'फसल तो बर्बाद करते ही हैं घर के अंदर से जानवर भी उठा ले जाते हैं'
Jigyasa Mishra | Apr 09, 2019, 14:27 IST
पन्ना टाईगर रिज़र्व के से लगभग 20 किलोमीटर दूर, कैमासन गाँव में जंगली जानवरों का खतरा लगातार बना रहता है। पालतू पशु, खेत में जाती महिलाएं और छोटे बच्चों पर हमेशा ही ये खतरा मंडराता रहता है।
भाग- 9
पन्ना टाईगर रिज़र्व के से लगभग 20 किलोमीटर दूर, कैमासन गाँव में जंगली जानवरों का खतरा लगातार बना रहता है। पालतू पशु, खेत में जाती महिलाएं और छोटे बच्चों पर हमेशा ही ये खतरा मंडराता रहता है।
कैमासन (मध्य प्रदेश)। अपनी सड़क यात्रा में हम चित्रकूट, उत्तर प्रदेश से बढ़ते हुए छोटा लोखरिहा, बड़ा लोखरिहा, पेंड्रा मझगवां, सतना होते हुए पन्ना शहर आ चुके थे। पांच दिन से लगातार स्कूटर पर, गांव-गांव होते हुए हम पन्ना के ही कैमासन गांव पहुंचे थे।
कैमासन गांव पन्ना टाईगर रिज़र्व से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर है और यही वज़ह है कि पूरी तरह जंगल से घिरा हुआ है।
गाँव पहुंच कर हम स्कूटर किनारे की ओर लगा ही रहे थे कि तेज़ बारिश शुरू हो गयी। हमने तुरंत अपने बैग और ट्राइपॉड उठाये और बचने के लिए कोई जगह ढूंढने लगे कि एक महिला ने आवाज़ दी, "इन्घे आ जाओ, अंदर!"। भागते हुए पहुंचे उस छोटे से मिट्टी के घर में। एक खाट पर मैं प्रज्ञा और वो महिला बैठे थे। खाट की रस्सी मिट्टी के ज़मीन से कुछ 5-6 इंच ऊपर रही होगी। सुशीला ने ही हमें आवाज़ देकर अंदर बुलाया था।
बारिश रुकी तो मैंने खाट के पास में ही बंधे बछड़े के बारे में सुशीला से पूछा, "ये आपका है?" और सुशीला के जवाब का इंतज़ार करने लगी। कुछ देर बाद उसने जवाब दिया, "हाँ, है तो लेकिन क्या पता कब तक रहे...।" सुशीला ने फ़िर बताया, "अरे हमाए यहाँ ये सब जानवरन के बच्चे नहीं बच पाते। गाँव भर में गाय खूब दिखेंगी लेकिन बछड़ा किसी का न बचा। जंगल जानवर आके मार जाते हैं।"
पास के ही घर में अपने पालतू कुत्ते को लाड़ करती एक बूढी महिला नज़र आईं। पास जाकर पता चला उसे कीचड़ में जाकर खेलने की वजह से डांट पड़ रही थी। उस महिला का नाम अनीता था और उसके कुत्ते का, कब्बू। अनीता ने बताया, "
अनीता अपने दो नातियों के साथ रहती हैं और खेती करवा कर घर चलाती हैं। "तनिक सी खेती है, वही कर लाई। मजूरी लगवा के करवाई लैत हैं लेकिन कितनों करें...एक जाने उते परखते, एक जना इते। जानवर, सूअर आते हैं, सब खा जाते हैं, जंगल हैं न इते सब जगह।"
मैंने जब पूछा आपका कुत्ता भी तो है वो रखवाली नहीं करता खेत की? तो अनीता ने बताया कि उसको भेजना मतलब फ़सल के साथ उससे भी हाथ धो बैठना। "अरे उसको खुद भी मार दें। दो बार मारने आया था तो बचाया था सूअर से।" कह कर अनीता फ़िर कब्बू से बात करने लगी। "कब्बू, आ! तुम्हाई फोटू उतरनी है!"
अनीता ने बताया किस तरह गाँव के एक व्यक्ति पर खेत में जानवरों ने हमला कर दिया था और मौके पर ही उसकी मौत हो गयी थी। "अकेले सब कोइ डरात है... जब संगे जाओ तब कब्बू मदद करता है खेत में नहीं तो इसको भी कहीं कुछ न हो जाए," अनीता ने कहा।
बुंदेलखंड के और जगहों की ही तरह इस क्षेत्र की भी मुख्य भाषा बुन्देली है जिसे आमतौर पर बुन्देलखंडी भी कहा जाता है।
आरती के एक रिश्तेदार पर भी इसी तरह खेत में अकेला पाकर तेंदुए ने हमला कर दिया था। "खेत में गए रहे जब नहीं लौटे तो ढूंढने गए सब तो देखा वहीँ पड़े थे, खेत में। फ़िर सब खाट लेकर गए और उसी में उठा कर लाये थे उनको। दो-चार दिन जिए थे वो फिर नहीं बचे," आरती ने बताया।
आरती के पास भी एक गाय का बच्चा है। अपने पति, सास, दो छोटे बच्चों और इस बछड़े के साथ रहती है गाँव में। "अरे अभी तो गनीमत है कुछ, गर्मी में हालत और खराब हो जाती है। वो जो सामने चबूतरा देख रही हैं वहां तक आ जाते हैं और बछड़ों को ले जाते हैं। गाँव में गाय हर घर में मिलेगी मगर बछड़ा नहीं बचता कहीं, तेंदुए ले जाते हैं। यही डर से अंदर बाँध के रखते हैं घर के। कहीं जाते-आते हैं तो भी बंद करना पड़ता है," आरती ने कहा।
जंगलों में रहना इस से पहले बड़ा रोचक लगता था लेकिन कैमासन की महिलाओं की बातें सुन, उनकी परेशानियों को जान ने के बाद एहसास हुआ की कैसे हर रोज़ अपने पशुओं और यहाँ तक बच्चों को डर के साथ जीती हैं ये।
पन्ना टाईगर रिज़र्व के से लगभग 20 किलोमीटर दूर, कैमासन गाँव में जंगली जानवरों का खतरा लगातार बना रहता है। पालतू पशु, खेत में जाती महिलाएं और छोटे बच्चों पर हमेशा ही ये खतरा मंडराता रहता है।
कैमासन (मध्य प्रदेश)। अपनी सड़क यात्रा में हम चित्रकूट, उत्तर प्रदेश से बढ़ते हुए छोटा लोखरिहा, बड़ा लोखरिहा, पेंड्रा मझगवां, सतना होते हुए पन्ना शहर आ चुके थे। पांच दिन से लगातार स्कूटर पर, गांव-गांव होते हुए हम पन्ना के ही कैमासन गांव पहुंचे थे।
कैमासन गांव पन्ना टाईगर रिज़र्व से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर है और यही वज़ह है कि पूरी तरह जंगल से घिरा हुआ है।
गाँव पहुंच कर हम स्कूटर किनारे की ओर लगा ही रहे थे कि तेज़ बारिश शुरू हो गयी। हमने तुरंत अपने बैग और ट्राइपॉड उठाये और बचने के लिए कोई जगह ढूंढने लगे कि एक महिला ने आवाज़ दी, "इन्घे आ जाओ, अंदर!"। भागते हुए पहुंचे उस छोटे से मिट्टी के घर में। एक खाट पर मैं प्रज्ञा और वो महिला बैठे थे। खाट की रस्सी मिट्टी के ज़मीन से कुछ 5-6 इंच ऊपर रही होगी। सुशीला ने ही हमें आवाज़ देकर अंदर बुलाया था।
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बारिश रुकी तो मैंने खाट के पास में ही बंधे बछड़े के बारे में सुशीला से पूछा, "ये आपका है?" और सुशीला के जवाब का इंतज़ार करने लगी। कुछ देर बाद उसने जवाब दिया, "हाँ, है तो लेकिन क्या पता कब तक रहे...।" सुशीला ने फ़िर बताया, "अरे हमाए यहाँ ये सब जानवरन के बच्चे नहीं बच पाते। गाँव भर में गाय खूब दिखेंगी लेकिन बछड़ा किसी का न बचा। जंगल जानवर आके मार जाते हैं।"
यहाँ पढ़ें भाग 8 पन्ना टाईगर रिज़र्व के अनसुने किस्से: आँखों की रौशनी न होने की वजह से बच्चों के सहारे चलती है 100 साल की हथिनी वत्सला
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पास के ही घर में अपने पालतू कुत्ते को लाड़ करती एक बूढी महिला नज़र आईं। पास जाकर पता चला उसे कीचड़ में जाकर खेलने की वजह से डांट पड़ रही थी। उस महिला का नाम अनीता था और उसके कुत्ते का, कब्बू। अनीता ने बताया, "
अनीता अपने दो नातियों के साथ रहती हैं और खेती करवा कर घर चलाती हैं। "तनिक सी खेती है, वही कर लाई। मजूरी लगवा के करवाई लैत हैं लेकिन कितनों करें...एक जाने उते परखते, एक जना इते। जानवर, सूअर आते हैं, सब खा जाते हैं, जंगल हैं न इते सब जगह।"
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मैंने जब पूछा आपका कुत्ता भी तो है वो रखवाली नहीं करता खेत की? तो अनीता ने बताया कि उसको भेजना मतलब फ़सल के साथ उससे भी हाथ धो बैठना। "अरे उसको खुद भी मार दें। दो बार मारने आया था तो बचाया था सूअर से।" कह कर अनीता फ़िर कब्बू से बात करने लगी। "कब्बू, आ! तुम्हाई फोटू उतरनी है!"
अनीता ने बताया किस तरह गाँव के एक व्यक्ति पर खेत में जानवरों ने हमला कर दिया था और मौके पर ही उसकी मौत हो गयी थी। "अकेले सब कोइ डरात है... जब संगे जाओ तब कब्बू मदद करता है खेत में नहीं तो इसको भी कहीं कुछ न हो जाए," अनीता ने कहा।
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बुंदेलखंड के और जगहों की ही तरह इस क्षेत्र की भी मुख्य भाषा बुन्देली है जिसे आमतौर पर बुन्देलखंडी भी कहा जाता है।
आरती के एक रिश्तेदार पर भी इसी तरह खेत में अकेला पाकर तेंदुए ने हमला कर दिया था। "खेत में गए रहे जब नहीं लौटे तो ढूंढने गए सब तो देखा वहीँ पड़े थे, खेत में। फ़िर सब खाट लेकर गए और उसी में उठा कर लाये थे उनको। दो-चार दिन जिए थे वो फिर नहीं बचे," आरती ने बताया।
आरती के पास भी एक गाय का बच्चा है। अपने पति, सास, दो छोटे बच्चों और इस बछड़े के साथ रहती है गाँव में। "अरे अभी तो गनीमत है कुछ, गर्मी में हालत और खराब हो जाती है। वो जो सामने चबूतरा देख रही हैं वहां तक आ जाते हैं और बछड़ों को ले जाते हैं। गाँव में गाय हर घर में मिलेगी मगर बछड़ा नहीं बचता कहीं, तेंदुए ले जाते हैं। यही डर से अंदर बाँध के रखते हैं घर के। कहीं जाते-आते हैं तो भी बंद करना पड़ता है," आरती ने कहा।
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जंगलों में रहना इस से पहले बड़ा रोचक लगता था लेकिन कैमासन की महिलाओं की बातें सुन, उनकी परेशानियों को जान ने के बाद एहसास हुआ की कैसे हर रोज़ अपने पशुओं और यहाँ तक बच्चों को डर के साथ जीती हैं ये।