सूखते और सिकुड़ते तालाबों से खेती और सारस पर खतरा

गाँव कनेक्शन | Feb 09, 2018, 15:42 IST
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लखनऊ। भू-माफियाओं की बढ़ती दखलअंदाजी व सरकारी की उदासीनता के कारण जमीन की उर्वरा शक्ति क्षीण होने के साथ ही राज्य पक्षी सारस पर खतरा मंडराने लगा है। उत्पादक जलीय परिस्थितिकीय तंत्र जिन्हें वेटलैंड कहा जाता है, उसका क्षेत्रफल प्रदेश में लगातार सिकुड़ रहा है।

आंकड़ों के अनुसार साल 2001 में हुए सर्वेक्षण के अनुसार प्रदेश में 1242530 हेक्टेयर में वेटलैंड था, जो अब घटकर 328690 हेक्टेयर ही रह गया है। इस बाबत पर्यावरणविद डॉ. योगेन्द्र ने बताया ''जमीनों पर अंधाधुंधा कब्जा होने से वेटलैंड घट रहे हैं।'' सरल भाषा में इन्हें ताल या तालाब भी कहते हैं।

बाराबंकी के वेटलैंड क्षेत्र में पानी के अभाव के कारण सारस पक्षी को हो रही परेशानी। उनका कहना है कि वेटलैंड और कृषि में गहरा संबंध है। वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह साबित हो चुका है कि वेटलैंड न केवल जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है, बल्कि पशु-पक्षियों की विविधता को भी बचाए रखता है। हालांकि वेटलैंड के खत्म होने से जहां पैदावार घट रही है, वहीं सारस के लिए आवास और भोजन की कमी हो गई है।

उत्तर प्रदेश वन विभाग ने वेटलैंड को बचाने के लिए कुछ साल पहले एक जागरूकता अभियान चलाया था, लेकिन उसका बहुत असर नहीं दिखा। वन विभाग की रिपोर्ट के अनुसार वेटलैंड एक विशिष्ट प्रकार का परिस्थितिकीय तंत्र होता है, जो जैव विविधता का महत्वपूर्ण अंग है। वेटलैंड न केवल जल भंडारण कार्य करते हैं, बल्कि बाढ़ के समय अतिरिक्त जल को अपने में समेटकर बाढ़ की विभीषिका को कम करते हैं। वेटलैंड विस्तृत भोज्य जाल का उत्पादन भी करते हैं, इसलिए इन्हें बायोलॉजिकल सुपर मार्केट भी कहा जाता है। आम बोलचाल की भाषा में वेटलैंड को ताल या जलगाह भी कहते हैं।

वेटलैंड के खत्म होने से सारस के प्राकृतिक वास में कमी आई है। इनके घोसले से अण्डे चोरी होना, कुत्ते और कौओं द्वारा अंडों के नष्ट किए जाने से नए सारस का जन्म नहीं हो पा रहा है। सारस का पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान है, इसकी संख्या घटने से पर्यावरण का असर पड़ रहा है। इंटरनेशनल क्रेन फाउंडेशन के गोपी सुन्दरम बताते हैं कि पक्षियों की 400 प्रजातियों में 37 प्रतिशत प्रजातियां वेटलैंड में पाई जाती हैं। इनमें सारस, ब्लेक नेक्ड स्टार्क, एशियन ओपन बिल्ड स्टार्क और पर्पल हेरल्ड मुख्य हैं। वेटलैंड के घटने से इन पक्षियों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। सारस पर मंडरा रहे इस संकट को देखते हुए वन विभाग की तरफ से हाल ही में सारस संरक्षण समिति बनाकर काम किया जा रहा है।

उत्तर प्रदेश वन विभाग के अधिकारी आशुबोध पंत के अनुसार वेटलैंड अतिमहत्वूर्ण इको सिस्टम है। यह प्राचीन काल से ही हमारे समाज के विकास में सहायक है। आज भी वेटलैंड विश्व में बहुत अधिक व्यक्तियों को भोजन खासकर चावल और मछली प्रदान करने में सहायता करता है। उन्होंने बताया कि वेटलैंड को ''किडनीज आफ लैंडस्केप '' यानी भू-दृश्य का गुर्दा कहा जाता है। यह इसका तंत्र जल चक्र के जरिए पानी को साफ करके प्रदूषक तत्वों को निकालकर बाहर करता है। केन्द्र सरकार की सहयोग से प्रदेश के 13 वेटलैंड्स को ठीक करने के लिए योजना बनाई जा रही है।

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