आरक्षण पर मोदी सरकार का सेकुलर कदम
Dr SB Misra | Jan 11, 2019, 06:08 IST
मोदी सरकार ने आजादी के बाद पहली बार सवर्ण आरक्षण के माध्यम से आरक्षण पर सेकुलर पैमाने को एक कदम आगे बढ़ाया है। शुभ संकेत यह है कि मायावती और रामविलास पासवान ने बिल का समर्थन किया है और देर सवेर वे आरक्षण में सेकुलर सिद्धान्त को शायद स्वीकार कर लें
संसद के दोनों सदनों में सवर्णों की 31 प्रतिशत आबादी के लिए 10 प्रतिशत का आरक्षण बिल पास हो गया है, जिससे उन्हें आर्थिक आधार पर नौकरियों और उच्च शिक्षा संस्थानों में प्रवेश में लाभ मिल सकेगा। आखिर सुदामा तो हर वर्ग जाति में पाए जाते हैं। मोदी सरकार ने आजादी के बाद पहली बार सवर्ण आरक्षण के माध्यम से आरक्षण पर सेकुलर पैमाने को एक कदम आगे बढ़ाया है। शुभ संकेत यह है कि मायावती और रामविलास पासवान ने बिल का समर्थन किया है और देर सवेर वे आरक्षण में सेकुलर सिद्धान्त को शायद स्वीकार कर लें।
ये भी पढ़ें:''अटल हमारा अटल रहेगा इसीलिए तो जीतेगा"
दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश राजिंदर सच्चर। फोटो- साभार इंटरनेट
इससे पहले सच्चर कमीशन की रिपोर्ट के माध्यम से कांग्रेस ने मुसलमानों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देना चाहा था परन्तु सफल नहीं हुई। अनेक बार उच्चतम न्यायालय ने ऐसे प्रस्तावों को निरस्त किया है। इस बार कुछ वैधानिक मजबूती से काम हुआ है। उचित होता सवर्णों और मुसलमानों को एक साथ मिलाकर उनकी आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया जाता। कालान्तर में ओबीसी को भी इसी में सम्मिलित कर लेते। विकास में जाति धर्म के गति अवरोक समाप्त होने ही चाहिए।
सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन की बात अब लागू नहीं होती क्योंकि अब कोई भी अछूत नहीं है इस देश में। गरीबी-अमीरी का भेद बहुत पुराना है और अब भी है, इसे 1960 में ही आधार मान लेना चाहिए था जब डाक्टर अम्बेडकर ने जातिगत आरक्षण को समाप्त करना चाहा था। नेहरू जैसा सेकुलरवादी इसकी आवश्यकता नहीं समझ सका अथवा राजनीति की विवशता थी।
ये भी पढ़ें: प्रजातंत्र में सरकार हर जगह मौजूद है लेकिन दिखाई नहीं देती भगवान की तरह
अदालतों को किसी भी तर्कंसंगत परिवर्तन में बाधक नहीं होना चाहिए और शायद होगा भी नहीं लेकिन सवर्ण आरक्षण के खिलाफ याचिका दायर हो चुकी है अब देखना होगा कि इसे स्वीकार किया जाता है या नहीं। यदि स्वीकार कर लिया गया तो इसका भी वही हाल होगा जो अयोध्या प्रकरण का हुआ।
ओबीसी आरक्षण में क्रीमी लेयर की बंदिश लगाई गई है और 8 लाख से अधिक आय वालों को सूची से बाहर रखा गया है। यहां भी आय की यही बंदिश है। लेकिन 8 लाख का तर्क समझ में नहीं आता। जो भी हो शायद स्वर्गीय काशीराम की इच्छा पूरी हो गई ''हम सवर्णों से आरक्षण लेंगे नहीं उन्हें आरक्षण देंगे" ।
ये भी पढ़ें: नेहरू ने सेकुलरवाद सुलाया, मोदी ने जगा दिया
जरूरी नहीं कि इस बिल से सवर्णों को आरक्षण मिल ही जाएगा क्योंकि उच्च सदन में कपिल सिब्बल जैसे वकील के तर्कों को सुनकर और उच्चतम न्यायालय में पेश की गई याचिका को देखते हुए मोदी का यह सोचना सही है कि संविधान को संशोधित करेंगे यदि वह अड़चन बनेगा। पचास प्रतिशत की लक्ष्मण रेखा भी समाप्त करनी पड़ेगी और जाति का एक मात्र पैमाना नहीं रहेगा। इस बिल के बाद सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रस्ताव आबादी से कहीं कम है। सरकार चाहे तो अन्य प्रस्तावों का भी आर्थिक पैमाना दे सकती है।
ये भी पढ़ें: महागठबंधन संभव है, लेकिन एक जयप्रकाश भी तो चाहिए
ये भी पढ़ें:''अटल हमारा अटल रहेगा इसीलिए तो जीतेगा"
RDESController-739
इससे पहले सच्चर कमीशन की रिपोर्ट के माध्यम से कांग्रेस ने मुसलमानों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देना चाहा था परन्तु सफल नहीं हुई। अनेक बार उच्चतम न्यायालय ने ऐसे प्रस्तावों को निरस्त किया है। इस बार कुछ वैधानिक मजबूती से काम हुआ है। उचित होता सवर्णों और मुसलमानों को एक साथ मिलाकर उनकी आबादी के हिसाब से आरक्षण दिया जाता। कालान्तर में ओबीसी को भी इसी में सम्मिलित कर लेते। विकास में जाति धर्म के गति अवरोक समाप्त होने ही चाहिए।
सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन की बात अब लागू नहीं होती क्योंकि अब कोई भी अछूत नहीं है इस देश में। गरीबी-अमीरी का भेद बहुत पुराना है और अब भी है, इसे 1960 में ही आधार मान लेना चाहिए था जब डाक्टर अम्बेडकर ने जातिगत आरक्षण को समाप्त करना चाहा था। नेहरू जैसा सेकुलरवादी इसकी आवश्यकता नहीं समझ सका अथवा राजनीति की विवशता थी।
ये भी पढ़ें: प्रजातंत्र में सरकार हर जगह मौजूद है लेकिन दिखाई नहीं देती भगवान की तरह
RDESController-740
अदालतों को किसी भी तर्कंसंगत परिवर्तन में बाधक नहीं होना चाहिए और शायद होगा भी नहीं लेकिन सवर्ण आरक्षण के खिलाफ याचिका दायर हो चुकी है अब देखना होगा कि इसे स्वीकार किया जाता है या नहीं। यदि स्वीकार कर लिया गया तो इसका भी वही हाल होगा जो अयोध्या प्रकरण का हुआ।
ओबीसी आरक्षण में क्रीमी लेयर की बंदिश लगाई गई है और 8 लाख से अधिक आय वालों को सूची से बाहर रखा गया है। यहां भी आय की यही बंदिश है। लेकिन 8 लाख का तर्क समझ में नहीं आता। जो भी हो शायद स्वर्गीय काशीराम की इच्छा पूरी हो गई ''हम सवर्णों से आरक्षण लेंगे नहीं उन्हें आरक्षण देंगे" ।
ये भी पढ़ें: नेहरू ने सेकुलरवाद सुलाया, मोदी ने जगा दिया
जरूरी नहीं कि इस बिल से सवर्णों को आरक्षण मिल ही जाएगा क्योंकि उच्च सदन में कपिल सिब्बल जैसे वकील के तर्कों को सुनकर और उच्चतम न्यायालय में पेश की गई याचिका को देखते हुए मोदी का यह सोचना सही है कि संविधान को संशोधित करेंगे यदि वह अड़चन बनेगा। पचास प्रतिशत की लक्ष्मण रेखा भी समाप्त करनी पड़ेगी और जाति का एक मात्र पैमाना नहीं रहेगा। इस बिल के बाद सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण का प्रस्ताव आबादी से कहीं कम है। सरकार चाहे तो अन्य प्रस्तावों का भी आर्थिक पैमाना दे सकती है।
ये भी पढ़ें: महागठबंधन संभव है, लेकिन एक जयप्रकाश भी तो चाहिए