राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित बच्चों की दोस्त रीताबेन क्यों हैं चर्चा में

Ambika Tripathi | Sep 05, 2023, 11:21 IST
गुजरात के सूरत के सेठ श्री प्राणलाल हीरालाल बचकानीवला विद्या मंदिर में हर कोई अपने बच्चों का नाम लिखाना चाहता है, क्योंकि सभी बच्चों को प्रिंसिपल मैम की दोस्ती भाती है।
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बच्चों को कोई परेशानी हो या फिर शिक्षकों को, सभी बिना किसी झिझक प्रिंसिपल मैम के पास जाते हैं। 32 साल से यही सिलसिला चला आ रहा है, तभी तो आज बच्चे यहाँ से जाने के कई साल बाद भी अपनी प्रिंसिपल मैम को याद करते हैं।

1991 में डॉ रीताबेन एन फूलवाला ने गुजरात के सूरत के सेठ श्री प्राणलाल हीरालाल बचकानीवला विद्या मंदिर में असिस्टेंट टीचर के रूप में ज्वाइन किया और आज वो यहाँ की प्रिंसिपल हैं। उनके बेहतरीन काम के लिए उन्हें राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

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साल 2013 बैच के छात्र रह चुके राज सेरडीवाला आज सिविल इंजीनियर हैं। राज अपने स्कूल के दिनों में खो जाते हैं और कहते हैं, "आज जो भी हूँ प्रिंसिपल की वजह से हूँ। आज मैं सिविल इंजीनियर हूँ, मेरे अंदर कॉन्फिडेंस और बेहतर करने का जज्बा मैम की वजह से ही आ पाया।

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प्रिंसिपल कम दोस्त ज़्यादा बनकर रहने वाली रीताबेन से बच्चे अपनी सारी परेशानियों को कहते हैं। बच्चों की ज़ुबान पर बस रीताबेन का नाम ही सुनने को मिलता है।

रीताबेन गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "मेरे लिए स्कूल मेरी ज़िम्मेदारी है, जो बड़े प्यार से निभाती हूँ। जब मैंने स्कूल ज्वाइन किया था तब 8वीं की दो क्लास थी और 112 बच्चे थे, उसके बाद मैंने 9वीं से 12वीं तक के 16 क्लास रुम तैयार कराया और आज 1000 बच्चों के साथ 11वीं और 12वीं के साइंस और कॉमर्स दोनों ही क्लासेस चलती हैं।"

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रीताबेन आगे कहती हैं, "मेरा स्कूल ऐसी जगह है, जहाँ हर प्रकार के बच्चे आते हैं ऐसा नहीं की पढ़े लिखे घर के बच्चे ही आते हैं, सभी बच्चे आते हैं हम सभी बच्चों को एक जैसा पढ़ाते हैं।"

रीताबेन के शिक्षक बनने के पीछे एक कहानी है, दरअसल शिक्षक दिवस के दिन वो अपने स्कूल में टीचर बनती थी, बस फिर क्या वहीं से उन्होंने सोच लिया कि उन्हें शिक्षक ही बनना है और आज उनके स्कूल में बच्चे उनका रोल निभाते हैं।

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आज आलम ये है कि रीताबेन की क्लास में बच्चे किताबों नहीं खोलते, बस रीताबेन की बातें सुनते रहते हैं। जहाँ ज़िंदगी जीने के तरीकों और नैतिक मूल्यों की बात होती है। यहाँ पर तो क्रिकेटर की बातों के साथ ही तारक मेहता का उल्टा चश्मा के जेठालान की भी बातें होती हैं।

रीताबेन आगे बताती हैं, "जब मैंने स्कूल ज्वाइन किया था, तब मैंने बीएससी में गोल्ड मेडलिस्ट थी और साथ में बीएड किया हुआ था। एमएड और पीएचडी अपनी घर और स्कूल की ज़िम्मेदारी के साथ पूरा की। स्कूल में मैंने सारी सुविधाएँ उपलब्ध करायी हैं, मोरल वैल्यू के साथ, ताकि बच्चों को भी समझ में आये समाज में उनकी क्या ज़िम्मेदारी है।"

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"आज हमारे स्कूल के बच्चे देश विदेश में अलग अलग फील्ड में काम कर रहे हैं, अपना अपने परिवार और अपने समाज का नाम रोशन कर रहे हैं। अच्छा लगता है जब उनके बारे में सुनते हैं, "रीताबेन ने आगे कहा।

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प्रिंसिपल मैम के साथ बाकी टीचर्स को कई बार अवार्ड मिल चुके हैं। रीताबेन को 2013 में स्टेट लेवल के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा सम्मान प्राप्त हुआ था, राज्यपाल कमला देवी बेनीवाल के हाथों से भी सम्मान मिला था और साथ ही 2013 में बेस्ट प्रिंसिपल का अवार्ड भी मिला। स्कूल को दो बार 2015 और 2023 में बेस्ट स्कूल का अवार्ड भी मिला है।

रीताबेन कहती हैं, "गुजराती में एक कहावत है, 'कटाई जवा करता, गसाई जउसारो' इसका मतलब है अगर हम खेत में लोहे का टुकड़ा है, तो कुछ दिन में जंग लग जाएगी, लेकिन अगर हम किसी काम में अपने आप को घिसते हैं, तो उसका फायदा उसको मिलता है। साथ में समाज को भी मिलता है उसी तरह मैं भी मेहनत करके आगे बढ़ना चाहती हूँ।"

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राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार मिलने पर वो आगे कहती हैं, "जब मुझे पता चला राष्ट्रपति से सम्मान मिलने वाला है, तब मैं बच्चों का टूर लेकर मंदिर गई थी और मेरा फोन चार्जिंग में लगा था। जब मैंने मिस्ड कॉल देख कर उस पर वापस फ़ोन किया तो उधर से जवाब आया कि आपका सेलेक्शन अवार्ड के लिए हुआ है, तब लगा कि मेहनत का फल आज मुझे मिल गया है। ये अवार्ड सिर्फ मुझे नहीं मिला है, मेरे स्कूल के परिवार को मेरे अपने परिवार को मेरे टीचर, स्टूडेंट, दोस्तों, समाज मेरे जितने भी जानने वाले हैं सबको मिला है।" उन्होंने आगे कहा।

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सेठ श्री प्राणलाल हीरालाल बचकानीवाला विद्या मंदिर के पूर्व छात्र अर्जुन जरीवाला एक संस्थान में इलेक्ट्रॉनिक इंजीनियर के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं। वो कहते हैं, "रीताबेन मैम एकदम माँ जैसा हमारा केयर करती थी, बोर्ड एग्जाम के समय हमें बहुत मोटिवेट करती थीं , हमारी चार्जिंग प्वाइंट हमारी मैम होती थी जब भी हम निराश महसूस करते थे हमारी मैम हमारे साथ हमेशा खड़ी रहती थी।"

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