स्वच्छ भारत की सीख हो सकती है कोरोना पर विजय में सहायक

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स्वच्छ भारत की सीख हो सकती है कोरोना पर विजय में सहायक

- वी के माधवन

पूरा विश्व कोरोना महामारी से जूझ रहा है। एक ऐसी महामारी जिसने सबसे समृद्ध और प्रगतिशील देशों को भी नहीं बख्शा। इतिहास में यह शायद पहली बार है जब सारी दुनिया एक ही बीमारी के प्रकोप से एक साथ ग्रसित है। समय कठिन है लेकिन दो बहुत ही सरल उपाय इस भयावह परिस्थिति से उबरने में मददगार साबित हो सकते हैं। ये उपाय है - हाथो की सम्पूर्ण स्वछता और फिजिकल डिस्टेन्सिंग यानि की एक दूसरे से सही शारीरिक दूरी बनाना ताकि कोरोना वायरस का संक्रमण रोका जा सके।

कोरोना महामारी एक ऐसी आपदा है जहां एक छोटी सी चूक बड़े पैमाने पर नुकसान कर सकती है, इसलिए यह समय सरकारों और नीतिकारों के लिए विकट है। असमंजस वाली बात यह भी है कि संक्रमण रोकने के लिए कई देशों में लॉकडाउन तो किया गया पर इसका अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव होता है इसका ठीक से पता चलना अभी बाकी है। क्या कोरोना का अंत करते-करते भुखमरी से भी जूंझना पड़ेगा, यह एक महत्वपूर्ण और कठिन सवाल है।

कुछ मामलों में भारत की स्थिति दूसरे देशों से अच्छी रही है। संक्रमण की दर और कोरोना से होने वाली मृत्यु दर और देशो की अपेक्षा भारत में कम रही है। लेकिन हमारे लिए दिहाड़ी कमाने वाले श्रमिकों की अवस्था पर ध्यान देना भी बहुत ज़रूरी है।

यही नहीं हमारे पास एक चुनौती और है। भारत के दस करोड़ लोग शहरों की झुग्गी बस्तियों में रहते है। दूसरे शब्दों में कहे तो हमारे शहरों की एक चौथाई आबादी झुग्गी झोपड़ियों में निवास करती है। जब झुग्गी बस्तियों के बारे में सोचते है तो अनायास ही ध्यान महानगरों की ओर जाता है। लेकिन असल बात यह है कि दस लाख से कम आबादी वाले शहरों में भी 60% लोग झुग्गी बस्तियों में रहते हैं।

अगर हम झुग्गी बस्तियों के बारे में और जाने तो हमें पता चलेगा कि की इनमे से तिहाई लोगो के पास पानी के नल का साधन नहीं है। सीमित जगह होने के कारण एक साथ ज़्यादा पानी इकट्ठा करके भी रख पाना संभव नहीं है। पानी के टैंकर की भी नियमितता नहीं है। ऐसी परिस्थिति में रहते हुए कोई भी इंसान हाथों को ठीक से स्वच्छ कैसे रख सकता है और कैसे फिजिकल डिस्टेन्सिंग के नियमों का पालन कर सकता है?

अगर इस महामारी का प्रकोप हमारे गांवो में पहुंच गया तो चुनौतियां और मुश्किल हो जाएंगी। वहां विशेषज्ञ डॉक्टरों और परिवहन की अपनी सीमाएं है। गांवों में केवल 18% घरों में पानी की पाइप लाइन है जिस कारण गर्मियों में पानी की उपलब्धता में चुनौतियां आती है। साथ ही साथ नदी, तालाब और कुएं भी पानी के आभाव से ग्रसित हो जाते हैं। अतः गर्मियों में जब आम ज़रूरत और मवेशियों के लिए पानी की किल्लत हो सकती है तब दिन में कई बार हाथ धोने के लिए पानी की व्यवस्था कैसे की जा सकती है, यह प्रश्न विचारणीय है।

कुछ बातें हैं जिनका ध्यान रख कर संक्रमण को तेज़ी से रोका जा सकता है। जल जीवन मिशन साल 2024 तक हर घर में पाइप लाइन द्वारा पानी पहुंचाने में कार्यरत है। वर्तमान परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए मिशन चाहे तो सूखा प्रवृत्त क्षेत्रों में वैकल्पिक व्यवस्था कर सकता है। भारत में हर नगरपालिका या शहर को झुग्गी-झोपड़ी के निवासियों तक पानी और शौचालयों की सेवा उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए चाहे वो बस्तिया वैध हों या अवैध। साथ ही साथ जल जीवन मिशन को भी आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग के लोगो के लिए भी विशेष कदम उठाने चाहिए।

यह सब पहली बार पढ़ने में कठिन ज़रूर लग सकता है लेकिन स्वच्छ भारत मिशन की उपलब्धियों से हमें पता चलता है की हम कोरोना की चुनौतियों से निपट सकते है। ज़रूरत है तो राजनीतिक नेतृत्व और दृढ़ निश्चय की, जो दोनों ही स्वच्छ भारत मिशन की सफलता के कारक हैं। स्वच्छ भारत मिशन की बात आई है तो एक सुझाव है। अगर मिशन हाथों की स्वछता पर भी जागरूकता का काम करे तो परिणाम अभूतपूर्व हो सकते हैं। हाथों की सही स्वछता न सिर्फ हमे कोरोना से बचाएगी बल्कि हमे दीर्घकालीन लाभ देगी।

श्री वी के माधवन, वाटर एड इंडिया के चीफ एग्जीक्यूटिव है और ये लेखक के निजी विचार हैं।

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