कई दिनों के विरोध-प्रदर्शन के बाद दादरा नगर हवेली से हो रही प्रवासी मजदूरों की वापसी

मजदूरों ने स्थानीय प्रशासन और उद्योगपतियों पर लगाया मिलीभगत का आरोप, कहा- हम मजदूरों को ये लोग वापस नहीं जाने देना चाहते थे।

Daya SagarDaya Sagar   14 May 2020 10:35 AM GMT

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केंद्र शासित प्रदेश दादरा एवं नागर हवेली की राजधानी सिलवासा में फंसे पूर्वी उत्तर प्रदेश-बिहार के 500 से अधिक प्रवासी मजदूरों की वापसी हो रही है। यह मजदूर बीते 22 मार्च को हुए देशव्यापी लॉकडाउन के बाद यहां पर फंसे हुए थे और प्रशासन से लगातार घर वापसी की मांग कर रहे थे। प्रवासी मजदूरों का आरोप है कि कॉन्ट्रैक्टर के दबाव में यहां का स्थानीय प्रशासन उनकी घर-वापसी की प्रक्रिया में मदद नहीं कर रहा था, जबकि अन्य जगहों पर सरकार दूसरे लॉकडाउन के बाद से ही प्रवासियों के घर वापसी के लिए बस और श्रमिक ट्रेनें चला रही थी।

इन्हीं मजदूरों में से एक गोरखपुर के विशुनपुर गांव के राम मिलन गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, "मार्च के बाद से ही हमारे पास कोई काम नहीं था। हमने पहला और दूसरा लॉकडाउन जैसे-तैसे काटा। कंपनी की तरफ से कभी खाना मिलता था, कभी नहीं। सरकारी व्यवस्था का भी कोई लाभ हमें नहीं मिल रहा था। कुल मिलाकर हमें रहने-खाने की बहुत दिक्कत हो रही थी।"

"जब हमें पता चला कि दूसरी जगहों से मजदूरो को ट्रेन या बस के जरिये घर भेजा जा रहा है, तो हम लोगों ने भी यहां के स्थानीय प्रशासन से मदद की मांग की। लेकिन उन्होंने कोई भी मदद करने से इनकार कर दिया।" राम मिलन आरोप लगाते हैं कि स्थानीय प्रशासन ऐसा कॉन्ट्रैक्टर के दबाव में जान बूझकर रही थी ताकि जब भी लॉकडाउन खुले तो कॉन्ट्रैक्टर को मजदूरों की कमी ना हो।


घर वापस भेजने की मांग को लेकर इन प्रवासी मजदूरों ने अपने गांव के स्थानीय प्रशासन और नेताओं से गुहार लगाई। संत कबीर नगर के पचपोखरी गांव के निवासी परशुराम निषाद ने बताया कि उन्होंने अपने परिवार के माध्यम से जिलाधिकारी, संत कबीर नगर तक गुहार लगाई लेकिन उन्होंने यह कहकर इनकार कर दिया कि जब तक वहां का स्थानीय प्रशासन नहीं चाहेगा, तब तक हम मजदूरों को वापस नहीं ला सकते।

इसके बाद मजदूरों को घर आने के लिए सड़क पर उतर कर विरोध प्रदर्शन करना पड़ा। मजदूरों ने सिलवासा कलेक्ट्रेट के सामने घर वापसी की मांगों को लेकर प्रदर्शन किया। इस दौरान मजदूरों की पुलिस से झड़प भी हुई। करीब 100 मजदूरों को दादरा एवं नगर हवेली प्रशासन ने शांति भंग के आरोप में गिरफ्तार भी किया।

स्थानीय एसपी शरद दराडे ने बताया, "पुलिस और प्रशासन इन मजदूरों की पूरी मदद कर रहा था। उन्हें समय-समय पर खाना भी पहुंचाया जा रहा था। फिर भी ये मजदूर हिंसक हो गए और पुलिस पर पथराव कर गाड़ी में आग लगा दी। इसलिए हमें मजदूरों की गिरफ्तारी करनी पड़ी।" इस घटना में एक पुलिसकर्मी घायल भी हुआ था।


परशुराम निषाद कहते हैं कि कंपनी या सरकार की तरफ से दो-तीन टाईम पर महज एक बार खाना दिया जा रहा था और जो खाना दिया भी जा रहा था, वह खाने योग्य नहीं था। उन्होंने बताया कि एक दिन तो खाने में छिपकली भी मिली थी। परशुराम ने आरोप लगाया कि स्थानीय प्रशासन कॉन्ट्रैक्टर्स और कंपनियों से मिली हुई है, इसलिए मजदूरों को वापस नहीं जाने दिया जा रहा।

दरअसल लॉकडाउन-3 लागू होने के बाद आर्थिक गतिविधियों में छूट दी गई है और कई उद्योगों को शर्तों के साथ सीमित क्षमता से खोला जा रहा है। ऐसे में सिलवासा के उद्योगों के लिए ये मजदूर काफी जरूरी हो जाते हैं। राजस्थान पत्रिका की एक रिपोर्ट बताती है कि उद्योगों के लिए ढील मिलने के बाद सिलवासा के कई उद्योग श्रमिकों की कमी महसूस करने लगेंगे। एसपी शरद दराडे भी अपने बयान में कहते हैं, "अब तो कारखानों में काम भी शुरू हो गया है, इसलिए मजदूरों को शांति के साथ रहना चाहिए।"

शांति कन्स्ट्रकशन नाम की कंपनी में कारपेंटर (बढ़ई) का काम करने वाले बालकेश हमें फोन पर बताते हैं, "कुछ कारखाने तो शुरू हुए हैं, लेकिन सही से काम कहीं नहीं मिल रहा था। लॉकडाउन के बाद हमें सिर्फ तीन से चार दिन का काम मिला। आगे भी कुछ उम्मीद नहीं लग रही। ऐसे में बताइए कि हमारे वहां रूकने का क्या फायदा होता?"


खैर, सिलवासा से अधिकतर मजदूर अब वापिस आ रहे हैं। मजदूरों के हंगामें के बाद दोनों राज्यों के प्रशासन के आपसी समन्वय से कुल 24 बसों में लगभग 1000 मजदूर अपने घर-गांव पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार की तरफ रवाना हो गए हैं। मध्य प्रदेश के इंदौर तक पहुंच चुके सीतामढ़ी, बिहार के दिनेश कुमार हमें फोन पर बताते हैं, "बस खुलने के बाद हमें जो खुशी मिली है, उसे शब्दों में बयान करना मुश्किल है।"

पिछले 10 साल से दादरा नगर हवेली और गुजरात में मजदूरी का काम करने वाले दिनेश कुमार ने फिर से वापिस जाने के सवाल पर कहा कि अभी कुछ महीने तो घर पर ही रहेंगे। अब जब सब कुछ सही हो जाएगा, उसके बाद ही कहीं जाएंगे। उन्होंने बताया कि अभी भी हजारों की संख्या में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और मध्य प्रदेश के प्रवासी मजदूर वापी और सिलवासा में फंसे हुए हैं, प्रशासन को उन्हें जल्द से जल्द बाहर निकालना चाहिए।

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