिक इंजीनियरिंग से उत्पादित बीज का उपयोग न कर सकते हैं
- फसल कटने के बाद फसल अवशेषों को न जलाएं
- प्रतिरोधक/सहनशील किस्मों के उपयोग को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
- सही फसल चक्र अपनाना चाहिए।
- मिट्टी में तत्वों की आपूर्ति के लिए गोबर से तैयार किये गए जैविक खाद, बायोगैस स्लरी, नाडेप कम्पोस्ट, फास्फो कम्पोस्ट, वर्मी कम्पोस्ट, नीलहरित शैवाल, एजोला का प्रयोग करना चाहिए।
- बीजोपचार में जैविक औषधियों का प्रयोग करना चाहिए।
- व्यावसायिक स्तर पर तैयार नीम के उत्पाद का उपयोग कीड़ों के नियंत्रण के लिए करना चाहिए।
- परजीवी, परभक्षी, सूक्ष्म जीवों का उपयोग कीटव्याधि नियंत्रण के लिए करना चाहिए।
- नीम, करंज की पत्तियां, नीम के तेल, निबोंली आदि का उपयोग प्रक्रिया उपरांत पौध संरक्षण औषधियों के रूप में करना चाहिए।
ज्यादा जानकारी के लिए इस पते पर कर सकते हैं संपर्क
मोबाइल +91-7317001232
फोन : 0522- 2451639/2452358
राजकीय उद्यान परिसर, करियप्पा मार्ग, आलमबाग, लखनऊ-226005