बिहार में फिर टूटा आसमानी कहर, आकाशीय बिजली गिरने से 93 लोगों की मौत
मृतकों में ज्यादातर किसान और खेतिहर मजदूर थे और घटना के वक्त खेतों में काम कर रहे थे। हाल के वर्षों में एक दिन में वज्रपात से इतनी मौतें पहली बार हुई हैं।
Umesh Kumar Ray 25 Jun 2020 2:35 PM GMT

बिहार के अलग-अलग जिलों में गुरुवार को आकाशीय बिजली गिरने से 93 लोगों की मौत हो गई। मृतकों में ज्यादातर किसान और खेतिहर मजदूर थे और घटना के वक्त खेतों में काम कर रहे थे। हाल के वर्षों में एक दिन में वज्रपात से इतनी मौतें पहली बार हुई हैं। पहले यह गिनती 83 थी, लेकिन रात आते-आते मरने वालों की संख्या और बढ़ गई। भारतीय मौसम विभाग ने बिहार के कई जिलों में अगले तीन दिनों तक भारी बारिश और वज्रपात की संभावना जताई है। किसानों से अपील है कि वे बहुत सावधानी के साथ ही कृषि कार्य करें और बहुत जरूरी हो तभी खेतों में जाएं।
सबसे ज्यादा 13 मौतें गोपालगंज जिले में हुई हैं। आपदा प्रबंधन विभाग की तरफ से दी गई जानकारी के मुताबिक, सिवान में 6, पूर्वी चम्पारण में 5, दरभंगा में 5, बांका में 5, भागलपुर में 6, खगड़िया में 3, मधुबनी में 8, नवादा में 8, पूर्णिया में दो, सुपौल में दो, सीतामढ़ी में एक, औरंगाबाद में 3, बक्सर और कैमूर में दो-दो, मधेपुरा में एक, पश्चिमी चम्पारण में 2, शिवहर और समस्तीपुर में एक-एक, किशनगंज में 2, सारण में एक, जहानाबाद और जमुई में 2-2, सीतामढ़ी में एक, दरभंगा में 5 और मधुबनी में 8 लोगों की जान वज्रपात ने ले ली। इस घटना में एक दर्जन लोग झुलस गए हैं, जिनका इलाज स्थानीय अस्पतालों में चल रहा है।
बिहार के आपदा प्रबंधन विभाग के मंत्री लक्षमेश्वर रॉय ने कहा, "मृतकों के परिजनों को 4-4 लाख रुपए का मुआवजा दिया जाएगा।"
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट कर कहा, "बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में भारी बारिश और आकाशीय बिजली गिरने से कई लोगों के निधन का दुखद समाचार मिला। राज्य सरकारें तत्परता के साथ राहत कार्यों में जुटी हैं। इस आपदा में जिन लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है, उनके परिजनों के प्रति मैं अपनी संवेदना प्रकट करता हूं।"
बिहार और उत्तर प्रदेश के कुछ जिलों में भारी बारिश और आकाशीय बिजली गिरने से कई लोगों के निधन का दुखद समाचार मिला। राज्य सरकारें तत्परता के साथ राहत कार्यों में जुटी हैं। इस आपदा में जिन लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी है, उनके परिजनों के प्रति मैं अपनी संवेदना प्रकट करता हूं।
— Narendra Modi (@narendramodi) June 25, 2020
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी मृतकों के प्रति संवेदना प्रकट की है।
राज्य के विभिन्न जिलों में वज्रपात से 83 लोगों की मृत्यु दुःखद। मृतकों के परिजनों को 4-4 लाख रु० अनुग्रह अनुदान देने का निर्देश दिया गया है।https://t.co/uJiehXOvik
— Nitish Kumar (@NitishKumar) June 25, 2020
विगत 23 जून को भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने एक पत्र जारी कर बिहार के मुख्य सचिव व आपदा प्रबंधन विभाग को बिहार के एक दर्जन जिलों में अगले तीन-चार दिनों तक भारी बारिश होने का अनुमान लगाया था। मौसम विज्ञान विभाग की तरफ से पत्र मिलने के तत्काल बाद आपदा प्रबंधन विभाग ने संबंधित जिलों को पत्र लिखा था और भारी बारिश के बाद बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होने पर एहतियाती कदम उठाने को कहा था।
बिहार के गोपालगंज में आकाशीय बिजली गिरने से छप्पर के घरों में लगी आग. आज आकाशीय बिजली गिरने से बिहार के अलग-अलग जिलों में 83 लोगों की मौत हो गई.
— GaonConnection (@GaonConnection) June 25, 2020
Video- @Umesh_KrRay
स्टोरी- https://t.co/WilyWvmiPN#Bihar #lightning @SkymetWeather @IMDWeather @weatherofindia @NitishKumar pic.twitter.com/IwdaFUdtyT
वज्रपात से सालाना दर्जनों लोगों की मौत
बिहार में वज्रपात से मौत की ये कोई पहली घटना नहीं है। इससे पहले 5 मई को बारिश और वज्रपात के चलते बिहार के अलग-अलग जिलों में 20 लोगों की मौत हो गई थी। वहीं, 26 अप्रैल को आकाशीय बिजली ने 9 लोगों की जान ले ली थी।
भारतीय मौसमविज्ञान विभाग, क्लाइमेट रिसिलेंट ऑब्जर्विंग सिस्टम्स प्रोमोशन कौंसिल (सीआरओपीसी) और वर्ल्ड विजन इडिया की तरफ से पिछले साल जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल 1 अप्रैल से 31 जुलाई के बीच वज्रपात से अकेले बिहार में 170 लोगों की मौत हो गई थी जबकि सबसे ज्यादा 224 मौतें उत्तरप्रदेश में दर्ज की गई थीं। वहीं, ओडिशा में 129 और झारखड में 118 लोगों की जान वज्रपात ने ले ली थी।
रिपोर्ट मे वज्रपात गिरने के आंकड़े भी दर्ज किए गए हैं, जो हैरान करने वाले हैं। रिपोर्ट के अनुसार, पिछले साल 1 अप्रैल से 31 जुलाई तक अकेले बिहार में आकाशीय बिजली गिरने की 2,25,0508 वारदातें हुई थीं। ओडिशा में वज्रपात की सबसे ज्यादा 9,00,295 घटनाएं दर्ज की गई थीं। वहीं झारखंड में आकाशीय बिजली गिरने की 453210 घटनाएं हुईं।
दिलचस्प बात ये है कि ओडिशा व झारखंड में वज्रपात की घटनाएं अधिक होने के बावजूद मृत्यु अपेक्षाकृत कम हुई हैं, लेकिन बिहार में वज्रपात इन दोनों राज्यों के मुकाबले कम होने के बावजूद मृत्यु दर ज्यादा है।
क्यों गिरती हैं आकाशीय बिजलियां
आकाशीय बिजली पर काबू पाना मुमकिन नहीं है क्योंकि ये मौसमी गतिविधियों के चलते बनती और गिरती है। भारतीय मौसमविज्ञान विभाग के पटना केंद्र के मौसमविज्ञानी आनंद शंकर कहते हैं, "जब दो-तीन दिनों तक बारिश न हो और स्थानीय कारणों से मौसम गर्म हो जाए, तो ऐसे बादल बन जाते हैं, जिससे आकाशीय बिजली ज्यादा गिरती है।"
पिछले दो-तीन दिनों से बिहार में बारिश की मात्रा एकदम कम हो गई थी और अब दोबारा बारिश शुरू हो गई है, इसलिए गुरुवार को ज्यादा वज्रपात हुआ है।
उन्होंने कहा, "हमलोग जो वेदर बुलेटिन जारी करते हैं, उनमें वज्रपात का भी जिक्र किया जाता है। आप अगर हमारे पिछले वेदर बुलेटिनों को देखेंगे, तो आपको मिलेगा कि हमने वज्रपात को लेकर आगाह किया था। ये बुलेटिन हम बिहार सरकार के साथ भी साझा करते हैं।"
बिहार में उत्तर बिहार और दक्षिण बिहार में अलग अलग समय में आकाशीय बिजली गिरती है। वज्रपात पर लंबे समय से काम कर रहे संगठन लाइटनिंग रिसाइलेंट इंडिया कैम्पेन के कनवेनर कर्नल (रिटायर्ड) संजय श्रीवास्तव कहते हैं, "जनवरी से मई तक दक्षिण बिहार में वज्रपात होता है क्योंकि छोटानागपुर से वज्रपात का जो वेव निकलता है, वह दक्षिण बिहार को छूते हुए पूर्वोत्तर की तरफ जाता है, इसलिए दक्षिण बिहार में वज्रपात होता है। मॉनसून आने पर उत्तरी बिहार में बारिश ज्यादा होती है और बाढ़ आ जाया करती है। पानी वज्रपात को अपनी तरफ खींचती है।"
बिहार में वज्रपात से मौत की घटनाएं बढ़ने के मद्देनजर बिहार सरकार ने वर्ष 2010 में इसे प्राकृतिक आपदा घोषित किया था और मृतकों के लिए 4-4 लाख रुपए का मुआवजा देने का ऐलान किया था। लेकिन, वज्रपात से लोगों को बचाने के लिए कारगर उपाय नहीं किए गए, सिवाय 'वज्रइंद्र' नाम का ऐप बनाने के। लेकिन, खुद आपदा प्रबंधन मंत्री मानते हैं कि इस ऐप को लेकर लोगों में जागरूकता नहीं है। उन्होंने गांव कनेक्शन के साथ बातचीत में कहा, "ये सच है कि लोगों में इसको लेकर जागरूकता नहीं है। हमलोग इस ऐप और आकाशीय बिजली को लेकर लोगों को जागरूक करेंगे।"
मधुबनी जिले में आकाशीय बिजली से मृत एक वृद्ध किसान (फ़ोटो- उमेश कुमार राय)
वज्रमारा और बांग्लादेश मॉडल क्यों नही अपनाती सरकार
जानकारों का कहना है कि आकाशीय बिजली से बचने को दो तीन उपाय हो सकते हैं। पहला तो ये कि लाइटनिंग अरेस्टर स्थापित किए जाएं। ये वो उपकरण होता है, जो आकाशीय बिजली को अपनी तरफ खींचकर जमीन के भीतर डाल देता है। झारखंड में वज्रमारा नाम का एक गांव है। बताते हैं कि इस गांव में खूब वज्रपात होता था इसलिए इसका नाम वज्रमारा रख दिया गया था। कुछ साल पहले इस गांव में कई लाइटनिंग अरेस्टर लगा दिए, जिसके बाद से यहां वज्रपात से मौतों का सिलसिला थम गया।
दूसरा उपाय है बांग्लादेश मॉडल। बांग्लादेश में भी वज्रपात खूब होता था और लोगों की जानें जाती थीं। वर्ष 2017 में तो वज्रपात से बांग्लादेश में 308 लोगों की जान चली गई थी। बांग्लादेश ने इसका तोड़ ताड़ के पेड़ में निकाला। जगह-जगह ताड़ के पेड़ लगाए जाने लगे और इसके साथ ही बांग्लादेश सरकार ने नेशनल बिल्डिंग कोड में भवनों के निर्माण में वज्रपात से बचाव के उपाय अपनाने (लाइटनिंग अरेस्टर लगाना) को अनिवार्य कर दिया।
मौसम विज्ञानी आनंद शंकर कहते हैं, "ये दो उपाय बेहद कारगर हो सकते हैं। ताड़ के पेड़ बहुत लंबे होते हैं, जो आकाशीय बिजली को अपनी ओर खींच लेते हैं। अगर ज्यादा से ज्यादा ताड़ के पेड़ लगाए जाएंगे, तो ये लोगों को वज्रपात से सुरक्षित रखेंगे। इसी तरह लाइटनिंग अरेस्टर भी लोगों को वज्रपात से बचा सकता है। इन दो फ्रंटों पर काम कर वज्रपात से लोगों की जिंदगी बचाई जा सकती है।"
इसके अलावा भारतीय मौसम विज्ञान विभाग का 'दामिनी' नाम का एक ऐप भी है, जो वज्रपात से आधे घंटे से 45 मिनट पहले आगाह कर देता है। इस ऐप में भारतीय मौसमविज्ञान विभाग के वेदर स्टेशनों और लाइटनिंग डिटेक्शन सेंसरों के डेटा के आधार पर वज्रपात का अनुमान लगाया जाता है।
कर्नल (रिटायर्ड) संजय श्रीवास्तव कहते हैं, "सरकार का दामिनी ऐप, वज्रइंद्र से ज्यादा कारगर है। बिहार सरकार को चाहिए कि इसका इस्तेमाल करे। हालांकि, ऐप के इतर मेरा कहना ये है कि लोगों को उनके पास जाकर जागरूक करना होगा।"
वह कहते हैं, "वज्रपात से मरने वाले लोग दूरदराज गांवों के किसान-मजदूर होते हैं। उनके पास स्मार्ट फोन नहीं है और वे टेलीविजन देखकर घर से नहीं निकलते हैं, इसलिए ऐप और टीवी में प्रचार से लोगों को फायदा नहीं होने वाला है। इसके लिए जरूरी है कि गांवों में नियमित चौपाल लगाया जाए और लोगों आकाशीय बिजली के बारे में जानकारी दी जाए। लोगों को ये भी बताया जाए कि कैसे वे इससे बच सकते हैं।"
संजय श्रीवास्तव ने कहा, "जितना खर्च सरकार हर साल आकाशीय बिजली से मरने वाले लोगों के परिवारों पर खर्च करती है। उतना खर्च कर अगर सरकार लाइटनिंग अरेस्टर लगाने में खर्च कर देती, तो अब तक एक चौथाई मौत कम हो गई होती।"
अगर आकाशीय बिजली चमक रही है, बादल गरज रहे हैं तो अपनी जान कैसे बचाएं..
आकाश से गिरने वाली बिजली पर आप का कंट्रोल नहीं है लेकिन उससे जान बचाना काफी कुछ आपके हाथ में है। आकाशीय बिजली से ज्यादातर मौतें किसानों की होती हैं। मानसून के सीजन में ये आंकड़ा बढ़ जाता है...
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन (एनडीआरएफ) द्वारा जारी एक जागरुकता वीडियो में लोगों को इससे बचने के उपाय बताए गए हैं। जिसके मुताबिक अगर आसमान में बिजली कड़क रही है और आप घर के बाहर हैं तो सबसे पहले सुरक्षित (मजबूत छत) वाली जगह तक पहुंचने का प्रयास करें।
1.अगर ऐसे संभव नहीं है तो तुरंत पानी, बिजली के तारों, खंभों, हरे पेड़ों और मोबाइल टॉवर आदि से दूर हट जाएं।
2.आसमान के नीचे हैं तो अपने हाथों को कानों पर रख लें, ताकि बिजली की तेज आवाज़ से कान के पर्दे न फट जाएं।
3.अपनी दोनों एड़ियों को जोड़कर जमीन पर पर उकड़ू बैठ जाएं।
4.अगर इस दौरान आप एक से ज्यादा लोग हैं तो एक दूसरे का हाथ पकड़कर बिल्कुल न रहें, बल्कि एक दूसरे से दूरी बनाकर रखें।
5.छतरी या सरिया जैसी कोई चीज हैं तो अपने से दूर रखें, ऐसी चीजों पर बिजली गिरने की आशंका सबसे ज्यादा होती है।
6. पुआल आदि के ढेर से दूर रहें, उसमें आग लग सकती है आकाशीय बिजली की प्रक्रिया कुछ सेंकेड के लिए होती है, लेकिन इसमें इतने ज्यादा बोल्ट का करंट होता है कि आदमी की जान लेने के लिए काफी होता है। क्योंकि इसमें बिजली वाले गुण होते हैं तो ये वहां ज्यादा असर करती है, जहां करेंट का प्रवाह होना संभव होता है।
7.आकाश से गिरी बिजली किसी न किसी माध्यम से जमीन में जाती है, और उस माध्यम में जो जीवित चीजें आती हैं, उनको नुकसान पहुंचता है
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