बजट में फसलों की लागत का डेढ़ गुना एमएसपी देने के वायदे को सुन चौंके कृषि विशेषज्ञ

Sanjay Srivastava | Feb 02, 2018, 15:37 IST
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नई दिल्ली। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आम बजट 2018-19 में घोषणा की कि सरकार किसानों को उनकी फसलों की लागत का डेढ़ गुना न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देगी, इस घोषणा से कृषि विशेषज्ञ और जनता हैरान है कि जो सरकार आज से चार साल पहले जब किसानों के दर्द को सुन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार फसलों की लागत का 50 फीसदी से ज्यादा एमएसपी दे तब इसी सरकार ने साफ-साफ इनकार कर दिया था।

किसानों की आमदनी वर्ष 2022 तक दोगुनी करने के लक्ष्य को लेकर चल रही नरेंद्र मोदी सरकार ने इस बार आम बजट में किसानों की ज्यादा सुध ली है। लगातार दो फसल वर्ष 2016-17 (जुलाई-जून) और 2017-18 में धान, गेहूं, दलहन, तिलहन आदि फसलों का रिकार्ड उत्पादन होने से किसानों को उनकी उपज का सही दाम नहीं मिल पाया है।

कृषि अर्थशास्त्री विजय सरदाना ने इस बजट को महज चुनावी वादा करार दिया। हैरानी इस बात को लेकर भी है कि एमएपसी निर्धारण के लिए और लागत मूल्य तय करने के लिए क्या सरकार के पास आखिर कोई तकनीक है है या यह महज चुनाव वादा है।

विजय सरदाना ने कहा, "वर्ष 2014 में सत्ता में आने के बाद केंद्र की मौजूदा एनडीए सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय में हलफनामा दाखिल कर कहा था कि वह फसलों की लागत मूल्य के 50 फीसदी से ज्यादा एमएसपी नहीं दे सकती है। वहीं सरकार अब 150 फीसदी एमएसपी देने का वादा कैसे कर रही है।"

सरदाना ने कहा कि अब देखने वाली बात यह होगी कि सरकार ने जो घोषणा की है उसको अमल में लाने के लिए सरकार के पास कोई रोडमैप भी है या यह महज चुनावी घोषणा है। सबसे बड़ा मसला लागत मूल्य की गणना का है। यह भी देखने वाली बात होगी कि सरकार इसके लिए कौन सी गणना पद्धति इस्तेमाल करती है। गणना की जो पद्धति इस्तेमाल की जाएगी, उसकी व्यावहारिकता पर भी सवाल होगा।

उन्होंने कहा, "सरकार ने करीब 14 लाख करोड़ रुपए कृषि व ग्रामीण क्षेत्र पर खर्च करने की घोषणा की है और आगे 2019 में आम चुनाव है इससे पहले सरकार यह पैसा खर्च करना चाहेगी तो यह भी देखना होगा कि सरकार के पास ऐसा कौन सा चैनल है जिससे वह इतना पैसा देश के करीब 6 लाख गांवों तक पहुंचाएगी।"

इससे भी बड़ा सवाल यह है कि सरकार किन-किन फसलों की खरीद एमएसपी पर करती है और कहां-कहां किसान अपनी फसल एमएसपी पर बेच पाते हैं। पिछले साल रबी सीजन में चौथे अग्रिम उत्पादन अनुमान के मुताबिक, देश में 9.83 करोड़ टन गेहूं की रिकार्ड पैदावार हुई थी और सरकार ने गेहूं का एमएसपी 1625 रुपए प्रति कुंतल तय किया था। लेकिन पंजाब और हरियाणा को छोड़कर किसी भी राज्य में गेहूं की सरकारी खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाया जबकि बाजार भाव एमएसपी से काफी कम था।

देश के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश में करीब 37 लाख टन गेहूं की सरकारी खरीद हो पाई जबकि प्रदेश सरकार ने शुरुआत में 50 लाख टन का लक्ष्य रखा था, जिसको बाद में नई सरकार ने बढ़ा दिया था। वहीं, बिहार में बिल्कुल भी खरीद नहीं हो पाई, राजस्थान और मध्यप्रदेश में भी सरकारी खरीद कम हो पाई।


सरदाना ने कहा कि अब अगर, सरकार चाहती है कि वह व्यापारियों को एमएसपी पर फसल खरीदने को मजबूर कर सकती है तो यह भी असंभव प्रतीत होता है।

उन्होंने कहा, "सबसे हैरानी की बात है कि पंजाब जहां 99 फीसदी कृषि योग्य भूमि सिंचित है और धान व गेहूं की खरीद प्राय: एमएसपी पर होती है वहां भी जब किसान खुश नहीं हैं और उन्हें कर्ज तले दबकर आत्महत्या करनी पड़ रही है तो फिर एमएसपी की घोषणा से किसानों का भला हो जाएगा और उनकी आमदनी दोगुनी हो जाएगी, यह कोरी कल्पना जान पड़ती है।"

कृषि अर्थशास्त्री विजय सरदाना का मानना है कि सरकार को कृषि पैदावार बढ़ाने के साथ-साथ भंडारण की भी व्यवस्था करनी चाहिए। उन्होंने बताया कि हर साल एक लाख करोड़ रुपए का अनाज बर्बाद हो जाता है क्योंकि देश में गोदाम व वेयर हाउस हर जगह नहीं है और उस पर कभी अपेक्षित खर्च नहीं किया गया।

उन्होंने सवाल किया, "सरकार ने सांसदों के वेतन वृद्धि का जो तरीका आज बजट घोषणा में बताया क्या वही तरीका किसानों की आय बढ़ाने के लिए नहीं हो सकती है?"

इनपुट आईएएनएस

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