बुद्ध पूर्णिमा: काला नमक चावल, जिसे खाकर गौतम बुद्ध ने अपना उपवास तोड़ा था
Neetu Singh | Jan 23, 2018, 19:16 IST
बुद्ध पूर्णिमा पर पढ़िए एक खास फसल के बारे में जो सीधे उनके जीवन से जुड़ी थी, लेकिन अब वो भारत से खत्म होती जा रही है। buddha purnima 2019
काला नमक चावल एक घर में बनता है तो आस पास के कई घरों में इसकी खुशबू जाती है। अब न तो पहले वाला शुद्ध पानी रह गया है और न पहले वाली वो खुशबू रह गयी है। असली काला नमक धान हमारे पूर्वजों के जमाने में होता था।
"पहले हमारे यहां के लोग रोटी खाते ही नहीं थे, सिर्फ काला नमक चावल खाते थे। गेहूं और ज्वार काम भर का बोते थे। महंगाई ज्यादा थी नहीं, इसलिए साल में एक फसल काला नमक धान की ही करते थे। हर घर में काला नमक धान होता था, पिछले 20 वर्षों में धीरे-धीरे काला नमक धान कम होना शुरू हुआ अब 4-5 प्रतिशत ही बचा है।" बर्डपुर-9 ग्राम पंचायत के किसान राधेश्याम जयसवाल (68 वर्ष) ने कहा, "काला नमक चावल एक घर में बनता है तो आस पास के कई घरों में इसकी खुशबू जाती है। अब न तो पहले वाला शुद्ध पानी रह गया है और न पहले वाली वो खुशबू रह गयी है। असली काला नमक धान हमारे पूर्वजों के जमाने में होता था।"
काला नमक चावल की बुद्ध ने खाई थी खीर
पहले हमारे यहां के लोग रोटी खाते ही नहीं थे, सिर्फ काला नमक चावल खाते थे। गेहूं और ज्वार काम भर का बोते थे। महंगाई ज्यादा थी नहीं, इसलिए साल में एक फसल काला नमक धान की ही करते थे। हर घर में काला नमक धान होता था, पिछले 20 वर्षों में धीरे-धीरे काला नमक धान कम होना शुरू हुआ
जब अंग्रेज़ आते थे नहर का पानी खोलने
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जहां से धान के लिए मिलता था पानी वहां होने लगा मछली पालन
वो आगे बताते हैं, "अब किसान साल में धान और गेहूं दो फसलें लेता है इसलिए काला नमक धान खत्म हो रहा है। दिसम्बर आख़िरी में धन कटती है तब तक गेहूं बुवाई का समय चला जाता है। ये धान एक बीघा में ढाई से तीन कुंतल होती है जबकि बाकी धान 8 से 10 कुंतल होती है। काला नमक का भाव छह सात हजार कुंतल है, घाटे की फसल मानते हुए किसान ने अब इसे करना बंद कर दिया है।"
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काला नमक धान की पहचान बुद्ध काल से है। बढ़ती महंगाई कम उत्पादन, मजदूर न मिलने की वजह से किसानों का रुझान इस धान की तरफ से खत्म होता जा रहा है। कृषि विज्ञान केंद्र सोहना के कार्यक्रम समन्यवक डॉ. सतीश कुमार तोमर गांव कनेक्शन को बताते हैं, "पिछले पांच साल पहले काला नमक का उत्पादन बहुत कम हो गया था। कृषि विज्ञान की पहल से किसानों का इसका मुफ़्त में बीज उपलब्ध कराया गया, अब किसान इसे कर रहे हैं। इस वैराइटी पर लगातार शोध हो रहे हैं जिससे इसे कम दिनों का किया जा सके। काला नमक दो - तीन की नई वैराइटी पर गोरखपुर के वैज्ञानिक रिसर्च कर रहे हैं।"
वो आगे बताते हैं, "आने वाले वर्षों में हमारी कोशिश है कि किसान काला नमक धान के बाद गेहूं की फसल ले सकें और उन्हें इसकी बाजार उपलब्ध कराई जाए जिससे इस धान को किसान फिर से करना शुरू कर सकें। असली काला नमक धान अब सही मायने में बचा नहीं है बीज मिक्स हो गया है इसलिए पहले जैसा स्वाद भी नहीं बचा है। जैसे-जैसे हम बीज उपलब्ध करा रहे हैं किसान कर रहे हैं पर अभी करने वालों की संख्या कम है।" काला नमक चावल बर्डपुर-9 के प्रधान पति ओमप्रकाश यादव का कहना है, "पहले एक गांव में अगर 100 एकड़ काला नमक धान बोया जाता था तो अब पांच से दस एकड़ ही बचा है। सरकार ने इस धान के लिए किसानों को प्रोत्साहित नहीं किया जिसकी वजह से किसानों का रुझान कम हुआ। अब स्थिति ये बन गयी है कि अगर सरकार न चेती तो आने वाले कुछ वर्षों में ये धान पूरी तरह समाप्त हो जायेगा।" वो आगे बताते हैं, "काला नमक धान के इस गढ़ में कभी कोई कृषि विभाग से अधिकारी गांव में आया हो किसानों से उनकी समस्याएं जानी हों ऐसा हमने कभी देखा नहीं। पिछड़ा क्षेत्र होने की वजह से कृषि से जुड़ी किसी भी योजना का छोटी जोत के किसानों को लाभ नहीं मिल पाता।"