नए श्रम कानून से क्या मिल पाएंगे मजदूरों के अधिकार?

Daya Sagar | Aug 07, 2019, 10:59 IST
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"असंगठित क्षेत्र के सभी मजदूर चाहे वो खेतिहर हो या ठेला चलाने वाले। घरों में सफाई या पुताई करने वाले कामगार हो या सिर पर बोझा उठाने वाले। ढाबों में काम करने वाले हो या घरों में काम करने वाले। नए श्रम कानून का अधिकार सब पर लागू होगा।"

श्रम और रोजगार मामलों के राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) संतोष गंगवार ने बीते 30जुलाई को 'वेजेज कोड बिल' पेश करते वक्त ये बातें लोक सभा में कहीं। संसद से बिल पास होने के बाद इसे 'न्यूनतम मजदूरी कानून' कहा जा रहा है।

संसद में वेजेज कोड बिल पेश करते हुए संतोष गंगवार ने दावा किया कि बिल के पास हो जाने पर देश में 50 करोड़ संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को न्यूनतम मजूदरी का अधिकार मिल सकेगा। इसके अलावा वेतन के भुगतान में देरी की शिकायतें और मजदूरी में लिंग के आधार पर वेतन में भेद-भाव की शिकायतें भी यह नया कानून दूर करेगा। सरकार ने श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी 178 रुपए प्रति दिन और 4628 रूपए प्रति माह तय किया है।

सरकार ने जो न्यूनतम मजदूरी तय की है, वह तय मानकों से काफी कम है। इसके अलावा इन कानूनों में कई और कमियां, जटिलताएं हैं, जो मजदूरों के अधिकार, सुरक्षा और स्थायित्व जैसे लक्ष्यों को प्राप्त करने में काफी मुश्किलें पैदा करेंगी।





क्या है इस कानून में?

सरकार का कहना है कि उन्होंने जटिल श्रम कानूनों को सरल बनाने के लिए वेजेज कोड बिल लाया है। वेजेज कोड बिल में चार पुराने श्रम कानूनों- पेमेंट ऑफ वेजेस एक्ट (1936), मिनिमम वेजेस एक्ट (1948), पेमेंट ऑफ बोनस एक्ट (1965) और समान पारिश्रमिक एक्ट (1976) को शामिल किया गया है।

श्रम मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, देश के 33 फीसदी मजदूर ऐसे हैं जिन्हें न्यूनतम मजदूरी कानून का फायदा नहीं मिलता और बेहद कम मजदूरी मिलती है। इसलिए बिल में प्रावधान किया गया है कि श्रमिकों को उचित समय पर न्यूनतम मजदूरी का लाभ मिल सके। बिल में कहा गया है कि मासिक वेतन वालों को अगले महीने की सात तारीख तक, साप्ताहिक आधार पर काम करने वाले को सप्ताह के अंतिम दिन और दिहाड़ी करने वालों को उसी दिन वेतन मिले।





सरकार ने वेजेज कोड बिल के साथ ही संसद में ऑक्यूपेशनल, सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस कोड बिल 2019 (ओएसएच कोड बिल) भी पेश किया। इस बिल में मजदूरों के बेहतर काम करने की स्थिति और उनके स्वास्थ्य संबंधी महत्वपूर्ण अधिकारों को शामिल करने की बात की गई।

ये दोनों बिल लोकसभा और राज्यसभा में पास होकर कानून बनने को तैयार हैं। इसके अलावा सरकार ने इससे संबंधित दो और बिल पास करने की तैयारी कर रखी है, जिसमें सोशल सिक्योरिटी बिल और कोड ऑन इंडस्ट्रियल रिलेशन शामिल है। सरकार का कहना है कि ये चार कोड पुराने जटिल 44 श्रम कानूनों की जगह लेंगे और मजदूरों के अधिकारों की रक्षा करेंगे।

मजदूर संगठन क्यों कर रहे हैं विरोध?

हालांकि कई विपक्षी दलों ने संसद में इस बिल को मजदूर विरोधी बताते हुए इसे श्रमिक संगठनों से बातचीत करने के बाद पुनः संसद में लाने की बात की। वहीं संसद से बाहर भी कई श्रमिक और मजदूर संगठन भी इन कोड्स का विरोध कर रहे हैं। जहां सरकार इन कोड्स को श्रमिकों के लिए एक बड़ा 'हासिल' बता रही है, वहीं इन मजदूर संगठनों का कहना है कि ये बिल श्रमिकों के हित में नहीं है।

विभिन्न मजदूर संगठनों और ट्रेड यूनियन का कहना है कि सरकार झूठे दावे कर रही हैं। इस बिल के विरोध में दो अगस्त को कई मजदूर संगठनों, ट्रेड यूनियनों और श्रमिक कार्यकर्ताओं ने दिल्ली के जंतर-मंतर पर और अलग-अलग राज्यों में धरना दिया। इसमें ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक-AITUC), भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र (सीटू-CITU), न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव और अखिल भारतीय मजदूर महासभा जैसे संगठन शामिल थे। आरएसएस के सहयोगी श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संगठन (बीएमएस) ने भी इन श्रम कानूनों के कुछ प्रावधानों का विरोध और कुछ का स्वागत किया है।

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'न्यूनतम मजदूरी बहुत कम'

मजूदर संगठनों के विरोध का सबसे प्रमुख कारण तय न्यूनतम वेतन है। इस बिल के मुताबिक किसी भी मजदूर के लिए न्यूनतम मजदूरी 178 रुपए प्रति दिन और 4628 रूपए प्रति माह तय किया गया है। जबकि मजदूर संगठनों की मांग है कि न्यूनतम मजदूरी 15 वें भारतीय श्रम सम्मेलन (आईएलसी-1984) के तय मानकों के अनुसार निश्चित हो।

ऑल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) की जनरल सेकेट्री अमरजीत कौर ने गांव कनेक्शन से फोन पर बताया कि 15 वें भारतीय श्रम सम्मेलन (आईएलसी-1984) में न्यूनतम मजदूरी की एक मानक तय की गई थी। जिसके अनुसार एक मजदूर की मजदूरी उसके परिवार में शामिल तीन इकाइयों के भोजन के बराबर होना चाहिए।

अमरजीत कौर कहती हैं, "देश के सभी श्रमिक-मजदूर संगठनों ने 15 वें भारतीय श्रम सम्मेलन में इस मानक को सर्वसम्मति से अपनाया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट और सरकार ने भी न्यूनतम मजदूरी के इस मानक पर अपनी सहमति दी थी। मोदी सरकार ने न्यूनतम मजदूरी तय करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था, जिसने 375 रुपये प्रति दिन और 18000 रूपये प्रति माह न्यूनतम वेतन की सिफारिश की थी।"

"लेकिन सरकार अब अपने ही बात से मुकर रही है। सरकार ने जो न्यूनतम मजदूरी का नया राष्ट्रीय स्तर तय किया है वह महज 178 रूपए प्रतिदिन और 4628 रूपये मासिक है, जो कि तय मानक मजदूरी के 25प्रतिशत से भी कम है। सरकार ने मजदूरों के साथ धोखा किया है।" अमरजीत कौर आगे बताती हैं।

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'मजदूर संगठनों को विश्वास में नहीं लिया गया'

सरकार का कहना है कि उन्होंने इस बिल को पेश करने से पहले सभी मजदूर संगठनों और इसमें शामिल सभी पक्षों से बात की थी लेकिन अमरजीत कौर इससे इनकार करती हैं। वह कहती हैं, "शुरूआत में मजदूर संगठनों की बात-चीत सरकार से हुई थी लेकिन उसमें हमने जो सुझाव दिए थे उसे नहीं माना गया। इसके अलावा हमने श्रम मंत्रालय के वेबसाइट पर जाकर कई सुझाव दिए थे, उस पर भी नहीं विचार किया गया।"

"बाद में बिना किसी वार्ता और मजदूर संगठनों को विश्वास में लिए बिना सरकार ने बिल को लोकसभा में पेश किया। इस तरह सरकार ने मजदूरों के साथ झूठ बोला, धोखा दिया और तानाशाही रवैया अपनाकर एक मजदूर विरोधी कानून बनाया।", अमरजीत कौर आरोप लगाती हैं। एटक की ही तरह भारतीय ट्रेड यूनियन केंद्र (सीटू-CITU) और न्यू ट्रेड यूनियन इनिशिएटिव भी सरकार पर वार्ता ना करने का आरोप लगा रहे हैं।

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असंगठित क्षेत्र के मजदूरों को क्या मिल सकेगा लाभ?

आर्थिक सर्वेक्षण 2019 के अनुसार देश में असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की संख्या 93 प्रतिशत है। श्रम मंत्रालय की 2015 की रिपोर्ट में कहा गया था कि कृषि और गैर-कृषि क्षेत्र में काम करने वाले 82 फीसदी मजदूरों के पास नौकरी का कोई लिखित कांट्रैक्ट नहीं होता। 77.3 फीसदी को सही समय पर वेतन और छुट्टी नहीं मिलती जबकि 69 फीसदी को कोई सामाजिक सुरक्षा का लाभ नहीं मिलता। सरकार का कहना है कि ये नए श्रम कानून इन्हीं असंगठित मजदूरों को ध्यान में रखकर बनाए गए हैं।

2018-19 आर्थिक सर्वे के अनुसार देश के एक तिहाई मजदूर न्यूनतम मजदूरी कानून के अन्तर्गत नहीं आते है। इसमें अधिकतर असंगठित क्षेत्र के मजदूर शामिल हैं। श्रम मंत्री संतोष गंगवार ने सदन में बिल पेश करते हुए कहा कि इससे बोझा ढोने वाले, ढाबों पर काम करने वाले, रिक्शा चलाने वालों सभी मजदूरों को फायदा होगा।

दिल्ली विश्वविधालय के स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में श्रमिक मामलों पर शोध कर रही आकृति भाटिया कहती हैं कि सरकार का यह दावा भ्रामक है। वह कहती हैं कि इस कानून में 94 प्रतिशत से अधिक मजदूर शामिल नहीं होंगे क्योंकि अधिकतर नियम ऐसे हैं, जो कम से कम 10 मजदूरों वाले नियोक्ताओं (इम्पॉलयर्स) पर लागू होते हैं।

आकृति कहती हैं, "अधिकतर नियोक्ता 10 से कम मसलन आठ या नौ मजदूर ही अपने कंपनी में रखेंगे, ताकि उनका काम भी चल जाए और ये नए कानून उन पर लागू नहीं हो। इसके अलावा इस कोड में न्यूनतम मजदूरी तय करने का अधिकार भी सरकार को दिया गया है, जो कि उचित नहीं है। सरकार अगर पूजीपति लोगों के समर्थन वाली हो तो वह न्यूनतम मजदूरी भी अपने हिसाब से तय करेगी।"

हालांकि आरएसएस के सहयोगी श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संगठन (बीएमएस) ने वेजेज कोड बिल के अधिकतर प्रावधानों को समर्थन दिया। बीएमएस ने जारी अपने बयान में कहा, "इस कानून से पहले सिर्फ सात प्रतिशत कर्मचारी ही न्यूनतम मजदूरी के प्रावधानों के दायरे में आते थे। लेकिन इस कानून के बाद असंगठित क्षेत्र के लगभग 40 करोड़ से ज्यादा मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी समेत अन्य सुविधाओं का लाभ मिल सकेगा।"

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'बाल मजदूरी, बंधुआ मजदूरी और ठेका प्रथा को बढ़ावा देने वाला कानून'

आकृति भाटिया कहती हैं कि इस कोड में कुछ ऐसे अस्पष्ट और भ्रामक नियम हैं जो कि मानवाधिकार विरोधी, बाल मजदूरी, बंधुआ मजदूरी और ठेका प्रथा को बढ़ावा देने वाली है। वह बिल के चैप्टर तीन 'Payment of Wages' के 19वें नियम के 5वें उपनियम का उदाहरण देती हैं जिसमें लिखा है, '15 साल से कम के मजदूरों पर नियोक्ता कोई भी जुर्माना नहीं लगा सकते हैं।'

आकृति सवाल करती हैं कि जब देश में बाल श्रम अपराध है तो सरकार इस महत्वपूर्ण बिल में ऐसे नियम कैसे डाल सकती है? इसके अलावा वह कहती हैं, "इस कोड से बंधुआ मजदूरी और ठेका प्रथा को भी बढ़ावा मिलेगा क्योंकि इसमें ऐसे नियम और उपनियम हैं जो कहती हैं कि अगर कोई मजदूर किसी नियोक्ता से पैसा उधार लिया है, तो नियोक्ता उन पैसों के बदले में श्रमिक से काम करा सकता है। यह एक तरह से बंधुआ मजदूरी या ठेका प्रथा को बढ़ावा देना ही है।"

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'अप्रेन्टिस को वेतन नहीं, मनरेगा शामिल नहीं और सिर्फ नियोक्ताओं को फायदा'

आकृति इन श्रम कानूनों के कमियों को गिनाते हुए कहती हैं कि इन कानूनों में अप्रेंटिस को बिना वेतन के काम कराने का रास्ता साफ होगा। इसके अलावा मनरेगा भी नए श्रम कानूनों के अन्तर्गत शामिल नहीं होता। इससे लाखों मजदूर इस कानून से बाहर हो जाएंगे। वहीं नियोक्ताओं द्वारा श्रम कानूनों के उल्लंघन पर भी अब कड़ी सजा की बजाय सिर्फ जुर्माने का प्रावधान रखा गया है, जो कि श्रमिक विरोधी है।

आकृति कहती हैं कि सरकार कोड ऑन इंडस्ट्रियल रिलेशन कानून भी लाने जा रही है। कोड ऑन वेजेज और कोड ऑन इंडस्ट्रियल रिलेशन बिल के कई नियमों और उपनियमों से श्रमिकों के हड़ताल करने का अधिकार भी सीमित होगा। आरएसएस से संबंधित भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) ने भी कोड ऑन इंडस्ट्रियल रिलेशन बिल का विरोध किया है। एक बयान में बीएमएस के अध्यक्ष साजी नारायणण ने कहा कि बीएमएस ऐसे किसी भी बिल और कानून का समर्थन नहीं करता जो श्रमिकों के अधिकारों को सीमित करे।

आकृति कहती हैं कि सरकार जो सोशल सिक्योरिटी कोड बिल लाने वाली है उससे श्रमिकों को कुछ लाभ हो सकता है। लेकिन यह लाभ उन्हीं राज्यों के श्रमिकों को मिल सकेगा जहां पर न्यूनतम मजदूरी की दरें निर्धारित सरकारी मजदूरी से काफी कम है। "दिल्ली जैसे राज्यों में जहां पर न्यूनतम मजदूरी की दर 500 रूपये से ऊपर है, वहां पर इन श्रम कानूनों का कोई लाभ नहीं होगा।" आकृति अपनी बातों को खत्म करती हैं।

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