हेलमेट और किताब बांटकर जीवन और शिक्षा के महत्व को बता रहा युवा

Ankit Kumar Singh | May 13, 2019, 09:01 IST
#Swayam Story
कैमूर (बिहार)। सड़कों और चौराहों पर एक युवा कभी हेलमेट बांटते तो कभी जरूरतमंद बच्चों को किताबें बांटते दिखता है। आज इन्हें 'हेलमेट मैन' के नाम से जाना जाता है।1

बिहार के कैमूर जिला मुख्यालय 40 किमी. दूर मोहनिया बक्सर स्टेट हाईवे के रास्ते रामगढ़ थाना से 10 किलोमीटर दूर बसा बगाढ़ी गांव के राघवेन्द्र सिंह इस चिलचिलाती धूप में भी सड़क पर दिख जाते हैं।

राघवेंद्र बताते हैं, "मेरे हेलमेट मैन बनने की कहानी ग्रेटर नोएडा से शुरू होती है। मैं वहां लॉ की पढ़ाई कर रहा था। मेरा रूम पार्टनर कृष्ण कुमार इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था। हम दोनों गहरे दोस्त थे। जब वाह फाइनल ईयर में था, रोड एक्सीडेंट में उसकी डेथ हो गयी। मौत की वजह थी हेलमेट नहीं पहनना। वह मां-बाप का इकलौता बेटा था। माता-पिता ने बड़ी पूजा पाठ और मन्नतों के बाद 20 साल के बाद घर के आंगन में बच्चे की किलकारी सुनाई दिया। मगर हेल्मेट नहीं पहने से उस मां बाप को बुढ़ापे में छोड़ कर चला गया जो उनकी बुढ़ापे कि लाठी बनने वाला था। इस घटना ने मुझे अन्दर से झकझोर कर रख दिया। तभी से मैंने सोच लिया की हेलमेट की आवश्यकता-अनिवार्यता पर अभियान चलाना शुरू किया। मेरे दोस्त सड़क दुर्घटना से मौत 2014 में हुई थी। और 2015 से लोगों को हेलमेट देकर जागरूक करने का अभियान शुरू किया।"

RDESController-530
RDESController-530


वो आगे कहते हैं, "शुरूआती समयों में मै कोचिंग कराकर जो पैसा मिलता था उससे हेलमेट खरीदता था और लोगों को देता था। मगर 2016 के बाद मै पूरी तरह से इस काम में जुड़ गया। जिसके बाद मैं माइक्रो सॉफ्ट कम्पनी में नौकरी करता था। उसे भी छोड़ दिया।"

बुक बैंक की शुरूआत के बारे में बताते हैं, "हमने बुक बैंक के बारे में पूछा तो वह बताते हैं कि जब मैं अपने दोस्त के घर गया था तो उसके पुरानी किताबें थी जिसको मैं अपने साथ लेकर चलाया। और उन किताबों को एक गरीब बच्चे को दे दिया। किताबें इंटर क्लास की थी। और कुछ महीनों बाद मुझे उसकी मां का फोन आया कि आपकी दी हुई किताबों से मेरा बेटा जिला टॉप किया है। उसके बाद मुझे लगा कि क्यों ना जरूरतमंद बच्चों को किताबें दिया जाए जिससे उनकी जिंदगी में शिक्षा का ज्योति जल सके। यहीं से मेरे मन में बुक बैंक की परिकल्पना ने जन्म लिया।"

RDESController-531
RDESController-531


उसके बाद राघवेंद्र ने हेलमेट के बदले उनसे पुरानी किताब लेने का काम शुरू किया और साथ ही मैंने गांव और घर- घर जाकर बच्चों को किताबें बांटने का काम शुरू किया। जिसको करने के बाद मन में एक अलग ही सुकून सा मिलता है। राघवेन्द्र अब तक भारत के 9 राज्यों में कार्य कर रहे हैं। जिसमें बिहार, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, दिल्ली, हरियाणा, झारखंड, पश्चिम बंगाल और अन्य राज्य हैं। पिछले 5 सालों में 20000 हेलमेट बांट चुके है। और डेढ़ लाख बच्चों तक इस अभियान से किताबें बांट चुके है।

इन्होंने ने दिल्ली में अपने लिए मकान खरीदा था, उसे भी बेच कर मैंने अपने मिशन पर खर्च कर दिया। आगे कहते है की मैंने नेक काम में ये पैसे खर्च किये। मेरे जीवन में इसका कोई प्रतिकूल प्रभाव भी नहीं पड़ा है। मेरी वजह से आज कई घरों में खुशियों की बरसात हो रही है।

राघवेंद्र के काम से अब सभी खुश रहते हैं, वो कहते हैं, "जब हम उनके घर पर थे तो वहां किताब लेने आए बच्चे कहते है कि मुझे सर के जैसा बनना है। वहीं एक बच्ची कहती है कि अंग्रेज़ी पढ़ना जरूरी है मगर सरकारी स्कूल में नहीं क्योंकि मास्टर पढ़ाते नहीं है बल्कि सोते हैं।

आज ये शहर और गांव के चौराहों पर ER11 बैंक बॉक्स लगाना चालू किए है। बॉक्स की एक खासियत है। आपके पास कोई भी पुरानी किताब है, उसको बॉक्स में डाल दीजिए और जब यह बॉक्स भर जाता है तो किताबें निकाल कर जरूरत मंद छात्रों को नि:शुल्क दे दिया जाता है। अंत में वे कहते है की अपनी पुरानी किताबें बुक बैंक को दें ताकि ऐसे बच्चों को मदद मिले। जो किताब खरीदने में असमर्थ हैं।


Tags:
  • Swayam Story
  • Bihar

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.