Unnao Case: क्या सच में खुले से शौच मुक्त हो चुका है भारत? उन्नाव केस में एक मृतका के घर में नहीं है शौचालय!

दो दलित लड़कियों की हत्या के बाद पूरे देश में बबुरहा गांव सुर्खियों में आ गया है। विपक्ष ने भी सरकार को दलित और बेटियों की सुरक्षा को लेकर घेरा। लेकिन इस दौरान लोगों और कैमरों की निगाहों से कुछ चीजें छूट गईं वो थे गांव में उनके घर और शौचालय। दो में से एक मृतका के घर शौचालय नहीं है, जबकि यूपी अपने आप को 2018 में ही खुले में शौच से मुक्त घोषित कर चुका है।

Daya SagarDaya Sagar   22 Feb 2021 2:24 PM GMT

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Unnao Case: क्या सच में खुले से शौच मुक्त हो चुका है भारत? उन्नाव केस में एक मृतका के घर में नहीं है शौचालय!उन्नाव केस में एक मृतका के घर का पीछे का हिस्सा, जहां शौचालय के अभाव में कुछ इस तरह काम चलाया जाता है। (फोटो- नीतू सिंह)

नीतू सिंह/दया सागर

किसी भी वक़्त गिर पड़ने वाली मिट्टी की दीवार से सटे बांस और लकड़ी के सहारे कुछ पुरानी साड़ियां, कुछ बोरियां और प्लास्टिक से एक आड़ की जगह बनी है। इस परिवार को स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय नहीं मिला है। यह जगह प्रदेश की राजधानी से मात्र 40 किलोमीटर दूर स्थित उन्नाव जिले के बबुरहा गाँव में उस एक दलित मृतका के घर की है, जिसकी 17 फरवरी को खेत में घास लेने के दौरान संदिग्ध अवस्था में मौत हो गयी थी। पुलिस ने मृतका की जहर देने के आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है।

मृतका का घर गांव के मुख्य रास्ते पर है, जहाँ लोगों का अवागमन हमेशा रहता है। घटना के कुछ दिन पहले मृतका ने अपनी पड़ोसन भाभी को बताया था कि रात में जब वो पेशाब करने के लिए आंगन में आती है, तो उसे डर लगता है कि कहीं कोई अनहोनी न हो जाए। यह डर सिर्फ उस बच्ची का नहीं था। इस गाँव में हमने जितनी भी लड़कियों और महिलाओं से बात की, जो खुले में शौच जाती हैं, सभी ने लगभग यही बताया कि उन्हें खेत में खुले में शौच जाने से डर लगता है।

एक पीड़िता का घर (फोटो- नीतू सिंह)

बबुरहा गाँव में यह सिर्फ एकमात्र घर नहीं है जिसमें शौचालय न बना हो, मृतका के घर के आसपास कुछ ऐसे घर और भी हैं, जिन्हें स्वच्छ भारत मिशन के तहत शौचालय की सुविधा नहीं मिली है। जिन घरों में शौचालय बने हुए भी हैं, वे इस्तेमाल करने की स्थिति में नहीं हैं। किसी का गड्ढा जाम है, तो किसी का दरवाजा जर्जर है, वहीं कोई इसे नहाने के लिए इस्तेमाल करता है।

गांव के ही 40 वर्ष के एक पुरूष ने नाम ना छापने की शर्त पर गांव कनेक्शन को बताया, "ये शौचालय इस स्थिति में नहीं बने हैं कि इन्हें इस्तेमाल किया जा सके। सिर्फ कागजी कोटा पूरा करने के लिए जल्दबाजी में ऐसे शौचालय बना दिए गये हैं।" इस घटना के बाद से पड़ोस में रहने वाली एक महिला ने भी चिंता जताई, "हमारी बेटी 12 साल की है, खेत में काम करने तो नहीं जाती पर खुले में शौच के लिए तो रोज जाती है। इस घटना के बाद से अब मुझे हमेशा उसके साथ जाना पड़ेगा।"

सरकारी आंकड़ों के अनुसार बबुरहां गांव जिस पाठकपुर ग्राम पंचायत में आता है, वह ओडीएफ घोषित हो चुका है। गांव के निवर्तमान प्रधान धर्मेन्द्र त्रिपाठी गांव कनेक्शन से बातचीत में कहते हैं, "हमारा गांव ओडीएफ घोषित हो चुका है। हमारी पंचायत में सिर्फ 10 प्रतिशत घर ऐसे हैं, जिसमें शौचालय नहीं बना है। इन घरों में भी शौचालय बनने के लिए पंचायत की तरफ से प्रशासन को प्रस्ताव जा चुका है।"

बबुरहा गांव में जर्जर अवस्था में पड़ा एक शौचालय

त्रिपाठी ने बताया कि उनके ग्राम पंचायत में कुल तीन गांव पाठकपुर, मालाखेड़ा और बबुरहा हैं, जिनमें लगभग 1000 घर हैं। जहां पाठकपुर में 700 से अधिक घर हैं, वहीं मालाखेड़ा और बबुरहा में लगभग 150-150 घर हैं। "कुल मिलाकर 900 घरों में शौचालय है। जिन 100 घरों में उनमें 30 परिवार दलित समुदाय से संबंध रखते हैं।" गांव कनेक्शन संवाददाता ने पाया कि बबुरहा गांव में दलित समुदाय से संबंध रखने वाले लगभग 10 परिवार हैं, जिनमें से लगभग आधे घरों में शौचालय की सुविधा नहीं है।

उन्नाव जिले के जिला पंचायत राज अधिकारी राजेन्द्र प्रसाद ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया, "उन्नाव जिला खुले से शौच मुक्त हो चुका है पर जो परिवार बढ़ रहे हैं उनका सर्वे हो रहा है और उसी हिसाब से शौचालय का निर्माण कराया जा रहा है।" जिले में दलित समुदाय को कितने प्रतिशत शौचालय मिले होंगे? इस पर राजेन्द्र प्रसाद ने कहा, "लगभग 30 से 40% आबादी दलितों की है जिन्हें शौचालय मिला है।"

स्वच्छ भारत मिशन की देख-रेख करने वाले मंत्रालय जलशक्ति मंत्रालय ने वर्ष 2019-20 में एक सर्वे कराया था। NATIONAL ANNUAL RURAL SANITATION SURVEY (NARSS) के इस तीसरे राउंड के सर्वे के मुताबिक भारत को भले ही ओडीएफ घोषित कर दिया गया हो, लेकिन देश भर के 94.4% घरों में ही अभी शौचालय की सुविधा उपलब्ध है। इसमें भी 79.2% लोग ऐसे हैं, जिनका व्यक्तिगत शौचालय है। इसके अलावा 15.2% लोग साझे या सामुदायिक शौचालय का प्रयोग करते हैं।

सोर्स- NATIONAL ANNUAL RURAL SANITATION SURVEY (NARSS) 2019-20

इस रिपोर्ट के अनुसार ओडीएफ घोषित किए गए गांवों में दो फीसदी जबकि ओडीएफ नहीं घोषित किए गए गांवों में 23 फीसदी घरों में शौचालय सुविधा उपलब्ध नहीं है। सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, ऐसे परिवार जिनके पास शौचालय तक पहुंच की सुविधा नहीं उपलब्ध है, उसमें सबसे अधिक संख्या आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े दलित (अनूसूचित जाति) के लोगों की है। सामान्य के 97 फीसदी के मुकाबले सिर्फ 91.9% दलित परिवारों में ही अब तक शौचालय बन पाया है।

सोर्स- NATIONAL ANNUAL RURAL SANITATION SURVEY (NARSS) 2019-20

स्वच्छ भारत मिशन की मौजूदा स्थिति

स्वच्छ भारत मिशन की शुरुआत 2 अक्टूबर 2014 को की गई थी, 2 अक्टूबर 2019 को प्रधानमंत्री द्वारा यह घोषणा की गयी कि पूरा देश खुले से शौच मुक्त हो चुका है।

स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण (SBM-G) की वेबसाइट के अनुसार भारत के सभी राज्यों ने अपने आप को खुले में शौच मुक्त (ODF) घोषित कर लिया है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2014 से पहले तक भारत की 55 करोड़ से अधिक ग्रामीण आबादी खुले में शौच के लिए जाती थी क्योंकि सिर्फ 39% आबादी के पास ही शौचालय था। लेकिन 2 अक्टूबर, 2014 से स्वच्छ भारत अभियान शुरू होने के बाद भारत (ग्रामीण) में अब तक 10 करोड़ 75 लाख 80 हजार से अधिक शौचांलय बन चुके हैं और कुल शौचालयों की संख्या 16 करोड़ 42 लाख 72 हजार से अधिक हो गई है।

एसबीएम-जी की वेबसाइट के अनुसार भारत के सभी बिहार (99.56%), पंजाब (99.77%), महाराष्ट्र (99.94%), मणिपुर (99.97%) और तमिलनाडु (99.98%) को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में 100% लोगों के पास अपने व्यक्तिगत शौचालय हैं। भारत के 6 लाख 28 हजार 221 गांवों में से 6 लाख 2 हजार 985 गांवों को ओडीएफ घोषित कर उसमें से 5 लाख 99 हजार 793 गांवों को सरकारी रूप से सत्यापित भी किया जा चुका है।

सोर्स- स्वच्छ भारत मंत्रालय (ग्रामीण) वेबसाइट

जमीनी सच्चाई?

एसबीएम-जी की वेबसाइट के अनुसार जिस आधार पर अलग-अलग जिलों, राज्यों और फिर पूरे देश को ओडीएफ घोषित किया गया, वह 2012 के बेस लाइन सर्वे के हिसाब से था। 2012 में जितने घरों में शौचालय नहीं था, उसी सर्वे के आधार पर शौचालयों का निर्माण कर पूरे देश को खुले में शौचमुक्त करने का लक्ष्य रखा गया था।

हालांकि 2012 के बाद भारत की जनसंख्या 1 अरब 26 करोड़ था, जो कि अब बढ़कर 1 अरब 39 करोड़ हुआ है। जनसंख्या की इस बढ़ोतरी के साथ ही परिवारों और घरों की संख्या भी बढ़ी है। सरकार ने ऐसे बढ़े हुए घरों का जिला स्तर पर सर्वे कराकर उनमें शौचालय बनवाने की प्रक्रिया को चालू रखा है, जिसे ओडीएफ प्लस मिशन कहा जाता है।

2 अक्टूबर, 2018 को उत्तर प्रदेश ने अपने आप को खुले में शौच मुक्त घोषित कर लिया, जबकि एक साल बाद अक्टूबर, 2019 में जब केंद्र के स्वच्छ भारत मिशन मंत्रालय की टीम ने जब प्रदेश का सर्वे किया तो पाया कि राज्य के 14 लाख 62 हजार घरों में अभी भी शौचालय सुविधा नहीं थी।

यह 14 लाख 62 हजार घरों का आंकड़ा तब मिला, जब प्रदेश में 2012 के बेसलाइन सर्वे के अलावा 44 लाख अतिरिक्त घरों में शौचालय बनवाए गए थे। वैसे यह मामला सिर्फ उत्तर प्रदेश का नहीं बल्कि भारत के लगभग सभी राज्यों का है।

जुलाई से दिसंबर, 2018 के बीच भारत सरकार के सांख्यिकी मंत्रालय ने भारत में पेयजल, स्वच्छता, आरोग्यता एवं आवासीय स्थिति के बारे में एक नेशनल सैंपल सर्वे (NSS) किया था। इस सरकारी सर्वे में बताया गया कि भारत के 71.3% ग्रामीण परिवारों में ही शौचालय की सुविधा है। उस दौरान स्वच्छ भारत मिशन की वेबसाइट का दावा था कि भारत में 95% से अधिक घरों में शौचालय बन गए हैं।

पेयजल, स्वच्छता, आरोग्यता एवं आवासीय स्थिति, नेशनल सैंपल सर्वे, 2018

तब सरकारी आंकड़ों के अनुसार सिर्फ 10 राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, झारखंड, असम, पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, त्रिपुरा, गोवा, बिहार और ओडिशा को छोड़कर देश के बाकी सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को ओडीएफ घोषित कर दिया गया था। इसमें से भी आधे राज्य उत्तर प्रदेश (99.63%), कर्नाटक (98.67%), झारखंड (97.87%), असम (96.38%) और पश्चिम बंगाल (96.01%) ओडीएफ स्टेटस के काफी करीब थे और आगे आने वाले कुछ महीनों में इन राज्यों ने अपने आप को ओडीएफ घोषित कर दिया था।

वहीं NSS का डाटा कहता है कि उनके सर्वे में सिर्फ चंडीगढ़, दादरा एवं नागर हवेली और लक्षद्वीप जैसे छोटे केंद्र शासित प्रदेश और मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड और सिक्किम जैसे पूर्वोत्तर छोटे राज्य ही 100% ओडीएफ मिले। जहां स्वच्छ भारत मिशन द्वारा कहा गया कि उत्तर प्रदेश में अक्टूबर, 2018 तक 99.63% घरों में शौचालय की सुविधा है, वहीं NSS का डाटा कहता है कि उत्तर प्रदेश में सिर्फ 52% घरों में ही शौचालय उपलब्ध था।

ठीक इसी तरह का हाल गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु जैसे बड़े राज्यों का था जिसे स्वच्छ भारत मिशन के तहत तो ओडीएफ घोषित कर दिया गया था लेकिन NSS का डाटा कहता है कि इन राज्यों में क्रमशः 75.8%, 78%, 65.8%, 71 और 62.8% घरों में ही शौचालय थे।

सोर्स- पेयजल, स्वच्छता, आरोग्यता एवं आवासीय स्थिति, नेशनल सैंपल सर्वे

बबुरहा गांव में जिन दो लड़कियों की जान गई, वो बेहद गरीब परिवारों की थीं। एक लड़की के परिवार को सरकारी आवास के तहत एक कमरा तो बना है पर उसके बगल का हिस्सा जर्जर अवस्था में है जो तेज बारिश में कभी भी गिर सकता है।

दूसरी वो लड़की जिसके जन्म के 12 दिन बाद ही उसकी माँ की मौत हो गई थी, बाबा-दादी ने मजदूरी करके पाला था। उनके पास भी घर के नाम पर एक मिट्टी का कमरा और उसके बाहर कॉली पॉलीथीन का छप्पर है। घर से कुछ हाथ की दूरी पर पुरानी साड़ियों से घेरकर थोड़ी आड़ की गई है, जहां वो नहाती थी। बाबा को शौचालय नहीं मिला, हालांकि बच्ची के पिता के नाम शौचालय मिला है जिन्होंने पहली पत्नी के देहांत के बाद दूसरी शादी कर ली थी जो अभी अलग रहते हैं। इस शौचालय का इस्तेमाल मृतका बच्ची नहीं कर पाती थी।

एक अन्य मृतका का घर, जहां शौचालय का उपयोग नहाने के लिए होता है। (फोटो- नीतू सिंह)

मृतका की सौतेली माँ ने बताया, "हमारे यहाँ शौचालय तो बना है पर हम उसका उपयोग नहाने के लिए करते हैं, कभी-कभी मेरी बिटिया भी इसमें नहा लेती थी। घर में नहाने की कोई बंद जगह नहीं है इसलिए मजबूरी में इसी में नहाते हैं, बाकी शौच के लिए खेत में चले जाते हैं।"

वहीं दूसरी मृतका की भाभी जिनके घर में साड़ियों से आड़ की जगह बनी हुई है उन्होंने बताया, "शौचालय बनने के लिए प्रधान से कई बार कहा पर उन्होंने कहा जब आ जाएंगे तब दे देंगे। रात में खुले घर में ऐसे आड़ की जगह में जब पेशाब करने जाते हैं तो डर लगता है पर क्या कर सकते हैं? सड़क किनारे हमारा घर है कोई भी कूद सकता है, सयानी लड़कियाँ घर में हैं पर मजबूरी है। हमारे पास अभी इतना इंतजाम नहीं है कि हम खुद से शौचालय बनवा सकें।"

एक लड़की के घर शौचालय नहीं होने के बारे में पूछने पर ग्राम प्रधान ने जवाब दिया, "मुझे इसकी जानकारी नहीं है कि उनके यहाँ शौचालय नहीं है। जितने की मांग आती है उतने की हम डिमांड बनाकर भेजते है, जितने स्वीकृत होते हैं उन्हें शौचालय दे दिया जाता है। पिछले एक डेढ़ साल में 500-550 शौचालय हमने बनवाये हैं।"


  

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