ये उपाय अपनाकर बढ़ा सकते हैं मटर का उत्पादन, नहीं लगेंगे कोई कीट या रोग

Divendra SinghDivendra Singh   8 Jan 2019 8:12 AM GMT

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ये उपाय अपनाकर बढ़ा सकते हैं मटर का उत्पादन, नहीं लगेंगे कोई कीट या रोग

लखनऊ। इस समय मटर की फसल में फूल आने लगते हैं, फूल लगते समय कई तरह के कीट और रोग लगने भी शुरू हो जाते हैं। इनसे उत्पादन पर तो असर पड़ता ही है, साथ ही लागत भी ज्यादा लग जाती इसलिए समय रहते प्रबंधन करना चाहिए।

भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिक डॉ. राजेश कुमार बताते हैं, "कीट लगने पर पौधों की वृद्धि रुक जाती है, ऐसे में समय रहते प्रबंधन शुरू कर देना नहीं तो उत्पादन नहीं मिल पाता है।"

मटर की फसल के प्रमुख कीट और उनका प्रबंधन

फली छेदक : फरवरी माह में पौधों में जब इसका प्रारंभ होकर अप्रैल तक चलता है। अंडे से निकली हुई सुंडी अपने चारों ओर जाला बुनती और छेड़कर फलों में घुसकर दानों को खाती रहती हैं। उससे काफी नुकसान होता है। फलिया बदरंग हो जाती है और उनमें पानी भर जाता है। ऐसी फलियों से दुर्गंध आने लगती है। इसके नियंत्रण के लिए मेलाथियान 5 प्रतिशत या क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत डस्ट का 20 से 25 किलो प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें।


लीफ माइनर : इस कीट का प्रकोप मटर के पौधों की निचली व मध्य पत्तियों में दिसंबर के आखिर से शुरू होता है और फरवरी के अंतिम सप्ताह से मार्च के प्रथम सप्ताह में चरम सीमा पर पहुंच जाता है। पत्तियों के दोनों सतहों पर सुरंग दिखाई देती है। यह कीट पत्तियों में सुरंग बनाते हैं, जिससे पत्तियां भोजन नहीं बना पाती है और पौधों की वृद्धि रुक जाती है। कीट ग्रसित पत्तियां सूख जाती है और फूल व फल या कम बनते हैं। इसके नियंत्रण के लिए ट्राइजोफास 15 लीटर प्रति हेक्टेयर से या मिथाइल डिमेटोन एक मिली प्रति लीटर पानी के छिड़काव करें।

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चैंपा/मोयला : मटर की कोमल पत्तियों की निचली सतह फूलों कलियों अग्रभाग और फलियों का रस चूस कर पौधे के विभिन्न कोमल अंगो को क्षति पहुंचता है। कीटों से प्रकोपित पौधे छोटे रह जाते हैं और उनकी पत्तियां पीली पड़ जाती है, ग्रसित फलियां छोटी रह जाती है। नियंत्रण के लिए डाइमेथोएट 30 ईसी एक मिलीलीटर पानी की दर से छिड़काव करें।


प्रमुख रोग व प्रबंधन

सफेद चूर्ण रोग : इस रोग में सफेद चूर्ण पत्तियों व पौधे के अन्य भागों पर दिखाई देता है। नियंत्रण के लिए एक मिली. डायनोकेप 48 ईसी या ट्राइडेमार्फ़ 80 ईसी प्रति लीटर पानी की दर से 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें। रोग रोधी किस्में जैसे रचना, पंत मटर 5, शिखा सपना, मालवीय मटर उगाएं।

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रतुआ : पत्तों पर पीले से भूरे गोल झुंड में फैले हुए बीजाणुकोष के लक्षण हैं। बीजाणुकोशों के भूरे रंग के कारण ही इस रोग को रतुआ रोग कहा जाता है। नियंत्रण के लिए मैंकोजेब 2 ग्राम या घुलनशील गंधक तीन ग्राम प्रति लीटर पानी की दर से 10, 15 दिन में दो से तीन बार छिड़काव करें।


मटर में हानिकारक कीटों का प्रबंध

  1. खेत की मेड़ों की सफाई करें जिससे कीड़ों का आश्रय देने वाले पौधे पनप न पाएं।
  2. अंतरवर्ती फसल लगाएं, इससे मुख्य फसल पर कीट का प्रकोप कम होता है और प्राकृतिक क्षेत्रों की संख्या को सुरक्षित रखा जा सकता है।
  3. लाइट ट्रैप प्रपंच का उपयोग कर प्रतिदिन कीड़ों को नष्ट करें।
  4. खेत में फेरोमेन ट्रेप 8-10% प्रति हेक्टेयर की दर से लगाएं। यदि आठ पतंगे प्रति ट्रेप प्रति रात्रि लगातार तीन रात मिले तो इसका नियंत्रण करना चाहिए।
  5. खेतों में पक्षी आश्रय स्थल (बर्ड पर्चर) अंग्रेजी के टी आकार की लकड़ी लगाएं।
  6. इल्लियों और फल छेदक कीट के नियंत्रण के लिए ट्रायकोकार्ड पांच लाख प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपयोग करें।
  7. निर्धारित आर्थिक हानि स्तर होने पर ही कीटनाशक दवा का उपयोग करें।
  8. हरी इल्ली, फल छेदक कीट की रोकथाम हेतु बुवाई के 35-40 दिनों के बाद एचए एनपीव्ही. 250 एल.ई. प्रति हेक्टेयर के मान से शाम के समय छिड़काव करें।
  9. रस चूसक कीड़ों की रोकथाम के लिए नीम तेल या नीम अर्क पांच मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोल कर छिड़काव करें।
  10. पाइरेथ्राइड का प्रयोग फसल काल में केवल एक बार अंतिम समय पर करें। सिंथेटिक पाइरेथ्राइड का आवश्यकता से अधिक मात्रा का उपयोग या बार-बार छिड़काव सफेद मक्खी के प्रकोप को उग्र बना देता है।
  11. स्पाइनोसेड और इमामेक्टिन बेंजोएट का उपयोग भी फल छेदक कीट और हरी इल्ली के लिए कर सकते हैं।
  12. मिथाइल डिमेटोन 25 ई.सी.की 800-1000 मिली या इमिडाक्लोप्रिड (कॉन्फीडोर) 100 मिली. प्रति हेक्टेयर के मान से या डाइमेथोएट 30 ई.सी. 800-1000 मिली प्रति हेक्टेयर या एसीटामिप्रिड की 75 ग्राम दवा प्रति हेक्टेयर कीटों के नियंत्रण के लिए उपयोग करें।

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