इस समय शुरू कर सकते हैं सीडलेस नींबू की बागवानी, यहां मिलेगी पूरी जानकारी

ये नींबू की नई बाग लगाने का बिल्कुल सही समय होता है, लेकिन पौधरोपण करते समय मिट्टी के गड्ढे जहां पर पौधों की रोपाई करनी होती है और पौधों के जड़ों का शोधन कर लेना चाहिए, जिससे किसी तरह के रोग या कीटों का खतरा नहीं रह जाता है।

Divendra SinghDivendra Singh   28 Aug 2018 8:47 AM GMT

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इस समय शुरू कर सकते हैं सीडलेस नींबू की बागवानी, यहां मिलेगी पूरी जानकारी

पिछले कुछ वर्षों में सीडलेस या बीजरहित नींबू की मांग बाजार में तेजी से बढ़ी है, जो किसान इसकी बागवानी कर रहे हैं अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं, ऐसे में किसान इस समय सीडलेस नींबू की बागवानी लगाकर कुछ महीनों में बढ़िया मुनाफा कमा सकता है।

नींबू की खेती के लिए हल्की व मध्यम उपज वाली बलुई दोमट मिट्टी सही रहती है, जिन क्षेत्रों में लंबे समय तक सर्दी होती है और पाला पड़ने की संभावना रहती है, वहां के लिए नींबू की खेती सही नहीं होती है। रात औैर दिन के तापमान का सामंजस्य फलों में अच्छे रंग, मिठास और गुणवत्ता के विकास में मददगार साबित होते हैं।


केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. प्राणनाथ बर्मन बताते हैं, "ये नींबू की नई बाग लगाने का बिल्कुल सही समय होता है, लेकिन पौधरोपण करते समय मिट्टी के गड्ढ़ों जहां पर पौधों की रोपाई करनी होती है और पौधों के जड़ों का शोधन कर लेना चाहिए, जिससे किसी तरह के रोग या कीटों का खतरा नहीं रह जाता है।"

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सीडलेस नींबू की किस्मों के बारे में वो बताते हैं, "नर्सरी से लेने से पहले पता कर लेना चाहिए की आप सीडलेस की ही पौध ले रहे हैं, इसलिए कोशिश करनी चाहिए की प्रमाणित नर्सरी से ही पौध लें, जहां पर प्रमाणित व रोग रहित पौध मिलते हों।"

भारत में आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, बिहार व उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में नींबू की बागवानी बड़ी मात्रा में की जाती है।

राजस्थान के भीलवाड़ा जिला के संग्रामपुर गाँव के युवा किसान अभिषेक जैन पिछले कई वर्षों से नींबू की खेती कर रहे हैं। वो बताते हैं, "नीबू की बागवानी में हर साल सात-आठ रुपए निकल आते हैं, पहले इसमे खाद व कीटनाशक में बहुत खर्च हो जाता था, लेकिन अब जैविक तरीके से नीबू की खेती करने से लागत कम हुई है।

एक बार नीबू का बगीचा लगाने पर 30 साल तक रहता है, अभिषेक के पौने दो एकड़ खेत में नीबू के लगभग 300 पौधे 15 साल पहले से लगे हैं। 25 रुपए एक पौधा पर खर्चा आता है।

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नींबू की किस्मों में कागजी, कलान, सीडलेस लेमन, रंगपुर लाइन, विक्रम व प्रोमालिनी मुख्य किस्में होती हैं, जो कम समय में फल देने के लिए तैयार हो जाती हैं। नीबू वर्गीय फलों को सबसे ज्यादा बडिंग और ग्राफ्टिंग विधि द्वारा लगाया जाता है। कागजी नीबू को मुख्य रूप से बीज द्वारा बोया जाता है, जिसके बाद कलम द्वारा पौधे तैयार किए जाते हैं।

नींबू वर्गीय फलों को मुख्यत: बडिंग एवं कुछ हद तक ग्राफ्टिंग विधि द्वारा प्रसारित किया जाता है। कागजी नीबू को मुख्य रूप से बीज अथवा गूटी द्वारा प्रसारित किया जाता है। लेमन के पौधे गूटी, दाबा या कलम द्वारा तैयार किये जाते है। नीबू वर्गीय फलों में डिक्लाइन की समस्या गंभीर होती है अत: इनमें उपयुक्त मूलवृंत का प्रयोग भी किया जाता है जिनपर बडिंग या ग्राफ्टिंग (संतरा, मौसमी) द्वारा अच्छी गुणवत्ता के पौधे तैयार किये जा सकते हैं।


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बगीचा लगाने के लिए पांच गुणा पांच की दूरी पर वर्गाकार विधि से निशान लगाकर 60सेमी x60सेमीx60सेमी आकार के गड्ढे तैयार करने चाहिए। गड्ढों की खुदाई मई-जून में और भराई जून-जुलाई में करनी चाहिए। यदि मिट्टी ज्यादा खराब है तो तालाब की अच्छी मिट्टी में 20-25 किलो गोबर की सड़ी खाद, एक किलो करंज/नीम/महुआ की खली, 50-60 ग्राम दीमकनाशी रसायन, 100 ग्राम सिंगल सुपर फास्फेट/डीएपी प्रति गड्ढे के दर से देने से पौधरोपण सही रही है और पौधों की वृद्धि भी अच्छी होती है। पौधों को अगस्त-सितंबर तक गड्ढ़ों के बीचों-बीच उनके पिंडी के आकार की जगह बनाकर लगाना चाहिए और उनके चारों तरफ थाला बनाकर पानी देना चाहिए। पौधा लगाते समय ये ध्यान रखना चाहिए की उनकी ग्राफ्टिंग/बडिंग का जोड़ जमीन से 10-15 सेमी ऊपर रहना चाहिए।

नींबू वर्गीय फलों के छोटे पौधों की उचित देख-रेख की जरूरत होती है। नए पौधों को गर्मी के मौसम में तेज धूप व लू और सर्दी के मौसम में ठंड व पाले के बचाव का समुचित प्रबंध करना चाहिए। पौधों के जड़ों के पास पर्याप्त नमी बनाए रखने के लिए समय-समय पर सिंचाई की व्यवस्था करनी चाहिए और पुवाल बिछानी चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए भी थालों की समय पर गुड़ाई और पतवार का प्रयोग फायदेमंद होता है।

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छोटे पौधे होने पर उचित ढांचा निर्माण बहुत जरूरी होता है, इसलिए समय-समय पर पौधों की काट-छाट भी करनी चाहिए। पौधों को पर्याप्त मात्रा में पोषक तत्व देना भी जरूरी होता है। इसके साथ ही साथ फल देने वाले पौधों को जिंक सल्फेट (200 ग्रा/पौधा) और बोरान (100 ग्राम/पौधा) भी दिया जाना चाहिए। उर्वरक की अच्छी मात्रा नये कल्ले निकलने के समय और हल्की मात्रा फल लगने के बाद देने से अच्छी उपज मिलती है। पौधों की वानस्पतिक अवस्था में खाद एवं उर्वरक का संतुलित प्रयोग से उनकी बढ़वार अच्छी होती है। नींबू में भी इसी प्रकार से उर्वरक का व्यवहार किया जाता है।

नीबू वर्गीय फलों में आमतौर फरवरी-मार्च में फूल आते हैं, लेकिन नीबू में सितम्बर-अक्टूबर में भी फूल आते हैं, नीबू के फल तीन-चार महीनों में उपयोग के लायक हो जाते हैं। इसलिए फलों की तोड़ाई उनकी उपयोगिता, गुणवत्ता, बाजार मांग आदि के आधार पर सुनिश्चित करना चाहिए। कागजी नीबू के पौधे से 2000-3000 फल/वर्ष प्राप्त किया जा सकता है।

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