सेहत के साथ-साथ कमाई का जरिया है कोदो की खेती

कोदो की खेती वहां भी की जाती है जहां पर बहुत कम वर्षा होती है। यह फसल शुगर फ्री चावल के तौर पर पहचानी जाने वाली मुख्य फसल है। आईयूसीएन रेड लिस्ट में शुमार कोदो (कुटकी) की रक्षा और लोकप्रिय बनाने के प्रयास जोर-शोर से शुरू सरकारों द्वारा कर दिये गये है।

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   5 Jun 2018 10:19 AM GMT

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सेहत के साथ-साथ कमाई का जरिया है कोदो की खेती

लखनऊ। असिंचित क्षेत्रों में बोये जाने वाले मोटे अनाजों में कोदो (कुटकी) का महत्वपूर्ण स्थान है। उन भागों में भी, जहां पर खरीफ के मौसम में वर्षा नियमित रूप से नहीं होती, यह फसल आसानी से उगाई जा सकती है। इस फसल के लिए 40-50 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्र उपयक्त पाये गये हैं। इसकी पैदावार ज्यादातर उन क्षेत्रों से ली जा सकती है जहां पर बहुत कम वर्षा होती है। यह फसल शुगर फ्री चावल के तौर पर पहचानी जाने वाली मुख्य फसल है। आईयूसीएन रेड लिस्ट में शुमार कोदो (कुटकी) की रक्षा और लोकप्रिय बनाने के प्रयास जोर-शोर से शुरू सरकारों द्वारा कर दिये गये है।

पिछले कुछ वर्षों में कोदो, सांवा जैसे मोटे अनाजों की मांग बढ़ी है, ऐसे में किसान बारिश के बाद जून के अंतिम सप्ताह में सावां, कोदो की खेती कर सकते हैं। गोरखपुर ज़िला मुख्यालय से लगभग 30 किमी उत्तर पश्चिम दिशा में जंगल कौड़िया ब्लॉक के राखूखोर चिकनी गाँव के दर्जनों किसान मोटे अनाज की खेती करते हैं। किसान राम निवास मौर्या (46 वर्ष) पिछले कई वर्षों से मोटे अनाज की खेती कर रहे हैं, वो बताते हैं, "जून में हम लोग कोदो की खेती शुरू कर देते हैं। हमारा गांव राप्ती और रोहिन दो नदियों के बीच में रहता पड़ता है, कभी सूखा पड़ा रहता है तो कभी बाढ़। ऐसे में इस फसल पर इनका कोई असर नहीं पड़ता है। उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद के अनुसार कोदो की जेके-6, जेके-62, जेके-2, एपीके-1, जीपीवीके-3 जैसी किस्मों की बुवाई करनी चाहिए।

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सीएम शिवराज सिंह चौहान ने खाया कोदो का बना पकवान

एमपी के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सोमवार को डिंडौरी क्षेत्र के गांवों को दौरा किया। इस दौरान उन्होंने सुबह-सुबह कोदो से बने पकवान का भी आनंद लिया। सीएम से खुद सोशल मीडिया पर कोदो खाते हुए अपना एक वीडियो डाला और इसके महत्व को बाया। सीएम ने इस वीडियो में लिखा है, 'जैसा खाए अन्न, वैसा होए मन' सुबह-सुबह कोदो खाकर मन प्रफुल्लित हो गया।

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कम पानी में हो सकती है खेती

यूपी के गोरखपुर, बलिया, प्रतापगढ़, सुलतानपुर, जौनपुर, जैसे कई जिलों में कोदो की खेती की जाती है, पिछले कुछ वर्षों इन फसलों की खेती की तरफ किसानों का रुझान बढ़ा है। मध्य प्रदेश के कुछ जिलों में भी इसकी बड़े पैमाने पर खेती होती है। कम लागत और सूखा प्रतिरोधी होने के साथ-साथ इनको कम उपजाऊ भूमि पर भी उगाया जा सकता है। रामनिवास मौर्या अनाज बैंक भी चलाते हैं, जहां से किसानों को बीज उपलब्ध कराते हैं। ताकि इनकी खेती को बढ़ावा मिल सके। पिछले कुछ साल में मोटे अनाज की मांग काफी बढ़ी है, किसान इसे कम पानी में उगा सकते हैं। किसानों को बीज न्याय पंचायत स्तर पर स्थित साधन सहकारी समितियों, किसान सेवा केन्द्र, ब्लाक कार्यालय और जिला कृषि केन्द्र से मिलेगा। इनमें कम पानी की जरूरत होने के कारण उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं होती है। सिंचाई की पूरी व्यवस्था न होने के कारण ऐसी भूमि पर कम पानी वाली फसल लगाना ही लाभदायक होता है।



पहचान वापस दिलाने की कोशिश

मध्य प्रदेश के जनजातीय जिला डिंडोरी में कोदो-कुटकी को फिर से पहचान दिलाने की कोशिशें शुरू हो गई हैं। वहां की महिलाओं के स्वयं-सहायता समूह कोदो-कुटकी से बने कई उत्पाद तैयार कर रहे हैं। इन उत्पादों को भारती ब्रांड के नाम से बाजार में उतारा गया है। गौरतलब है कि डिंडोरी जिले के 41 गांवों की बैगा जनजातीय महिलाओं ने तेजस्विनी कार्यक्रम के जरिए कोदो-कुटकी की खेती शुरू की। वर्ष 2012 में 1,497 महिलाओं ने प्रायोगिक तौर पर 748 एकड़ जमीन पर कोदो-कुटकी की खेती की शुरुआत की थी।

इससे 2,245 क्विंटल उत्पादन हुआ। इससे प्रेरणा लेकर 2013-14 में 7,500 महिलाओं ने 3,750 एकड़ में कोदो-कुटकी की खेती की और 15 हजार क्विंटल कोदो-कुटकी का उत्पादन हुआ। कोदो-कुटकी के बढ़ते उत्पादन को देखते हुए नैनपुर में एक प्रसंस्करण यूनिट ने भी काम करना शुरू कर दिया है।


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कोदो की खेती करने का समय और वेराइटी

कोदो बुवाई का सही समय जून माह के प्रथम सप्ताह से मध्य जुलाई माह तक माना गया है। खेत में जब पर्याप्त नमी हो तुरन्त बुवाई कर देनी चाहिए। कोदो की बुवाई छिड़कवा विधि के अलावा लाइनों में करने से अधिक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। लाइनों में बीज बोने की गहराई कम से कम 3 सेमी एवं पंक्ति से पंक्ति की दूरी 40 से 50 सेमी तथा बीज से बीज की दूरी 8 से 10 सेमी रखनी चाहिए। 105 से 110 की अवधि वाले फसल में पीएससी-1, 2 आरपीएस -41, 76 पीएलआर-1 , जेएनके-364, 85 दिन अवधि वाले में जेके-41, जेके-62, जेके-76, 115 दिन वाले में निवास-1, 112 दिन में डिंडोरी 76, 112 दिन में। इन फसलों का उत्पादन प्रति एकड़ करीब 6 से 8 क्विंटल होता है। शुगर फ्री होने के कारण आम लोगों की रुचि भी इन फसलों में बढ़ी है।

मिड-डे मील में शामिल होंगे मोटे अनाज

सरकार मोटे अनाज को प्रोत्साहित करने की योजना बना रही है। इसके लिए मोटे अनाज को मध्यान्ह भोजन में शामिल तो किया ही जा रहा है साथ ही सरकार ने 2018 को मोटे अनाज का वर्ष घोषित करने का निर्णय लिया है। दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने कहा "सरकार पोषण सुरक्षा को हासिल करने के लिए मिशन स्तर पर रागी और ज्वार जैसे मोटे अनाज की खेती को प्रोत्साहित कर रही है। उन्होंने कहा कि कोदो, बाजरा जिसे पोषक अनाज कहा जाता है, को समर्थन मूल्य पर खरीदा जा रहा है और इसे मध्यान्ह भोजन योजना और सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत शामिल किया जा रहा है।"

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