प्रदूषण वाले ईंधन में कटौती कर भारत में हर साल बच सकती है 2.7 लाख लोगों की जान

अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया के प्राध्यापक क्रिक आर स्मिथ का कहना है, घरेलू (रसोई में इस्तेमाल होने वाले) ईंधन भारत में आउटडोर वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है

Chandrakant MishraChandrakant Mishra   3 May 2019 11:27 AM GMT

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प्रदूषण वाले ईंधन में कटौती कर भारत में हर साल बच सकती है 2.7 लाख लोगों की जानप्रतीकात्मक तस्वीर साभार : इंटरनेट

लखनऊ। लकड़ी, उपले, कोयले और केरोसिन जैसे प्रदूषण फैलाने वाले ईंधन से होने वाले उत्सर्जन पर रोक लगा कर भारत सालाना करीब 2,70,000 लोगों की जान बचा सकता है। एक अध्ययन में यह दावा किया गया है, जिसमें आईआईटी दिल्ली के शोधार्थी भी शामिल हैं।

अध्ययन के मुताबिक औद्योगिक या वाहनों से उत्सर्जन मे कोई बदलाव किए बगैर ईंधन के इन स्रोतों से उत्सर्जन का उन्मूलन करने से बाहरी (आउटडोर) वायु प्रदूषण का स्तर देश के वायु गुणवत्ता मानक से कम हो जाएगा। यह अध्ययन प्रोसीडिंग्स ऑफ नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज जर्नल में प्रकाशित हुआ है।

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प्रतीकात्मक तस्वीर साभार: इंटरनेट

नेशनल चेस्ट सोसाइटी के पूर्व अध्यक्ष प्रो. राजेंद्र प्रसाद बताते हैं, " भारत के ग्रामीण इलाकों में आज भी ज्यादातर महिलाएं चूल्हे पर खाना पकाती हैं, जिसमें वे लकड़ी और कंडे का प्रयोग करती हैं। इससे निकलने वाला धुआं सीओपीडी की सबसे बड़ी वजह है। यह धूआं सिगरेट से निकलने वाले धूएं के बराबर ही हानिकारक होता है।"

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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली के सागनिक डे सहित शोधार्थियों के मुताबिक प्रदूषण फैलाने वाले घरेलू ईंधनों के उपयोग में कमी करने से देश में वायु प्रदूषण संबंधी मौतें करीब 13 प्रतिशत घट जाएंगी, जिससे एक साल में करीब 2,70,000 लोगों की जान बच सकती है। अमेरिका के यूनिवर्सिटी ऑफ कैलीफोर्निया के प्राध्यापक क्रिक आर स्मिथ ने कहा, घरेलू (रसोई में इस्तेमाल होने वाले) ईंधन भारत में आउटडोर वायु प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत है।

प्रतीकात्मक तस्वीर साभार: इंटरनेट

किसी आम चूल्हे पर खाना पकाने की अपेक्षा मिटटी के चूल्हे पर खाना पकाने वाली महिलाओं को फेफड़े की समस्या ज़्यादा होती है। चूल्हों से निकलने वाला धुवां सीधे महिलाओं के संपर्क में रहता है, इसलिए खांसी होने का खतरा ज़्यादा होता है और ध्यान न दिया जाए तो यह टीबी जैसी खतरनाक बीमारी की शक्ल भी ले सकता है।

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विकासशील देशों में सीओपीडी से होने वाली करीब 50 प्रतिशत मौतें बायोमास के धुएं के कारण होती हैं, जिसमें से 75 प्रतिशत महिलाएं हैं। बायोमास ईंधन लकड़ी, पशुओं का गोबर, फसल के अवशेष, धूम्रपान करने जितना ही जोखिम पैदा करते हैं। इसीलिए महिलाओं में सीओपीडी की करीब तीन गुना बढ़ोतरी देखी गई है। खासकर ग्रामीण इलाकों में महिलाएं और लड़कियां रसोईघर में अधिक समय बिताती हैं।


वर्ष 2017 में हृदय रोग के बाद'क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज' (सीओपीडी) भारत में मौत का दूसरा सबसे बड़ा कारण था। वाशिंगटन विश्वविद्यालय के ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी, 2018 के अनुसार 2017 में लगभग 10 लाख (958,000) भारतीयों की मृत्यु इस रोग के कारण हुई है। भारत में होने वाली कुल मौतों में से 13 फीसदी सीओपीडी के कारण हुई है और 2016 में 75 लाख लोगों को बीमारी का खतरा था, जैसा कि इंडियास्पेंड ने जनवरी 2018 में बताया है।

इनपुट: भाषा

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