कबीर को सेक्युलर भारत के कर्णधारों ने आदर्श क्यों नहीं माना?

Dr SB Misra | Jul 07, 2018, 13:20 IST
जब प्रधानमंत्री मोदी ने मगहर में कबीर की समाधि पर जाकर फूल चढ़ाए तो सबने सवाल किया लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सवाल किसी ने नहीं पूछा यह समाधि मगहर में क्यों है,जब कबीर जीवन भर काशी में रहे थे।
#कबीर
जब प्रधानमंत्री मोदी ने मगहर में कबीर की समाधि पर जाकर पुष्पांजलि चढ़ाकर श्रद्धासुमन अर्पित किए तो पहला सवाल उठा कि उन्होंने टोपी क्यों नहीं पहनी और दूसरा वह चुनावी माहौल में कबीर की समाधि पर क्यों गए। सबसे महत्वपूर्ण सवाल किसी ने नहीं पूछा यह समाधि मगहर में क्यों है, जब कबीर जीवन भर काशी में रहे थे।

जवाब स्वयं कबीर ने दे रक्खा है "जो कबिरा काशी मरै, रामहिं कौन निहोर" क्योंकि काशी में मरने वाला हर व्यक्ति बैकुंठ जाता है, ऐसी मान्यता थी। कबीर तो बैकुण्ठ के लिए भी राम का एहसान लेने को तैयार नहीं। ऐसे कबीर को सेकुलर भारत कर्णधारों ने अपना आदर्श क्यों नहीं माना, वे ही जानें।

शायद हिन्दुओं ने यह सोच कर नहीं अपनाया कि वह एक जुलाहा परिवार में पले बढ़े थे, भले ही वह एक विधवा ब्राह्मणी से जन्मे थे। इसके विपरीत मुसलमानों ने इसलिए नहीं अपनाया कि वह राम नाम जपते थे। और वह राम नाम इसलिए जपते थे कि रामानन्द को गुरु बनाने की जिद में वह सीढ़ियों पर लेट गए थे और अनजाने में रामानन्द का पैर उन पर पड़ा तो बोले "बेटा राम-राम कहो" इसी को गुरु मंत्र मानकर जपते रहे। लेकिन कबीर के राम और गांधी के राम वह नहीं थे, जिन्हें हम दशरथनन्दन मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु राम के रूप में जानते हैं।

कबीर का मार्गदर्शन अब जितना प्रासंगिक है, उतना पहले कभी नहीं रहा। वैसे तो अनपढ़ थे कबीर और कहा भी "मसि कागद छुयो नहिं कलम गही नहिं हाथ" लेकिन सीधी सपाट बात करते थे। समाज को आज उनकी विचारधारा की बहुत जरूरत है। बटवारे को बचाने के लिए गांधी के साथ कबीर की भी आवश्यकता थी, जो कहता "हिन्दू तुरुक हटा नहिं माने, आग दोऊ घर लागी।" तब न सही अब तो सुनो, एक कवि के रूप में नहीं समाज सुधार का सन्देश खोजने के लिए।

स्कूल की किताबों में उनके कहे गए दोहे छाप देते हैं और साखी, रमैनी और सबद पर रिसर्च करते हैं, बस हो गई कबीर सेवा हमारे देश में सेकुलरवाद की नास्तिकता पर आधारित पश्चिमी परिभाषा कभी स्वीकार्य नहीं हो सकती क्योंकि उसमें सर्वधर्म का त्याग होता है, लेकिन भारतीय सेकुलरवाद कबीर में है,जिसमें सर्वधर्म समभाव होता है। ऐसा नहीं कि कबीर हमारे देश को रातों-रात सेकुलर बना देंगे या फिर मज़हबी आग बुझा देंगे, लेकिन यदि हमारे देश के बच्चे और विशेषकर विद्यार्थी गण कबीर को पढ़ेंगे तो उनके मन पर तर्कसंगत विचारों का समावेश होगा।

मुसलमानों को अनुकूल लगेगा "पाथर पूजे हरि मिलें तो मैं पूजूं पहाड़", लेकिन यह सुनकर अच्छा नहीं लगेगा "कंकड़ पत्थर जोड़ी कै महजिद लिया बनाय।" कबीर को जहां कहीं बात तर्कसंगत नहीं लगी, बेबाक कह दी। जब अवगुणों पर बात करनी हुई तो निष्पक्ष भाव से अपने बेटे तक को नहीं छोड़ा, बोले"बूड़ा वंश कबीर का उपजा पूत कमाल।" कबीर का हर शब्द सीधे दिल तक पहुंचता है। हर स्कूल और मदरसे में कबीर पढ़ाए जाने चाहिए।

दलित समाज में आज भी कबीर लोकप्रिय हैं। वे लोग कबीर पंथ को मानते हैं और कबीर के पदों को बड़े आनन्द से गाते हैं। मैं नहीं कहता कि दलित समाज अधिक सेकुलर है, लेकिन उस समाज में सवर्णों का धर्माडम्बर और इस्लाम की कट्टरता नहीं है। दलित समाज के लोग यदि भ्रमित न किए जाएं तो एक-दूसरे से मिलते बुजुर्ग लोग "राम राम " या "जै राम जी की" कहते आए हैं। अब बहुत से लोग "जय भीम" कहने लगे हैं। कबीर भी राम की बातें करते थे, लेकिन घट-घट में जो राम रमा है, उसकी बात करते थे। गांधी भी उसी निर्गुण निराकार राम के उपासक थे।

भले ही वह जीवन भर हिन्दू और मुसलमानों को फटकारते रहे, लेकिन अन्त में दोनों ही उनका अन्तिम संस्कार करना चाहते थे। पता नहीं कहां तक सही है, जब चादर उठाई गई तो उसके नीचे केवल फूल निकले, उन्हें हिन्दू और मुसलमानों ने आपस में बांट कर अपने-अपने ढंग से संस्कार किया। वह न हिन्दू थे और न मुसलमान, वह थे बस एक अच्छे इंसान। सेकुलरवाद को बचाने के लिए कबीर को और निकटता से समझना और समझाना होगा।

यह भी देखें:योगाभ्यास उतना ही सेकुलर है जितना हमारा संविधान

यह भी देखें:आरक्षण में खोट नहीं, उसे लागू करने में खोट है

Tags:
  • कबीर
  • सेक्युलर
  • भारत

Follow us
Contact
  • Gomti Nagar, Lucknow, Uttar Pradesh 226010
  • neelesh@gaonconnection.com

© 2025 All Rights Reserved.