सिंगरौली पार्ट 4- लोगों को जागरूक करने वाला पर्यावरण का सिपाही अब बैसाखी के सहारे चल रहा

Mithilesh DharMithilesh Dhar   7 Nov 2019 9:46 AM GMT

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सिंगरौली पार्ट 4- लोगों को जागरूक करने वाला पर्यावरण का सिपाही अब बैसाखी के सहारे चल रहा

सोनभद्र/सिंगरौली (मध्य प्रदेश/उत्तर प्रदेश)। "मेरी किस्मत देखिए, लोगों को बचाते-बचाते मैं खुद अब बैसाखी के सहारे आ गया हूं। मेरी हड्डियां गलने लगी हैं। मैं भी फ्लोरोसिस की चपेट में आ गया।" सोनभद्र के ग्राम फरीपान ब्लॉक म्योरपुर के रहने 45 वर्षीय जगतनारायण विश्वकर्मा बताते हैं।

जगतनारायण विश्वकर्मा की ही अर्जी पर अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान (एआईआईए) ने वर्ष 2018 में सिंगरौली परिक्षेत्र के पानी और मिट्टी की जांच की थी जिसके बाद ही पता चला कि सोनभद्र-सिंगरौली में रहना खतरनाक है।

जगतनारायण सोनभद्र-सिंगरौली परिक्षेत्र में अपने लोगों को प्रदूषण बचाने के लिए लंबे समय से लड़ाई लड़ रहे हैं। वह समूह बनाकर लोगों को जागरूक करते हैं। लेकिन अब वे खुद दूषित पानी से होनी वाली बेहद गंभीर बीमारी की चपेट में आ गये हैं। उनकी हड्डियां गल रही हैं। कभी दिनभर भागदौड़ करने वाला आदमी आज लाठियों के सहारे बमुश्किल कुछ दूर तक चल पाता है।

वह बताते हैं, "वर्ष 2001 में मुझे पता चला कि मैं जहां रहता हूं, वहां का पानी बहुत दूषित है। लोग बड़ी तेजी से विकलांग हो रहे हैं। एक-एक के घर पांच, छह लोग विकलांग हो गये। जांच कराया तो पता चला कि यहां के पानी में फ्लोराइड की मात्रा बहुत अधिक है, जिस कारण लोग फ्लोरोसिस नामक बीमारी की चपेट में आ रहे हैं। इसके बाद से मैंने सिंगरौली परिक्षेत्र में हो रहे प्रदूषण को लेकर आवाज उठाई। लोगों को जागरूक करने की ठानी, लेकिन आज मैं खुद इसके चपेट में आ गया हूं।"

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के जानेमाने डॉक्टर एके दास ने शुरू में जगतनारायण का इलाज किया था। वे बताते हैं, "जगतनारायण विश्वकर्मा की घुटने की हड्डियां गल रही हैं। ऐसा फ्लोराइड के कारण होता है। इस अवस्था को फ्लोरोसिस कहते हैं। इसमें ऑपरेशन भी नहीं हो सकता। ऐसे में जगतनारायण अब कभी बिना लाठी के सहारे चल पाएंगे, यह कहना मुश्किल है।"

वर्ष 2001 से पहले सोनभद्र जिले के लोग इस बात से अनजान थे कि जो पानी वे पीते हैं उसमें फ्लोराइड की मात्रा बहुत ज्यादा है। जगत नारायण ने ही म्योरपुर ब्लॉक के कुशमाहा रापहरी के अपाहिज लोगों का जांच कराई थी। उनकी जांच के बाद ही पता चला कि सोनभद्र के पानी फ्लोराइड की मात्रा बहुत ज्यादा है जिससे लोगों को फ्लोरोसिस नामक बीमारी हो रही है और लोग उससे विकलांग हो रहे हैं।

वर्ष 2014 में वे इस मामले को वनों एवं प्राकृतिक संपदाओं के संरक्षण से संबंधित मामलों के निपटारे के लिए बने अदालत का दर्जा प्राप्त अधिकरण राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) ले गए थे।

अपने इलाज के बारे में वे बताते हैं, "बीएचयू के बाद अब मेरा इलाज नई दिल्ली के डॉ राम मनोहर लोहिया अस्पताल में हो रहा है। दवा खा रहा हूं लेकिन डॉक्टर ने बताया कि इसका ऑपरेशन नहीं हो पायेगा। इसलिए ऐसी उम्मीद मत रखिए कि आप ठीक हो जाएंगे।"

मानक से अधिक फ्लोराइड युक्त पानी पीने से फ्लोरोसिस बीमारी पैदा होती है। फ्लोरोसिस से ग्रसित व्यक्ति के दांत खराब तथा हाथ पैर की हड्डियां टेढ़ी हो जाती हैं जिसके कारण वह चलने फिरने से लाचार हो जाता है। यह बीमारी बच्चों से लेकर अधिक उम्र वाले व्यक्ति को अपनी चपेट में ले लेती है।

डॉक्टर एके दास कहते हैं, "एक लीटर पीने के पानी में फ्लोराइड एक मिलीग्राम से अधिक नहीं होना चाहिए। यदि फ्लोराइड की मात्रा मानक से अधिक होती है तो इसका नकारात्मक प्रभाव लोगों पर पड़ने लगता है।"

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने वर्ष 2012 में सोनभद्र-सिंगरौली में सर्वे के बाद जो रिपोर्ट तैयार की थी उसके अनुसार यहां के पानी में फ्लोराइड की मात्रा 2 मिलीग्राम से ज्यादा है।

जगतनारायण प्रदूषण के मुद्दे को लगातार उठा रहे हैं। इसके लिए वे सुप्रीम कोर्ट तक भी जा चुके हैं। उनकी ही याचिक को संज्ञान में लेकर एनजीटी ने वर्ष 2014 में सिंगरौली और उससे लगे सोनभद्र के प्लांटो का दौरा किया था। क्षेत्र का निरीक्षण करने के बाद एनजीटी ने पर्यावरण की दृष्टिकोण से सख्त आदेश दिए थे कि पॉवर प्लांटों से शत प्रतिशत राख का निस्तारण किया जाये। हालांकि कंपनियां आज भी इस आदेश का पालन नहीं कर रही हैं।

जगतनारायण खुद कैसे फ्लोरोसिस की चपेट में आ गये, इस बारे में वे बताते हैं, "लोगों को जागरूक करने के लिए मैं अब तक सैकड़ों गांवों में जा चुका हूं। इस दौरान जहां-जहां गया वहां का पानी पिया। मुझे पता था कि यह खतरनाक है लेकिन मेरे सामने कोई दूसरा विकल्प नहीं था। अब पछतावा होता है।"

जगतनारायण वनवासी सेवा आश्रम में काम करते हैं लेकिन उनकी लड़ाई रुकी नहीं है। वे कहते हैं, "हम अगर बीमार हैं तो इसका कारण हैं पावर प्लांट। उनसे निकली प्रदूषित राख और अपशिष्ट को सीधे रिहंद बांध में बहा दिया जाता है। सोनभद्र-सिंगरौली की बड़ी आबादी इसी बांध के पानी पर निर्भर हैं।"

जगतनारायण बताते हैं, "वर्ष 2016 में वनवासी सेवा आश्रम ने आसपास के गांवों में सर्वे कराया था। तब हमें पता चला था कि चौपन ब्लॉक के गांव परवाकुंडवारी पिपरबां, झीरगाडंडी, ब्लॉक दुद्धी में गांव मनबसा, कठौती, मलौली, कटौली, झारोकलां, दुद्धी, म्योरपुर ब्लॉक में गांव कुसमाहा, गोविन्दपुर, खैराही, रासप्रहरी, बरवांटोला, पिपरहवा, सेवकाडांड, खामाहरैया, हरवरिया, झारा, नवाटोला, राजमिलां, दुधर, चेतवा, नेम्ना, ब्लॉक बभनी के गांव बकुलिया, बारबई, घुघरी और खैराडीह गांव के लोग फ्लोराइड की वजह से बीमार पड़ रहे हैं। हमारी रिपोर्ट के बाद स्वास्थ्य विभाग लखनऊ से डॉ एके पांडेय की टीम आई थी। उन्होंने इन गांवों में जांच की और बताया कि सोनभद्र में 201613 हजार से लोग फ्लोरोसिस नामक बीमारी से आंशिक प्रभावित हैं और अब तो संख्या बढ़ती जा रही है।"

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