भारत की अपेक्षाकृत युवा आबादी के लिए क्या सही है कठोर लॉकडाउन की रणनीति?

गाँव कनेक्शन | Apr 23, 2020, 14:13 IST
कोविड-19से हुए हताहत लोगों की संख्या उन देशों में अधिक है जहां बुजुर्ग लोगों की आबादी ज्यादा है। इसलिए यह सवाल उठता है कि क्या कठोर लॉकडाउन भारत के लिए उपयुक्त व्यावहारिक नीति है, जहां बुजुर्ग आबादी का अनुपात कम है?
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- परंतप बसु और कुनाल सेन

कोविड-19 से होने वाली मौतों की संख्या जितनी हो गयी है वह चौंका देने वाली है। दुनिया भर के 209 देशों में अब तक 1,85,504 मौत और2,661,518 निश्चित मामलों की पुष्टि हो चुकी है। प्रभावित देशों की सूची में अमेरिका सबसे ऊपर है। इसके बाद स्पेन और इटली का स्थागन आता है। द इकोनॉमिस्ट पत्रिका ने चेतावनी दी है कि ये आंकड़े वास्तविक मौतों की संख्यास से कम हैं।

यह चौंका देने वाली बात है कि विकसित पश्चिमी यूरोपीय देशों तथा अमेरिका में मौतों की दर आश्चर्यजनक रूप से अधिक है। विकासशील देश प्रभावित हो रहे हैं लेकिन वहां अब तक मौतों की संख्या कम है। यह तर्क दिया जा सकता है कि कोविड-19 अभी तक विकासशील देशों में उस मात्रा में नहीं फैला है। इस चेतावनी को देखते हुए कोई भी यह सवाल कर सकता है कि कोविड-19 वायरस इतनी जल्दी पश्चिमी दुनिया में क्यों फैल गया? एक लोकप्रिय व्याख्या यह है कि चीन के वुहान क्षेत्र में इटली और ईरान के साथ मजबूत व्यापारिक संबंध हैं जिससे दोनों देशों में महामारी फैल गई।

यदि हम इस बिंदु से सहमत होते हैं तो भी यह सवाल बना रहता है कि वायरस इटली से यूरोप और ब्रिटेन के बाकी हिस्सों में इतनी तेजी से क्यों फैल गया जिससे बड़ी संख्या में मौतें हुईं? सिर्फ पर्यटन और लोगों की आवाजाही ही इसकी व्याख्या नहीं कर सकती।

इस लेख में, हम इस महामारी से निपटने के लिए सही दृष्टिकोण पर बहस नहीं करने जा रहे हैं क्योंकि हमारे पास इसके लिए अभी भी पर्याप्त आंकड़े उपलब्धस नहीं है। हम इस तथ्य से अधिक चिंतित हैं कि नया कोविड-19 पश्चिम के कम जनसंख्या घनत्व वाले विकसित देशों को प्रभावित कर रहा है। इन विकसित देशों के लोग अपनी निजता का अपेक्षाकृत अधिक सम्मान करते हैं और विकासशील देशों की तुलना में इन देशों में पारस्परिक संपर्क होने की संभावना कम है। इस तथ्य के बावजूद कि कोविड-19 का कारण एक नया कोरोना वायरस है, विकसित देशों में कई विकासशील देशों की तुलना में बेहतर सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाएं भी उपलब्ध हैं।

विकसित देशों की तुलना में विकासशील देशों में बुजुर्ग निर्भरता अनुपात कम है जहां प्रजनन दर उच्च और जीवन प्रत्याशा कम है। भारत में, यह 9.8% है, और सभी उप-सहारा अफ्रीकी देशों में यह अनुपात 10% से कम है। पहले ग्राफ में भारत और कई विकासशील एवं विकसित देशों के लिए इस बुजुर्ग निर्भरता अनुपात का एक बार चार्ट दिया गया है। जैसा कि आंकड़ों से स्पष्ट है कि भारत और अन्य विकासशील देशों में बुजुर्ग निर्भरता अनुपात यूरोपीय देशों की तुलना में काफी कम है।

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चयनित देशों का बुजुर्ग निर्भरता अनुपात, स्रोत: सीआईए वर्ल्ड फैक्टबुक, 2020

फिर हम दुनिया भर में बुजुर्ग निर्भरता अनुपात के साथ कोविड-19 की घटनाओं और मौत की दरों की तुलना की, जो कि जनसंख्या की आयु संरचना का उचित प्रतिनिधित्वे करता है। आकृति 2 और 3 में संक्रमणों तथा मौतों की संख्या के सूचित मामलों के विरुद्ध बुजुर्ग निर्भरता अनुपात के स्कैटर प्लॉट को प्रदर्शित किया गया है। सहसंबंध गुणांक1 क्रमशः 0.53 और 0.44 हैं तथा दोनों के महत्वैपूर्ण स्तदर2 1% हैं। देशों के प्रतिदर्श को 1813 पर सीमित किया गया है।

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बुजुर्ग निर्भरता अनुपात तथा कोविड-19 से संक्रमित मामलों की संख्या, स्रोत: https://coronavirus.jhu.edu/ और सीआईए फैक्टबुक, 2020

ये सहसंबंध आश्चयर्यजनक हैं। ऐसा लगता है कि कोविड-19 से होने वाली मौतों की दर की आयु प्रोफाइल 1918 के स्पैनिश फ्लू महामारी से काफी विपरीत है, जहां पीड़ित अधिकतर युवा कामकाजी थे (बेल एवं लुईस 2004)। कोविड-19 से होने वाली मौतों की दर उन देशों में ज्यादा है जहां पहले से ही बुजुर्ग आबादी अधिक है, बुज़ुर्गों के संक्रमित होने के कारण उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जाता है जहां वे बाद में उनकी मृत्यु हो जाती है (इंपीरियल कॉलेज COVID-19 रिस्पांस टीम, 2020)। तुलनात्मजक आधार पर कोई निर्णय लिए बिना, या इन देशों में मौतों की दर की गंभीरता को कम आंके बिना, अभी भी सवाल किया जा सकता है कि क्या कठोर लॉकडाउन भारत के लिए एक व्यावहारिक नीति है, जहां बुजुर्ग निर्भरता अनुपात कम है।

देबराज रे और एस. सुब्रमण्यन एक ऐसे सीमित शटडाउन बंद का प्रस्ताव रखते हैं, जिसमें युवा लोगों को एक आधिकारिक प्रतिरक्षा जांच पास करने के बाद काम करने की अनुमति दी जाती है, जबकि संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए स्वयं के चयन तंत्र के आधार पर परिवार के अन्यर सदस्योंा को घरों में रहने दिया जाता है। भारत में शुरुआती 21-दिवसीय लॉकडाउन की अवधि के बाद हम इस दृष्टिकोण को अधिक व्यावहारिक पाते हैं, जब संचरण की दर में गिरावट की संभावना है। इसके अलावा, भारत के झुग्गीक-झोंपड़ी वाले क्षेत्रों में, जहां आबादी घनी है, चयनात्महक रूप से प्रतिरक्षा जांचें भी की जानी चाहिए। यह सवाल उठ सकता है कि क्या कम समय में इस तरह की सामूहिक जांचें किया जाना संभव है, यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि भारतीय राज्य प्रत्येक 10 वर्षों में सफलतापूर्वक घर-घर जनगणना करता है। यह देखते हुए कि बुजुर्ग आबादी अधिक असुरक्षित है, शायद वृद्ध सदस्यों वाले परिवारों में जांच किए जाने पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए, जहां परिवार के 20 से 40 वर्ष की आयु के युवा वयस्क, यदि प्रतिरक्षा जांच संतोषजनक ढंग से पास कर लेते, वे काम पर लौट सकते हैं।

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बुजुर्ग निर्भरता अनुपात तथा कोविड-19 के कारण हुई मौतों की संख्या, स्रोत: https://coronavirus.jhu.edu/ और सीआईए फैक्टबुक, 2020

यह निश्चित रूप से सही है कि कोविड-19 के खिलाफ लड़ाई इसके बाद भी जारी रहेगी। चिकित्सा अनुसंधान को उपयुक्त टीकाकरण खोजने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है। ऐसे क्षेत्रों को ढूंढना, जहां संक्रमण दर की संख्याक अधिक है, फिर उन्हें बाकी की लोगों से अलग करना और इस अलग किए गए लोगों तक पर्याप्त आपूर्ति की उपलब्धदता को सुनिश्चित करना अनिवार्य होगा। सरकार ने आंशिक सफलता के साथ इसे राजस्थान में पहले ही लागू कर दिया है। साथ में हमें सामाजिक दूरी के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने की भी आवश्यकता है।

लेखक परिचय: परंतप बसु डरहम यूनिवर्सिटी बिजनेस स्कूल में मैक्रोइकॉनॉमिक्स के प्रोफेसर हैं। कुणाल सेन, 2019 से संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय-वाइडर के निदेशक हैं और यूनिवर्सिटी ऑफ मैनचेस्टर के ग्लोबल डेव्लपमेंट इंस्टीट्यूट में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं। मूल खबर आइडिया फॉर इंडिया में प्रकाशित हो चुकी है उसे यहां पढ़ें-

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