चेतावनी के बावजूद क्यों बरप रहा आसमानी कहर? बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में आकाशीय बिजली से तीन हफ़्ते के अंदर 154 लोगों की मौत

बिजली सेंसर के जरिए मोबाइल ऐप पर जानकारी देने के बावजूद प्रत्येक साल औसतन 2500 लोगों की मौत वज्रपात से हो रही है। राज्य सरकारों को अंतिम चरण तक सूचना पहुंचाने का हर संभव प्रयास करने की जरूरत है।

Nidhi JamwalNidhi Jamwal   21 July 2020 7:21 AM GMT

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चेतावनी के बावजूद क्यों बरप रहा आसमानी कहर? बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में आकाशीय बिजली से तीन हफ़्ते के अंदर 154 लोगों की मौतगोपालगंज के एक अस्पताल में आकाशीय बिजली से घायल एक युवक के साथ बिलखती उनकी मां (फोटो- उमेश कुमार राय)

पिछले दिनों, आकाशीय बिजली गिरने से झारखंड में 16 लोगों की मौत हो गई। एक हफ्ते पहले, 4 जुलाई को बिहार में भी इससे 21 लोगों की मौत की ख़बर आई थी। लेकिन, इस आकाशीय आपदा की मार सबसे ज़्यादा जून के आख़िरी हफ्ते में देखने को मिली, जब बिहार में 25 जून को केवल एक ही दिन में इससे 93 लोगों की जान गई। इसी दिन पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में भी 25 लोगों की मौत इसी आपदा के कारण हुई।

25 जून के बाद से, केवल तीन राज्यों बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में कम से कम 154 लोगों की मौत आकाशीय बिजली गिरने से हुई है। जबकि पिछले दो महीने के आंकड़े देखें तो इस प्राकृतिक आपदा से केवल बिहार और उत्तर प्रदेश में 315 लोगों की मौत हुई है।

बिजली चमकना और इसके परिणाम स्वरूप लोगों की मौत भारत में सामान्य नहीं है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रत्येक साल औसतन 2500 लोगों की मौत आकाशीय बिजली गिरने से होती है। यानी हर रोज़ सात लोगों की मौत इस कारण होती है। 1967 से 2012 के बीच प्राकृतिक आपदाओं से होने वाली मौतों में लगभग 39 फीसदी मौतों का जिम्मेदार बस यह एक अकेला आपदा है।

2013, 2014 और 2015 में कुल 2,833, 2,582 और 2,641 लोग क्रमश: आकाशीय बिजली के शिकार बने थे।


बिजली गिरने के कारण हाल ही में हुए उच्च मौत दरों को जलवायु परिवर्तन सहित विभिन्न कारकों को दोषी ठहराया जा रहा है। हालांकि भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) पुणे के वैज्ञानिक वी. गोपालकृष्णन बताते हैं कि बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में प्रत्येक साल जून के आख़िरी समय और जुलाई के शुरुआत में आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं होती हैं।

गोपालकृष्णन गांव कनेक्शन से कहते हैं, "पिछले साल और इस साल बिजली गिरने की आवृति में बहुत अंतर नहीं है। हो सकता है थोड़ी वृद्धि हुई हो। हां, लेकिन इस बार मौत के आंकड़े अधिक हैं, क्योंकि बड़ी संख्या में लोग खुले खेतों में अपना काम करते हैं और आकाशीय बिजली के शिकार बन जाते हैं।"

पिछले दो सालों में आईआईटीएम, पुणे ने देश भर में 83 लाइटनिंग सेंसर मशीनें लगाई है, इसमें सात केवल बिहार और उत्तर प्रदेश में हैं। ये सेंसर 200 से 300 किलोमीटर के इलाके में बिजली का पता लगाते हैं। साथ ही खुद ही व्रजपात की सूचना केंद्रीय इकाई को दे देते हैं, ताकि संबंधित राज्य को एलर्ट किया जा सके।

गोपालकृष्णन बताते हैं कि इससे 25 से 30 मिनट पहले लोगों को चेतावनी देना संभव है। अगर लोग बंद सुरक्षित स्थानों पर पहुंच जाते हैं तो जानें बचाई जा सकती है।

दक्षिण बिहार केंद्रीय विश्वविद्यालय, गया में पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर प्रधान पार्थ सारथी, जो भारतीय मौसम विज्ञान सोसाइटी, पटना के सदस्य भी हैं, बताते हैं, "अधिकतर मौतें ग्रामीण इलाकों में मानसून के आगमन पर होती हैं जब किसान अपने गीले खेतों में खरीफ फसल की बुआई करते हैं। चेतावनी जारी की जाती है, लेकिन अंतिम चरण पर सूचना पहुंचाना एक चुनौती भरा काम है।"

मधुबनी जिले में आकाशीय बिजली से मृत एक वृद्ध किसान (फ़ोटो- उमेश कुमार राय)

इस मौसम में बिजली के हमले क्यों होते हैं?

गोपालकृष्णन बताते हैं कि दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत के समय बिजली के हमले आम हैं। वह कहते हैं कि, "गरज और बिजली के बादल मानसून के बादलों से अलग होते हैं। इसके लिए पूर्व में उच्च सतह ताप और नमी की जरूरत पड़ती है। चूंकि गर्मी के मौसम के कारण सतह पर्याप्त गर्म होता है और मानसूनी हवाएं समुद्र से नमी लाती हैं, इस प्रकार गरज के साथ आंधी का आना बिजली के हमलों का कारण बनती है।"

बिहार और उत्तर प्रदेश के अलावा प्रायद्वीपीय भारत के राज्यों, जैसे तेलंगाना और आंध्रप्रदेश में भी आकाशीय बिजली गिरने की घटनाएं रिपोर्ट की जाती हैं। जैसे ही मानसून दक्षिण से उत्तर की ओर बढ़ती है, तूफ़ानी बादल के साथ बिजली गिरने की घटनाएं होती हैं।

गोपालकृष्णन कहते हैं कि, "देश में मानसून ठीक से सेट हो जाने के बाद, इस आकाशीय आपदा के हमले कम हो जाएंगे।"

लेकिन, श्रीधर बालासुब्रमण्यम जो मैकेनिकल इंजीनियरिंग के सहायक प्रोफेसर और भारतीय प्रौधोगिकी संस्थान(आईआईटी) के आईडीपी क्लाइमेट स्टडीज संकाय के सहायक सदस्य भी हैं, का दावा है कि हाल ही में हुई बिजली गिरने की घटनाएं लंबे समय तक पश्चिमी विक्षोभ (वेस्टर्न डिस्टर्बन्स) के कारण हैं।

वह विस्तार से बताते हैं, "तूफ़ानी बादल और बिजली की घटनाओं के लिए सतह से मध्य आक्षांश तक नमी के साथ प्रबल अस्थिरता की आवश्यकता होती है। अस्थिरता या तो सतह के गर्म होने जैसे संवहन प्रणाली से आ सकती है या पश्चिमी विक्षोभ जैसे सामान्य अवलोकन से आ सकती है।"

पश्चिमी विक्षोभ एक उष्णकटिबंधीय तूफ़ान है जो भूमध्यसागरीय क्षेत्र से जन्म लेता है। यह भूमध्य सागर और कैस्पियन सागर से नमी लेकर पूर्व दिशा की ओर बढ़ता है, परिणामस्वरूप उत्तरी भारत में वर्षा होती है।

बालासुब्रमण्यम जून महीने के आख़िरी तक तापमान के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। वह बताते हैं कि तापमान अधिक नहीं रहा है, लेकिन यह दिखता है कि पश्चिमी विक्षोभ का मौसम स्पष्ट रूप से लंबे समय तक रहा है। उत्तर भारत को पश्चिमी विक्षोभ 4- 5 जून की देरी से अपने चपेट में लेता है।

वह आगे बताते हैं, "इतना ही नहीं, कमजोर पश्चिमी विक्षोभ की स्थिति भी उत्तर भारत में 10 जून तक बना रहता है। जिससे सतह और मध्य स्तर पर अस्थिरता कायम रहा, परिणामस्वरूप तूफ़ानी बादल का निर्माण होता रहा था।"

इसके अलावा, बिहार और उत्तर प्रदेश में मानसून धाराओं के तेज़ी से आगमन के कारण नमी काफ़ी अधिक थी, जिसका समय बिहार (पांच-छह सालों में पहली बार) और उत्तर प्रदेश में शुरुआत में देखी गई थी।

बालासुब्रमण्यम कहते हैं कि, " ये मानसून धाराएं बंगाली की खाड़ी से बहुत अधिक नमी लाती है। अस्थिरता और नमी के संयोजन के कारण आवेशित कणों के साथ गरज के साथ बारिश होती है। इसी कारण इस प्रकार की घटनाएं बिहार और उत्तर प्रदेश में देखने को मिलीं।"

वह आगे अपनी बात समाप्त करते हुए कहते हैं, "उत्तर भारत में तूफ़ानी बादल और बिजली गिरने की घटनाएं मानसून के पहले देखने को मिलती हैं। लेकिन वो इतने शक्तिशाली नहीं होते। उस समय गर्मी के कारण सतह ताप तो होता है, लेकिन पर्याप्त नमी नहीं उपलब्ध होती है। जिस कारण सीमित घटनाएं घटित होती हैं।"

पार्थ सारथी इसके एक और पहलू पर ध्यान आकर्षित करते हैं, "बिहार और उत्तर प्रदेश में बिजली गिरने के प्रमुख तीन कारण हैं। यह क्षेत्र हिमालय की तलहटी के तराई क्षेत्र में हैं, सतह ताप और आद्रता के अलावा इस क्षेत्र की भौगोलिक बनावट भी उच्च बिजली हमलों के लिए जिम्मेदार है। हिमालय अपनी खड़ी ढाल के कारण पर्वतीय सहायता प्रदान करता है।"

हालांकि गोपालकृष्णन इससे थोड़ा अलग सोचते हैं। वह कहते हैं, "आकाशीय बिजली चमकने की घटनाएं भी दो प्रकार की होती हैं। रात में बिजली गिरने की घटनाएं हिमालय की पर्वतीय सहायता के कारण होती है। लेकिन ज्यादातर मौतें दिन के समय होती हैं, जब लोग घर से बाहर रहते हैं।"


मॉडलिंग और बिजली का पूर्वानुमान

आईआईटीएम, पुणे आकाशीय बिजली पर शोध कर रहा है, और लोगों को आगे बढ़ाने के तरीकों पर काम कर रहा है। बिजली का पूर्वानुमान लगाने के दो व्यापक तरीके हैं। पहला, मौसम संबंधी मॉडलिंग जिसमें 24 घंटे पहले बिजली की भविष्यवाणी कर सकते हैं। यह आंकड़ा आईआईटीएम और भारत मौसम विभाग दोनों के पास उपलब्ध है, जो इसे प्रसारित करते हैं।

हालां इन मॉडलों के माध्यम से जुटाए गए आंकड़े एक बहुत बड़े क्षेत्र के लिए होते हैं, किसी स्थान विशेष को इंगित नहीं करते।

इस मुद्दे को हल करने के लिए, आईआईटीएम पुणे ने पूरे देश में 83 बिजली के सेंसर का एक नेटवर्क स्थापित किया है जो स्वचालित रूप से सूचना प्रसारित करता है। ये सेंसर 250-300 किलोमीटर के दायरे में बिजली का पता लगा सकते हैं।

यह पूछने पर कि यह सेंसर कैसे काम करता है, गोपालकृष्णन बताते हैं, "तूफ़ानी बादल में दो प्रकार की बिजली होती हैं। एक जो बादल के अंदर होती है, दूसरी बादल से जमीन की ओर आती है। बादल से जमीन पर गिरने से 20-25 मिनट पहले यह शुरू होता है।"

इस प्रकार, जैसे ही बादल के अंदर बिजली शुरू होती है, सेंसर डेटा को प्रसारित करता है, जिसका उपयोग अग्रिम चेतावनी जारी करने के लिए किया जाता है। वे कहते हैं, "ये सेंसर बादल की गतिशीलता का भी पता लगाते हैं, इसलिए हम पहले ही चेतावनी दे सकते हैं कि अगले एक घंटे में बिजली गिरने की आशंका है या नहीं।"

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का एक ऐप भी है - दामिनी - विशेष रूप से बिजली अलर्ट के लिए। यह ऐप 20 किलोमीटर के दायरे में बिजली गिरने की संभावनाओं की जानकारी देता है।

बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने इस आकाशीय आपदा के के बारे में लोगों को पूर्व चेतावनी देने के लिए अपना खुद का मोबाइल फोन ऐप 'इंद्रवज्रा' जारी किया है

भारत मौसम विज्ञान विभाग की वेबसाइट पर देश भर में वास्तविक समय में बिजली गिरने की जानकारी भी है। इसके लिए, आईआईएसएम और भारतीय वायु सेना द्वारा स्थापित ग्राउंड लाइटिंग उपकरणों के साथ इन्सैट3डी उपग्रह का उपयोग किया जाता है।

इस बीच, बिहार सरकार के आपदा प्रबंधन विभाग ने इस आकाशीय आपदा के के बारे में लोगों को पूर्व चेतावनी देने के लिए अपना खुद का मोबाइल फोन ऐप 'इंद्रवज्रा' जारी किया है।

अनुवाद- दीपक कुमार

इस स्टोरी को अंग्रेजी में यहां पढ़ क्लिक करके पढ़ सकते हैं।

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