प्याज महंगा लेकिन कंगाल है किसान, जरूरत से ज्यादा पैदावार के बाद भी विदेश से क्यों प्याज मंगाता है भारत?

आलू और प्याज के रेट ने आम लोगों के घर का बजट बिगाड़ दिया है। ज्यादातर लोगों को लग रहा है प्याज और आलू की महंगाई का पूरा पैसा किसान की जेब में जा रहा है, इतना महंगा प्याज बेचकर किसान मालामाल हो रहे हैं। लेकिन हकीकत इससे अलग है।

Nilesh MishraNilesh Mishra   1 Nov 2020 10:08 AM GMT

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प्याज महंगा लेकिन कंगाल है किसान, जरूरत से ज्यादा पैदावार के बाद भी विदेश से क्यों प्याज मंगाता है भारत?

भारत में सबसे ज्यादा प्याज महाराष्ट्र के नाशिक जिले में होता है और यहीं की लासलगांव की मंडी से प्याज के दाम तय होते हैं।

नाशिक जिले के कैलाश जाधव ने लॉकडाउन के दौरान अप्रैल-मई में अपना प्याज 700 रुपए कुंतल बेच दिया था, लेकिन अब उसी मंडी में प्याज 6000-9000 रुपए प्रति कुंतल के आसपास बिक रहा है। बढ़ी महंगाई का फायदा कैलाश जाधव को नहीं मिल पाया। मौजूदा दौर का ज्यादातर प्याज कारोबारियों और बड़े किसानों का है। लेकिन इसका मतलब ये भी नहीं कि इस महंगाई से किसान को कुछ भी हासिल नहीं हो रहा है। फायदा मिल रहा है लेकिन महंगाई के मुकाबले काफी कम है।

प्याज खाने वालों के लिए, उसका महंगा होना एक आपदा है। यही आपदा बिचौलियों के लिए अवसर भी है। महंगाई का असर जब जनता पर पड़ता है तो सरकार फौरी राहत देने की कोशिश करती है। निर्यात पर रोक, विदेश से प्याज मंगाना और भंडारण सीमा (स्टाकिंग) सब तय हो जाता है। लेकिन जब ये प्याज एक रूपए किलो हो जाता है कोई पूछने नहीं आता।

स्वराज इंडिया के संयोजक योगेंद्र यादव एक कार्यक्रम में कहते हैं, "जब दाम बढ़ने की गुंजाइश होती हो हर सरकार कूद पड़ती है। निर्यात बंद करो, स्टॉक रिलीज करो, लेकिन जब यही प्याज एक रुपए मे बिकती है तब न खबर बनती है ना कोई सरकार आती है।"

दो साल पहले इसी देश में प्याज एक रुपए किलो तक बिक गया था, जो प्याज 100 रुपए किलो बिका उसकी खबर बनी लेकिन किसान के खेत से लेकर उनके छोटे छोटे गोदामों में जो 30-50 फीसदी तक प्याज सड़ जाता है वो नजर नहीं आती।

प्याज की दुनिया कुछ इस तरह समझिए। स्वादष्टि खाने के शौकीन देश में शाकाहारी, मांसाहारी सब प्याज खाते हैं। यही कारण है कि भारत में एक साल में प्याज की खपत लगभग 160 लाख टन से भी ज्यादा है। भारत में प्याज का उत्पादन लगातार भी बढ़ रहा है और अब लगभग 250 लाख टन सालाना तक पहुंच रहा है।

ऐसे में सवाल उठता है कि ज़रूरत से ज्यादा प्याज़ उगाने के बावजूद भारत प्याज़ का आयात क्यों करता है? ईरान, अफगानिस्तान, तुर्की और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भारत से कम प्याज़ का उत्पादन होता है, इसके बावजूद भारत इन कम उत्पादक देशों से प्याज़ का आयात करता है।


किसानों को लाचार कर देती है मौसम की मार

भारत एक कृषि प्रधान देश होने के साथ-साथ 'मौसम प्रभावित देश' भी है। मौसम की वजह से सबसे ज्य़ादा नुकसान किसानों को होता है। प्याज के किसानों के साथ-साथ व्यापारियों को भी इसका नुकसान होता है। मौसम ठीक रहने पर भारत में प्याज का उत्पादन ज़रूरत से ज़्यादा होता है। उस स्थिति में प्याज के दाम नियंत्रित रहते हैं। भारत से प्याज का निर्यात भी होता है और मुनाफ़ा भी। खराब मौसम होने का असर दो तरह से होता है। पहला- फसल की बुवाई या खड़ी फसल पर। दूसरा- तैयार फसल पर, जोकि आने वाले समय में आपूर्ति के लिए रखी गई होती है।

पहले नुकसान की बात करें तो इस साल भी महाराष्ट्र और कर्नाटक के कई इलाकों में भारी बारिश से प्याज की नर्सरी तबाह हुई हैं। महाराष्ट्र के किसानों ने प्याज के महंगे बीज खरीदकर नर्सरी डाली थी लेकिन वह बारिश में खराब हो गई। कई किसानों को 3 से 4 बार बुवाई करनी पड़ी। चार गुना महंगा बीज खरीदना पड़ा। बड़े पैमाने पर प्याज की नर्सरियां खराब होने रबी की फसल प्रभावित होगी। यानि सीधे शब्दों में कहें तो अगले साल भी प्याज महंगा हो सकता है। कम उत्पादन भी महंगाई का एक कारण ज़रूर बनेगा।

अब बात दूसरे नुकसान की। भारत में प्याज के कुल उत्पादन का लगभग 70 प्रतिशत प्याज रबी की फसल से आता है। इसका मतलब है कि प्याज मार्च में तैयार होता है और उसे अक्टूबर तक इस्तेमाल में लाया जाता है। प्याज के साथ एक परेशानी है कि वह बारिश या नमी में खराब जल्दी होता है। ऐसे में उसका भंडारण काफी ज़रूरी, खर्चीला और मशक्कत भरा होता है। भारत में सबसे ज़्यादा प्याज का उत्पान करने वाले महाराष्ट्र में राज्य प्याज उत्पादक संगठन के अध्यक्ष भारत दिघोले कहते हैं, "इस बार कई जगहों पर 80 प्रतिशत से ज्यादा प्याज खराब हो गया। जिस किसान के 100 कुंतल प्याज था अगर उसमें से 60-70 कुंतल प्याज भी खराब हो गया तो आप सोचिए 50 से 100 रुपए किलो में बेचकर भी उसका घाटा नहीं पूरा हो पाएगा।"

भारत में साल में दो बार प्याज की खेती होती है। जो प्याज इस वक्त देश में खाया जा रहा है वो मार्च-अप्रैल का खुदा हुआ है। जिसका किसान भंडारण करते हैं, और जरुरत के मुताबिक बेचते हैं। आमतौर पर भी भंडारण के पारंपरिक तरीकों के कारण लगभग एक तिहाई प्याज खराब ही होता है। ज़्यादा उत्पादन के बावजूद विदेश से प्याज आयात करने का सबसे बड़ा कारण यही है। हम अपने प्याज को सुरक्षित नहीं रख पाते और किसान मजबूरी में उसे औने-पौने दाम में बेचते हैं। फिर भी बाद में प्याज खराब होता है और ज़रूरत पूरी करने के लिए हम विदेश से महंगा प्याज मंगाते हैं।

पुणे में रहने वाले कृषि पत्रकार और विशेषज्ञ दीपक चव्हाण कहते हैं, "लगभग 40 सालों से प्याज के किसान एक तरह की समस्या से जूझ रहे हैं। इसके बावजूद बीज अनुसंधान, फसल के तरीके और प्याज के किसानों को तकनीकी मदद के लिए खास प्रयास नहीं हो रहे हैं। यही कारण है कि किसान पर मौसम डोमिनेट करता है और बारिश होती ही प्याज के खेत, नर्सरी और रखी फसल खराब हो जाती है।"


भंडारण के पारंपरिक तरीके के कारण भारी नुकसान

महंगे बीज के इस्तेमाल और खराब मौसम से जूझकर किसी तरह किसान प्याज तैयार कर देता है तो उसके पास दो रास्ते होते हैं। पहला कि वह अपने प्याज को अपने पास रखे और सही दाम मिलने पर बेचे। दूसरा कि वह ज्यादा उत्पादन के समय अपनी फसल कम दाम में बेच दे। फसल को सही कीमत मिलने तक रखने के लिए कई तरह के ढांचे बनाए जाते हैं। पारंपरिक तरीकों में किसान बांस, बल्ली,लकड़ी या टीन के सहारे शेड बनाते हैं, जिनमें प्याज को कुछ महीनों के लिए रखा जाता है। रबी की फसल का यही प्याज अगली फसल आने तक पूरे देश में सप्लाई होता है। यही प्याज दूसरे देशों में भी भेजा जाता है। इनमें तमाम इंतजाम और खर्चीले रखरखाव के बावजूद लगभग एक तिहाई प्याज़ खरीद खराब हो जाता है। दूसरी तरफ निजी खर्च या सरकारी सब्सिडी से तैयार उच्च गुणवत्ता वाले स्टोरेज में प्याज़ ज्यादा दिन तक सुरक्षित रहता है।

राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन फेडरेशन ऑफ इंडिया (नैफेड) के मुताबिक, इन कोल्ड स्टोरेज में सिर्फ पांच फीसदी प्याज़ ही खराब होता है। समस्या यह है कि देश में प्याज़ का उत्पादन लगभग 250 लाख टन तक पहुंच रहा है लेकिन प्याज़ रखने के लिए सरकारी सब्सिडी से तैयार किए गए कोल्ड स्टोरेज की क्षमता बमुश्किल पांच लाख टन है।

दीपक चव्हाण बताते हैं, "नैफेड हर साल एक लाख टन प्याज खरीदता है और बफर स्टॉक तैयार किया जाता है लेकिन यह मात्रा बेहद मामूली है। उसपर भी समस्या ये है कि नैफेड उस समय के बाजार मूल्य पर प्याज खरीदता है, ऐसे में किसान को सामान्य भाव ही मिलता है।"

कीमतों को काबू करने की कोशिश में जुटी केंद्र सरकार ने इसी नैफेड के बफर स्टॉक से राज्य सरकारों और ओपन मार्केट में 27 अक्टूबर तक 36,000 मीट्रिक टन प्याज दिया है। केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल 30 अक्टूबर को बताया कि कीमतों को काबू करने और किसानों की सहूलियत के लिए 29 अक्टूबर को प्याज के बीज के निर्यात पर भी रोक लगा दी गई थी।



लॉन्ग टर्म की बजाय शॉर्ट टर्म पर ध्यान देती है सरकार

किसान की आय दोगुनी करने जैसे लक्ष्यों के लिए कृषि क्षेत्र में लंबे समय के लिए निवेश की जरूरत है। किसानों की समस्या ये है कि वे सब्सिडी, लोन और मौसम के जाल में इस कदर उलझे हैं कि इनमें से एक का भी संतुलन बिगड़ने पर उनकी पूरी अर्थव्यवस्था डांवाडोल हो जाती है। प्याज के किसान इस बात से परेशान हैं कि फसल तैयार होने पर उनकी फसल कौड़ियों के दाम पर बिकती है और फसल खराब होने पर जब उन्हें बेहतर दाम मिल सकता है तो प्याज़ का आयात कर लिया जाता है। इस साल की तरह ही कई बार निर्यात पर रोक लगा दी जाती है या निर्यात की सीमा तय कर दी जाती है।

बढ़ते उत्पादन के बावजूद प्याज़ का निर्यात घटा और आयात बढ़ा

पिछले कई सालों में देश में प्याज का उत्पादन बढ़ रहा है। कुछ साल ऐसे भी रहे हैं,जब दुनिया में उत्पादित हुए प्याज़ का लगभग एक तिहाई हिस्सा सिर्फ भारत में ही पैदा हुआ। इसके बावजूद पिछले कई सालों में प्याज़ का आयात बढ़ता जा रहा है और निर्यात पर कई बार रोक लगाई जा रही है। वाणिज्यिक जानकारी और सांख्यिकी महानिदेशालय (डीजीसीआईएस) के आंकड़ों के मुताबिक, देश से निर्यात होने वाले प्याज की मात्रा में बढ़ोतरी की दर 2015-16 में 26 प्रतिशत थी। 2019 में बढ़ोतरी की दर घटकर माइनस 54 प्रतिशत पहुंच गई थी। 2015-16 में भारत ने 473 मिलियन अमेरिकी डॉलर का प्याज़ दूसरे देशों को बेचा था। 2019-20 में सिर्फ 324 मिलियन डॉलर का प्याज बेचा गया। डीजीसीआईएस के मुताबिक, 2017-18 में निर्यात की मात्रा लगभग 16 लाख टन थी, जोकि 2019-20 में घटकर 11.49 लाख टन ही रह गई। 2015 में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सबसे ज्यादा प्याज का निर्यात करने वाले देशों में भारत शीर्ष पर था लेकिन 2017-18 के बाद से लगातार स्थिति बदतर होती जा रही है और भारत तीसरे-चौथे पायदान पर खिसकता जा रहा है।

दूसरी तरफ आयात लगातार बढ़ा है। 2017-18 में भारत ने सिर्फ 6592 टन प्याज का आयात किया। वहीं, 2019-20 में 141189 लाख टन प्याज़ का आयात किया गया। सिर्फ प्याज़ के आयात पर ही भारत ने 2017-18 में सिर्फ 11.88 करोड़ रुपये खर्चे थे जबकि 2019-20 में यह आंकड़ा बढ़कर 567.42 करोड़ हो गया। 2019-20 में भारत ने अफगानिस्तान, तुर्की, मिस्र, यूएई, ईरान, ऑस्ट्रेलिया और चीन जैसे देशों से भी प्याज़ का आयात किया है। इससे पहले भारत प्रमुख रूप से सिर्फ अफगानिस्तान और मिस्र से ही प्याज़ का आयात करता रहा है। इस साल भी अफगानिस्तान, ईरान, तुर्की और मिस्र से प्याज मंगाए गया है। ये प्याज 35 रुपये से लेकर 55 रुपये किलो तक बेचा जा रहा है।

महाराष्ट्र के पुणे से सब्जियों का निर्यात करने वाली एक कंपनी ने इसी साल प्याज़ का भी निर्यात शुरू करने का फैसला लिया। कंपनी के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, "शुरुआत में 10 टन प्याज़ खरीदा था लेकिन सरकार ने निर्यात पर बैन लगा दिया। अब उन्हें प्याज़ यहीं बेचना पड़ रहा है। इसमें उन्हें प्याज़ का नुकसान तो नहीं हुआ लेकिन निर्यात के लिए जो तैयारियां हो रही थीं, वे व्यर्थ चली गईं।"

65 साल पुराने आवश्यक वस्तु अधिनियम में बदलाव के बाद लागू हुए नए कानून की वकालत करते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था, "आलू प्याज को आश्वयक वस्तुओं की सूची से हटाने से इसमें निजी निवेश बढ़ेगा। जो प्रोसेसर (कारोबारी-निजी कंपनी) अभी तक 1000 टन भंडारण की व्यवस्था करते थे वो 10 लाख टन भंडारण करेंगे तो उसके लिए निवेश करेंगे इंफ्रास्टैक्टर तैयार होगा। इससे रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। जो पैसा खर्च करेगा वो अपना माल सड़ने नहीं देगा इससे कई लोगों को फायदा होगा।" हालांकि कानून के मुताबिक अगर पिछले एक साल में आलू प्याज या किसी के दाम 100 फीसदी से ज्यादा बढ़ते हैं तो स्टॉक लिमिट लगाई जाएगी, सरकार ने इसी कानून का उपयोग का प्याज की कीमतें काबू करन की कोशिश की है, जिस पर विपक्ष और किसान संगठन सवाल भी उठा रहे हैं।

केंद्र सरकार के उपभोक्ता मंत्रालय ने थोक व्यापारियों के पास 25 टन और खुदरा व्यापारियों के पास 2 टन प्याज़ की स्टॉकिंग की सीमा तय किए जाने से महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के किसानों को समस्या का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि सीमा तय होने के कारण व्यापारी प्याज नहीं खरीद रहे हैं।

कृषि पत्रकार दीपक चव्हाण कहते हैं, " प्याज का कारोबार देश की अर्थव्यवस्था में 50 हजार करोड़ तक का योगदान दे सकता है। इसके लिए बेहतर सप्लाई चेन बनाने, नैफेड और अन्य सहकारी संस्थाओं के पास इन्वेंटरी बढ़ाने, स्टोरेज के लिए बेहतर तकनीक और ढांचे पर निवेश करने की जरूरत है।"

दीपक चव्हाण के मुताबिक प्याज या किसी भी तरह के किसान की दुर्गति के पीछे राजनीतिक इच्छा और प्रशासनिक लापरवाही ही जिम्मेदार है। बेहतर बीज विकसित करने, फसल खराब होने के औसत को कम करने और स्टोरेज क्षमता बढ़ाकर प्याज के क्षेत्र को काफी मजबूत बनाया जा सकता है, जिसका फायदा न सिर्फ किसान को मिलेगा बल्कि देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत होगी और जीडीपी में कृषि क्षेत्र का योगदान भी बढ़ाने में मदद मिलेगी।


महंगाई से बदलेगा क्रॉप पैटर्न (फसल चक्र)

कृषि अर्थशास्त्री विजय सरदाना प्याज आलू की महंगाई के लिए बढ़ती जनसंख्या के चलते मांग और आपूर्ति में अंतर को भी जिम्मेदार बताते हैं। समाचार चैनल न्यूज 24 के कार्यक्रम में वो कहते हैं, "2014 में जब मोदी की सरकार बनी थी देश की आबादी थी 130 करोड़, तब आलू का उत्पादन हुआ था 48 मिलियन टन, 2020 में देश आबादी 138 करोड़ और भारत सरकार के आंकड़ों के मुताबिक उत्पादन लगभग है 48 मिलियन टन है। पिछले साल भी लगभग ऐसा ही था। जिस देश में हर साल आबादी एक करोड़ से ज्यादा बढ़ती है, डिमांड सप्लाई का अंतर बढ़ रहा है वहां खाद्य सुरक्षा प्लान की जरुरत है।"

विजय सरदाना आगे जोड़ते हैं, "इस महंगाई का मैसेज किसान को जाने दीजिए ताकि वो समझ सके कि ऐसी महंगाई धान-गेहूं में नहीं आने वाली। तिलहन, दहलन और सब्जियों के दाम ही बढ़ेंगे तो उसे उन्हीं की खेती करना चाहिए।"

(नीलेश मिश्र स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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