मानसिक रोगों को न समझें पागलपन
Deepanshu Mishra | Oct 13, 2017, 20:00 IST
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। मानसिक रोग कोई पागलपन नहीं है। कई बार लोगों को पता ही नहीं चल पाता कि वह इस बीमारी का शिकार हैं। मानसिक रोग की शुरुआत होती है अवसाद से। आज की भागदौड़ की ज़िंदगी में लोगों में अवसाद बढ़ता जा रहा है। इसी का परिणाम है कि वर्ष 2020 तक अवसाद दुनिया की सबसे बड़ी बीमारी हो जाएगी। इन्हीं सब मुद्दों पर किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के मानसिक चिकित्सा विभाग के अध्यक्ष प्रो. पीके दलाल से गाँव कनेक्शन संवाददाता दिपांशु मिश्र की विशेष बातचीत।
जवाब- मानसिक रोग की परिधि में बहुत सारी बीमारियाँ आती हैं जैसे जो सबसे ज्यादा प्रचलित अवसाद, उलझन, घबराहट, शरीर में के जगहों पर दर्द होना बीमारियाँ है, जिन्हें सामान्य मानसिक विकार कहते हैं। ऐसी बीमारी जिसका कोई शारीरिक कारण नहीं होता है, लेकिन शारीरिक रूप से दिखाई देती हैं, सामान्य तौर पर इन्हें दैहिक विकार बोलते हैं।
इसके अलावा एक बहुत बढ़ा ग्रुप नशीले पदार्थों के सेवन करने वालों का देखा गया है, इसके अलावा एक और ग्रुप होता है जिसे सामान्य रूप से पागल के नाम से जानते हैं, लेकिन इस बीमारी से ग्रसित बहुत कम लोग होते हैं। इस पागलपन की बीमारी वाले लोग समाज में प्रचलित ज्यादा हो जाते हैं क्योंकि ये लोग तोड़-फोड़, गाली-गलौज, कपड़े उतार के फेक देना और लोगों से बुरा बर्ताव करने लगते हैं| ये सारी मुख्य मानसिक बीमारियाँ होती हैं।
जवाब- यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है हमारे देश की, जिसमें लोग मानसिक रोगों को छिपाने का प्रयास करते हैं। मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास जाने से परहेज करते हैं। मानसिक रोगों से पीड़ित लोगों का मानना होता है कि मानसिक रोग विशेषज्ञ पागलों के डॉक्टर हैं जबकि पागलपन की बीमारी एक प्रतिशत से भी कम होती है जबकि जो बाकी की बीमारियाँ अवसाद है उलझन, घबराहट और बार हाथ-पैर को धोना इस तरह की बीमारियाँ आती हैं।
सारी बीमारियों को सिर्फ पागलपन से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए और जब तक मरीज गंभीर स्थिति में नहीं पहुँच जाता है तबतक लोग उसे लेकर डॉक्टर के पास नहीं आते हैं। हमारा मानना है कि मानसिक बीमारी को व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव होने के बाद ही उसे तुरंत डॉक्टर के पास लेकर जाना चाहिए जिससे उसका इलाज हो सके और वो ठीक हो जाये।
जवाब- ग्रामीण क्षेत्रों में और शहरी क्षेत्रों में लक्षण एक ही जैसे होते हैं अवसाद की बीमारी है, जो सबसे ज्यादा प्रचलित है उसके बारे में बात करें तो इसमें नींद नहीं लगती है, भूख नहीं लगती है, शरीर का वजन कम हो रहा है, मन दुखी है, मन उदास है, किसी से भी मिलने का मन नहीं करता है, नकारात्मक बातें मन में बहुत आती हैं कि मैं कुछ कर नहीं कर सकता हूं, जब यह बीमारी बहुत आगे बढ़ जाती है तब दिमाग में आत्महत्या जैसे ख्याल आ जाते हैं। ऐसा होने पर उन्हें तुरंत डॉक्टर से मिलना चाहिए। कुछ लोगों को अँधेरे से दर लगता है लिफ्ट में जाने से दर लगता है बंद जगहों पर जाने से दर लगता है। ये सब ऐसी बीमारियाँ हैं जो जल्द ही ठीक हो जाती हैं इसलिए ऐसा कुछ भी होने पर डॉक्टर से सलाह जल्द ही लेनी चाहिए।
जवाब- झाड़ फूक में अपना समय बेकार करने की जगहों पर व्यक्ति में मानसिक रोगों का कोई भी लक्षण दिखाई दे तो जल्द ही अपने निकटतम मानसिक चिकित्सक को दिखा देना चाहिए। झाड़ फूक से किसी भी बीमारी का इलाज संभव नहीं है।
जवाब- मानसिक बीमारियों में थोड़ा अनुवांसिकता का लक्षण होता है अगर परिवार में किसी को मानसिक बीमारी है तो दूसरे व्यक्ति को मानसिक बीमारी के होने की सम्भावना बढ़ जाती है। इसके तो कुछ मनोवैज्ञानिक कारण भी हैं और कुछ समाजिक दबाव तनाव के कारण भी ये बीमारी हो जाती है| इस पूरी प्रक्रिया को मनोसामाजिक मॉडल कहते हैं।
मान लीजिये जब बच्चा बढ़ रहा है जन्म से वो कैसे कुछ बाते कैसे सीख रहा है परिवार का वातावरण कैसा है किस तरह से उसको पालपोस के बढ़ा करना है। वह आगे बढ़ता है तो वह किसी प्रकार के व्यसन का शिकार तो नहीं है उसके मित्रगण कैसे हैं वो पढ़ाई में कैसा है। वह कितना दबाव झेल पाता है वह कितनीं जल्दी परेशान हो जाता है। इन सब कारणों को मिलकर यह माना जाता है कि वह अवसाद का कारण बन जाता है।
जवाब- आधुनिक समय में लोग व्यस्त ज्यादा हो गये हैं अगर ग्रामीण क्षेत्रों की बात करें तो उन्हें काम करने के लिए शहर जाना पड़ता है और फिर से वापस गाँव जाना होता है। इसके बाद उनको अपने बारे में अपने परिवार के बारे में सोचने का या बात करने का समय नहीं मिल पाता है। इससे बचने के लिए संतुलिट् जीवन यापन करिए सुबह उठकर सूरज की रोशनी में व्यायाम करिए, इसके अलावा संतुलित आहार लीजिये, एक अनुशासन में रहिये समय से सोइए और समय से उठिए किसी भी व्यसन का शिकार न बनिए तनाव से दूर बने रहिये ये सब करने से व्यक्ति मानसिक रोगों से दूर रह सकता है लेकिन आधुनिक जीवनशैली में व्यक्ति इतना कार्य में व्यस्त है कि ये सब संभव नहीं हो पाता है।
जवाब- आज कल ये देखने में आ रहा है कि बच्चे आैर युवा इनका ज्यादा शिकार हो रहे हैं। जबसे स्मार्टफ़ोन आ गया है उसके बाद से इसका भी एक प्रकार का व्यसन और नशा शुरू हो गया है। इसकी वजह से लोगों का एक साथ बैठ कर बात करना आपस में चर्चा करना, साथ में भोजन करना ये सब कम होता जा रहा है। मनुष्य एकाकी होता जा रहा है और इसके कारण कई बार अवसाद जैसी बीमारी सामने आती हैं।
जवाब- अवसाद किसी भी उम्र के लोगाें को हो सकता है। हम बच्चों का भी इलाज करते हैं। ये नहीं सोचना चाहिए कि अभी इसकी उम्र क्या है? इसे अवसाद नहीं हो सकता है। अपने आप से इसका निर्णय खुद से नहीं करना चाहिए। डॉक्टर से सलाह ले लेनी चाहिए। उनसे परामर्श जरूर लेना चाहिए। कुछ लोगों का मानना है कि बच्चों को दवाई नहीं देनी चाहिए। ये जरूरी नहीं है कि इसका इलाज सिर्फ दवाई से ही हो सकता है, लेकिन डॉक्टर से परामर्श जरूर लेना चाहिए।
जवाब- आत्महत्या को रोकने के लिए ही हम लोग कहते हैं कि अवसाद का प्रारम्भिक लक्षण दिखते ही डॉक्टर से मिलना चाहिए। धीरे-धीरे व्यक्ति में नकारात्मक से सोच जन्म लेने लगती है। उसे यह लगने लगता है कि वह कुछ कर नहीं सकता है, उसका जीवन बेकार है, मेरी वजह से घर वाले परेशान हैं, बेहतर है कि मैं इस दुनिया में न रहूं। आठ से नौ प्रतिशत लोग जो अवसाद से ग्रसित होते हैं उनमें से 15 प्रतिशत अवसाद से ग्रसित व्यक्ति आत्महत्या कर लेते हैं और काफी लोग आत्महत्या का प्रयास करते हैं। इसलिए अवसाद का लक्षण दिखाई देने पर डॉक्टर से मिलें।
लखनऊ। मानसिक रोग कोई पागलपन नहीं है। कई बार लोगों को पता ही नहीं चल पाता कि वह इस बीमारी का शिकार हैं। मानसिक रोग की शुरुआत होती है अवसाद से। आज की भागदौड़ की ज़िंदगी में लोगों में अवसाद बढ़ता जा रहा है। इसी का परिणाम है कि वर्ष 2020 तक अवसाद दुनिया की सबसे बड़ी बीमारी हो जाएगी। इन्हीं सब मुद्दों पर किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज के मानसिक चिकित्सा विभाग के अध्यक्ष प्रो. पीके दलाल से गाँव कनेक्शन संवाददाता दिपांशु मिश्र की विशेष बातचीत।
सवाल- मानसिक रोग क्या होता है?
इसके अलावा एक बहुत बढ़ा ग्रुप नशीले पदार्थों के सेवन करने वालों का देखा गया है, इसके अलावा एक और ग्रुप होता है जिसे सामान्य रूप से पागल के नाम से जानते हैं, लेकिन इस बीमारी से ग्रसित बहुत कम लोग होते हैं। इस पागलपन की बीमारी वाले लोग समाज में प्रचलित ज्यादा हो जाते हैं क्योंकि ये लोग तोड़-फोड़, गाली-गलौज, कपड़े उतार के फेक देना और लोगों से बुरा बर्ताव करने लगते हैं| ये सारी मुख्य मानसिक बीमारियाँ होती हैं।
सवाल- मानसिक बीमारियों को लोग गंभीरता से नहीं लेते और उन्हें छिपाने का प्रयास क्यों करते हैं?
सारी बीमारियों को सिर्फ पागलपन से जोड़ कर नहीं देखा जाना चाहिए और जब तक मरीज गंभीर स्थिति में नहीं पहुँच जाता है तबतक लोग उसे लेकर डॉक्टर के पास नहीं आते हैं। हमारा मानना है कि मानसिक बीमारी को व्यक्ति के व्यवहार में बदलाव होने के बाद ही उसे तुरंत डॉक्टर के पास लेकर जाना चाहिए जिससे उसका इलाज हो सके और वो ठीक हो जाये।