छोटे से गाँव की पहलवान क्यों सीखा रही है लड़कियों को पटखनी
Ambika Tripathi | Sep 20, 2023, 10:48 IST
बिहार के कैमूर ज़िले की पूनम हर दिन सुबह चार बजे उठकर 15 किमी दूर कभी अखाड़े में लड़कों के बीच कुश्ती सीखती थीं ,आज वे दूसरी लड़कियों को कुश्ती के दांव-पेंच सिखा रहीं हैं।
बिहार के कैमूर ज़िले के सहुका गाँव की पूनम यादव ने इसी साल जून में ताशकंद एशियन सैम्बो चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता है। ये उनका पहला मेडल नहीं है, इससे पहले भी उन्होंने कई मेडल जीते हैं।
बचपन में जब पूनम लड़कों के साथ खेलती तो लोग उनके घर वालों से कहते कि घर का कामकाज भी सिखा दो यही काम आएगा, लेकिन आज वही लोग पूनम की तारीफ करते हुए नहीं थकते हैं। आख़िर उनकी गाँव की बेटी पहलवानी में देश का नाम जो रौशन कर रही है।
22 साल की पूनम चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं। पूनम की माँ 41 साल की गीता देवी गाँव कनेक्शन को बताती हैं, "पूनम बचपन से ही खेल कूद में आगे रहती थी जब पूनम पाँच साल की तब मैं इसे अपने साथ रखती थी और पूनम चुपके से बाहर भाग जाया करती थी। जब पूनम को आगे बढ़ना था तब हमने कभी नहीं रोका और हमारे भाई साहब पूनम को अपने साथ कुश्ती के लिए ले जाते थे। अब तो पूनम खुद ही अच्छा कर रही हैं।"
वो आगे कहती हैं, "हमने कभी लोग क्या कहेंगे जैसी बातों पर ध्यान नहीं दिया, बस अपनी बेटी को आगे बढ़ने को कहा जब बेटियाँ अपने पैरों पर खड़ी होंगी तभी तो कुछ कर पाएँगी।"
पूनम का मन बचपन से ही खेलों में लगता था। पूनम कहती हैं, "जब मैं छोटी थी तो चाचा लोगों के साथ रहती थी तब हमको लगता ही नहीं था की हम लड़की हैं। फुटबाल, क्रिकेट जैसे खेल खेलते थे, लेकिन जब स्कूल की तरफ से साल 2014 में पटना में खेलने गई तब लगा कि मुझे एथलीट में ही कुछ करना है।" बस यहीं से पूनम को एक नई राह मिल गई और साल 2017 में खेलो इंडिया के लिए पटना जाने का मौका मिल।
लेकिन एथलीट में वो नेशनल लेवल तक नहीं जा पाईं, उनके मामा भी रेसलर हैं तो उन्होंने पूनम से कुश्ती में आने को कहा। पूनम कहती हैं, "कुश्ती में अच्छा रहा, बढ़िया प्रैक्टिस भी होती रही और मामा लोगों के साथ मोटिवेशन भी मिलता रहा, बस यहीं से मेरा मन कुश्ती में लग गया।"
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लेकिन रेसलिंग इतना आसान खेल नहीं ये पूनम को भी पता था, कुश्ती की प्रैक्टिस के लिए पूनम हर दिन सुबह चार उठकर साइकिल से अपने घर से 15 किमी दूर व्यायामशाला जातीं , वहाँ पर भी लड़कियों के लिए अलग से प्रैक्टिस करने की कोई जगह नहीं थी। पूनम कहती हैं, "मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि दिल्ली-हरियाणा जाकर प्रैक्टिस कर सकूँ। इसलिए लड़कों के साथ ही कुश्ती की प्रैक्टिस करती थी।" वहाँ से लौटने के बाद पूनम घर का काम निपटातीं और फिर उसके बाद स्कूल जाती।
पूनम ने इसी साल जम्मू-कश्मीर में आयोजित नेशनल सैम्बो चैंपियनशिप में गोल्ड सहित दो मेडल जीते थे।
पूनम अभी पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर से बीपीएड की पढ़ाई कर रहीं हैं। इसके साथ ही पूनम ने पंजाब के पटियाला में नेताजी सुभाष चंद्र नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स से कोच के लिए छह हफ्तों का सर्टिफिकेट कोर्स भी किया है।
पूनम ने इसी साल जम्मू-कश्मीर में आयोजित नेशनल सैम्बो चैंपियनशिप में गोल्ड सहित दो मेडल जीते थे। इसके साथ ही अयोध्या, गोंडा, जयपुर, पंजाब, रोहतक जैसे जगहों पर आयोजित कई प्रतियोगिताओं में जीत हासिल की है। पूनम कहतीं हैं, " ताशकंद एशियन सैम्बो चैंपियनशिप में कांस्य पदक भी जीता है, वहाँ पर घुटनों में चोट लगने के कारण अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए थे, लेकिन हमेशा यही कोशिश रहती है कि अच्छा प्रदर्शन कर पाएँ।"
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पूनम के घर में उनके पिता और माँ के साथ ही दो छोटे भाई और एक बहन भी है। पूनम के पापा ट्रक ड्राइवर हैं, पूनम अपने पिता की खेती में भी मदद करती हैं। पूनम के पिता 50 साल के वीरेंद्र यादव गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "जब बच्ची अच्छा कर रही है तो हम लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देते हैं। परिवार गाँव के लोग अब खुश होते हैं शाबाशी देते हैं।"
कुश्ती में खानपान और हर दिन प्रैक्टिस का ख़ास ध्यान रखना होता है। पूनम कहती हैं, "पहलवानी में बहुत खर्च लगता है, इसलिए मैं दंगल लड़ती हूँ, जिससे अपनी पढ़ाई और खानपान की चीजों के लिए पैसे आते रहें।" इसके साथ ही पूनम को काफी परहेज भी करना होता है, वो तेल-मसाले और खट्टी चीजें नहीं खा सकती हैं।
पूनम की इस यात्रा में उन्होंने लोगों के ताने भी सुने, लेकिन वो आगे बढ़ती गईं। पूनम बताती हैं, "लोग कहते थे ये पहलवानी करेगी ? जब मेरा परिवार साथ खड़ा है तो मुझे दूसरों की बातों का कोई फ़र्क नहीं पड़ता है। जब मैं स्कूल में थी तो साथ की लड़कियाँ कहती कि कुश्ती ही करती रहोगी तो पढ़ोगी कब, दसवीं की परीक्षा में मेरे 70 प्रतिशत आए थे।"
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पूनम चाहती हैं की जो परेशानियाँ उनके सामने आईं वो दूसरी लड़कियों को न झेलनी पड़ें, इसलिए अब घर के पास ही खुद का अखाड़ा तैयार किया है, जिसका नाम इंसपायर स्पोर्ट्स फिजिकल एकेडमी रखा है। यहाँ पर आसपास की बच्चियों को पूनम मिट्टी में पहलवानी के दांव सिखाती हैं, अब तो यहाँ की तीन लड़कियाँ स्टेट लेवल की प्रतियोगिता में गोल्ड भी ला चुकी हैं।
पूनम की इस यात्रा में उनके मामा हमेशा साथ खड़े रहे, 28 साल के राजू यादव भी नेशनल लेवल तक कुश्ती में गए हैं, लेकिन कंधे में चोट लगने के बाद अब कुश्ती छोड़ दूध डेयरी चलाते हैं। राजू गाँव कनेक्शन से कहते हैं, " मैंने एक बार पूनम को खेलते देखा तो मुझे लगा पूनम अच्छी खिलाड़ी है, इसलिए मैं जहाँ खुद प्रैक्टिस करता था वहीं पूनम को भी ले जाता। आज वो अच्छा कर रही है तो लगता है कि जो मैं नहीं कर पाया वो पूनम तो कर रही है।"
बचपन में जब पूनम लड़कों के साथ खेलती तो लोग उनके घर वालों से कहते कि घर का कामकाज भी सिखा दो यही काम आएगा, लेकिन आज वही लोग पूनम की तारीफ करते हुए नहीं थकते हैं। आख़िर उनकी गाँव की बेटी पहलवानी में देश का नाम जो रौशन कर रही है।
22 साल की पूनम चार भाई-बहनों में सबसे बड़ी हैं। पूनम की माँ 41 साल की गीता देवी गाँव कनेक्शन को बताती हैं, "पूनम बचपन से ही खेल कूद में आगे रहती थी जब पूनम पाँच साल की तब मैं इसे अपने साथ रखती थी और पूनम चुपके से बाहर भाग जाया करती थी। जब पूनम को आगे बढ़ना था तब हमने कभी नहीं रोका और हमारे भाई साहब पूनम को अपने साथ कुश्ती के लिए ले जाते थे। अब तो पूनम खुद ही अच्छा कर रही हैं।"
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वो आगे कहती हैं, "हमने कभी लोग क्या कहेंगे जैसी बातों पर ध्यान नहीं दिया, बस अपनी बेटी को आगे बढ़ने को कहा जब बेटियाँ अपने पैरों पर खड़ी होंगी तभी तो कुछ कर पाएँगी।"
पूनम का मन बचपन से ही खेलों में लगता था। पूनम कहती हैं, "जब मैं छोटी थी तो चाचा लोगों के साथ रहती थी तब हमको लगता ही नहीं था की हम लड़की हैं। फुटबाल, क्रिकेट जैसे खेल खेलते थे, लेकिन जब स्कूल की तरफ से साल 2014 में पटना में खेलने गई तब लगा कि मुझे एथलीट में ही कुछ करना है।" बस यहीं से पूनम को एक नई राह मिल गई और साल 2017 में खेलो इंडिया के लिए पटना जाने का मौका मिल।
लेकिन एथलीट में वो नेशनल लेवल तक नहीं जा पाईं, उनके मामा भी रेसलर हैं तो उन्होंने पूनम से कुश्ती में आने को कहा। पूनम कहती हैं, "कुश्ती में अच्छा रहा, बढ़िया प्रैक्टिस भी होती रही और मामा लोगों के साथ मोटिवेशन भी मिलता रहा, बस यहीं से मेरा मन कुश्ती में लग गया।"
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लेकिन रेसलिंग इतना आसान खेल नहीं ये पूनम को भी पता था, कुश्ती की प्रैक्टिस के लिए पूनम हर दिन सुबह चार उठकर साइकिल से अपने घर से 15 किमी दूर व्यायामशाला जातीं , वहाँ पर भी लड़कियों के लिए अलग से प्रैक्टिस करने की कोई जगह नहीं थी। पूनम कहती हैं, "मेरे पास इतने पैसे नहीं थे कि दिल्ली-हरियाणा जाकर प्रैक्टिस कर सकूँ। इसलिए लड़कों के साथ ही कुश्ती की प्रैक्टिस करती थी।" वहाँ से लौटने के बाद पूनम घर का काम निपटातीं और फिर उसके बाद स्कूल जाती।
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पूनम अभी पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर से बीपीएड की पढ़ाई कर रहीं हैं। इसके साथ ही पूनम ने पंजाब के पटियाला में नेताजी सुभाष चंद्र नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स से कोच के लिए छह हफ्तों का सर्टिफिकेट कोर्स भी किया है।
पूनम ने इसी साल जम्मू-कश्मीर में आयोजित नेशनल सैम्बो चैंपियनशिप में गोल्ड सहित दो मेडल जीते थे। इसके साथ ही अयोध्या, गोंडा, जयपुर, पंजाब, रोहतक जैसे जगहों पर आयोजित कई प्रतियोगिताओं में जीत हासिल की है। पूनम कहतीं हैं, " ताशकंद एशियन सैम्बो चैंपियनशिप में कांस्य पदक भी जीता है, वहाँ पर घुटनों में चोट लगने के कारण अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए थे, लेकिन हमेशा यही कोशिश रहती है कि अच्छा प्रदर्शन कर पाएँ।"
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पूनम के घर में उनके पिता और माँ के साथ ही दो छोटे भाई और एक बहन भी है। पूनम के पापा ट्रक ड्राइवर हैं, पूनम अपने पिता की खेती में भी मदद करती हैं। पूनम के पिता 50 साल के वीरेंद्र यादव गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "जब बच्ची अच्छा कर रही है तो हम लोगों की बातों पर ध्यान नहीं देते हैं। परिवार गाँव के लोग अब खुश होते हैं शाबाशी देते हैं।"
कुश्ती में खानपान और हर दिन प्रैक्टिस का ख़ास ध्यान रखना होता है। पूनम कहती हैं, "पहलवानी में बहुत खर्च लगता है, इसलिए मैं दंगल लड़ती हूँ, जिससे अपनी पढ़ाई और खानपान की चीजों के लिए पैसे आते रहें।" इसके साथ ही पूनम को काफी परहेज भी करना होता है, वो तेल-मसाले और खट्टी चीजें नहीं खा सकती हैं।
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पूनम चाहती हैं की जो परेशानियाँ उनके सामने आईं वो दूसरी लड़कियों को न झेलनी पड़ें, इसलिए अब घर के पास ही खुद का अखाड़ा तैयार किया है, जिसका नाम इंसपायर स्पोर्ट्स फिजिकल एकेडमी रखा है। यहाँ पर आसपास की बच्चियों को पूनम मिट्टी में पहलवानी के दांव सिखाती हैं, अब तो यहाँ की तीन लड़कियाँ स्टेट लेवल की प्रतियोगिता में गोल्ड भी ला चुकी हैं।
पूनम की इस यात्रा में उनके मामा हमेशा साथ खड़े रहे, 28 साल के राजू यादव भी नेशनल लेवल तक कुश्ती में गए हैं, लेकिन कंधे में चोट लगने के बाद अब कुश्ती छोड़ दूध डेयरी चलाते हैं। राजू गाँव कनेक्शन से कहते हैं, " मैंने एक बार पूनम को खेलते देखा तो मुझे लगा पूनम अच्छी खिलाड़ी है, इसलिए मैं जहाँ खुद प्रैक्टिस करता था वहीं पूनम को भी ले जाता। आज वो अच्छा कर रही है तो लगता है कि जो मैं नहीं कर पाया वो पूनम तो कर रही है।"