इस महिला ग्राम प्रधान ने खोला साइकिल बैंक ताकि ना छूटे लड़कियों की पढ़ाई

Daya SagarDaya Sagar   13 July 2019 7:24 AM GMT

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इस महिला ग्राम प्रधान ने खोला साइकिल बैंक ताकि ना छूटे लड़कियों की पढ़ाई

- दया सागर/ रणविजय सिंह

बाराबंकी (उत्तर प्रदेश)। दसवीं में पढ़ने वाली अर्चना (15 वर्ष) को स्कूल जाने में रोज देर हो जाती थी। उनके गांव चंदवारा (बाराबंकी) से उनके स्कूल की दूरी लगभग दो किलोमीटर है। इस वजह से अर्चना का रोज स्कूल जाना संभव नहीं हो पाता था और उनकी पढ़ाई प्रभावित होती थी। दो साल पहले तक अर्चना की तरह उनके गांव की लगभग हर एक लड़की की यही समस्या थी।

अर्चना की ग्राम प्रधान प्रकाशिनी जायसवाल ने अर्चना की दुविधा को समझा और उनकी परेशानी दूर करने के लिए गांव में साइकिल बैंक की स्थापना की। इस पहल में उन्होंने गांव की उन लड़कियों को निःशुल्क साइकिल बांटा जो 8वीं के बाद स्कूल छोड़ चुकी थीं या छोड़ने का मन बना चुकी थीं। ताकि गांव की लड़कियों की पढ़ाई 8वीं कक्षा में ही ना छूट जाए।

असर (Annual Status of Education Report) की रिपोर्ट के अनुसार 15-18 साल आयुवर्ग की 13.5 प्रतिशत लड़कियों का नामांकन ऊपर की कक्षाओं में नहीं हो पाता है। कई लड़कियों का नामांकन तो हो जाता है लेकिन उनकी उपस्थिति का रिकॉर्ड काफी खराब रहता है। इसी रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश की लगभग पांच लाख लड़कियों को 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ती है।

प्रकाशिनी जायसवाल (38 वर्ष) ने अपनी गांव की लड़कियों के लिए ऐसी व्यवस्था की ताकि उनकी पढ़ाई जारी रहे। उन्होंने गांव को बेहतर बनाने के लिए साइकिल बैंक के अलावा गांव में कई नई और अनोखी पहल की है, जिसकी वजह से यह गांव आस-पास के गांव सहित प्रदेश और देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। प्रकाशिनी जायसवाल की इन प्रयासों की वजह से उन्हें प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री के हाथों अवॉर्ड भी मिल चुका है।


साइकिल बैंक के इस अनोखी पहल पर प्रकाशिनी जायसवाल कहती हैं, "जब मैं साढ़े तीन साल पहले प्रधान बनी, तब मैंने, अपने कर्मचारियों की मदद से गांव में एक आन्तरिक सर्वे कराया। इसमें हमने पाया कि गांव से स्कूल से दूरी, ट्रान्सपोर्ट सुविधाओं की कमी, असुरक्षा की भावना और आर्थिक कारणों से गांव की लड़कियां 8वीं के बाद पढ़ाई छोड़ने पर मजबूर हो रही हैं। जो पढ़ने जा भी रही हैं, वे भी रेगुलर नहीं हैं। इस वजह से उनकी पढ़ाई का नुकसान हो रहा है। इसे हम ने गांव की एक गंभीर समस्या के रूप में लिया और इसे दूर करने के लिए साइकिल बैंक का विचार आया।"

प्रकाशिनी आगे बताती हैं कि इसके बाद हम ने गांव के कुछ समाजिक कार्यकर्ताओं की आर्थिक मदद से कुछ साइकिलें खरीदीं और उन लड़कियों में बांटा जो पढ़ाई करने की इच्छा तो रखती थीं लेकिन विभिन्न वजहों से पढ़ने नहीं जा पा रही थीं। 'किशोरी साइकिल बैंक' नाम की इस योजना में गांव की 15 लड़कियों को साइकिल निःशुल्क बांटा गया है। इन लड़कियों की बारहवीं की पढ़ाई पूरी होने के बाद उनसे साइकिल ले लिया जाएगा और फिर गांव की दूसरी जरूरतमंद लड़कियों को बांटा जाएगा। प्रकाशिनी ने कहा कि " हमारा अगले साल इस योजना का और विस्तार करने की योजना है। हम चाहेंगे कि 15 लड़कियों से शुरू हुई इस योजना का विस्तार 30 लड़कियों तक हो।"

इस योजना से लाभ पाई 11वीं में पढ़ने वाली शशि जायसवाल (16 वर्ष) कहती हैं, "साइकिल ना होने की वजह से मुझे स्कूल जाने में रोज लेट हो जाता था। इससे मुझे अक्सर स्कूल में डांट भी सुनना पड़ता था। मेरे पिता जी के पास इतना पैसा भी नहीं था कि वह साइकिल खरीद सकें। गांव की प्रधान जी ने मेरी इस दुविधा को समझा और हमारी मदद की। अब स्कूल जाने में मुझे शायद ही कभी लेट होता है।"


शशि की तरह दसवीं में पढ़ने वाली शगुन गुप्ता (14 वर्ष) को रोज टेम्पो से स्कूल जाना पड़ता था। इसकी वजह से वह कई बार लेट हो जातीं थी। लेकिन साइकिल मिलने के बाद उनके लिए चीजें आसान हो गई हैं। वहीं 16 साल की लक्ष्मी की पढ़ाई दसवीं के बाद छूट गई थी। लक्ष्मी बताती हैं कि गांव से कॉलेज जाने के रास्ते में एक छोटा सा जंगल पड़ता था, जिसे रोज पार करने में डर लगता था। उनके घर वाले भी सुरक्षा वजहों से डरते थे। इस वजह से लक्ष्मी की पढ़ाई छूट चुकी थी। लेकिन अब साइकिल मिलने से उन्होंने फिर से स्कूल में दाखिला लिया है।

गांव की ही जीनत बानो (22 वर्ष) ग्राम प्रधान की इस पहल पर कहती हैं कि यह लड़कियों का हौसला बढ़ाने वाला कदम है। बाराबंकी के एक कॉलेज से टीचर ट्रेनिंग कोर्स (बीटीसी) कर रही जीनत कहती हैं कि जब वह आठवीं से नौवीं कक्षा में गईं तो उनके साथ की काफी लड़कियों ने पढ़ाई छोड़ दी थी। लेकिन प्रधान की इस पहल के बाद यह 'परम्परा' जरूर बदल रही है।

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