किसान मुक्ति यात्रा (भाग-3) : किसान नेताओं की गिरफ्तारी और अफीम की सब्जी

Prabhat SinghPrabhat Singh   28 Aug 2017 7:28 PM GMT

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किसान मुक्ति यात्रा (भाग-3) : किसान नेताओं की गिरफ्तारी और अफीम की सब्जीकई किसान नेता गिरफ्तार किए गए थे।

जंतर-मंतर पर तमिलनाडु के किसानों के प्रदर्शन और मंदसौर कांड के बाद शुरू हुई किसान मुक्ति यात्रा, जो मध्यप्रदेश समेत 7 राज्यों में गई। उस यात्रा में देश कई राज्यों के 130 किसान संगठन और चिंतक शामिल हुए। किसानों की दशा और दिशा को समझने के लिए वरिष्ठ पत्रकार प्रभात सिंह इस यात्रा में शामिल हुए। एक फोटोग्राफर और पत्रकार के रूप में उनकी डायरी का तीसरा भाग

पहला भाग यहां पढ़ें-किसान मुक्ति यात्रा और एक फोटोग्राफर की डायरी (भाग-1)

दूसरा भाग यहां पढ़ें-

किसान मुक्ति यात्रा और एक फोटोग्राफर की डायरी (भाग-2)

गुड़ भेली गांव की सड़क पर अब ख़ामोशी थी। गिरफ्तार लोगों को लेकर बसें जा चुकी थीं। उनके साथ ही पुलिस और अफसरों की गाड़ियां भी और ऐसे में मीडिया वाले भी वहां रुककर क्या करते ? प्रदर्शन में शामिल कुछ बड़ी उम्र के लोग बचे थे मगर वे भी चुपचाप लौट रहे थे। पीछे की ओर कुछ गाड़ियां खड़ी थीं, जिनके ड्राइवर पशोपेश में थे कि अब वे क्या करें, कहां जाएं ?

मैंने हरीश को खोजा और तय किया कि बसों के पीछे चलकर देखा जाए कि पुलिस उन लोगों को कहां ले जा रही है। हम चल पाते इससे पहले गाड़ी में रखा वीएम सिंह का फोन बजा। हरीश ने उठाया तो दूसरी ओर वह खु़द ही लाइन पर थे। उन्होंने सहेजा कि हम लोग वापस धर्मशाला चले जाएं क्योंकि अभी यह मालूम नहीं चल सका है कि पुलिस का इरादा क्या है ? हम लौट पड़े। थोड़ी देर जिस रास्ते पर आसपास की बस्ती के लोगों की चहल-पहल देखी थी, वहां भी अब कोई नहीं दिखा। पानी लेने के लिए एक छोटी सी दुकान पर गाड़ी रोकी।

एक किशोर दौड़कर अंदर गया और ख़ूब ठंडी बोतल निकाल लाया। पानी इतना ठंडा था कि देर तक धूप में रहने के बाद अगर पी लेते तो शर्तिया बीमार पड़ते सो पानी के कुछ गर्म होने का इंतजार किया। तीन-चार दिनों में ही पानी के इतने ब्रांड देख लिए हैं कि उनकी सूची के लिए अलग पन्ने की दरकार हो। पाटीदार धर्मशाला में भी केवल वे ही बचे थे, जो खिलाने-पिलाने के इंतज़ाम में लगे थे। दम मारने का मौक़ा मिला तो मुझे लगा कि तस्वीरें कैमरे से लैपटॉप में ट्रांसफर कर लूं। इस बीच हरीश नीचे गया। लौटा तो उसके हाथ में दूध से भरे प्लास्टिक के दो ग्लास थे। बताया कि इंतज़ामिया के लोगों ने इसरार करके दिए हैं। दोपहर की उस गर्मी में पानी के सिवाय कुछ और पीने की ज़रा भी इच्छा नहीं थी सो हरीश से मेरे हिस्से का भी दूध पी जाने को कहा।

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हरीश ने अपने बॉस का फोन मेरे पास छोड़ दिया। फोन लगातार बज रहा था। मेरी दिक़्कत यह थी कि नेताओं की रणनीति और समन्वय के बारे में मेरी जानकारी बहुत तात्कालिक थी और फोन करने वाले यही सब कुछ जानना चाहते थे। उज्जैन से कोई साहब जानना चाहते थे कि उन लोगों को कहां पहुंचना है ? अब यह मैं कैसे बताता ? मैंने उन्हें नेताओं की गिरफ्तारी के बारे में बताते हुए अगले पड़ाव की जानकारी दी। अब वह मुझसे गांव पहुंचने का रास्ता जानना चाहते थे। भोपाल से आउटलुक के प्रतिनिधि गिरफ्तार लोगों के नाम और कुल घटनाक्रम जानने के लिए दो बार फोन कर चुके थे।

दिल्ली से राज्यसभा चैनल के किसी संवाददाता ने अरविंद सिंह के मोबाइल से फोन किया, उन्हें भी यही सब जानना था। हां, उनका इसरार यह भी था कि मैं उन्हें गिरफ्तार लोगों की तादाद भी बताऊं। गिरफ्तार लोगों की संख्या के बारे में तब तक पुलिस को भी अंदाज़ नहीं था तो मैं उन्हें क्या बता पाता ? ख़बरनवीसों के इस संख्या वाले टोटके पर हमेशा खीझ होती है। अपने न्यूज़रूम में मैंने भरसक इस प्रवृति को रोकने की कोशिश की है मगर दूसरों पर भला मेरा क्या अख़्तियार ? फोन फिर बजा। इस बार योगेंद्र यादव थे। उनकी राय थी कि पुलिस उन्हें अनाज मण्डी लेकर जाकर रही है और रिछालालमुंहा वहां से काफी क़रीब है। ऐसे में सुबह की छूटी हुई यात्रा फिर से शुरू कर सकते हैं।

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मैंने उनसे वायदा किया कि वीएम सिंह तक उनका संदेश भिजवाता हूं। हरीश को लगाया, हापुड़ के किसान नेता वीरपाल का फोन नम्बर उसके पास था और वह वीएम के साथ ही थे। संदेश पहुंच गया। साथ ही मालूम हुआ कि पुलिस ने मण्डी लेकर सबको छोड़ दिया है। नेता अब सभी कर रहे और पुलिस लोगों की गिनती और नाम-पते दर्ज़ कर रही है। अब हम लोग धर्मशाला से निकल सकते थे। मण्डी तक पहुंचने का रास्ता पूछने पर गांव के लोगों ने एक युवक को साथ कर दिया, जो मोटरसाइकिल से हमारे आगे चला। जिस रास्ते हम गए 25 किलोमीटर से ज्यादा लम्बा था और मुझे बार-बार उस युवक की फ़िक्र हो रही थी कि उसे लौटना भी होगा।

अफीम की सब्जी।

साढ़े चार बज चुके थे। जब तक हम पहुंचे, पुलिस नेताओं को चाय-वाय पिला चुकी थी। लोगों की भीड़ एक बड़े टिन शेड के नीचे बिखरी हुई थी। सामने की ओर कुछ कुर्सियां लगी थी। जिलों से आए किसान नेता बोल रहे थे और वही सब दोहरा रहे थे, जो पिछल शाम से कई बार कहा जा चुका था। मगर वे और कहते भी क्या? कुछ बाकायदा वीररस के गीत और फुटकर शेर के साथ माइक पर आए और ख़ूब तालियां बटोरीं।

योगेंद्र यादव जेल गए थे, डॉ. सुनीलम को ले आने। सबको इंतज़ार था। बकौल वीएम सिंह, डॉ. सुनीलम की रिहाई और गिरफ्तार किए गए किसानों को उनके गांवों तक छुड़वाने की शर्त अफसरों ने मान ली। घंटे भर के बाद डॉ. सुनीलम को साथ लेकर नेता लौटे। सभा में फिर जोश आ गया। बैतूल के विधायक रह चुके डॉ. सुनीलम किसान हित के मुद्दों पर संघर्ष के लिए पहचाने जाते हैं। उनकी कड़क आवाज़ और सख्त तेवर से जैसे थके हुए लोग फिर चार्ज हो गए। फिर कुछ नेताओं का सम्बोधन हुआ।

सभा ख़त्म हुई और लोगों से बसों में सवार होने को कहा गया। नारे लगाते हुए वे बसों में चढ़ने लगे तभी शोर हुआ, ‘अरे, सब बस से नीचे आ जाओ।’ वे नीचे उतरकर वहीं ज़मीन पर बैठते गए। आगे की ओर वीएम सिंह किसी पुलिस अफसर से बात कर रहे थे। उनकी आवाज़ में नाराज़गी और झुंझलाहट दोनों शामिल थे। पता चला कि पुलिस ने अभी तक वह चिट्ठी नहीं दी है, जिसमें उन सबको गिरफ्तार और रिहा करने की आधिकारिक सूचना थी। पुलिस चिट्ठी देने में आनाकानी कर रही थी मगर बाद में अफसर चिट्ठी तैयार करके दे गए। तो गांवों से आए लोग वापस लौटे और हम लोग अगले पड़ाव रिछालालमुंहा गांव की ओर।

करीब तीन हजार की आबादी वाला गांव। पक्के मगर अधिकतर पुराने मकान, काम लायक सड़क और दोनों ओर घरों की क़तार के बीच संकरे रास्ते। हमारे पहुंचने तक अंधेरा हो चुका था। बड़े कुएं और खुले चौक पर गाड़ी खड़ी करके अंदर की ओर चले। थोड़ा चलकर फाटक वाले एक बहुत बड़े घेर में दाख़िल हुए। सामने की ओर ज़मीन पर लगे बिस्तर और दाईं तरफ खाने का इंतज़ाम। वहां पहुंचकर कैमरा बैग रखकर बैठा ही थी कि आशीष नमूदार हुआ। बड़ी राज़दारी से कहा कि मैं वह ख़बर देखकर दुरुस्त करा दूं जो उसने मीडिया को भेजने के लिए तैयार की है।

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झांसी से आया वह युवक ख़ुद को ‘खैरी नरेश’ क्यों लिखता है, यह तो नहीं पूछ पाया मगर उसका लिखा हुआ सुनने के बाद ख़ासी खीझ हुई। ऐसी ही विज्ञप्तियों की वजह से न्यूज़रूम में बैठे लोगों को किसी घटना की गंभीरता का अंदाज़ नहीं लग पाता और नतीजा यह कि ‘चोरी की योजना बनाते चार बंदी’ और ऐसी ख़बरों के महत्व में कोई अंतर नहीं कर पाते।

मैंने आशीष को बताया कि क्या और कैसे लिखा जाए। नए सिरे से लिखने को कहा तो उसने बड़ी हैरानी से देखा। ख़ैर, जो बोला, ‘खैरी नरेश’ ने फोन पर पंच किया और वॉट्सएप पर यहां-वहां रवाना करते हुए, ख़ुद भी उठ खड़ा हुआ। मेरा फोन बजा। लाइन पर चंद्रशेखर थे। वे सतीश पाटीदार के साढ़ू हैं और इसी गांव मं रहते हैं। सुबह बूढ़ा से हमारे निकलने के पहले सतीश उनका फोन नम्बर लिखकर दे गए थे और यह ताक़ीद भी कर गए थे कि हम लोग उन्हीं के घर रुकें। तो हम उनके साथ चल पड़े।

दो गली छोड़कर तीसरी गली में आखिरी मकान। ऊपर बैठक में कुछ और लोग पहले से थे। हाथ-मुंह धुलने के बाद सीधे भोजन। हाथ परोस चुकने के बाद चंद्रशेखर ने बड़े संकोच से पूछा था, ‘अफीम की सब्ज़ी लेंगे ?‘ चौंका देने वाले इस प्रस्ताव पर वीएम सिंह ने तुरंत सिर हिलाकर इन्कार कर दिया। अफीम की सब्ज़ी के बारे में पहले कभी सुना तक नहीं था, पता नहीं कैसा स्वाद हो। लेकर न खाने पर मेज़बान को ख़राब न लगे।

कई बार राह चलते कोई दृश्य अचानक दिमाग़ में फ़्रीज़ होता है, अच्छी तस्वीर बनेगी का भाव जब तक जागता है, हम आगे बढ़ चुके होते हैं। फिर बिना बने रह गई वह तस्वीर देर तक कचोटती रहती है। बाद में ख़ुद को लानत भेजने और ग्लानि महसूस करने के बजाय सब्ज़ी के लिए हां करना मुझे बेहतर लगा। मेज़बान ने थोड़ी सी सब्ज़ी कटोरी में और एक बड़े कटोरे में भी लाकर सामने रख दी।

वह हरे रंग का शोरबा था, ऊपर कुछ पत्तियां तैर रही थीं। चम्मच से वह शोरबा चखा तो स्वाद ठीक ही लगा। उन लोगों ने बताया कि यह अफीम की पत्तियों का साग है। यहां के लोग बड़े शौक से खाते हैं। पत्तियां सुखाकर रखते हैं ताकि साल के बाक़ी दिनों में भी काम आए। अफीम के नाम से ही चिंहुक का जो माहौल बना था, वह ख़त्म हुआ।

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वीएम ने भी थोड़ी सब्ज़ी ली। मैंने तो बाद में कटोरी फिर भर ली। लहसुन, प्याज़ और लाल मिर्च का तड़का और उसमें अफीम की पत्तियां, और बन गया साग। वह अनूठा ज़ायका था और यादगार तजुर्बा। नीचे के बड़े कमरे में दो तख्त पर हम लोगों के बिस्तर लगे, ज़मीन पर बाक़ी लोगों के लिए। खिड़की पर कूलर और अंदर पंखे। पूरे गांव में कमी सिर्फ़ एक चीज़ की है- पानी। सुबह उठने पर यह बात ढंग से मालूम हुई।

           

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