किसान आंदोलन: सुप्रीम कोर्ट का केंद्र, राज्यों और किसान संगठनों को नोटिस, कमेटी बनाकर जल्द सुलझाएं मामला

गाँव कनेक्शन | Dec 16, 2020, 14:21 IST
पिछले तीन हफ्ते से जारी किसान आंदोलन और सरकार व किसान संगठनों के गतिरोध के बीच सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों को मामले को जल्द से जल्द सुलझाने की अपील की है और इस संबंध में एक कमेटी भी बनाने का निर्णय लिया है। कमेटी की संरचना के संबंध में अगली सुनवाई गुरुवार को होगी, तभी स्थिति थोड़ी और स्पष्ट हो सकेगी।
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किसान आंदोलन पर केंद्र और किसान संगठनों में चल रहे रार के बीच सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण आदेश दिया है। कोर्ट ने केंद्र सरकार, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के राज्य सरकारों व सभी किसान संगठनों को मिलाकर एक कमेटी बनाने का आदेश दिया है, ताकि इस मामले का जल्द से जल्द निपटारा किया जा सके। कोर्ट की निगरानी में ही यह कमेटी बनेगी। इस मामले में अगली सुनवाई कल यानी गुरुवार को फिर होगी, जिसमें किसान संगठनों के प्रतिनिधि को भी बुलाया गया है। माना जा रहा है गुरुवार को ही इस मामले के निपटान के लिए एक कमेटी बन सकती है।

लॉ स्टूडेंट ऋषभ शर्मा की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये बातें कहीं। ऋषभ शर्मा ने अपने याचिका में कहा था कि आंदोलन के चलते दिल्ली को तीन राज्यों से जोड़ने वाली हाईवे पूरी तरह से जाम हैं, जिससे यातायात, आवागमन, व्यापार, एम्बुलेंस व मेडिकल इमरजेंसी जैसे आपातकालीन सेवाओं के लिए आम लोगों बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसके अलावा आंदोलन में कोविड-19 सोशल डिस्टेंसिंग के मानकों का भी पालन नहीं किया जा रहा है। इसलिए जरूरी है कि आंदोलनकारी रास्ते से हटकर सरकार द्वारा उपलब्ध कराई गई जगह पर अपना आंदोलन करें।

याचिकाकर्ता के वकील ने सुनवाई के दौरान बार-बार पिछले साल शाहीन बाग में हुए एंटी सीएए-एनआरसी प्रोटेस्ट की भी याद दिलाई, जब कोर्ट ने लोगों को हो रहे दिक्कत के चलते रास्ता साफ कराने का आदेश सरकार को दिया था। हालांकि इस तर्क को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता और उनके वकील को पता होना चाहिए कि शाहीन बाग और इस किसान आंदोलन में भाग ले रहे लोगों की संख्या में बहुत अंतर है। कानून व्यवस्था की आपस में तुलना नहीं की जा सकती।

कोर्ट ने इसके बाद सरकार के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा कि सरकार गतिरोध करने के लिए क्या कदम उठा रही है। इस पर तुषार मेहता ने सरकार द्वारा किसानों के साथ हुई छः दौर की वार्ता का ज़िक्र किया और कहा कि सरकार द्वारा लगातार गतिरोध सुलझाने के लिए लगातार प्रयास किया जा रहा है। इसके बाद मामले की सुनवाई कर रहे मुख्य न्यायाधीश अरविंद बोबडे ने याचिकाकर्ता से पूछा कि क्या इस मामले में किसान संगठनों को भी एक पक्ष बनाया गया है। इस पर याचिकाकर्ता ने ना में जवाब दिया।

तब मुख्य न्यायाधीश ने किसान संगठनों, संबंधित राज्यों और केंद्र सरकार को पक्ष बनाते हुए एक समिति बनाने का निर्णय दिया। हालांकि इस समिति का संगठन कैसा होगा और उसमें कौन कौन होगा, इसका निर्णय अभी तक नहीं हो सका है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में गुरूवार को फिर से सुनवाई करेगा और फिर निर्णय होगा कि कमेटी की संरचना कैसी होगी।

आपको बता दें कि बीते तीन हफ्ते से तीन नए कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग को लेकर हजारों की संख्या में किसान राजधानी दिल्ली से सटे सिंघु, टिकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर बैठे हुए हैं। इसके अलावा दिल्ली-जयपुर हाइवे और दिल्ली-नोएडा लिंक रोड पर भी किसानों ने रास्ता जाम कर दिया है। सरकार और किसानों के बीच अब तक 6 दौर की हुई वार्ता विफल रही है। किसान संगठनों ने सरकार के लिखित 20 सूत्रीय प्रस्तावों को भी खारिज कर दिया है।

किसान संगठनों का कहना है कि उन्हें कानूनों के वापसी के अलावा कुछ भी मंजूर नहीं, जबकि सरकार का कहना है कि वे कानूनों को वापस नहीं लेने जा रही बल्कि किसानों को जिन-जिन बिंदुओं पर आपत्ति है, उसमें सरकार संशोधन करने को तैयार है।

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