बिहार के खेतों से पंजाब की मंडियों में हो रही धान की तस्करी

बिहार में हर साल लगभग 80 लाख टन धान की पैदावार होती है, लेकिन मुश्किल से 20 प्रतिशत की ही सरकारी खरीद हो पाती है। एजेंट कम मूल्य पर छोटे किसानों से धान खरीदते हैं और इसे पंजाब की मंडियों में बेच देते हैं।

Umesh Kumar RayUmesh Kumar Ray   3 Nov 2020 7:39 AM GMT

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बिहार के खेतों से पंजाब की मंडियों में हो रही धान की तस्करी

मुजफ्फरपुर और पटना, बिहार

अनिल शाह (बदला हुआ नाम) बिहार के वैशाली जिले के एक किसान हैं। वह सालाना लगभग 10 क्विंटल (एक टन या 1000 किलोग्राम) धान उगाते हैं। वे एक अढ़तिया (कमीशन एजेंट) भी है, जो बिहार में अन्य किसानों से कम कीमत पर लगभग 1000 क्विंटल (100 टन) धान खरीदते हैं और इसे 1300 किलोमीटर दूर पंजाब की एक मंडी में ज्यादा कीमत पर बेचकर लाभ कमाते हैं।

शाह जो छह साल से इस व्यवसाय में हैं, उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, "मेरा पंजाब के एजेंटों से संपर्क है, जो बिहार से भेजे गए धान को पंजाब सरकार को एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) पर बेचते हैं। वे प्रति क्विंटल कमीशन लेते हैं।''

शाह छोटे और सीमांत (पांच एकड़ से कम जमीन वाले) किसानों, जिन्हें घरेलू खर्चों को पूरा करने या अगली फसल की तैयारी के लिए पैसों की सख्त जरूरत होती है, से धान खरीदते हैं। एक बार ज्यादा मात्रा में धान एकत्र कर लेने के बाद वे पंजाब के उन ट्रांसपोर्टरों से संपर्क करते हैं, जो बिहार में अन्य सामान लाते हैं। ये ट्रांसपोर्टर बिहार से वापसी के वक्त अपने साथ धान ले जाते हैं।

शाह कहते हैं कि इन ट्रांसपोर्टरों की मदद से उनका परिवहन लागत बच जाता है। शाह कभी भी धान की खेप ले जा रहे ट्रांसपोर्टर के साथ नहीं जाते। उनके मुताबिक वे ऐसा इसलिए करते हैं ताकि छापेमारी या धान जब्त होने की स्थिति में उनपर कोई कार्रवाई ना हो और वे बच जाएं।

ऐसा करने वाले शाह अकेले नहीं हैं। ऐसे सैंकड़ों अढ़तिया हैं जो बिहार के किसानों से कम कीमत पर धान खरीदते हैं और पंजाब व हरियाणा में एजेंट के माध्यम से अच्छी कीमत पर बेच देते हैं। इस प्रक्रिया में बिचौलिए पैसे कमाते हैं, जबकि किसानों और सरकारी खजाने को इसका नुकसान होता है।

एक हफ्ते पहले गाँव कनेक्शन ने बताया था कि कैसे पंजाब पुलिस ने बड़े पैमाने पर धान से लदे ट्रकों को जब्त किया था। यह कथित तस्करी बिहार और उत्तर प्रदेश से पंजाब सरकार द्वारा अधिसूचित न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर धान बेचने के लिए की जा रही थी।

पंजाब पुलिस द्वारा पकड़े गए धान से लदे ट्रक

धान की एमएसपी (ग्रेड ए धान का 1,888 रुपये प्रति क्विंटल और अन्य धान के लिए 1868 रुपये प्रति क्विंटल) आमतौर पर खुले बाजार की कीमत से अधिक होता है। खुले बाजार में यह कीमत वर्तमान में 800 से 900 रुपये प्रति क्विंटल से लेकर 1,200 रुपये प्रति क्विंटल तक है। पंजाब जैसे राज्य में एमएसपी पर सरकार धान खरीदती है, वहीं बिहार में यह व्यवस्था नहीं है या है भी तो बेहद कमजोर है।

दिलचस्प बात यह है कि हाल ही में 16 राज्यों के 53 जिलों में किए गए एक सर्वे में गाँव कनेक्शन ने पाया कि क्षेत्र के अनुसार एमएसपी पर अपनी उपज बेचने वाले किसानों का सबसे अधिक अनुपात दक्षिणी राज्यों केरल, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश (78 प्रतिशत) में है। इसके बाद उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र के अंतर्गत पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश (75 प्रतिशत) आते हैं, फिर पश्चिम में महाराष्ट्र, गुजरात और मध्यप्रदेश (71 प्रतिशत) व उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा और छत्तीसगढ़ (66 प्रतिशत) जैसे राज्यों का स्थान आता है।

उत्तर भारत में उत्तर प्रदेश, बिहार और उत्तराखंड में एमएसपी पर फसल बेचने वाले किसानों का अनुपात सबसे कम यानी केवल 26 फीसद था। इस सर्वेक्षण के नतीजे "द रूरल रिपोर्ट 2: द इंडियन फार्मर पर्सेप्शन ऑफ़ द न्यू एग्री लॉज़" शीर्षक के साथ जारी किए गए हैं।

वैशाली एरिया स्माल फार्मर्स एसोसिएशन के प्रमुख उपेंद्र शर्मा बताते हैं, "बिहार में नब्बे फीसदी किसानों को एमएसपी नहीं मिलता है। उन्हें अपना खाद्यान्न बिचौलियों को बेचना पड़ता है। सरकार को मंडियों पर नज़र रखनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किसानों को उचित मूल्य मिले।"

धान को बिचौलियों को बेचने बैठा एक किसान

धान की तस्करी

धान को बिहार के खेतों से पंजाब की मंडियों तक पहुंचाने का काम एक अच्छी तरह से स्थापित नेटवर्क के ज़रिए किया जाता है। इस प्रक्रिया के बारे में बताते हुए शाह कहते हैं, "अगर मैं बिहार में किसान से 1,200 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर धान खरीदता हूं, तो मैं इसमें 250 रुपये प्रति क्विंटल जोड़ता हूं, और आगे एजेंट को बेच देता हूं।"

इसके बाद, वह ट्रांसपोर्टर को पंजाब में 1,000 क्विंटल धान की खेप ले जाने के लिए 200,000 रुपये का भुगतान करता है। इसके अलावा एजेंट आमतौर पर प्रत्येक क्विंटल धान के लिए छह से सात रुपये कमीशन लेता है। शाह कहते हैं कि परिवहन और कमीशन के खर्चों में कटौती करने के बाद मुझे प्रति क्विंटल 40 से 50 रुपये का शुद्ध लाभ होता है। इस तरह अगर मैं पंजाब में 1,000 क्विंटल धान भेजता हूं, तो चालीस से पचास हजार रुपये कमा लेता हूं।

पंजाब में शाह द्वारा भेजे गए धान को एजेंट मंडी में 1,868 रुपये प्रति क्विंटल की कीमत पर या किसी अन्य एजेंसी को बेच देता है और कमीशन में कटौती करने के बाद एजेंट शेष धन को शाह के खाते में ट्रांसफर कर देता है। बिहार में इस तरह के सैकड़ों अढ़तिया काम कर रहे हैं।

लेकिन, बिहार सरकार के अधिकारियों ने पंजाब में धान की तस्करी करके एमएसपी में बेचे जाने के आरोपों को खारिज कर दिया। बिहार के सहकारिता विभाग के विशेष अधिकारी विकास कुमार बरियार ने गाँव कनेक्शन को बताया, " यह संभव हो सकता है कि बासमती धान पंजाब या हरियाणा में भेजा जाता हो क्योंकि यहाँ इसकी कीमत कम है पर नियमित धान की तस्करी नहीं हो सकती। उनकी दलील है कि अगर नियमित धान को पंजाब भेजा जाएगा, तो इसपर परिवहन खर्च बहुत अधिक हो जाएगा।" उन्होंने बिहार से पंजाब में धान की तस्करी के दावे को निराधार बताया।


ज्यादा उत्पादन और खरीदी कम

गाँव कनेक्शन ने धान उत्पादन के लिए देश के शीर्ष राज्यों में से एक बिहार के धान की खेती और खरीद के आंकड़ों का गहराई से अध्ययन किया। बिहार में कुल 79.46 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से लगभग 32 लाख हेक्टेयर (40 प्रतिशत से अधिक) में चावल की खेती होती है। यहां 104.32 लाख किसानों के पास भूमि है। जिसमें 82.9 प्रतिशत भूमि जोत सीमांत किसानों की है, 9.6 छोटे किसानों के हैं और केवल 7.5 फीसदी किसानों के पास ही दो हेक्टेयर से ज्यादा की जमीन है।

राज्य में सालाना लगभग 80 लाख टन धान का उत्पादन होता है। पश्चिम बंगाल में 160.5 लाख टन, उत्तर प्रदेश में 1550.4 लाख टन और पंजाब में 128.2 लाख टन प्रति वर्ष का उत्पादन होता है। इसमें से धान की सरकारी खरीद बहुत कम है। वर्ष 2019-2020 में, 20 लाख टन धान की खरीद की गई थी, जबकि लक्ष्य 30 लाख टन की खरीद का था। इसी तरह, 2018-2019 में केवल 14.2 लाख टन धान की खरीद की गई थी।

धान की बिक्री के लिए बिहार में किसानों को सहकारी विभाग के साथ ऑनलाइन पंजीकरण करना पड़ता है, लेकिन आंकड़ों से पता चलता है कि इस सरकारी एजेंसी के माध्यम से राज्य में काफी कम खरीदी हुई है।


वित्तीय वर्ष 2019-2020 में केवल 409,368 किसानों ने धान खरीद के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रस्तुत किए। चालू वर्ष (2020-21) की खरीद के लिए केवल 21,879 किसानों ने अब तक ऑनलाइन आवेदन प्रस्तुत किए हैं, जिनमें से 30 अक्टूबर तक सिर्फ 631 आवेदन स्वीकार किए गए हैं।

जाहिर है कि बिहार में बड़ी संख्या में किसान एमएसपी से नीचे खुले बाजार में अपना धान बेच रहे हैं, जिसका कुछ हिस्सा पंजाब की मंडियों तक अवैध रूप से पहुंचता है।

उदाहरण के लिए, अरविंद कुमार बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बनिया गाँव के किसान हैं। वह पिछले तीन दशकों से खेती कर रहे हैं, लेकिन अब तक केवल दो या तीन बार ही सरकार को खाद्यान्न बेच पाए हैं। उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया कि सरकार को खाद्यान्न बेचने का उनका अनुभव बहुत बुरा रहा है।

उन्होंने शिकायत की कि जब खरीद और भुगतान की बात आई तो सरकार ने अपने पैर खींच लिए। 3.2 हेक्टेयर जमीन पर धान, गेहूं और मक्का की खेती करने वाले अरविंद कुमार कहते हैं, "हमारी आजीविका खेती पर निर्भर करती है। हमें खेतों में काम करने वाले मजदूरों को नकद भुगतान करना होता है। ऐसी स्थिति में, यदि सरकार खरीद और भुगतान में देरी करेगी, तो हम मजदूरी और अगली फसल की बुवाई के लिए पैसे की व्यवस्था कैसे करेंगे?"

पिछले साल अरविंद कुमार सरकारी खरीदी व्यवस्था के माध्यम से एक किलो धान भी नहीं बेच सके। उन्हें स्थानीय बनिया को 1,100 रुपये प्रति क्विंटल की दर से 10 क्विंटल धान बेचना पड़ा। वह कहते हैं, "मैं धान से एक पैसा भी नहीं कमा सका। इसके बजाय मुझे 150-200 रुपये प्रति क्विंटल का नुकसान उठाना पड़ा, क्योंकि उत्पादन लागत 1,300 रुपये प्रति क्विंटल था।"

अरविंद कुमार, जिनके धान की सरकारी खरीद पिछले 20 साल में सिर्फ दो या तीन बार हुई है।

चौदह साल पहले साल 2006 में बिहार में किसानों की स्वतंत्रता का हवाला देकर APMC (कृषि उपज बाजार समिति) अधिनियम को खत्म करते हुए मंडी व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया। लेकिन कुमार जैसे कई लोगों को इसने बिचौलियों के हवाले कर दिया जो किसानों के हिस्से का लाभ लेने लगे।

PACS के साथ समस्या क्या है?

बिहार में प्राथमिक कृषि ऋण सोसायटी, जिसे आमतौर पर PACS के रूप में जाना जाता है, एक पंचायत और ग्रामीण स्तर की इकाई है जो किसानों को ग्रामीण ऋण प्रदान करती है। इसके साथ ही उन्हें अपने उत्पाद को अच्छी कीमत पर बेचने में मदद करने के लिए विपणन सहायता भी प्रदान करती है। बिहार में 8,463 PACS हैं, जिन्हें एक सोसायटी के अधिकार क्षेत्र के तहत कितना क्षेत्र बोया जाता है, इसके आधार पर खाद्यान्नों की सरकारी खरीद का लक्ष्य दिया जाता है। PACS के अलावा 500 व्यापार मंडल हैं जो धान की खरीद भी करते हैं।

मुजफ्फरपुर जिले के बनिया गांव में लगभग 1.6 हेक्टेयर जमीन पर खेती करने वाले 38 वर्षीय किसान ललन राय कहते हैं, "पिछले साल मैंने PACS के माध्यम से धान बेचने की कोशिश की, लेकिन अंतत: इसे बिचौलियों के माध्यम से ही बेचना पड़ा।" राय ने आगे कहा, "PACS के माध्यम से बिक्री करने पर समय पर भुगतान नहीं होता है। इसके अलावा, मेरे लिए बिचौलियों को अपना अनाज बेचना आसान है क्योंकि खरीदी केंद्र लगभग 10 किलोमीटर दूर है।"

PACS का संचालन करने वाले लोगों ने गांव कनेक्शन को बताया कि उन्होंने भी काफी बाधाओं का सामना करते हुए काम किया है। नाम ना छापने की शर्त पर PACS ऑपरेटरों ने कहा कि उन्होंने पहले 11 प्रतिशत ब्याज पर ऋण लेकर किसानों से धान खरीदा। फिर उन्हें सरकार को देने से पहले अनाज को चावल में बदलना पड़ता है। सरकार को बेचने के बाद ही उन्हें उनका पैसा मिलता है, जिसमें समय लगता है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि उन्हें मिलने वाली ऋण राशि सरकार द्वारा दिए गए खरीद लक्ष्य से काफी कम होती है।

बिहार में 8643 पैक्स हैं, जो सरकार की तरफ से किसानों से अनाज की खरीददारी करते हैं

पटना जिले के मोकामा में PACS का संचालन करने वाले संजय कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमें खरीद लक्ष्य का केवल 25 प्रतिशत ऋण मिलता है। सहकारी बैंक हमें ऋण देती है, जो PACS बैंक खातों में आता है। किसानों से धान खरीदने के बाद हम उनके खातों में पैसा भेजते हैं। इसमें दो से तीन हफ्ते का समय लग जाता है।

वह बताते हैं, "ज्यादातर समय ऐसा होता है कि PACS के पास पैसे नहीं होते हैं। हम किसानों से अनाज लेते हैं, लेकिन तुरंत भुगतान नहीं कर सकते। सरकार से धन प्राप्त करने की प्रक्रिया भी बहुत जटिल और समय लेने वाली है।" संजय कुमार के PACS के पास लगभग 2,000 क्विंटल धान खरीदने का लक्ष्य है, (PACS के क्षेत्राधिकार के तहत एक विशेष मौसम में धान की खेती के क्षेत्र के आधार पर), लेकिन वह शायद ही कभी 1,000 से अधिक क्विंटल धान खरीद पाते हैं।

पटना ग्रामीण स्थित एक अन्य PACS ऑपरेटर ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "अगर हम एक क्विंटल धान (100 किलोग्राम) खरीदते हैं, तो सरकार हमें केवल 66 किलोग्राम का मूल्य देती है। (सरकार मानती है कि 100 किलोग्राम धान में 34 किलोग्राम भूसी है) इसके साथ ही पैसा समय पर हस्तांतरित नहीं किया जाता है, और हमारे ऋण पर ब्याज की राशि बढ़ती रहती है।" शायद यही वजह है कि PACS किसानों से अधिक धान खरीदने में हिचकते हैं।

पहले ही किसान इस सीजन में खरीद में देरी को लेकर शिकायत कर रहे हैं। अरविंद कुमार कहते हैं, "धान की खरीद अब तक शुरू नहीं हुई है। मैंने धान की फसल ली है और पंद्रह दिनों में मुझे गेहूं की बुवाई की प्रक्रिया शुरू करनी होगी। मुझे अब पैसे की जरूरत है, लेकिन खरीद 15 नवंबर के बाद शुरू होगी। वह आगे कहते हैं, "अगर मैं PACS के माध्यम से सरकार को बेचना चाहूं, तो मुझे इंतजार करना होगा और इससे मेरी बुवाई में देरी होगी, क्योंकि मुझे अब पैसे की जरूरत है।"

गाँव कनेक्शन ने बिहार के कृषि मंत्री प्रेम कुमार व खाद्य और आपूर्ति विभाग के मुख्य महाप्रबंधक (खरीद) उदय प्रताप सिंह से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन उन्होंने बार-बार फोन करने के बावजूद कोई जवाब नहीं दिया।

इस बीच, बिहार में कहीं और एक ट्रक धान से लदा हुआ है और पंजाब के लिए रवाना होने वाला है, जहां इसे एमएसपी पर एक मंडी में बेचा जाएगा। एक और बिचौलिया किसानों के हिस्से का लाभ लेकर खुशी मनाएगा। इसके साथ ही एक और किसान निराशा के साथ अपने भाग्य को कोसते हुए अपनी अगली फसल की बुवाई की तैयारी करेगा।

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