गन्ने से अधिक मुनाफे के लिए करिए इस मशीन का प्रयोग
Divendra Singh | Mar 18, 2018, 13:42 IST
देश के ज्यादातर प्रदेशों में किसानों की आमदनी का जरिया गन्ने की खेती है, गन्ने की कटाई के बाद किसानों के लिए सबसे बड़ी समस्या फसल अवशेष प्रबंधन है, ऐसे में किसानों के लिए सोर्फ मशीन काम की साबित हो सकती है।
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के अनुसार, गन्ने की खेती और प्रोसेसिंग से देश को हर साल 50,000 करोड़ रुपए का राजस्व मिलता है। लगभग 50 मिलियन गन्ना किसान और उनके परिवार के लोग इस उद्योग से जुड़े हैं। भारत में गन्ना 5.28 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाया जाता है, इसमें लगभग 349 मिलियन टन गन्ने का उत्पादन प्रति वर्ष होता है। वर्तमान में भारत 25 मिलियन टन के औसम वार्षिक उत्पादन के साथ चीनी उत्पादन में ब्राजील के बाद दूसरे नंबर पर है।
कई जगह पर हुआ है इसका प्रदर्शन भारतीय गन्ना अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिक एके साह बताते हैं, "फसल उत्पादन के बाद सबसे बड़ी समस्या फसल अवशेष प्रबंधन की होती है, गन्ना कटाई के बाद खेत में लगभग 10-15 टन प्रति हेक्टेयर गन्ने की सूखी पत्तियां जमीन की सतह पर एक मोटी परत के रूप में रह जाता है। इसके बाद रसायनिक उर्वरक डालने और दूसरे कामों में इतनी कठिनाई होती है कि किसान इससे निजात पाने के लिए इसको जलाना ही सबसे आसान समझते हैं।"
फसल जलाने से मिट्टी की उर्वरता में आ जाती है कमी
सोर्फ मशीन, ट्रैश आच्छादित खेत में भी रासायनिक उर्वरकों को जमीन के अंदर पेड़ी गन्ने की जड़ों के समीप स्थापित करने में सक्षम है। इससे नाइट्रोजन ही नहीं बल्कि फॉस्फोरस व पोटाश जैसे पोषक तत्व भी पौधों को आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। इसके अलावा यूरिया, नाइट्रोजन को जब जमीन के अंदर स्थापित किया जाता है तो अमोनिया उत्सर्जन द्वारा होने वाले नुकसान में भी कमी आती है। जब उर्वरकों को पेड़ी फसल की जड़ों के समीप डाला जाता है तो वह शीघ्र व सीधा पौधों को प्राप्त होता है तथा हानि भी कम होती है, इसके फलस्वरूप रासायनिक उर्वरक उपयोग दक्षता में भी वृद्धि होती है। इससे कम मात्रा में उर्वरकों की आवश्यकता होने के साथ-साथ फसल की पैदावार में भी बढ़ोतरी होती है।
यह मशीन, गन्ना काटने के बाद खेत में बचे हुये असमतल ठूंठों को जमीन की सतह के पास से एक समान आधार से काटने के लिए उपयुक्त है। इसके फलस्वरूप स्वस्थ, मजबूत व ज्यादा किल्लों का निर्माण होता है और किल्लों की मृत्यु भी कम होती है जो कि पेड़ी की पैदावार बढ़ाने में काफी सहायक हैं।
सोर्फ मशीन द्वारा पेड़ी गन्ने की पुरानी जड़ों का बगल से कर्तन कर दिया जाता है। इसके फलस्वरूप नई जड़ों का विकास होता है, जो जल व पोषक तत्वों के अवशोषण को बढ़ाने में सहायक होती हैं। इससे पेड़ी गन्ने में किल्लों की संख्या व पैदावार में वृद्धि होती है।
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान के अनुसार, गन्ने की खेती और प्रोसेसिंग से देश को हर साल 50,000 करोड़ रुपए का राजस्व मिलता है। लगभग 50 मिलियन गन्ना किसान और उनके परिवार के लोग इस उद्योग से जुड़े हैं। भारत में गन्ना 5.28 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्रफल में उगाया जाता है, इसमें लगभग 349 मिलियन टन गन्ने का उत्पादन प्रति वर्ष होता है। वर्तमान में भारत 25 मिलियन टन के औसम वार्षिक उत्पादन के साथ चीनी उत्पादन में ब्राजील के बाद दूसरे नंबर पर है।
राष्ट्रीय अजैविक स्ट्रैस प्रबंधन संस्थान, बारामती, पुणे (महाराष्ट्र) व गन्ना अनुसंधान संस्थान परिषद के सहयोग से विकसित सोर्फ मशीन को विकसित किया गया है।
कई जगह पर हुआ है इसका प्रदर्शन भारतीय गन्ना अनुसंधान परिषद के वैज्ञानिक एके साह बताते हैं, "फसल उत्पादन के बाद सबसे बड़ी समस्या फसल अवशेष प्रबंधन की होती है, गन्ना कटाई के बाद खेत में लगभग 10-15 टन प्रति हेक्टेयर गन्ने की सूखी पत्तियां जमीन की सतह पर एक मोटी परत के रूप में रह जाता है। इसके बाद रसायनिक उर्वरक डालने और दूसरे कामों में इतनी कठिनाई होती है कि किसान इससे निजात पाने के लिए इसको जलाना ही सबसे आसान समझते हैं।"
एक तरफ ट्रैश जलाने में महत्वपूर्ण पोषक तत्वों जैसे कि नाइट्रोजन, पोटेशियम, गंधक आदि नष्ट होने के साथ-साथ लाभकारी सूक्ष्मजीव व कार्बन में भारी मात्रा में कमी आ जाती है। वहीं दूसरी ओर ग्रीन हाउस गैस जैसे कि मीथेन, कार्बन डाई ऑक्साइड व नाइट्रस ऑक्साइड जैसी गैसों का भी उत्सर्जन होता है, जिससे कि ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्याएं बढ़ती है। इसके विपरीत ट्रैश को खेत में रखने से मिट्टी में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा व सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है। तापमान का नियमन होता है, जलधारण की क्षमता व उर्वरता भी बढ़ती है, जिससे फसल की पैदावार में वृद्धि होती है।
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फसल जलाने से मिट्टी की उर्वरता में आ जाती है कमी
फसल जलाने से मिट्टी की उर्वरता में आ जाती है कमी
ट्रैश गन्ने की सूखी पत्तियां, प्रबंधन से फसल को होने वाले फायदों के कारण आज किसान पेड़ी गन्ने में ट्रैश को जलाने की बजाय खेत में रखना पसंद करने लगे हैं। किसान, उर्वरकों को भूमि की सतह पर डालने के लिए बाध्य है, क्योंकि उसके पास इसके अलावा और कोई उपयुक्त तकनीक/मशीन नहीं है। इसके कारण किसान को उर्वरक भी अधिक मात्रा में डालना पड़ता है, फलस्वरूप आर्थिक बोझ भी ज्यादा आता है। दूसरी ओर फसल को भी उचित मात्रा में पोषण नहीं मिल पाता है, क्योंकि उपयोग में लाए गए उर्वरक की ज्यादातर मात्रा ट्रैश के ऊपर ही रह जाती है।
सोर्फ मशीन की मुख्य विशेषताएं:
पोषक तत्व प्रबंधन
ठूंठ प्रबंधन
जड़ प्रबंधन
सोर्फ मशीन के उपयोग से होने वाले प्रमुख फायदे
- पेड़ी गन्ने की पैदावार बढ़ाने के लिए अति विशिष्ट फसल प्रबंधन कार्यों का समय पर न
- ट्रैश अच्छादित खेत में भी रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग संभव
- स्वच्छ किल्लों की संख्या में वृद्धि और किल्लों की मृत्यू दर में कमी
- पेड़ी गन्ने की पैदावार में 30 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी
- प्रति हेक्टेयर 50,000 रुपए तक का शुद्ध मुनाफा