मिलिए उस शख्स से जो सोशल मीडिया पर बन रहा है किसानों की आवाज़

Arvind ShukklaArvind Shukkla   28 July 2017 4:31 PM GMT

मिलिए उस शख्स से जो सोशल मीडिया पर बन रहा है किसानों की आवाज़किसानों के साथ रमनदीप मान (बाएं से तीसरे)।

लखनऊ। “जब भी मैं अपने गांव (भठिंडा) जाता तो मेरे चाचा कहते थे , तेरे इंजीनियरिंग करने से हम लोगों को क्या फायदा। बाकी लोगों की तरह तू भी तो रहता दूर ही है। गांव में न कोई रहना चाहता है न कोई सोचता।” रमनदीप मान बताते हैं।

भठिंडा छूट गया और ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और नार्वे में नौकरी करते हुए रमनदीप फिर अपने पंजाब के करीब आ गए हैं, जैसे उम्र बढ़ी चाचा के दर्द का मर्म वो समझे और आजकल वो सबसे ज्यादा गांव और खेती किसानी की बात करते हैं। सोशल मीडिया में वो किसानों का चेहरा बन रहे हैं। फेसबुक से लेकर ट्विटर पर मजबूती से किसानों की बात रखते हैं। रमन का अब फंडा है, किसान के लिए नीतियां और नीतियों में किसान तभी होगा जब वो खुद जागरूक होगा और बारीकियों को समझेगा।

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रमनदीप मान (44 वर्ष) का जन्म भठिंडा की नथाना तहसील के ढेलवां गांव में हुआ। पिता सेना में अधिकारी थे, तो उनके कुछ ही दिन गांव में बीते। वो फोन पर गांव कनेक्शन को बताते हैं, “ ज्यादातर वक्त देहरादून में बीता फिर कर्नाटक के बिदर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की और ऑटोमोबाइल में स्पेशलाइजेशन किया। कुछ दिन बाद ही मर्चेंट में चयन हो गया। कई देश घूमा। लेकिन वहां मन नहीं लगा तो नार्वे में पेट्रोलियम सेक्टर में नौकरी करने की चाह से गया । लेकिन फिर भी मन में कुछ खाली सा रहा।”

वो आगे बताते हैं, “आप कह लो चाचा की बात समझ में आ रही थी, गांव में इतनी समस्याएं हैं। खुद तो खेती कभी नहीं की लेकिन खेती-किसानी का हाल देख रहा था। इसी बीच दिल्ली में रहते हुए पर्यावरण और यमुना पर काम कर रहे एक साथी दीवान सिंह से मुलाकात हुई, साथ से साथ हुआ और फिर हमने रुरल इकॉनामिक्स पर काम शुरु किया,जिसके केंद्र में किसान है. रमनदीप उस दौर के पंजाब से भी ताल्लुक रखते हैं जब वहां हरितक्रांति के दौर में फसलें लहलहाया करती थीं, और तब भी जब बंजर होती जमीनों, कैंसर से जूझते मरीजों और आत्महत्या करते किसानों की खबरें आती हैं।

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रमन बताते हैं, “मैं सोच रहा था वो नीतियां बनाता कौन है, जो गांव में जाकर उल्टा पड़ जाती हैं। सरकार जब बात करती हैं आंकड़े करोड़ों-अरबों में होते हैं और जमीन पर किसान परेशान। बजट कहां जाता है, आयात-निर्यात शुल्क है। सब समझना शुरु किया। 2012 के बाद करीब डेढ़ साल में खेती-किसानी और गांव से जुड़े कई मुद्दों पर शोध किया और जो समझा जो सोशल मीडिया में शेयर किया।”

रमन के फेसबुक और ट्वीटर पर अब रोजाना देश में खेती-किसानी से जुड़ी कई रोचक ख़बरें होती हैं। वो आंकड़े निकालकर उनका कई विश्लेषण करते हैं। जैसे आज उन्होंने प्रधानमंत्री फसल बीमा के 2016 के आंकड़ों को जिक्र करते हुए लिखा- खरीफ सीजन 2016 के योजना के तहत 16675 करोड़ रुपए का प्रीमियम जमा हुआ, 4649 करोड़ रुपए का क्लेम किया गया, जबकि 7 महीने बाद भी 1934 करोड़ रुपए बाकी हैं, क्यों ?

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सरकारी योजनाओं और आवंटित बजट आदि पर लगातार नजर रखने के बाद में वो बताते हैं,“गांव के आदमी को ये सब नहीं पता, लेकिन कुछ लोगों को इस पर नजर रखनी होगी, क्योंकि कितना पैसा कहां गया, उसका सीधा असर किसान पर पड़ता है। मैं भारत ही नहीं विदेश की नीतियों का भी अध्ययन करता हूं और लगातार गांव भी जाता है, ताकि अपनी योजनाओं को जमीन पर देख सकूं।’

खेती-किसानी में जैसे-जैसे उनकी जानकारी बढ़ती और आवाज़ दूर तक जाने लगी वो ऐसे लोगों के बीच सक्रिय हो गए जो किसान के हक के लिए सोचते हैं। पिछले दिनों महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में हुए आंदोलन के दौरान वो लगातार सोशल मीडिया पर सक्रिय रहे। ज्यादा से ज्यादा अपड़ेट कर लोगों को जोड़ने में लगे रहे।

रमन बताते हैं, “कृषि नीति के जानकार देविंदर शर्मा समेत कई विशेषज्ञों से कई दौर की मुलाकातें हुई। अपने प्रदेशों और इलाके में सक्रिय लोगों से मिलता हूं। मैं किसी संगठन या पार्टी से नहीं जुड़ा हूं लेकिन किसान की बात उठाने वाले हर शख्स से मिलता हूं।” वो मध्यप्रदेश में किसान आंदोलन की अगुवाई करने वाले केदार सिरोही की तरीफ करते हुए कहते हैं, “ये अच्छा है कि युवा किसान की आवाज़ उठा रहे हैं और जब आवाज सही तरीके उठाई जाती है तो सफलता मिलती है।”

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रमनदीप आजकल हरियाणा, पंजाब और पश्चिमी यूपी में सक्रिय हैं और लगातार इन इलाकों में किसानों के बीच जाते हैं। वो कहते हैं, “देखिए किसानों को सीधे बड़ी मुद्दे समझाना थोड़ा मुश्किल है, लेकिन अगर उनकी स्थानीय और तत्कालिक समस्याओं की समझ हो और उन्हें दूर करने की कोशिश की जाए तो किसानों का भरोसा बढ़ता है। मेरी कोशिश है आने वाले कुछ दिनों में हर गांव में कुछ लोग ऐसे हों तो किसानों के लिए आवाज़ उठाएं। मेरी कोशिश है जब किसान जंतर-मंतर पर कभी आने आएं तो वो खुद की मर्जी से आएं और अपने लिए नीतियां बनवाने के लिए दबाव बनाएं क्योंकि जब तक वो जागरुक नहीं होगे, नीतियों में किसान और किसान के लिए नीतियां नहीं होंगी।”

रमनदीप मान उस प्रोजेक्ट का हिस्सा हैं, जो देश के कई वरिष्ठ कृषि नीति के जानकारों की अगुवाई में किसानों की न्यूनतम आय को लेकर काम कर रहा है।

ऱमनसिंह मान

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