कम उम्र में मां बनने पर लगाम लगे तो सात साल तक 33,500 करोड़ रुपए की बचत हो सकती है

गाँव कनेक्शन | Mar 19, 2018, 12:18 IST
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कोमल गनोत्रा

बाल अधिकारों के लिए काम करने वाली अग्रणी संस्था 'क्राइ' का कहना है कि जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में 2011 में 10-19 आयुवर्ग की 1.3 करोड़ लड़कियों की शादी कम उम्र में ही कर दी गई। हालांकि, अशिक्षित लड़कियों की तुलना में बाल विवाह की शिकार होने वाली या कम उम्र में मां बनने वाली शिक्षित लड़कियों की संख्या कम रही।

मुंबई के इस गैर सरकारी संगठन ने अपने विश्लेषण में कहा है कि 2011 के बाद से बाल विवाह का शिकार होने वाली या कम उम्र में मां बनने वाली लड़कियों की संख्या में खास कमी नहीं आई है।
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 4 (एनएफएचएस 4) के आकड़ों के अनुसार, 2015-16 में 15 से 16 वर्ष की आयु के बीच गर्भवती या पहले से मां बन चुकीं लड़कियों की संख्या 45 लाख रही।

बचपन में ही विवाह हो जाने के चलते लड़कियों पर सामाजिक दबाव बढ़ जाता है और उनसे नई भूमिका में परिवार की जिम्मेदारियों को वहन करने की उम्मीद भी बढ़ जाती है, जिसके चलते या तो वे अपनी शिक्षा पर ध्यान नहीं दे पातीं या उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ता है।

इसके अलावा उनके हिंसा, दुर्व्यवहार और एचआईवी/एड्स और अन्य यौनजनित बीमारियों का शिकार होने का जोखिम बढ़ जाता है। इतना ही नहीं, उनके कम उम्र में मां बनने का भी जोखिम होता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, कम उम्र में गर्भधारण से एनीमिया, मलेरिया, एचआईवी और अन्य यौनजनित बीमारियों, प्रसव के बाद अत्यधिक रक्तस्राव और मानसिक विकारों से ग्रस्त होने का खतरा भी पैदा होता है।

जनगणना के मुताबिक, 2011 में भारत में किशोरवय लड़कियों की संख्या 38 लाख थी। इनमें से 14 लाख लड़कियां किशोरवय पार करने से पहले ही दो या अधिक बच्चों की मां बन चुकी थीं।
कम उम्र में गर्भधारण से प्रसव के दौरान जटिलता का खतरा रहता है लेकिन शिक्षा के जरिए कम उम्र में गर्भधारण की संभावना पर लगाम लगाई जा सकती है। आकड़ों के मुताबिक, कम उम्र में गर्भधारण करने वाली अशिक्षित लड़कियों का प्रतिशत जहां 39 रहा, वहीं 26 फीसदी शिक्षित किशोरियों ने ही गर्भधारण किया।

उदाहरण के लिए पश्चिम बंगाल में 2011 में विवाहित 13.5 लाख किशोरियों में से 50 फीसदी अशिक्षित लड़कियां मां बन चुकी थीं, जबकि किशोरावस्था में मां बनने वाली शिक्षित लड़कियों का प्रतिशत 37 ही रहा।

अपने विश्लेषण में 'क्राइ' का कहना है कि अगर बाल विवाह और कम उम्र में मां बनने पर लगाम लगाई जाए तो भारत अगले सात वर्षो के दौरान स्वास्थ्य कल्याण पर 33,500 करोड़ रुपयों की बचत कर सकता है।

2014 में किए गए अध्ययन और 2015 में प्रकाशित रिपोर्ट 'चाइल्ड मैरेज : ए क्रिटिकल बैरियर टू गर्ल्स स्कूलिंग एंड जेंडर इक्वेलिटी इन एजुकेशन' में कहा गया है, "शिक्षा की कमी बाल विवाह का जोखिम बढ़ा देती है और यही बाल विवाह के पीछे के मुख्य कारणों में से भी है।"

इंटरनेशनल सेंटर फॉर रिसर्च ऑन वुमन (आईसीआरडब्ल्यू) द्वारा किए गए अध्ययन के हवाले से इस रिपोर्ट में कहा गया है, "दुनिया के सर्वाधिक बाल विवाह के मामलों वाले शीर्ष 20 देशों में से 18 देशों में देखा गया है कि माध्यमिक स्तर तक शिक्षित लड़कियों की अपेक्षा अशिक्षित लड़कियों के विवाह होने की आशंका छह गुना बढ़ जाती है।"

आईसीआरडब्ल्यू द्वारा बाल विवाह को खत्म करने के लिए दिए गए समाधानों में कहा गया है, "बाल विवाह के चलते लड़की की शिक्षा रुक जाती है।" शिक्षित महिलाओं के स्वस्थ मां बनने की संभावनाएं भी अधिक रहती हैं।

उदाहरण के लिए 2015-16 के आकड़ें देखें तो माध्यमिक शिक्षा प्राप्त 63 फीसदी महिलाएं प्रसव से पहले कम से कम चार बार चिकित्सकों का परामर्श लेने पहुंचीं। जबकि अशिक्षित महिलाओं में सिर्फ 28 फीसदी ने तथा प्राथमिक शिक्षा प्राप्त 45 फीसदी महिलाओं ने ही ऐसा किया।

माध्यमिक तक या उससे अधिक शिक्षित महिलाओं में से 90 फीसदी ने अस्पतालों में या प्रसूती विशेषज्ञ की देखरेख में बच्चे को जन्म दिया, जबकि अशिक्षित महिलाओं में से सिर्फ 62 फीसदी महिलाएं ही बच्चे के जन्म के लिए अस्पताल या प्रसूती विशेषज्ञ के पास पहुंचीं।
(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित परोपकारी मंच इंडिया स्पेंड के साथ एक करार के तहत)

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