भारत के किसान के लिए वरदान साबित हो सकता है अमेरिका का व्यापार युद्ध

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विभिन्न उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाकर विश्वव्यापी व्यापार युद्ध की शुरूआत कर दी है, पर साथ ही उन्होंने हमें अपनी अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीति में सुधार करने का एक मौका भी दिया है।

Devinder SharmaDevinder Sharma   3 July 2018 11:35 AM GMT

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भारत के किसान के लिए वरदान साबित हो सकता है अमेरिका का व्यापार युद्ध

यह बात मेरी समझ से परे है कि भारत को अपनी जरूरत के 50 पर्सेंट बादाम का आयात अमेरिका से जारी क्यों रखना चाहिए। ऐसा तो है नहीं कि भारत में बादाम के पेड़ों की खेती न होती हो। लेकिन एक ओर भारत का बादाम उत्पादन जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश तक सीमित है, वहीं दूसरी तरफ देश में बादाम की सालाना खपत 97 मीट्रिक टन का अधिकांश हिस्सा अमेरिका से आयात किया जाता है।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने विभिन्न उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाकर विश्वव्यापी व्यापार युद्ध की शुरूआत कर दी है, पर साथ ही उन्होंने हमें अपनी अंतरराष्ट्रीय व्यापार नीति में सुधार करने का एक मौका भी दिया है। खबरों के मुताबिक, जब स्टील और एल्युमिनियम पर आयात शुल्क घटाने के भारत के अनुरोध को ट्रंप ने ठुकरा दिया तो इससे नाराज होकर जवाब में भारत ने भी अमेरिका से आयात होने वाले 29 उत्पादों पर आयात शुल्क में बढ़ोतरी कर दी। इनमें बादाम, छोले, अखरोट और झींगा मछली (अर्टेमिया) शामिल हैं। मेरी राय है कि कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने से भारत में घरेलू उत्पादन को जरूरी प्रोत्साहन मिलेगा जोकि, तनाव में जी रहे भारत के लाखों किसानों की आजीविका सुरक्षा से जुड़ा मसला है। खाद्यान्नों के आयात को हमेशा से बेरोजगारी आयात करने के रूप में देखा गया है।


बादाम पर इंपोर्ट ड्यूटी 100 पर्सेंट से बढ़ाकर 120 और अखरोट पर 30 पर्सेंट से बढ़ाकर 75 पर्सेंट कर दी गई है। इसी तरह सेब पर 50 की जगह 75 पर्सेँट आयात शुल्क लगेगा, चना और मसूर दाल पर 30 की जगह 70 पर्सेंट ड्यूटी लगेगी। वैसे भी कृषि आयात की उदारवादी नीति से पहले ही देश को काफी नुकसान हो चुका है। मुख्यत: कृषि उत्पादों के आयात शुल्क में भारी कटौती के अलावा अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी गिरती कीमतों की वजह से 2015-16 में कृषि उत्पादों का आयात बढ़कर 1,402,680,000,000 रुपए हो गया था। सालाना बजट में कृषि के लिए जितनी बजट राशि का प्रावधान है आयात पर इसका तीन गुना खर्च हो चुका था।

दालों का ही उदाहरण लें। एक तरफ जहां देश में दालों का बंपर उत्पादन हो रहा है, वहीं इनका आयात बेरोकटोक जारी है, इससे किसानों को दाल के औने-पौने दाम ही मिल रहे हैं। कई अनुमानों से पता चला है कि किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 10 से 40 प्रतिशत तक कम मिला है। 2017-18 में दाल का घरेलू उत्पादन रिकॉर्ड 240 लाख टन हुआ, इसके बावजूद दालों का आयात जारी है। 2016-17 के दौरान, 66.08 लाख टन दालों का आयात किया गया था, जबकि इससे पहले 2015-16 में 57.97 लाख टन दाल आयात की गई थी। पहले ही दालों का आयात शुल्क बढ़ाने और उन पर कीटनाशकों के प्रयोग के मानक तय करने के कदम से दालों के प्रमुख आपूर्तिकर्ता ऑस्ट्रेलिया, कनाड़ा, अमेरिका, यूरोपियन यूनियन और जापान भारत से चिढ़ चुके हैं।

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इन देशों ने भारत को विश्व व्यापार संगठन में घसीटने की धमकी दी थी, जवाब में भारत ने भी कह दिया कि उसने विश्व व्यापार संगठन की सीमाओं में ही रहकर ये फैसले लिए हैं। इसलिए मैं खुश हूं कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने इस बार खुद पहल की और भारत को चना और मसूर दाल पर आयात शुल्क बढ़ाकर 70 फीसदी करने पर मजबूर कर दिया। असल में केवल अमेरिका के लिए ही नहीं दालों का आयात शुल्क सभी देशों के लिए बढ़ा देना चाहिए। घरेलू उत्पादक की रक्षा हमारा मूल उद्देश्य होना चाहिए। अमेरिका और यूरोप में विशाल कृषि सब्सिडी घरेलू किसानों की रक्षा करती है साथ ही अंतरराष्ट्रीय कीमतों को भी कम करती है जिसकी वजह से विकसित देशों से कृषि उत्पादों का आयात सस्ता हो जाता है। इस तरह विकासशील देश धीरे-धीरे सस्ते और सब्सिडाइज्ड कृषि उत्पादों के कूड़ेदान बनते जा रहे हैं।

अखरोट की खेती मूलत: जम्मू-कश्मीर तक ही सीमित है। इस प्रदेश का देश के अखरोट उत्पादन में 90.30 पर्सेंट का योगदान है, इसके बाद उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और अरुणाचल प्रदेश का नंबर आता है। लेकिन एक तरफ जहां देश में अखरोट के उत्पादन में गिरावट आ रही है या वह वर्षों से स्थिर है वहीं पिछले कुछ बरस में कैलिफॉर्निया से अखरोट के आयात में कई गुना बढ़ोतरी हुई है। 2014-15 में अमेरिकी अखरोट का आयात बढ़ा है। इसका जितना अधिक आयात होगा इसके घरेलू उत्पादक को उतनी ही मुश्किलों का सामना करना होगा। अगर भारत ने केवल कश्मीर घाटी में अखरोट के उत्पादन पर ध्यान दिया होता तो घाटी के लाखों युवाओं को आर्थिक मदद दी जा सकती थी। अमेरिका में लगभग 4000 अखरोट के किसान हैं जिनके हितों की रक्षा अमेरिका बहुत आक्रामकता से करता है। पर अब भारत को बढ़े हुए आयात शुल्क की सहायता से मुसीबतजदा कश्मीर घाटी में आर्थिक बदलाव लाना चाहिए।

बादाम, अखरोट और सेब जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश की तीन सबसे महत्वपूर्ण वाणिज्यिक फसलें हैं। विश्व व्यापार संगठन के नियमों के तहत भारत अपने बाजारों तक आसान पहुंच मुहैया कराने को मजबूर है, इसी वजह से सेब की फसल भी संकट में है। इस समय भारत में 44 देशों से सेब आयात किए जा रहे हैं दूसरी तरफ हिमाचल और कश्मीर घाटी के सेबों को कोई पूछ नहीं रहा है। हिमाचल प्रदेश के फल, सब्जी और फूल असोसिएशन सेबों पर आयात शुल्क को दोगुना करके 50 से 100 पर्सेंट करने की मांग कर रहे हैं। उम्मीद है ऐसा करने से हिमाचल प्रदेश की 3000 करोड़ रुपए की सेब अर्थव्यवस्था को संरक्षण मिलेगा। सेंटर फॉर एग्रीकल्चर एंड बायोसाइंस इंटरनेशनल की ब्रिटेन में हुई एक स्टडी के मुताबिक, अमेरिका से आयात होने वाले वॉशिंगटन सेबों में 106 किस्म के परजीवी और रोग मौजूद हैं। इसलिए घटिया किस्म के सेबों के आयात पर भी रोक लगाना जरूरी है।

दूसरे शब्दों में, डोनाल्ड ट्रंप ने बादाम, अखरोट और सेब की खेती को पुनर्जीवित करने का एकदम सही मौका दिया है। इसे व्यापार के लिए एक धक्के के रूप में नहीं बल्कि खेती को पुनर्जीवित करने के एक नीतिगत अवसर के तौर पर देखा जाना चाहिए। ऐसे समय में जब कृषि सेक्टर बुरे दौर से गुजर रहा है, ग्रामीण अर्थव्यवस्था को फिर से अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार के मानकों में फेरबदल करना समय की आवश्यकता है।

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(लेखक प्रख्यात खाद्य एवं निवेश नीति विश्लेषक हैं, ये उनके निजी विचार हैं। ट्विटर हैंडल @Devinder_Sharma उनके सभी लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )


       

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