आलू का हाल देख उत्पादन बढ़ने की खबरों से भी डर लगता है

Mithilesh Dhar | Jan 13, 2018, 19:34 IST
farmers income
ज्यादा उत्पादन होने से किसानों को फायदा होगा, अगर कोई इसका सवाल हां में देगा तो आप के सामने यूपी में आलू और मध्य प्रदेश में पिछले साल सड़क पर फेंके गए प्याज का उदाहरण आप देंगे। यानि आज की जरूरत ज्यादा उत्पादन नहीं, उसका बेहतर मूल्य है.. समझिए कैसे ?


खेती और किसानों के लिए ये सबसे कठिन दौर कहा जा रहा है, जब सरकार के ऊपर 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने का दबाव है और वर्ष 2017 किसान आंदोलनों का साल रहा है।

कृषि मंत्रालय ने बताया है कि वर्ष 2016-17 के अंतिम अनुमान के मुताबिक बागवानी फसलों का रिकॉर्ड उत्पादन 300.6 मिलियन टन रहा, जो पिछले वर्ष की तुलना में 5 फीसदी अधिक है। केंद्र सरकार का ऐसा मानना है कि बागवानी फसलें किसानों की आय बढ़ाने में अहम कड़ी साबित हो सकती हैै।

वैसे देश में पिछले वर्ष खाद्यान्न का उत्पादन भी रिकॉर्ड स्तर पर था। लेकिन उसी वर्ष में देश में सबसे बड़े किसान आंदोलन हुए। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ज्यादा उत्पादन होने से किसानों को फायदा होता है ? शायद नहीं क्योंकि मध्य प्रदेश से लेकर महाराष्ट्र तक जिस आंदोलन ने देश में सियासी तूफान खड़ा किया, किसानों को एक जुट किया उसमें बागवानी फसलों फल, फूल और सब्जियों को लेकर आंदोलन हुए। वर्ष 2016 से शुरू हुई आलू किसानों की किल्लत यूपी में आज तक जारी है। देश में प्याज और आलू के उत्पादन ने भी कई वर्षों के रिकॉर्ड तोड़ दिये। लेकिन किसानों से इससे क्या मिला ?

बात अगर प्याज की करें तो देश में 2016-17 में प्याज उत्पादन 224 लाख टन रहा। जबकि 2015-16 में ये उत्पादन 217.18 लाख टन था। वहीं कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार टमाटर की पैदावार 2016-17 में 195.42 टन हुई जो 2015-16 में 187.32 टन थी।

प्याज के गढ़ महाराष्ट्र के नासिक में दयोरा गांव के रहने वाले किसान नीलेश अहेर राव गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “मेरे 10 एकड़ खेत में पिछले साल के मुकाबले डेढ़ गुना पैदावार हुई थी। हम खुश थे कि अच्छा मुनाफा होगा लेकिन हुआ उलटा।” इसी तरह बंपर उत्पादन वाले उत्तर प्रदेश में किसानों को आलू सड़कों पर फेंकना पड़ा है।

उत्तर प्रदेश उद्यान विभाग के निदेशक एसपी जोशी बताते हैं, "इस बार बागवानी फसलों का उत्पादन ज्यादा हुआ है, सबसे अधिक आलू का उत्पादन हुआ था, पिछली बार 138 मिट्रिक टन का उत्पादन हुआ था, इस बार 155 मिट्रिक टन का उत्पादन हुआ है।” लेकिन इस उत्पादन से किसानों को क्या दिया, आगरा से लेकर विधानसभा के बाहर फेंके गए आलू से समझा जा सकता है।

ज्यादा पैदावार ज्यादातर फसलों और किसानों के लिए घातक साबित हुई है। कृषि क्षेत्र के संकट पर चेताते हुए कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी भाषा को दिये अपने एक इंटरव्यू में कहते हैं ‘‘ज्यादा पैदावार से जोखिम बढ़ जाता है। कृषि क्षेत्र में रचनात्मक कार्य करने की जरूरत है।’’

अशोक गुलाटी आगे कहते हैं "किसानों में असंतोष है क्योंकि उनकी आमदनी प्रभावित हुई है। ‘यदि सरकार इसे नहीं स्वीकारती है तो वे खुद के तथा देश के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं। नरेंद्र मोदी सरकार के दौरान कृषि क्षेत्र का प्रदर्शन पिछली सरकार के कार्यकाल की तुलना में काफी नीचे रहा है।"

ऐसा नहीं है कि ये हाल बस बागवानी के किसानों का है। पैदावार बढ़ने से नुकसान किसानों का ही हो रहा है। ताजा उदाहरण चने का लिया जा सकता है। वायदा बाजार में चने का दाम 4000 रुपए प्रति कुंतल तक पहुंच चुका है। रिकॉर्ड बुवाई के कारण मंडियों में चना बेदम हो चुका है। बाजार में चने के दाम गिरकर 32 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गए हैं। समर्थन मूल्य से कम दाम पर चना बिकने से सरकार पर भी दबाव बनने लगा है। बाजार में चने के दाम गिरकर 32 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गए हैं।

उत्तर प्रदेश इलाहाबाद, फूलपूर के टमाटर व्यापारी और किसान आशीष सिंह बताते हैं, "हम तो अपना टमाटर दाम कम मिलने के कारण बेच ही नहीं पाए थे। पैदावार खूब हुई थी। जिस कारण दाम घट गया। लागत भी नहीं निकल पायी। लेकिन हमने बाजार से टमाटर 100 रुपए किलो तक खरीदा।"

बिचौलिए हो जाते हैं सक्रिय

ज्यादा उत्पादन के बाद बिचौलिए सक्रिय हो जाते हैं। जैसा प्याज टमाटर और आलू के मामले में हुआ था। पैदावार बढ़ने से व्यापारियों ने उत्पादन डंप कर लिया और उसे महंगा होने दिया। चूंकि सरकार के पास भंडारण की व्यवस्था नहीं है, इसका फायदा व्यापारी उठाते हैं। मध्य प्रदेश में नरसिंहपुर जिला में सबसे ज्यादा चने की पैदावार होती है। इसी ज़िले में पिछले साल एक समय चने का दाम दस हजार रुपए तक पहुंच गया था। वहां के चना किसान और व्यापारी प्रकाश पटेल कहते हैं "पिछले साल भी ऐसे ही हुआ था। जब हमारी फसल पक गई और बेचने का समय आया तो दाम घट गया। यही भाव बाद में खूब चढ़ा।"

डॉ. राकेश सिंह, एग्रीबिजनेस मैनेजमेंट के प्रोफेसर और क्वॉर्डिनेटर, बीएचयू बताते हैं "पिछले 14 वर्षों में देश में टमाटर की पैदावार तो बढ़ती रही लेकिन इसका लाभ न तो टमाटर उगाने वाले किसानों को हुआ और न ही आम उपभोक्ताओं को, अगर किसी को लाभ मिला तो सिर्फ बड़े व्यापारी और बिचौलियों को।"

कृषि मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2017-18 के दौरान अच्छी वर्षा से खाद्यान्न उत्पादन 27.5 करोड़ टन के आंकड़े के आसपास रह सकता है। विशेषज्ञों ने चेताया है कि कृषि क्षेत्र में संकट बढ़ रहा है। बंपर फसल उत्पादन के बावजूद पिछले दो साल में किसानों की आमदनी बुरी तरह प्रभावित हुई है। विशेषज्ञों का कहना है कि केंद्र को कृषि अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहन देने के लिए तत्काल कदम उठाने चाहिए जिससे किसानों को संकट से बचाया जा सके। बंपर फसल उत्पादन के चलते 2016 में दाम टूट गये और इस साल भी यह स्थिति जारी रही। दलहनों, तिलहनों और कुछ नकदी फसलों के दाम उनके न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे चले गये. किसानों पर इसका बुरा असर पड़ा।

शायद यही वजह है कि वर्ष 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने की बात हो रही है, सरकार का जोर इसमें उत्पादन बढ़ाने की बजाए पोस्ट क्राप मैंनेजमेंट (फसल प्रबंधन) पर ज्यादा जोर है। केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह अपने एक वक्तव्य में कहते हैं, "इस साल हमने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। कुछ चुनौतियां हैं जिन्हें हम दूर कर रहे हैं। किसानों को सिर्फ एक या दो फसलों पर निर्भर नहीं रहने को कहा जा रहा है।”

Tags:
  • farmers income
  • production Growth

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.