किसानों की मुसीबत ‘व्हीट ब्लास्ट’ रोग से निजात दिलाएगी गेहूं की नई किस्म
Shefali Srivastava | Jul 28, 2017, 15:12 IST
लखनऊ। इसी साल मार्च के महीने में जब भारत के पूर्वी इलाकों में गेहूं ब्लास्ट रोग का मामला सामने आया था तो किसानों के साथ कृषि वैज्ञानिकों के लिए भी इसने चिंता बढ़ा दी थी। तब हमारे वैज्ञानिकों ने इससे बचने के लिए बांग्लादेश के वैज्ञानिकों से राय तक मांगनी पड़ी थी।
अब इस मुश्किल का इलाज ढूंढने के लिए ऑस्ट्रेलियाई सेंटर फॉर इंटरनेशनल एग्रीकल्चर रिसर्च (एसीआईएआर)) ने चार वर्षीय एक रिसर्च प्रोजेक्ट को फंड किया है जो गेहूं की ब्लास्ट रोग प्रतिरोधी किस्मों को विकसित कर रहा है।
इस प्रोजेक्ट को मेक्सिको आधारित इंटरनेशनल मेज़ एंड व्हीट इंप्रूवमेंट सेंटर (सीआईएमएमवाईटी) लीड कर रहा है जिसमें दुनियाभर के करीब 23 संस्थानों के रिसर्चर मिलकर गेहूं की उच्च उपज वाली वैरायटी को विकसित करेंगे जिसमें ब्लास्ट रोग से लड़ने की क्षमता अधिक हो और जो फसल नुकसान से बचा सकता है।
(फोटो साभार : सीआईएमएमवाईटी )सबसे पहले इस रोग के मामले 1985 में ब्राजील और लातिन अमेरिका के कुछ देशों में सामने आए थे जब 30 लाख हेक्टेयर में फैली फसल बर्बाद हो गई थी। इसके बाद पिछले साल इस रोग ने बांग्लादेश के किसानों की पूरी मेहनत बेकार कर दी थी। इस वजह से किसानों को अपनी करीब 15,000 हेक्टेयर में गेहूं की खड़ी फसल जलानी पड़ी थी। तब व्हीट ब्लास्ट के मामला पहली बार दक्षिण अमेरिका से बाहर का था।
यह ब्लास्ट रोग 'मैग्नापोर्थे ओरिजी' नामक कवक से होता है। व्हीट ब्लास्ट का पता सबसे पहले 1985 में ब्राजील और लातिन अमेरिका के कुछ देशों में चला था जब 30 लाख हेक्टेयर में फैली फसल बर्बाद हो गई थी।
व्हीट ब्लास्ट का रोगाणु हवा के कणों के साथ मिलकर गेहूं को संक्रमित करता है। इस समय पूरे दक्षिणी एशिया में इसका प्रकोप फैला हुआ है, यह एक ऐसा क्षेत्र है जहां चावल-गेहूं की फसल बहुतायत होती है और करीब 1.3 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में इसकी खेती होती है। इसी के साथ करीब एक अरब लोग इसका सेवन करते हैं।
सीआईएमएमवाईटी में गेहूं रोग विज्ञान के हेड पवन सिंह कहते हैं, ‘इस रिसर्च प्रोजक्ट का उद्देश्य प्रतिरोधकता के स्रोत की पहचान करना, प्रतिरोध की जींस को चिन्हित करना और प्रतिरोधक के निर्माण डीएनए मेकर्स को विकसित करने के साथ स्थानीय रूप से अनुकूलित गेहूं के किस्मों को किसानों के अनुकूल बनाना है।’ भारत में रहने वाला हरेक शख्स हर महीने औसतन 4 किलोग्राम गेहूं खाता है। इस बीमारी की मार को इसी बात से समझा जा सकता है कि जिन खेतों में व्हीट ब्लास्ट पहुंच जाती है, वहां उपज करीब 75 फीसदी घट जाती है। इतना ही नहीं वहां बरसों तक दोबारा फसल नहीं हो पाती है।
गेहूं की फसल। फोटो - गांव कनेक्शऩ
अब इस मुश्किल का इलाज ढूंढने के लिए ऑस्ट्रेलियाई सेंटर फॉर इंटरनेशनल एग्रीकल्चर रिसर्च (एसीआईएआर)) ने चार वर्षीय एक रिसर्च प्रोजेक्ट को फंड किया है जो गेहूं की ब्लास्ट रोग प्रतिरोधी किस्मों को विकसित कर रहा है।
पढ़ें - गेहूं के किसान हो जाएं सावधान, गेहूं पर व्हीट ब्लास्ट का काला साया, अब तक 1000 एकड़ की फसल बर्बाद
(फोटो साभार : सीआईएमएमवाईटी )
पिछले साल बांग्लादेश में 15000 हेक्टेयर फसल जलानी पड़ी
यह ब्लास्ट रोग 'मैग्नापोर्थे ओरिजी' नामक कवक से होता है। व्हीट ब्लास्ट का पता सबसे पहले 1985 में ब्राजील और लातिन अमेरिका के कुछ देशों में चला था जब 30 लाख हेक्टेयर में फैली फसल बर्बाद हो गई थी।
व्हीट ब्लास्ट : दक्षिण एशिया में फैल रहा है प्रकोप
सीआईएमएमवाईटी में गेहूं रोग विज्ञान के हेड पवन सिंह कहते हैं, ‘इस रिसर्च प्रोजक्ट का उद्देश्य प्रतिरोधकता के स्रोत की पहचान करना, प्रतिरोध की जींस को चिन्हित करना और प्रतिरोधक के निर्माण डीएनए मेकर्स को विकसित करने के साथ स्थानीय रूप से अनुकूलित गेहूं के किस्मों को किसानों के अनुकूल बनाना है।’ भारत में रहने वाला हरेक शख्स हर महीने औसतन 4 किलोग्राम गेहूं खाता है। इस बीमारी की मार को इसी बात से समझा जा सकता है कि जिन खेतों में व्हीट ब्लास्ट पहुंच जाती है, वहां उपज करीब 75 फीसदी घट जाती है। इतना ही नहीं वहां बरसों तक दोबारा फसल नहीं हो पाती है।
गेहूं की फसल। फोटो - गांव कनेक्शऩ