ये कदम उठाए जाएं तो बंद हो जाएंगी प्राइवेट स्कूलों की दुकानें, सरकारी की होगी बल्ले-बल्ले

Neetu Singh | Feb 13, 2018, 12:28 IST

लखनऊ। यूनीसेफ एक अन्तराष्ट्रीय संस्था है जो देश के 190 से ज्यादा देशों में काम करती हैं। यूनाईटेड नेशन्स चिल्ड्रेंस फंड संस्था देश में बच्चों की शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य पर विश्व स्वास्थ्य संगठन पर काम कर रही है।

ये संस्था देश के साथ-साथ उत्तर प्रदेश के कई जिलों में सक्रिय रूप से काम कर रही है। लखनऊ में यूनीसेफ़ के शिक्षा विशेषज्ञ ऋत्विक पात्रा से गांव कनेक्शन ने ख़ास बातचीत की। जिसमें उन्होंने 'सरकारी स्कूल में शिक्षा की गुणवत्ता' को कैसे सुधारा जा सकता है पर अपना अनुभव साझा किया।

सवाल- सरकारी विद्यालय में शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए कौन-कौन सी बातें महत्वपूर्ण हैं?

जबाब- असर की रिपोर्ट की अगर हम बात करें तो आंकड़े ये कहते हैं कि बच्चे सीख नहीं रहे हैं जो उन्हें सीखना चाहिए। मुझे लगता है शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर करने के लिए 'विद्यालय प्रबंधन समिति' एक अहम कड़ी है। अगर सरकारी स्कूल में शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर करने की बात करें तो इसमें कुछ बातें मुख्य हैं।

(1) सौ प्रतिशत बच्चों का नामांकन हो और 85 प्रतिशत से ज्यादा हर दिन बच्चे उपस्थिति रहें।

(2) शिक्षक समय से स्कूल आयें और समय से जाएं।

(3) जब तक शिक्षक स्कूल में रहें तब तक सिर्फ बच्चों को पढ़ाएं और ये सुनिश्चित हो कि उस पढ़ाई में बच्चों की सहभागिता रहे।

(4) शिक्षा की गुत्वत्ता बढ़ने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका बच्चों के माता-पिता और विद्यालय प्रबंधन समिति के सदस्यों की हैं।

(5) शिक्षा के अधिकार कानून के तहत सरकारी स्कूल ग्रामीणों की सहभागिता से चले इसके लिए विद्यालय प्रबंधन समिति का गठन किया गया।

(6) शिक्षा की गुणवत्ता की मांग बच्चों के माता-पिता से आये तो शिक्षा का सुधार बहुत जल्दी हो सकता है। ज्ञान से ज्यादा हुनर पर जोर दिया जाए। हुनर से मेरा मतलब जैसे कि पढ़ना, पढ़कर समझना, समझकर लिखना, जोड़ना, गुणा करना, भाग करना ये शिक्षा में गुणवत्ता की कुछ बेसिक चीजें हैं। इन हुनर को सीखने के लिए शिक्षक और बच्चों की भागीदारी बहुत जरूरी है।

यूनीसेफ़ के शिक्षा विशेषज्ञ ऋत्विक पात्रा। सवाल- बच्चों के माता-पिता सरकारी स्कूल में शिक्षा के स्तर को किस नजरिये से देखते हैं?

जबाब- उन्हें लगता है ये सरकारी स्कूल है जिसमें सरकार का पैसा लगता है। इसलिए यहां की शिक्षा को वो गम्भीरता से नहीं देखते हैं, जबकि वो ये भूल जाते हैं कि सरकार का पैसा मतलब हमारा पैसा। गांव के एक अच्छे प्राईवेट स्कूल की अपेक्षा एक सरकारी स्कूल की शिक्षा कई गुनी महंगी है। एक सरकारी स्कूल में एक बच्चे पर लगभग एक महीने में हजार रुपए से ज्यादा पैसा खर्च होता है। अभिभावकों को लगता है कि अगर सरकारी में बच्चा दो तीन दिन जाए या न जाए कोई फर्क नहीं पड़ेगा जबकि उन्हें चाहिए कि वो प्राईवेट स्कूल की तरह ही वो अपने बच्चे पर ध्यान दें, शिक्षक अपने आप शिक्षा का स्तर सुधार लेंगे। विद्यालय प्रबंधन समिति जहां सक्रिय रूप से काम करती है वहां शिक्षा की गुणवत्ता अन्य स्कूलों की अपेक्षा कई गुना बेहतर होती है।

सवाल- यूनीसेफ यूपी में शिक्षा की गुणवत्ता को लेकर क्या-क्या काम कर रहा है?

जबाब- शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर करने में विद्यालय प्रबंधन समिति की महत्वपूर्ण भूमिका है। लगभग दो साल पहले यूपी के छह जिले जिसमें बलरामपुर-श्रावस्ती, मिर्जापुर-सोनभद्र, बंदायू-लखनऊ में 'विद्यालय प्रबंधन समिति' को मजबूत करने का प्रयास किया। हर न्याय पंचायत से दो-दो स्कूल एक प्राथमिक एक पूर्व माध्यमिक स्कूल शामिल थे। कुल 1400 स्कूल में दो साल विद्यालय प्रबंधन समिति ने सक्रिय भूमिका निभाई थी जिसका असर ये हुआ कि वहां कि उपस्थिति 35 प्रतिशत ज्यादा हुई। दो वर्षों में विद्यालय प्रबंधन समिति को स्कूल और ग्राम पंचायत से सीधे जोड़ा गया। 80 से 90 प्रतिशत शिक्षक समय से स्कूल आने लगे। जिन विद्यालयों में बच्चों की उपस्थिति ज्यादा रहती है वहां के शिक्षक जिम्मेदारी से पढ़ाते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है शिक्षा की मांग बढ़ रही है।

ये है एक सरकारी स्कूल। सवाल- सरकारी स्कूल की शिक्षा बेहतर हो इसकी सबसे मजबूत कड़ी क्या है?

जबाब- हर स्कूल में अगर विद्यालय प्रबंधन समिति के 15 सदस्य सक्रिय रूप से हर महीने की मासिक मीटिंग करते हैं और अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं, तो ये शिक्षा की गुणवत्ता को मजबूत करने की एक अहम कड़ी है। इससे न सिर्फ उपस्थिति बढ़ेगी बल्कि प्राइवेट स्कूल से अच्छी शिक्षा होगी। जब तक शिक्षा की मांग बच्चों के अभिभावक नहीं करेंगे तब तक सरकारी स्कूल की शिक्षा नहीं सुधर सकती।

अभी हर जिले में सरकारी स्कूल की शिक्षा को मानीटर करने के लिए दो अधिकारी नियुक्त किये गये हैं। जिसमें एक बेसिक शिक्षा अधिकारी और दूसरा खण्ड शिक्षा अधिकारी है। बेसिक शिक्षा अधिकारी के पास एक जिले में 2000 से ज्यादा स्कूल हैं जबकि खण्ड शिक्षा अधिकारी के पास 200 से ज्यादा स्कूल हैं। हर स्कूल को ये दो अधिकारी मानीटर कर पाएं ये इनके लिए सम्भव नहीं है। इसलिए 'विद्यालय प्रबन्धन समिति' एक ऐसी कड़ी है जो बिना किसी ताम झाम के सरकारी स्कूल को प्राइवेट स्कूल का रूप दे सकती है।

सवाल- यूनीसेफ की वर्ष 2018 में क्या कार्य योजना है?

जबाब- यूनीसेफ 2018 से 5 साल तक यूपी के 20 जिलें में काम करेंगे। जिसमें हर ग्राम पंचायत से दो स्कूल लिए जायेंगे। इन जिलों में विद्यालय प्रबंधन समिति को मजबूत किया जाएगा। इसे सीधे स्कूल और पंचायत से जोड़ा जाएगा। जिसमें हमारा मुख्य फोकस रहेगा...

1-कोई भी बच्चा आउट ऑफ़ स्कूल न रहे।

2-स्कूल में बच्चों का ठहराव बढ़े यानि 85 प्रतिशत से ज्यादा बच्चे हर दिन उपस्थिति रहें।

3-बाल मजदूर, बाल-विवाह समाप्त हो, हर बच्चे को शिक्षा मिले।

4-पांचवीं के बाद बच्चा छठी कक्षा में प्रवेश ले और आठवीं का बच्चा नौवीं कक्षा में प्रवेश ले इस प्रक्रिया पर खास ध्यान रहेगा।

5-यूपी के देवीपाटन डिवीजन के चार जिले बलरामपुर-श्रावस्ती, गोंडा-बहराइच के 10 हजार 131 स्कूल शामिल किये गये हैं। जिसमें बच्चों को रोचक तरीके से शिक्षित किया जाएगा। स्वच्छ-विद्यालय, सुरक्षित-विद्यालय पर ध्यान दिया जाएगा। हर प्राथमिक विद्यालय की आगनबाडी को आदर्श बनाने का काम किया जाएगा।

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