छाछ से होगा कपास की फसल में रोग नियंत्रण, करेगा पौधों की वृद्धि में मदद
Divendra Singh | Nov 27, 2018, 08:22 IST
वैज्ञानिकों ने कपास की फसल में लगने वाले स्ट्रीक वायरस (टीएसवी) से बचने के जैविक उपचार ढूंढ़ लिए हैं। तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय (टीएनएयू) के वैज्ञानिकों ने पाया है कि कपास की फसल में तंबाकू स्ट्रीक वायरस (टीएसवी) से लड़ने के लिए बैसिलस एमिलोलिक फासिएंस नाम के राइज़ोबैक्टेरिया का उपयोग किया जा सकता है।
इस तरह काम करता है ये बायोफार्मूलेशन
छाछ से तैयार फॉर्म्यूलेशन का वायरस के खिलाफ परीक्षण किया गया और प्रभावी पाया गया। इंसानों और पौधों में एंटीमाइक्रोबायल गतिविधि के लिए छाछ का प्रयोग होता आया है। इस नए अध्ययन में पाया गया है कि छाछ का बैसिलस फॉर्मूलेशन के संयोजन के साथ ज्यादा प्रभावी रहा है।
टीएसवी के कारण कपास में बीमारी होती है और ये कपास किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है। ये वायरस कपास की फसल में कीटों के माध्यम से पौधों को संक्रमित करता है। ज्यादातर किसान ये समझ ही नहीं पाते और इसके नियंत्रण के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। इसलिए वैज्ञानिक इसके नियंत्रण के लिए र्यावरण-अनुकूल प्रबंधन विधि की तलाश में हैं।
कुछ अध्ययन के जरिए कपास के पत्ते के कर्ल, कुकुम्बर मोजेक वायरस और टोबेक मोजेक वायरस की जानाकरी मिली। इससे जानकारी लेते हुए शोधकर्तओं ने राइजोफेरिक और इंडोफाइटिक बैक्टिरिया को इकट्ठा किया। उसके बाद बैक्टीरिया के कल्चर के माध्यम से उनकी एंटीवायरल जानकारी का आकलन किया। उन्होंने पाया कि बैसिलस एमिलोलिक फासिएंस नाम का एक राइज़ोबैक्टीरियम से बेहतर परिणाम दिख रहे हैं।
वैज्ञानिकों ने तमिलानाडु के दो अलग-अलग क्षेत्र में साल 2015 और 2016 में टीएसवी संक्रमित कपास के खिलाफ बैसिलस प्रजातियों और फाइटो-एंटीवायरल सिद्धांतों की प्रभावकारिता का आकलन किया। इसके लिए उन्होंने बढ़िया उत्पादन देने वाली हाइब्रिड किस्म आरसीएच 659 का चयन किया गया था।
शोधकर्ताओं की टीम
जीवाणु संचरण के लिए उन्होंने छाछ को आधार के रूप में इस्तेमाल किया। यह प्रभावी रूप से कपास संयंत्र के राइज़ोस्फीयर और फाइलोप्लेन को उपनिवेशित करने और एंटी-माइक्रोबियल पेप्टाइड्स और फैटी एसिड का उत्पादन करने के लिए पाया गया था, जो वायरस को रोकता था।
"मक्खन में निलंबित राइज़ोबैक्टेरिया को बढ़ावा देने वाले पौधों के विकास के सूत्रों ने न केवल रोग की घटनाओं को कम किया बल्कि पौधों की वृद्धि और उपज को भी बढ़ावा दिया। उपयोगकर्ता के अनुकूल उत्पाद में फॉर्मूलेशन विकसित करने के लिए अधिक अध्ययन की आवश्यकता है। इंडिया साइंस वायर से बात करते हुए अनुसंधान दल के एक सदस्य डॉ एस विनोद कुमार ने कहा, "देश के अन्य कपास उगाने वाले क्षेत्रों में इसका परीक्षण करने की भी आवश्यकता है।"
शोधकर्ताओं की टीम के सदस्य डॉ. एस. विनोद कुमार बताते हैं, "छाछ के इस्तेमाल से न केवल रोग का नियंत्रण हुआ, बल्कि पौधों की वृद्धि हुई और उत्पादन भी पहले से ज्यादा मिला। इसके बेहतर प्रयोग के लिए अभी और अध्ययन की जरूरत है। अभी देश के दूसरे उत्पादक क्षेत्रों में इसका परीक्षण करने की जरूरत है।"
RDESController-1406
छाछ से तैयार फॉर्म्यूलेशन का वायरस के खिलाफ परीक्षण किया गया और प्रभावी पाया गया। इंसानों और पौधों में एंटीमाइक्रोबायल गतिविधि के लिए छाछ का प्रयोग होता आया है। इस नए अध्ययन में पाया गया है कि छाछ का बैसिलस फॉर्मूलेशन के संयोजन के साथ ज्यादा प्रभावी रहा है।
टीएसवी के कारण कपास में बीमारी होती है और ये कपास किसानों के लिए एक बड़ी समस्या है। ये वायरस कपास की फसल में कीटों के माध्यम से पौधों को संक्रमित करता है। ज्यादातर किसान ये समझ ही नहीं पाते और इसके नियंत्रण के लिए कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। इसलिए वैज्ञानिक इसके नियंत्रण के लिए र्यावरण-अनुकूल प्रबंधन विधि की तलाश में हैं।
RDESController-1407
कुछ अध्ययन के जरिए कपास के पत्ते के कर्ल, कुकुम्बर मोजेक वायरस और टोबेक मोजेक वायरस की जानाकरी मिली। इससे जानकारी लेते हुए शोधकर्तओं ने राइजोफेरिक और इंडोफाइटिक बैक्टिरिया को इकट्ठा किया। उसके बाद बैक्टीरिया के कल्चर के माध्यम से उनकी एंटीवायरल जानकारी का आकलन किया। उन्होंने पाया कि बैसिलस एमिलोलिक फासिएंस नाम का एक राइज़ोबैक्टीरियम से बेहतर परिणाम दिख रहे हैं।
देश में गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु, तेलांगना और मध्य प्रदेश प्रमुख कपास उत्पादक राज्य हैं।
RDESController-1408
जीवाणु संचरण के लिए उन्होंने छाछ को आधार के रूप में इस्तेमाल किया। यह प्रभावी रूप से कपास संयंत्र के राइज़ोस्फीयर और फाइलोप्लेन को उपनिवेशित करने और एंटी-माइक्रोबियल पेप्टाइड्स और फैटी एसिड का उत्पादन करने के लिए पाया गया था, जो वायरस को रोकता था।
"मक्खन में निलंबित राइज़ोबैक्टेरिया को बढ़ावा देने वाले पौधों के विकास के सूत्रों ने न केवल रोग की घटनाओं को कम किया बल्कि पौधों की वृद्धि और उपज को भी बढ़ावा दिया। उपयोगकर्ता के अनुकूल उत्पाद में फॉर्मूलेशन विकसित करने के लिए अधिक अध्ययन की आवश्यकता है। इंडिया साइंस वायर से बात करते हुए अनुसंधान दल के एक सदस्य डॉ एस विनोद कुमार ने कहा, "देश के अन्य कपास उगाने वाले क्षेत्रों में इसका परीक्षण करने की भी आवश्यकता है।"
शोधकर्ताओं की टीम के सदस्य डॉ. एस. विनोद कुमार बताते हैं, "छाछ के इस्तेमाल से न केवल रोग का नियंत्रण हुआ, बल्कि पौधों की वृद्धि हुई और उत्पादन भी पहले से ज्यादा मिला। इसके बेहतर प्रयोग के लिए अभी और अध्ययन की जरूरत है। अभी देश के दूसरे उत्पादक क्षेत्रों में इसका परीक्षण करने की जरूरत है।"
देश के प्रमुख कपास उत्पादक राज्य
राज्य | उत्पादन |
| आंध्र प्रदेश | 20.38 |
| गुजरात | 126.37 |
| हरियाणा | 16.26 |
| कर्नाटक | 12.24 |
| मध्य प्रदेश | 18.69 |
| महाराष्ट्र | 65.46 |
| तमिलनाडु | 4.88 |
| राजस्थान | 18.93 |
| कुल | 379.84 |