आपको भी है बार - बार शीशा देखने की आदत? हो सकती है ये बीमारी

Anusha MishraAnusha Mishra   24 Dec 2017 5:06 PM GMT

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आपको भी है बार - बार शीशा देखने की आदत? हो सकती है ये बीमारीबॉडी डिसमॉर्फिक डिसऑर्डर

क्या आप दिन में कई बार अपना चेहरा शीशे में देखते हैं और हर बार आपको ऐसा लगता है कि उसमें कोई कमी है, आप अपने मोटे या पतले होने को लेकर हर वक्त चिंता में रहते हैं। आपकी कोई कितनी भी तारीफ करता है और आपको लगता है कि नहीं आपमें कुछ न कुछ कमी तो है? अगर इन सवालों का जवाब न में तो आप बिल्कुल ठीक हैं लेकिन अगर हां में है तो ये चिंता की बात है।

हम में से कई लोग जिनको अपने शरीर में कुछ चीज़ें पसंद नहीं आतीं। किसी को अपनी नाक थोड़ी बड़ी लगती है तो किसी लगता है कि उसकी हंसी अच्छी नहीं है, किसी को अपनी छोटी आंखें नहीं भातीं तो किसी को बाल अजीब लगते हैं। हालांकि कई लोगों को अपनी शारीरिक बनावट परफेक्ट नहीं लगती फिर भी वे इस पर इतना ध्यान नहीं देते।

लेकिन जो लोग बॉडी डिसमॉर्फिक डिसऑर्डर यानि शारीरिक कुरूपता विकार का शिकार होते हैं, वो अपनी सचमुच की या सिर्फ सुनी सुनाई शारीरिक खामियों (जैसा उनके दिमाग में चलता रहता है) के बारे में दिन के कई घंटे सोचते रहते हैं। ऐसे लोग अपने शरीर से जुड़े नकारात्मक ख्यालों को दिमाग से नहीं निकाल पाते और अगर इन्हें कोई समझाने के कोशिश भी करता है कि नहीं तुम अच्छे या अच्छी लग रही हो तब भी ये उसकी बात पर पूरा भरोसा नहीं कर पाते।

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ऐसे लोगों के नकारात्मक विचार उनके ऊपर इतने हावी हो जाते हैं कि ये एक मानसिक बीमारी बन जाती है। ऐसे लोग धीरे - धीरे समाज से कटने के तरीके खोजने लगते हैं। वे स्कूल जाना कम कर सकते हैं, पार्टियों में नहीं जाना चाहते हैं। यहां तक कि परिवार और दोस्तों से भी दूरी बना सकते हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि वहां सब उनकी शारीरिक खामियों के बारे में ही बात करेंगे। यह विकार कई बार इतना बढ़ जाता है कि लोग प्लास्टिक सर्जरी तक करवा लेते हैं। gstatic के मुताबिक भारत में हर साल लगभग 10 लाख लोग इस बीमारी का शिकार होते हैं।

लखनऊ की मनोवैज्ञानिक शाज़िया सिद्दीकी बताती हैं कि यह एक मानसिक बीमारी है। इस बीमारी के लिए कहीं न कहीं हमारा परिवार या रिश्तेदार भी ज़िम्मेदार होते हैं। जब किसी बच्चे से बार - बार ये कहा जाता है कि उसकी नाक लंबी या वो ज़्यादा मोटा है तो कुछ पर उसका काफी नकारात्मक असर पड़ता है। इससे धीरे - धीरे वो बात दिमाग में घर कर जाती है और कई बार यही डिसऑर्डर बन जाता है। वह कहती हैं कि मान लीजिए आप किसी से बार - बार ये कहें कि वो मोटा है, मोटा है और उसके ऊपर इस बात का इतना असर पड़ जाए कि वो भूखा रहना शुरू कर दे और ज़रूरत से ज़्यादा एक्सरसाइज़ करे, तो ये बॉडी डिसमॉर्फिक डिसऑर्डर के लक्षण हो सकते हैं।

इस तरह पहचानें

  • इस बात को लेकर दृढ़ विश्वास की आपकी शारीरिक बनावट अच्छी नहीं है और आप हमेशा बुरे ही दिखते हैं।
  • हर वक्त ऐसा लगना है कि लोग आपकी बनावट के बारे में आपकी बुराई कर रहे हैं या आपका मज़ाक उड़ा रहे हैं।
  • बार - बार शीशा देखना या कई बार शीशा देखने से बचना, हर वक्त खुद को बेहतर दिखाने के तरीके खोजना।
  • अपने दोषों को मेकअप, स्टाइल या कपड़ों के ज़रिए छुपाने की कोशिश करना।
  • अपनी बनावट की लगातार दूसरों से तुलना करना।

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  • लोगों से हमेशा ये पूछना कि मैं कैसी लग रही हूं/लग रहा हूं?
  • कॉस्मेटिक्स का इस्तेमाल करके खुद को संतुष्ट करना।
  • सामाजिक मेल जोल से दूर भागना।
  • ज़रूरत से ज़्यादा एक्सरसाइज करना।
  • बार - बार कपड़े बदलना।
  • शरीर के वे हिस्से जिनको लेकर सबसे ज़्यादा रहती है फिक्र
  • चेहरा जिसमें नाक, रंगत, झुर्रियां, पिम्पल आदि पर ज़्यादा ध्यान जाता है
  • बालों की दिखावट, उनका पतला होना या ज़्यादा झड़ना
  • त्वचा में दिखने वाली नसें
  • स्तनों का आकार
  • पुरुषों में मांसपेशियों की बनावट या आकार

अलग अलग लोगों में अपने शरीर को लेकर चिंता अलग - अलग हो सकती है। यह दिक्कत किशोरावस्था में शुरू होने की संभावना सबसे ज़्यादा होती है और महिलाओं पर पुरुषों में लगभग समान रूप से होती है।

कब पड़ती है डॉक्टर की ज़रूरत

अपनी शारीरिक बनावट को लेकर आपके अंदर जो शर्म है वो कई बार आपको डॉक्टर के पास जाने से भी रोक सकती है। लेकिन अगर आपको इस बीमारी का कोई भी लक्षण दिखता है तो चिकित्सक से मिलने में संकोच न करें। यह बीमारी सामान्यत: खुद से ठीक नहीं होती और अगर इसका इलाज़ नहीं कराया गया तो धीरे -धीरे बढ़ती जाती है और कई दूसरी मानसिक बीमारियों को दावत दे सकती है। कई बार परिस्थिति इतनी विपरीत हो जाती है कि रोगी आत्महत्या तक करने के बारे में सोच लेता है।

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क्यों होती है ये बीमारी

किसी भी दूसरी मानसिक बीमारी की तरह बॉडी डिसमॉर्फिक डिसऑर्डर का भी कोई एक कारण नहीं होता। कुछ मिलेजुले कारणों से ये बीमारी होती है –

  • दिमाग की संरचना सामान्य न होना और न्यूरोकेमिस्ट्री इसमें अहम भूमिका निभाती है।
  • कुछ शोधों में ये पाया गया है कि इस डिसऑर्डर के लिए जींस भी ज़िम्मेदार होते हैं यानि ये आनुवांशिक बीमारी भी हो सकती है।
  • आपके आसपास का वातावरण, ज़िंदगी के अनुभव या संस्कृति भी इस विकार को पैदा करने के लिए ज़िम्मेदार हो सकती है। कई बार बचपन में किसी तरह का दुव्यर्वहार या शोषण भी किशोरावस्था में इस बीमारी को पैदा कर देता है।
  • कुछ मामलों में डर या तनाव की वजह से भी ये बीमारी हो जाती है।

ये पड़ सकता है असर

  • इस बीमारी को नज़रअंदाज करने से व्यक्ति अवसाद में जा सकता है।
  • आत्महत्या जैसा कदम उठाने की संभावना भी होती है।
  • डर से जुड़ी बीमारियां हो सकती हैं।
  • ओसीडी या ऑब्सेसिव कम्पल्सिव डिसऑर्डर हो सकता है।
  • ईटिंग डिसऑर्डर हो सकता है।
  • नशा करने की आदत पड़ सकती है।

कैसे हो सकता है ठीक

डॉ. सिद्दीकी बताती हैं कि जिस व्यक्ति को ये डिसऑर्डर होता है वो इसके बारे में कई बार नहीं पता लगा पाता लेकिन उसकी असामान्य आदतों से उसके परिवार वालों या दोस्तों को पता चल जाता है, ऐसे में वे उसे डॉक्टर के पास ले जा सकते हैं। वह बताती हैं कि दवाओं और काउंसलिंग से इस बीमारी को काफी हद तक ठीक किया जा सकता है।

इलियाना डिक्रूज़ को भी थी ये बीमारी

इंडियन एक्सप्रेस में 6 नवंबर 2017 को छपी ख़बर के मुताबिक, अभिनेत्री इलियाना डिक्रूज़ भी इस बीमारी का शिकार हो चुकी हैं। उन्होंने एक 21वीं वर्ल्ड कॉन्ग्रेस ऑफ मेंटल हेल्थ के एक इवेंट में अपने बारे में बताते हुए कहा, ''मैं हमेशा से ही सेल्फ कॉन्शियस पर्सन रही हूं अपनी बॉडी टाइप को लेकर गंभीर रही हूं, मैं हमेशा ही लो फील करती थी उदास महसूस रहती थी, लेकिन मुझे पता नहीं था कि मैं डिप्रेशन बॉडी डिस्मॉर्फिक डिसऑर्डर से परेशान हूं, मैं सिर्फ ये चाहती थी कि सब मुझे स्वीकार करें। एक मौके पर तो मेरे दिमाग में आत्महत्या के ख्याल आने लगे थे, मैं सब खत्म कर लेना चाहती थी। यह सब तब बदला जब मैंने खुद को स्वीकार किया जाना कि मैं किस दौर से गुजर रही हूं, यही डिप्रेशन से लड़ाई का पहला कदम होता है। इलियाना ने ये भी कहा कि डिप्रेशन वाकई होता है लोगों को इससे लड़ने के लिए मदद मांगने में नहीं शरमाना चाहिए।

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