शिक्षक भर्ती पर राजस्थान में क्यों हो रही है हिंसा?

Madhav Sharma | Sep 29, 2020, 14:06 IST
राजस्थान के डुंगरपुर-उदयपुर हाईवे पर पिछले 18 दिनों से शिक्षक भर्ती, 2018 के हजारों अभ्यर्थी धरना दे रहे हैं। बीते 24 सितंबर को ये अभ्यर्थी हिंसक हो गए और कई वाहनों, पेट्रोल पंप और ढाबों पर आगजनी व हमला कर हाईवे को जाम कर दिया। वहीं इस मामले में राजनीति भी खूब हो रही है।
Rajasthan
सितंबर महीने का आखिरी हफ्ता शांत राजस्थान की फिज़ाओं के लिए अच्छा नहीं रहा। राजस्थान के उदयपुर और डूंगरपुर जिलों में शिक्षक भर्ती, 2018 के एक मामले में अनारक्षित पदों को आरक्षित वर्ग से भरने की मांग को लेकर सड़कों पर उपद्रव फैल गया। उपद्रवियों को जो मिला उन्होंने उसे बर्बाद किया। पेट्रोल पंप तक लूटे गए और आम लोगों के मन में खौफ पैदा हुआ। राजस्थान के दक्षिणी जिले डूंगरपुर से शुरू हुए इस हिंसक आंदोलन ने उदयपुर के खेरवाड़ा और ऋषभदेव क्षेत्र तक को अपनी चपेट में ले लिया।

इसके साथ ही आंदोलन की वजह से बांसवाड़ा और प्रतापगढ़ तक में खौफ का माहौल है। प्रशासन अलर्ट पर है। पुलिसिया कार्रवाई में दो लोगों की मौत हुई है और 6 हजार से ज्यादा आंदोलनकारियों पर 20 से ज्यादा केस दर्ज हुए हैं। उदयपुर शहर को छोड़कर डूंगरपुर, बांसवाड़ा और बाकी उदयपुर जिले में इंटरनेट बंद है। रैपिड एक्शन फोर्स की तैनाती भी की गई है। पुलिस, जनप्रतिनिधि और आम नागरिकों के दवाब के बाद शांति बहाल हुई है, लेकिन तनाव बरकरार है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सभी से शांति की अपील की है और मांगों पर उचित कार्यवाही का भरोसा दिया है।

348909-whatsapp-image-2020-09-29-at-72846-pm
348909-whatsapp-image-2020-09-29-at-72846-pm

क्या है पूरा मामला और क्यों फैली हिंसा?

2018 में टीएसपी (ट्राइबल सब प्लान- आदिवासी बहुल्य क्षेत्र) के लिए तृतीय श्रेणी शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया जारी की गई। कुल 5431 पदों पर भर्ती निकाली गई थी। आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण एसटी को 45%, एससी को 5% और बाकी सीट सामान्य (अनारक्षित) वर्ग के लिए रखा गया। अनारक्षित श्रेणी के 2721 पद थे। लिखित परीक्षा में 60% से अधिक अंक लाने वाले सामान्य वर्ग के 965 अभ्यर्थियों का इस भर्ती में चयन हुआ। साथ ही 60% से ज्यादा अंक लाने वाले एसटी के 589 युवा भी सामान्य वर्ग से चयनित हुए। कुल सामान्य या अनारक्षित वर्ग के 1554 पद भरे गए और 1167 पद खाली रह गए। अब एसटी वर्ग के युवा इन अनारक्षित पदों को एसटी अभ्यर्थियों से भरने की मांग कर रहे हैं।

अपनी मांग को लेकर डूंगरपुर-उदयपुर जिले की सीमा पर कांकरी डूंगरी गांव में बीते 18 दिनों से एसटी वर्ग के युवा धरना-प्रदर्शन कर रहे थे। बातचीत के बाद बनी कमेटी की 24 सिंतबर को मीटिंग प्रस्तावित थी, लेकिन यह रद्द हो गई। मीटिंग रद्द होने के बाद आंदोलनकारी हिंसक हो गए और हाइवे पर जमा होकर हंगामा शुरू कर दिया।

24 सिंतबर को डूंगरपुर के कांकरी डूंगरी में आंदोलनकारियों ने पुलिस पर हमला कर दिया। एसपी की कार सहित डीएसपी, थानेदार और 11 पुलिसकर्मी घायल हुए। दूसरे दिन 25 सितंबर को उपद्रवियों ने हाइवे का 10 किमी से ज्यादा एरिया अपने कब्जे में ले लिया और पेट्रोल पंप, होटल, मकान-दुकान में लूट की और 25 से ज्यादा वाहन जला दिए गए।

तीसरे दिन, आंदोलन डूंगरपुर से उदयपुर के खेरवाड़ा तक पहुंच गया। 26 सिंतबर को आंदोलन कर रहे लोगों ने पूरे खेरवाड़ा कस्बे को घेर लिया। उदयपुर-अहमदाबाद हाइवे पर 20 किमी तक पत्थर बिछा दिए। पुलिस फायरिंग में 19 साल के एक युवक की मौत हो गई।

348910-whatsapp-image-2020-09-29-at-72844-pm
348910-whatsapp-image-2020-09-29-at-72844-pm

सभी दलों का आंदोलन को समर्थन, हिंसा पर किसकी जवाबदेही?

शिक्षक भर्ती आंदोलन को कांग्रेस, बीजेपी और भारतीय ट्राइबल पार्टी (बीटीपी) का समर्थन मिला था। जनजाति वर्ग में सीधे पैठ होने के कारण बीटीपी का धरने को सीधा समर्थन हासिल था। 26 सितंबर को सरकार और आंदोलनकारियों के प्रतिनिधि मंडल में हिंसा के लिए बीटीपी ने सरकार को जिम्मेदार ठहराया।

वहीं, विपक्षी दल भाजपा ने दोनों पार्टियों से हिंसा की जवाबदेही मांगी है। भाजपा नेता गुलाबचंद कटारिया ने सत्तारूढ़ पार्टी और बीटीपी के मिलीभगत से हिंसा भड़कने का आरोप लगाया है।

चौरासी विधानसभा से बीटीपी विधायक राजकुमार रोत से गांव कनेक्शन ने बात की। उन्होंने बताया, "24 सिंतबर को होने वाली मीटिंग रद्द होने से धरने में आए अभ्यर्थी नाराज हो गए। वे सड़कों पर उतर आए और पुलिस के साथ हिंसक झड़प हुई। रोत पुलिस पर ग्रामीणों और महिलाओं के साथ मारपीट का आरोप लगाते हैं। इससे ग्रामीण नाराज हुए और भीड़ जमा हो गई। चूंकि धरने का कोई नेता नहीं था, इसलिए अराजकता फैल गई।"

बीटीपी के हिंसा में शामिल होने के आरोप को रोत सिरे से नकारते हैं। कहते हैं, "हिंसा से हमेशा नुकसान होता है, फायदा नहीं। हिंसा का कारण सरकार और स्थानीय नेताओं के झूठे आश्वासन हैं।"

गांव कनेक्शन ने इस संबंध में प्रदेश के जनजाति विकास मंत्री अर्जुन सिंह बामनिया से भी बात की। उन्होंने बताया, "स्थिति काबू में है और फिलहाल शांति है। स्थानीय लोगों और आंदोलन के प्रतिनिधि मंडल से बात हुई है। अभ्यर्थियों की मांग पर सुप्रीम कोर्ट में जल्द ही एसएलपी दाखिल की जाएगी। हिंसा में बाहरी लोगों के शामिल होने की जांच हो रही है।"

348911-whatsapp-image-2020-09-29-at-72910-pm
348911-whatsapp-image-2020-09-29-at-72910-pm

कांग्रेस सरकार अभ्यर्थियों के गुस्से को क्यों नहीं भांप सकी?

2018 से ही इस क्षेत्र के अभ्यर्थी सामान्य वर्ग की सीटों को एसटी से भरने की मांग कर रहे हैं। इसके लिए धरने भी दिए गए। अभ्यर्थियों का आरोप है कि स्थानीय कांग्रेसी नेता सिर्फ आश्वासन दे रहे थे और सही बात जयपुर तक नहीं पहुंचा रहे थे। इसके विरोध में ही डूंगरपुर के कांकरी डूंगरी में धरना शुरू किया था। धरने में सरकार की ओर से बातचीत के बाद एक कमेटी बनी, जिसकी 3 माह में रिपोर्ट आनी थी, लेकिन 9 महीने बाद भी रिपोर्ट नहीं दी गई है। इसके अलावा पुलिस का इंटेलिजेंस सिस्टम भी फेल हुआ कि उन्हें इतनी बड़ी हिंसा का अंदाजा भी नहीं हुआ।

कुल मिलाकर 24 से 26 सिंतबर तक डूंगरपुर और उदयपुर जिले में जिस तरह की हिंसा हुई है, वह राजस्थान की आबो-हवा के लिए सुखद नहीं है। इस हिंसा का समाज के अन्य वर्ग और आदिवासी समाज पर गहरा असर होगा।

(लेखक राजस्थान से स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

ये भी पढ़ें- तानों के बावजूद आदिवासी महिलाओं ने किया मनरेगा में काम, पहली बार मिली ज्यादा मजदूरी

राजस्थानः ग्रामीण अर्थव्यवस्था की धुरी पशु पालन कोरोना की वजह से तबाह





Tags:
  • Rajasthan
  • protest
  • story

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.