डिजिटल इंडिया की जमीनी हकीकत : “मुझे अपना आधार कार्ड सुधरवाने में तीन महीना लग गया”

गाँव कनेक्शन | Nov 12, 2017, 15:29 IST
ई-आधार कार्ड
अंकुर मिश्रा

तमाम विकसित देशो की तर्ज पर भारत सरकार जिस आधार कार्ड को हर जगह जरूरी करना चाह रही है क्या कभी उसकी जाँच धरातल पर जाकर की है? आधार देश में सबके लिए जरूरी तो कर दिया मगर क्या कभी यह जाँचने की कोशिश की एक साधारण नागरिक उसका उपयोग कर पाने में सक्षम है या नहीं है? देश की करीब 70 प्रतिशत जनता गाँवों में रहती है और इसमें अधिकतर लोगों को तकनीक का ज्ञान नहीं होता, मोबाइल का भी साधारण ज्ञान होता है। गाँवों में इंटरनेट की पहुंच भी कम है। ऐसे में उनपर जबरदस्ती आधार थोपा जा रहा है। ज्यादातर लोगों के आधार में कुछ न कुछ गलतियां जरूर हैं।

कुछ समय पहले मेरा फ़ोन ख़राब हो गया और किसी वजह से मैं उस नंबर को दोबारा से नहीं चला पाया। मुझे अपना मोबाइल नंबर बदलवाने के लिए जितनी मेहनत करनी पड़ी उतनी मेहनत मेरा नेता चुनाव प्रचार के दौरान भी नहीं करता होगा। छोटा सा काम करवाने में मुझे तीन महीने का समय लग गया। अगस्त में पहले मैंने गुडगाँव के लोकल आधार केंद्रों पर भागादौड़ी की। जिसमें 4 दिन में करीब 13 केंद्रों पर गया।

उसमें से 8 बंद थे और 7 की मशीन सही नहीं थी। उसके बाद गृह जनपद (हमीरपुर) गया। जहाँ पर केवल तीन लोकल केंद्र थे। उन तीनों में ताले लगे हुए थे। फिर वापस गुड़गाँव आया और यहाँ अन्य केंद्रों पर जानकारी लेनी शुरू की जिसमें से अधिकतर केंद्रों को हेड करने वालो लोगों ने मना कर दिया कि यहाँ पर कोई आधार केंद्र नहीं है। इन सबके बाद मैंने गुड़गांव से दिल्ली के 2-3 जगह प्रयास किया, उनकी भी मशीन काम नहीं कर रही थी।

क्या इतना प्रयास एक गँव में रहने वाला एक साधारण व्यक्ति कर पाएगा? क्या कम पढ़ा लिखा व्यक्ति ये सारी जानकारी इकठ्टा कर पाएगा? दिनभर रोजी रोटी के लिए नौकरी से छुट्टी लेकर क्या कोई व्यक्ति इतना कर सकता है, इसके बाद भी वह व्यक्ति असफल ही होता है।

उसके बाद मैं 6 नवंबर को को गुड़गांव - विकास भवन जाता हूँ, जहाँ पूरे दिन खड़े रहने के बाद भी मेरा नंबर नहीं आता है सैकड़ों लोग धूप में खड़े होते है। फिर मैं अगले दिन 7 नवंबर को फिर से विकास भवन जाता हूँ। जहां सुबह 11 बजे खड़े होने के बाद 4 बजे मेरा नंबर आता है और फिर जाकर मैं आधार कार्ड सही करता हूँ। इस बीच में मैंने इसी भीड़ में कई लोग ऐसे देखे जिनके पास कुछ महीनों के बच्चे थे, दिव्यांग लोग थे, बूढ़े लोग थे।

क्या गलती है इन लोगों की ?

यह की इन्होंने एक ऐसी सरकार चुनी जिससे उसे आशाए थीं कि अब वह शांति से रह सकेंगे। वही सरकार आज आम जनता को रोजाना हर चीज के लिए लाइन में खड़ा कर देती है। मगर लोगों को उससे भी परहेज नहीं है परन्तु आम लोगों की मेहनत और घंटों लाइन में खड़े रहने के बाद हाथ कुछ नहीं आता। खोखली चीजें ही परिणाम स्वरूप निकलती हैं।

आधार कार्ड जिस मंत्रालय के अंदर आता है, उनके मंत्री जी को मैंने कई बार ईमेल लिखा और ट्वीट भी किया, मगर उनका जबाब नहीं आया। मतलब समझ सकते हैं कि वो व्यस्त होंगे। मगर प्रश्न यह है की, कहाँ? अपने खुद में मंत्रालय की जब यह दशा है उससे तो यही लगता है उन्होंने खुद के लिए ही काम नहीं किया। रवि शंकर प्रसाद जी को नोटबंदी पर लंबे-लंबे भाषण देते हुए सुना है, मगर कभी उन्होंने आधार की बात नहीं की। न ही कभी मजबूत प्लान बताया जनता के आधार कार्ड को लेकर।

मुझे एक इंजीनियर और व्यवसायी होने के नाते अभी भी 'आधार' का भविष्य भारत में समझ में नहीं आता। हर व्यक्ति की व्यक्तिगत जानकारी टेलीकॉम कंपनियों और बैंको तक पहुंच जा रही है, क्या वह वहाँ सुरक्षित है, मेरी जानकारी के अनुसार आधार का डेटा भी भारत के खुद के सर्वर में नहीं है विदेशी सर्वर में है क्या वह लंबे समय के लिए सुरक्षित है।

भारत एक विकासशील देश है जहाँ अभी हमें देश को तकनीकी रूप से और मजबूत बनाने की जरूरत है, देश के हर नागरिक को शिक्षा के लिए जागरूक करने की जरूरत है। तकनीक और प्रौद्योगिकी के मायने समझने की जरूरत है। भारत को पहले जरूरत है गरीबों तक खाने पहुंचाने की, गरीब बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने की .... और भी बहुत चीजें हैं जो सरकार की प्राथमिकता होनी चाहिए। अगर इन सब में सरकार सफल हो जाती है तो फिर आधार पर एक मजबूत और सुलभ प्लान बने जो देश के हर नागरिक के लिए सुविधाजनक हो और सुरक्षित भी हो।

(लेखक गुड़गांव स्थित निजी कंपनी में इजीनियर हैं, लेख उनके व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर है)



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