क्या आप जानते हैं हर रोज ज़हर खा रहे हैं हम...

Divendra Singh | Jun 02, 2018, 08:21 IST

कीटनाशक का सिर्फ एक हिस्सा ही कीड़ों और रोगों को मारने का काम आता है, बाकि 99 फीसदी का बड़ा हिस्सा उस फल और अनाज में समा जाता है, जो खाने वालों को बीमार कर सकता है।

लखनऊ। जब आप फल और सब्जियां खरीदने बाजार जाते हैं, तो कौन सी सब्जियां खरीदते हैं ? वही न जो सबसे ज्यादा हरी और चमकदार होती हैं, जिन फलों पर कोई दाग नहीं होता है... थोड़ा ठहरिए आप की इस पसंद को पूरा करने के लिए इन फल और सब्जियों को भारी मात्रा में कीटनाशक छिड़के जाते हैं।

कीटनाशक यानी वो जहर जो फल, सब्जियों और अनाज को कीड़े, रोग और खरपतवार से बचाने के लिए डाले जाते हैं, लेकिन इस कीटनाशक का सिर्फ एक हिस्सा ही कीड़ों और रोगों को मारने का काम आता है, बाकि 99 फीसदी का बड़ा हिस्सा उस फल और अनाज में समा जाता है, जो खाने वालों को बीमार कर सकता है।

महाराष्ट्र में भुसावल के बाद उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में सोहावल ब्लॉक और बाराबंकी जिला केले की खेती के लिए प्रसिद्ध है। लेकिन कई किसान जो केला उगाते हैं वो खुद भी ये नहीं खाते। क्योंकि वो जानते हैं इसे हरा-भरा और बेदाग रखने के लिए कीटनाशक का इस्तेमाल किया गया है।



अरुण चतुर्वेदी उत्तर प्रदेश के बनीकोडर ब्लॉक के नारायणपुर गाँव के किसान हैं। वो बताते हैं, "अगर कीटनाशक का प्रयोग न करें तो व्यापारी केला ही नहीं खरीदेंगे, क्योंकि अगर केले पर दाग लग गया तो केला नहीं बिकता है। हम लोग तो फायदा ही देखते हैं, कुल मिलाकर खेती अच्छी होनी चाहिए।" केला नगदी फसल है, ज्यादा मुनाफा देती है, तो इसमें लागत भी काफी लगती है इसलिए उसमें कोई जोखिम न हो किसान एक फसल में 20 से 25 बार कीटनाशक का इस्तेमाल करते हैं। नारायणपुर गांव के ही किसान उपेन्द्र बताते हैं, "हम जानते हैं कि ये (कीटनाशक) जहर है, लेकिन हमारी भी मजबूरी यह है कि अगर हम कीटनाशक नहीं डालेंगे तो हमें फसल का अच्छा दाम नहीं मिलेगा।"

सिर्फ केला ही नहीं कई दूसरी फसलों, आम, अंगूर, काजू, बैंगन, भिड़ी तक में भारी मात्रा में क्लास वन (अत्यधिक हानिकारक) रसायनों को प्रयोग किया जाता है। वर्ष 2012 में अभिनेता आमिर खान ने फूड, टाक्सिस और कीटनाशकों को लेकर सत्यमेव जयते का पूरा एपिसोड किया था, जिसमें कई किसानों ने कैमरों पर माना था कि वो कीटनाशक वाली अपनी फसल सिर्फ बाजार के लिए उगाते हैं, जबकि अपने लिए वो जैविक खेती करते हैं।

कीटनाशक की अंधाधुध उपयोग किसान कि सिर्फ मजबूरी नहीं, कई बार वो ज्यादा उपज के लालच में भी करते हैं। एक कीटनाशक कंपनी में कार्यरत पंकज शुक्ला बताते हैं, " ज्यादातर किसानों कीटनाशक की जानकारी नहीं होती, लेकिन काफी किसान ऐसे भी हैं जो ज्यादा उपज के लिए आवश्यकता से ज्यादा उर्वरक और कीटनाशक डालते हैं।" कीटनाशक और उर्वरक के मुद्दे पर ज्यादातर शहरी लोग अपने अलग रखते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है ये किसान और खेती का मुद्दा लेकिन खेती का एड प्रोडक्ट है वो आता तो शहर और कस्बे के लोगों की थाली में भी है।

कीटनाशकों के प्रभाव से अस्थमा, ऑटिज्म, डायबिटीज, परकिंसन, अल्ज़ाइमर, प्रजनन संबंधी अक्षमता और कई तरह का कैंसर होने का खतरा रहता है। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज व गुरु तेग बहादुर अस्पताल, नई दिल्ली के डॉक्टरों ने पिछले कई वर्षों में 30-54 वर्ष के कई मरीजों के खून की जांच की तो सामने आया कि उनके खून में अल्फा और बीटा एंडोसल्फन, डीडीटी और डीडीई, डिल्ड्रिन, एल्ड्रिन, और अल्फा, बीटा, और गामा एचसीएच जैसे कई खतरनाक कीटनाशकों की मात्रा मिली। रिसर्च में शामिल इन डॉक्टरों में डॉ. अशोक कुमार त्रिपाठी भी हैं, जो कई साल से कीटनाशकों के दुष्प्रभाव पर रिसर्च कर रहे हैं।



"हमने लगभग 20 साल तक एक हज़ार से भी ज्यादा लोगों की जांच की तो पाया कि मरीजों में प्री मैच्योर बेबी, किडनी में इंफेक्शन, कई तरह के कैंसर जैसी बीमारियों की वजह कीटनाशक था, "रिसर्च के प्रमुख डॉ. अशोक कुमार त्रिपाठी ने आगे बताया, "डीडीटी, एंडोसल्फान जैसे कई कीटनाशक लंबे समय तक पर्यावरण में रहते हैं।" तमाम हादसों के बाद भारत में 2013 में एडोसल्फान पर प्रतिबंध लगाया गया था, जबकि बाकी दुनिया के कई देशों में ये पहले से प्रतिबंधित था।

भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा कीटनाशक उत्पादक देश है। विश्व भर में प्रति वर्ष लगभग 20 लाख टन कीटनाशक का उपयोग किया जाता है। टॉक्सिक लिंक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 108 टन सब्जियों को बचाने के लिए 6000 टन कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है।

देश में सबसे अधिक 24 फ़ीसदी पेस्टीसाइड उपयोग की हिस्सेदारी के साथ आंध्र प्रदेश सबसे ऊपर है, जबकि पंजाब में 11 फ़ीसदी पेस्टीसाइड का उपयोग होता है। वहीं हरियाणा में देश के खपत का पांच फ़ीसदी पेस्टीसाइड उपयोग होता है। मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ कुल खपत का 8 फ़ीसदी और महाराष्ट्र 13 फ़ीसदी पेस्टीसाइड उपयोग करता है जबकि गुजरात और कर्नाटक के मामले में यह हिस्सेदारी सात-सात फ़ीसदी है। हालांकि आंध्र प्रदेश में 35 लाख एकड़ में जैविक और प्राकृतिक खेती कर अपनी भूल सुधारी है। वर्तमान में ये राज्य पूर्ण जैविक की ओर कदम बढ़ा चुका है। जैविक खेती करने वाले किसानों का कहना है बिना कीटनाशक और उर्वरक वाली वाली उपज में दाग-धब्बे हो सकते हैं, देसी चीजों चमकदार भले न हों लेकिन उनमें मिलावट नहीं होती, अगर खाने वाले लोग भी इस चीज को समझ जाएं तो किसान भी कीटनाशकों का प्रयोग कम कर सकते हैं।

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